सोशल मीडिया को हथियार बना रही हैं डिब्बा बंद दूध कंपनियां, डब्ल्यूएचओ ने चेताया

यह बड़ी कंपनियां इस कपटपूर्ण भ्रामक तरीके से अपनी सामग्री को माता-पिता तक पहुंचा रही है जिसे अक्सर विज्ञापन के रूप में नहीं पहचाना जा सकता

By Lalit Maurya

On: Friday 29 April 2022
 

क्या आपको पता है कि बड़ी फार्मूला मिल्क कंपनियां माता-पिता, विशेष रूप से माओं को लुभाने के लिए सोशल मीडिया सहित सभी ऑनलाइन प्लेटफॉर्म पर गलत तरीके से प्रचार प्रसार कर रही हैं। इस बारे में विश्व स्वास्थ्य संगठन ने लोगों को आगाह किया है कि यह बड़ी कंपनियां गर्भवती महिलाओं और माओं तक उनके जीवन के सबसे संवेदनशील पलों में सीधी पहुंच हासिल करने के लिए सोशल मीडिया और डिजिटल प्लेटफॉर्म का गलत तरीके से इस्तेमाल का रही हैं।

इस मार्केटिंग के लिए वो अच्छी-खासी रकम का भुगतान भी कर रही हैं। डब्लूएचओ के अनुसार यह बड़ी कंपनियां इस कपटपूर्ण तरीके से अपनी सामग्री को लोगों तक पहुंचा रही है जिसे अक्सर विज्ञापन के रूप में नहीं पहचाना जा सकता है। गौरतलब है कि फार्मूला मिल्क का यह व्यापार 4.2 लाख करोड़ का है।

इस बारे में विश्व स्वास्थ्य संगठन ने “स्कोप एंड इम्पैक्ट ऑफ डिजिटल मार्केटिंग स्ट्रेटेजीस फॉर प्रमोटिंग ब्रैस्ट-मिल्क सब्स्टिट्यूटस” नामक एक नई रिपोर्ट भी जारी की है। इस रिपोर्ट में डब्ल्यूएचओ ने उन डिजिटल मार्केटिंग तकनीकों की रूपरेखा तैयार की है जिनकी मदद से यह कंपनियां नए माता-पिता बने लोगों और उनके परिवारों को बच्चों को खिलाने के तरीकों और उससे जुड़े निर्णयों को प्रभावित करने के लिए डिजाईन किया गया है।

इन विज्ञापनों का मकसद लोगों को इस तरह से प्रभावित करना है, जिससे वो अपने बच्चों को स्तनपान कराने की जगह उनके डिब्बाबंद दूध या अन्य सामग्री का उपयोग करें। पता चला है कि यह कंपनियां ऐप, वर्चुअल सपोर्ट ग्रुप, 'बेबी-क्लब', पेड सोशल मीडिया इन्फ्लुएंसर, प्रमोशन और प्रतियोगिताएं और एडवाइस फोरम या सेवाओं जैसे टूल की मदद से व्यक्तिगत जानकारी एकत्र या खरीद रहीं हैं। इस जानकारी का इस्तेमाल वो गर्भवती महिलाओं और माओं तक व्यक्तिगत प्रचार भेजने के लिए कर रही हैं।

इस रिपोर्ट में जो आंकड़ें सामने आए हैं वो चौंका देने वाले हैं। अपने इस अध्ययन में शोधकर्ताओं ने जनवरी से जून 2021 के बीच शिशु आहार के बारे में प्रकाशित 40 लाख पोस्ट का विश्लेषण किया था। यह पोस्ट 247 करोड़ लोगों तक पहुंची थी। जिन्हें 1.2 करोड़ से ज्यादा लोगों ने लाइक, शेयर या कमेंट किया था। 

पता चला है कि यह फॉर्मूला मिल्क कंपनियां अपने सोशल मीडिया अकाउंट पर हर रोज औसतन 90 बार कंटेंट पोस्ट करती हैं, जो 22.9 करोड़ यूज़र्स तक पहुंचता है। देखा जाए तो यह उन लोगों से तीन गुना ज्यादा है जिन तक स्तनपान सम्बन्धी जानकारी नॉन कमर्शियल पोस्ट के माध्यम पहुंचती है। 

भारत में भी बड़े पैमान पर चल रहा है यह व्यापार

देखा जाए तो व्यापक रूप से फैला मार्केटिंग का यह मायाजाल माओं को स्तनपान की जगह फार्मूला मिल्क देने के लिए उकसा रहा है, जिससे उसकी बिक्री बढ़ रही है।

इस बारे में डब्ल्यूएचओ के पोषण और खाद्य सुरक्षा विभाग के निदेशक डॉ फ्रांसेस्को ब्रांका का कहना है कि "डिब्बाबंद दूध का यह कमर्शियल प्रचार दशकों पहले समाप्त कर दिया जाना चाहिए था। तथ्य यह है कि यह फॉर्मूला मिल्क कंपनियां अब अपनी बिक्री को बढ़ाने के लिए पहले से ज्यादा शक्तिशाली और कपटी विपणन तकनीकों का इस्तेमाल कर रही हैं, यह माफी योग्य नहीं है और इसे जल्द रोका जाना चाहिए।"

इस रिपोर्ट में भारत से जुड़े सच को भी उजागर किया है जिसके अनुसार 2019/20 के दौरान भारत में आयोजित मीडिया मॉनिटरिंग ने चार महीने की अवधि में स्तनपान के विकल्प इन डिब्बाबंद दूध और आहार को बढ़ावा देने वाली डिजिटल मार्केटिंग गतिविधियों में वृद्धि दर्ज की थी। पता चला है कि इसमें रिटेल वेबसाइटस की सबसे बड़ी भूमिका थी। इसके बाद ट्विटर और यूट्यूब पर इस तरह के प्रचार को दर्ज किया गया था।

अपनी इस रिपोर्ट में डब्लूएचओ ने ऑनलाइन कम्युनिकेशन पर की रिसर्च और देशों द्वारा मां के दूध के विकल्प के रूप में प्रयोग किए जा रहे डिब्बाबंद दूध/ आहार के प्रमोशन को लेकर जारी रिपोर्ट को शामिल किए है। साथ ही कई देशों में महिलाओं और स्वास्थ्य विशेषज्ञों की इस बारे में क्या अनुभव है उसको लेकर जारी रिपोर्ट के निष्कर्षों को भी शामिल किया है। 

इन अध्ययनों से पता चला है कि कैसे यह भ्रामक मार्केटिंग विज्ञापन,  स्तनपान के बारे में मिथकों को फैला रहे हैं और उनकी मदद से महिलाओं के आत्मविश्वास को कम कर रहे हैं, जिससे उनके मन में अपनी सफलतापूर्वक स्तनपान कराने सम्बन्धी आत्मविश्वास में कमी आ सके।

गौरतलब है कि डिजिटल मार्केटिंग की मदद से डिब्बा बंद दूध का यह प्रचार स्पष्ट रूप से स्तनपान के विकल्प की मार्केटिंग को लेकर बनाए इंटरनेशनल कोड का उल्लंघन करता है, जिसे 1981 में विश्व स्वास्थ्य सभा द्वारा अपनाया गया था। देखा जाए तो यह कोड सार्वजनिक स्वास्थ्य से जुड़ा एक ऐतिहासिक समझौता है जिसे आम जनता और माओं को शिशु खाद्य उद्योग की आक्रामक मार्केटिंग प्रथाओं से बचाने के लिए डिजाईन किया गया था। जो स्तनपान को बढ़ावा देने से रोकती हैं।

क्यों जरुरी है शिशुओं को स्तनपान

विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा जारी आंकड़ों के अनुसार 2016 में वैश्विक स्तर पर, 5 वर्ष से कम आयु के करीब 15.5 करोड़ बच्चों का विकास पूरी तरह नहीं हुआ था। वहीं 5.2 करोड़ बहुत ज्यादा पतले थे जबकि 4.1 करोड़ बच्चों का वजन सामान्य से ज्यादा था।

इन सबके लिए कहीं न कहीं कुपोषण जिम्मेवार था। अनुमान है कि यदि सभी बच्चों को 0 से 23 महीने की आयु में स्तनपान कराया जाए तो इसकी मदद से हर वर्ष पांच या उससे कम आयु के 8.2 लाख बच्चों की जान बचाई जा सकती है। इससे न केवल बच्चों के बौद्धिक विकास में वृद्धि होगी साथ ही स्कूल में उनकी उपस्थिति में भी सुधार आएगा।

इतना ही नहीं क्या आपको पता है मां के दूध में ग्लिसरॉल मोनोलॉरेट (जीएमएल) नामक एक ऐसा घटक पाया जाता है, जो की हानिकारक बैक्टीरिया की वृद्धि को रोक सकता है। इसके साथ ही यह लाभकारी बैक्टीरिया को पनपने में सहायता करता है। जर्नल साइंटिफिक रिपोर्ट्स में छपे एक अध्ययन के मुताबिक जीएमएल मां के दूध में गायों से प्राप्त होने वाले दूध की तुलना में करीब 200 गुना अधिक होता है, जबकि बच्चों के लिए बनाये जा रहे डिब्बा बंद दूध में इसकी मात्रा न के बराबर होती है।   

आजकल बहुत सी माएं अपने नवजात शिशुओं को डिब्बाबंद दूध और सामग्री का सेवन कराती हैं। वो ऐसा इसलिए करती हैं कि उनको लगता है कि यह डिब्बाबंद दूध, स्वास्थ्य के लिए कहीं ज्यादा फायदेमंद होता है। लेकिन यह सच नहीं है, शिशुओं के पहले आहार के रूप में मां का दूध ही सर्वोत्तम होता है।

इस बारे में पुख्ता सबूत मौजूद हैं कि मां का दूध बच्चों के स्वास्थ्य के लिए कितना जरुरी है। इसके बावजूद अभी भी वैश्विक स्तर पर बहुत कम बच्चों को वो दूध नसीब होता है। ऐसे में फार्मूला मिल्क को लेकर यदि इस तरह की मार्केटिंग रणनीति जारी रहती है, तो भविष्य में यह अनुपात और भी गिर सकता है, जिसका फायदा इन कंपनियों को होगा।

तथ्य यह है कि इस तरह की डिजिटल मार्केटिंग रणनीतियां राष्ट्रीय स्तर पर की जा रही निगरानी और स्वास्थ्य अधिकारियों की जांच से बच सकती हैं। ऐसे में इस कोड के कार्यान्वयन, नियमन और प्रवर्तन के लिए नए दृष्टिकोण की आवश्यकता है।

तथ्य यह है कि इस तरह की डिजिटल मार्केटिंग रणनीतियां राष्ट्रीय स्तर पर की जा रही निगरानी और स्वास्थ्य अधिकारियों की जांच से बच सकती हैं। ऐसे में इस कोड के कार्यान्वयन, नियमन और प्रवर्तन के लिए नए दृष्टिकोण की आवश्यकता है। ऐसे में कोई भी किसी दूसरे देश में बैठकर किसी अन्य देश में आसानी से डिजिटल तकनीकों की मदद से इस तरह का प्रचार का सकता है। राष्ट्रीय सीमा से परे होने के कारण वो कानून से भी बच सकता है। 

ऐसे में डब्ल्यूएचओ ने बच्चों की खाद्य सामग्री बनाने वाली कंपनियों से फार्मूला मिल्क संबंधी इस तरह के भ्रामक विज्ञापन और प्रचार को बंद करने की बात कही है। साथ ही सरकारों से भी अपील की है कि वो इसे रोकने के लिए निगरानी के साथ-साथ, इससे जुड़े कड़े कानून बनाए, जिससे यह कंपनियां अपने फायदे के लिए बच्चों के स्वास्थ्य और भविष्य से खिलवाड़ न कर सकें।

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