क्या दिल्ली विस चुनाव में दिखेगा मोहल्ला क्लिनिक का असर?

आठ फरवरी को दिल्ली में विधानसभा चुनाव होने हैं

By Bhagirath Srivas

On: Wednesday 05 February 2020
 
दिल्ली के संगम विहार निवासी वहीद अहमद अपने बच्चों का इलाज अपने पास के मोहल्ला क्लिनिक से ही कराते हैं। फोटो: भागीरथ

संगम विहार में रहने वाले वहीद अहमद की आमदनी इतनी नहीं है कि वह प्राइवेट अस्पतालों में इलाज करा सकें। चार बच्चों के पिता वहीद हर महीने आठ से नौ हजार रुपए कमाते हैं। वहीद सात महीने पहले तक इलाज के लिए मालवीय नगर स्थित मदन मोहन मालवीय अस्पताल जाते थे। यह अस्पताल उनके घर से करीब आठ किलोमीटर दूर है। अस्पताल आने-जाने और इलाज कराने में उनका आधे से ज्यादा दिन बर्बाद हो जाता था। जब भी अस्पताल जाना होता है, उनकी दिहाड़ी मारी जाती थी। लेकिन अब स्थिति बदल गई है। डॉक्टर और दवाइयों की जरूरत महसूस होने पर वह अपने घर के पास चल रहे मोहल्ला क्लिनिक में पहुंच जाते हैं।

महरौली-बदरपुर रोड पर स्थित बत्रा अस्पताल के पास स्थित मोहल्ला क्लिनिक में अपनी बेटी को लेकर पहुंचे वहीद बताते हैं कि मोहल्ला क्लिनिक शुरू होने के बाद उन्हें काफी सहूलियत हो गई है। वह सात महीने से यहां आ रहे हैं। सर्दी, जुकाम, बुखार और अन्य मौसमी बीमरियों होने पर वह यहां पहुंच जाते हैं। यहां की दवाइयां उन्हें सूट कर रही हैं। अब इलाज कराने के लिए उन्हें छुट्टी नहीं लेनी पड़ती। घर के नजदीक मोहल्ला क्लिनिक होने के कारण एक से डेढ़ घंटे में काम हो जाता है।

वहीद बताते हैं कि मजबूरी में प्राइवेट डॉक्टर को दिखाने पर फीस और दवाओं पर कम से कम 500 रुपए खर्च हो जाते थे। अब यह पैसा बच रहा हे। इस मोहल्ला क्लिनिक में वहीद जैसे औसतन 150 लोग रोज इलाज कराने पहुंचते हैं। किसी-किसी दिन यह संख्या 200 तक भी पहुंच जाती है।

संगम विहार एशिया की सबसे बड़ी अवैध कॉलोनी मानी जाती है। यहां बड़ी संख्या में कामगार और निम्न तबके के लोग रहते हैं। ऐसे लोगों को मोहल्ला क्लिनिक बेहद रास आ रहे हैं। संगम विहार में ऐसे चार मोहल्ला क्लिनिक चल रहे हैं।

देवली विधानसभा में रहने वाले नगेंद्र यादव मार्केटिंग का काम करते हैं। वह बताते हैं कि हर बार मोहल्ला क्लिनिक जाने पर कम से कम 500-600 रुपए की बचत होती है। इसकी सबसे अच्छी बात यह है कि काम पर जाते समय रास्ते में पड़ने वाले मोहल्ला क्लिनिक में इलाज करा सकते हैं। उन्हें बस मोहल्ला क्लिनिक के 2 बजे बंद होने की शिकायत है। नगेंद्र बताते हैं कि मोहल्ला क्लिनिक शाम 7 बजे तक खोले जाएं जिससे अधिकतम लोगों को फायदा हो।

मोहल्ला क्लिनिक को आम आदमी पार्टी की सरकार अपनी सबसे बड़ी उपलब्धियों में एक बताती है। दिल्ली विधानसभा चुनाव में पार्टी मोहल्ला क्लिनिक के नाम पर भी वोट मांग रही है। ऐसा पहली बार है कि कोई पार्टी स्वास्थ्य के क्षेत्र में किए गए अपने काम के आधार पर वोट मांग रही है।

दिल्ली सरकार ने पहली मोहल्ला क्लिनिक 19 जुलाई 2015 को पश्चिमी दिल्ली के पीरागढ़ी में एक झुग्गी बस्ती के पास खोली थी। दिसंबर 2016 तक 106 मोहल्ला क्लिनिक की शुरुआत हो गई। 5 जनवरी 2019 को 150 मोहल्ला क्लिनिक के उद्घाटन के साथ इनकी संख्या बढ़कर 450 हो गई है। हालांकि आम आदमी पार्टी ने ऐसी 1,000 मोहल्ला क्लिनिक खोलने का वादा किया था।

क्या लोग संतुष्ट हैं?

जर्नल ऑफ फैमिली मेडिसन एंड प्राइमरी केयर में जनवरी 2017 में प्रकाशित चंद्रकात लहरिया का अध्ययन बताता है कि जुलाई 2016 तक करीब 8 लाख लोगों ने मोहल्ला क्लिनिक से लाभ लिया। दिल्ली सरकार का दावा है कि मोहल्ला क्लिनिक में 2015 से 30 नवंबर 2019 तक 2 करोड़ लोगों का इलाज किया गया है और 18 लाख ज्यादा जांच की गई है।   

दिल्ली के मोहल्ला क्लिनिक ने बड़े अस्पतालों पर भार भी कम कर दिया है। अध्ययन बताता है कि सितंबर-अक्टूबर 2016 में जब दिल्ली में डेंगू और चिकनगुनिया का प्रकोप फैला, तब बड़ी संख्या में लोग जांच के लिए मोहल्ला क्लिनिक में उमड़ पड़े। इससे बड़े अस्पतालों को बहुत राहत मिली।

जवाहरलाल विश्वविद्यालय की नाओमी हजारिका के अध्ययन के मुताबिक, 80-100 प्रतिशत लोग मोहल्ला क्लिनिक की सेवाओं, लोकेशन, बुनियादी सुविधाओं और डॉक्टरों से संतुष्ट हैं। इंटरनेशनल जर्नल ऑफ रिसर्च इन इकोनोमिक्स एंड सोशल साइंसेस (आईजीआरईएसएस) में मई 2017 में प्रकाशित श्रीराम कॉलेज ऑफ कॉमर्स की पूर्व सहायक प्रोफेसर कोमल व श्यामा प्रसाद मुखर्जी कॉलेज के असोसिएट प्रोफेसर प्रीति राय का अध्ययन बताता है कि इन क्लिनिक में आने वाले अधिकांश लोग निम्न व मध्यम आय वर्ग के हैं। ये क्लिनिक बच्चों, महिलाओं और बुजुर्गों के लिए विशेष रूप से उपयोगी हैं। अध्ययन में दिल्ली के 14 मोहल्ला क्लिनिक को शामिल किया। कोमल और प्रीति राय ने अपने अध्ययन में पाया कि मोहल्ला क्लिनिक में डॉक्टर की परामर्श शुल्क के रूप में 100 से 1000 रुपए की बचत हुई है जबकि विभिन्न जांचों से 100 से 2,500 रुपए लोगों के बचे हैं।

स्वास्थ्य पर खर्च

भारत विश्व के उन 20 देशों में शामिल है जो निजी स्वास्थ्य सेवाओं पर सबसे अधिक खर्च करते हैं। जीडीपी का 4.2 प्रतिशत हिस्सा निजी स्वास्थ्य सेवाओं पर खर्च होता है।

वहीं दूसरी तरफ भारत सार्वजनिक स्वास्थ्य पर सबसे कम खर्च करने वाले देशों में शामिल है। भारत सार्वजनिक स्वास्थ्य पर निम्न आय वर्ग वाले देशों से भी कम खर्च करता है। 2015-16 से भारत अपनी जीडीपी का 1.02 से 1.28 प्रतिशत हिस्सा ही सार्वजनिक स्वास्थ्य पर खर्च कर रहा है।

अगर राज्यों की बात करें तो दिल्ली सार्वजनिक स्वास्थ्य पर सबसे अधिक खर्च करने वाला राज्य है। दिल्ली ने 2018-19 में अपने कुल खर्च का 12.7 हिस्सा सार्वजनिक स्वास्थ्य पर खर्च किया। भारत के अधिकांश राज्यों का स्वास्थ्य पर खर्च 4 से 6 प्रतिशत के बीच है। महाराष्ट्र ने तो 3.7 प्रतिशत हिस्सा ही स्वास्थ्य पर खर्च किया।

नेशनल हेल्थ प्रोफाइल 2018 के अनुसार, भारत प्रति व्यक्ति स्वास्थ्य पर साल में 1,102 रुपए खर्च करता है। यानी एक व्यक्ति के स्वास्थ्य पर प्रतिदिन महज तीन रुपए खर्च किए जाते हैं। बिहार साल में प्रति व्यक्ति स्वास्थ्य पर महज 491 रुपए खर्च करता है। स्वास्थ्य पर कम खर्च होने के कारण भारत के अधिकांश गरीबों से स्वास्थ्य सेवाएं दूर हो जाती हैं। नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो (एनसीआरपी) की ताजा रिपोर्ट बताती है कि भारत में आत्महत्या का दूसरा सबसे बड़ा कारण बीमारियां हैं। 2018 में 17.7 आत्महत्याएं बीमारियां के कारण हुई हैं।

ये तमाम आंकड़े बताते हैं भारत सार्वजनिक स्वास्थ्य पर खर्च बढ़ाने की सख्त जरूरत है। दिल्ली का स्वास्थ्य मॉडल खासकर मोहल्ला क्लिनिक सार्वभौमिक व प्राथमिक स्वास्थ्य की दिशा में बेहतर कदम हो सकता है। झारखंड की नव निर्वाचित सरकार ने दिल्ली के स्वास्थ्य मॉडल को अपनाने की इच्छा जताई है। देश के अन्य भी यह मॉडल अपनाकर प्राथमिक स्वास्थ्य सेवाओं को मजबूती प्रदान कर सकते हैं।

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