देश के 15 जिलों की जमीनी पड़ताल-2 : अरुणाचल में कैसे बिगड़े हालात

डाउन टू अर्थ ने कोरोना से सबसे अधिक प्रभावित 15 जिलों की जमीनी पड़ताल की। इस भाग में पढ़ें, अरुणाचल प्रदेश का हाल-

By Ranju Dodum

On: Wednesday 28 July 2021
 
अरुणाचल प्रदेश में कोविड-19 की जांच करता स्वास्थ्य कर्मी। फोटो: मिंगा शेरपा

पहली कड़ी में आपने पढ़ा, कोरोना की दूसरी लहर ने कैसे गांव-गांव तक अपनी पहुंच बनाई  । पढ़ें, अगली कड़ी- 

एक ऐसे राज्य के लिए जहां  दिसंबर 2020 से लगातार पांच महीनों तक कोविड-19 की वजह से मौत का एक भी मामला दर्ज नहीं किया हो, संख्या में अचानक वृद्धि चौंकाने वाली हो सकती है। कुछ ऐसा ही हुआ, जब मई के पहले सप्ताह में चांगलांग जिले में देश की उच्चतम पॉजिटिविटी दर 91.5 प्रतिशत दर्ज की गई। हालांकि अधिकारियों ने रिपोर्ट को तुरंत खारिज कर दिया। डाउन टू अर्थ से बात करते हुए, राज्य के स्वास्थ्य सचिव पी पार्थिबन ने कहा, यह आंकड़ा गलत था और  सूचना को सुधारने के लिए केंद्र को एक पत्र भी भेजा गया था। 21 मई को, उच्च पॉजिटिविटी दर वाले जिलों की सूची में चांगलांग फिर से सबसे ऊपर आया । 

म्यांमार के साथ अंतरराष्ट्रीय सीमा साझा करने वाले जिले चांगलांग के डिप्टी कमिश्नर, देवांश यादव यहां संक्रमण के लिए जिम्मेदार कारणों को गिनाते हैं, “यह राजधानी क्षेत्र के बाद दूसरा सबसे अधिक आबादी वाला जिला है, जो इस तरह के उच्च केस लोड का कारण हो सकता है। इसके अलावा हमारी असम के साथ की सीमा भी पूर्णतया सील नहीं है और वहां पहले से ही कोविड के कई मामले हैं। संक्रमण के प्रसार को रोकना उनके प्रशासन के लिए एक बड़ी चुनौती है और  जैसा कि यादव कहते हैं, बहुत से लोग सोचते रहे कि कोविड -19 एक वायरल बुखार है और वे खुद का परीक्षण कराने के लिए तैयार नहीं थे। गांवों में जागरूकता अभियानों के बावजूद कई लोग मास्क पहनने और सामाजिक दूरी बनाए रखने के प्रोटोकॉल का पालन नहीं करना चाहते हैं। अप्रैल 2020 और मई 2021 के बीच, राज्य भर में 7,667 लोगों को कोविड-उपयुक्त व्यवहार का उल्लंघन करने के लिए दंडित किया गया है।

हालांकि, एक ऐसे राज्य में जहां कम से कम 26 विविध जनजातियां हैं और प्रत्येक की अपनी विशिष्ट निर्धारित जीवन शैली है और जिस राज्य की टोपोग्राफी आर्द्र मैदानों से लेकर अल्पाइन पहाड़ों को समेटे हुए है, वहां वायरस के प्रसार के कारण भी कई हैं। ऊपरी सियांग जिला हिमालय की तलहटी में स्थित है और त्संगपो नदी ब्रह्मपुत्र बनने से पहले तिब्बत से भारत में यहीं से प्रवेश करती है। यहां भी 21 मई से पहले के सप्ताह में 61.4 प्रतिशत की उच्च पॉजिटिविटी दर दर्ज की गई।

जिला चिकित्सा अधिकारी दुबोम बागरा का कहना है कि सबसे ज्यादा प्रभावित गांव आदी जनजाति के हैं। इन समुदायों ने ईटोर मनाया। यह एक वार्षिक उत्सव है, जो फसलों को जंगली जानवरों द्वारा तबाह किए जाने से बचाने के लिए खेत में बाड़ लगाने के उपलक्ष्य में मनाया जाता है। जैसा कि होता आया है, सामुदायिक सभाएं और दावतें आयोजित की गईं और हो सकता है कि उन्होंने वायरस के प्रसार में योगदान दिया हो।

दिबांग घाटी में, जहां 21 मई को 38.1 प्रतिशत की पॉजिटिविटी दर दर्ज की गई, जिला उपायुक्त मिंगा शेरपा ने मामलों में वृद्धि के लिए पड़ोसी जिले लोअर दिबांग घाटी को जिम्मेदार ठहराया। यह जिला असम के साथ सीमा साझा करता है। वे कहते हैं, “दोनों जिलों के बीच लोगों की आवाजाही लगातार बनी रहती है। इसलिए रोइंग (निचली दिबांग घाटी का मुख्यालय) को प्रभावित करने वाले किसी भी संक्रमण का असर अनिनी (दिबांग घाटी का मुख्यालय) में देर-सबेर अवश्य होगा।” 

टेस्ट और टीकाकरण भी एक चुनौती है क्योंकि दिबांग घाटी का जनसंख्या घनत्व एक व्यक्ति प्रति वर्ग किमी है। इन बिखरी हुई बस्तियों में हर इंसान तक पहुंचना मुश्किल होता है । शेरपा कहते हैं, “10 लोगों की आबादी वाले 10 गांवों की तुलना में 100 लोगों  के एक  गांव का टीकाकरण करना आसान है।”

अरुणाचल प्रदेश के ग्रामीण जिलों के लिए चुनौतियां यहीं खत्म नहीं हुई। हालांकि सरकार ने दो सप्ताह की देरी के बाद, 17 मई को वैक्सीन रोलआउट का तीसरा चरण शुरू किया था लेकिन  कई लोगों ने शिकायत की कि वे खराब दूरसंचार नेटवर्क के कारण कोविन पोर्टल पर पंजीकरण नहीं करा पाए।

टीकाकरण के लिए राज्य प्रभारी, डिमोंग पदुंग का कहना है कि राज्य सरकार द्वारा अपनी परेशानी बताए जाने के बावजूद केंद्र टीकाकरण के इच्छुक लोगों के ऑनलाइन पंजीकरण पर जोर दे रहा है। उनका सुझाव है कि लोगों को टीका लगवाने के लिए राज्य में ऑफलाइन और ऑनलाइन पंजीकरण का एक मिश्रित तरीका अपनाया जाना चाहिए।

भोजन, उर्वरकों की सप्लाई में बाधा 

अरुणाचल प्रदेश के ग्रामीण जिलों में लोग कोविड-19 या टीकों से अधिक अपनी आजीविका के बारे में चिंतित हैं, जो राज्य सरकार द्वारा लगाए गए लॉकडाउन और अन्य कोविड-संबंधी प्रतिबंधों के कारण प्रभावित हुई है। कामिन पर्टिन अपर सियांग के अर्ध-शहरी शहर मरियांग में एक छोटे से जनरल स्टोर के मालिक हैं। यह शहर राज्य की राजधानी ईटानगर से 350 किमी और राज्य के सबसे पुराने शहर पासीघाट से 80 किमी दूर है।

खराब नेटवर्क पर मरियांग से फोन पर पर्टिन ने डाउन टू अर्थ को बताया कि उनके शहर में सुबह 9 से 10 बजे के बीच केवल एक घंटे के लिए दुकानों को खोलने की अनुमति दी गई है। वे कहते हैं, “दुकान खोलना, सामान व्यवस्थित करना और अंत में दुकान बंद करने का समय हटाकर आखिरकार हमारे पास लगभग 40-50 मिनट ही बचते हैं जब हम वास्तव में कुछ भी बेच सकते हैं।” उन्हें अपनी दुकान के लिए सौदा लाने में भी मुश्किलों का सामना करना पड़ रहा है।

सरकार द्वारा एक वाहन में एक साथ यात्रा करने वाले लोगों की संख्या को सीमित करने के कारण सार्वजनिक परिवहन किराए में वृद्धि हुई है। कोविड के पहले उन्हें अपनी दुकान के लिए पासीघाट से सौदा लाने में सूमो टैक्सी का किराया 300 रुपए देना पड़ता था जो कि अब 600 हो गया है। इस सब से उनकी कमाई पर बुरा असर पड़ा है। 

जिले के अधिकांश लोगों की तरह, पर्टिन भी अपनी जरूरत का चावल स्वयं पैदा करते हैं। लेकिन अब जबकि उनके परिवार के अधिकांश सदस्य लॉकडाउन के कारण घर लौट आए हैं, तो ऐसे में  जमा अनाज ज्यादा दिन तक नहीं चलेगा। मांस जो कि उनके लिए एक आवश्यक वस्तु है, की आपूर्ति भी काफी कम हो गई है। 

पूर्वी अरुणाचल प्रदेश के अधिकांश चाय उत्पादकों को एक अलग अनुभव से गुजरना पड़ रहा है। चांगलांग में नम्फई सिंगफो गांव के पास लगाओ टी एस्टेट है। 4 हेक्टेयर में फैले इस एस्टेट को पड़ोसी असम के बड़े चाय बागानों की तुलना में एक छोटा चाय बागान कहा जा सकता है। अमिताभ गुहा, जो पट्टे पर बगीचे का संचालन करते हैं, स्थानीय खरीदारों के साथ साथ असम के कुछ लोगों को चाय भी  की पत्तियों की आपूर्ति करते हैं।

अन्य चाय उत्पादकों की तरह, गुहा असम से आए उन कुशल मजदूरों पर निर्भर रहते हैं, जिन्हें अक्सर “टी-ट्राइब्स” कहा जाता है। कोविड -19 के प्रकोप के बाद से  यात्रा प्रतिबंधों के कारण  राज्यों के बीच आवागमन  बहुत प्रभावित हुआ है। अन्य राज्यों के लोगों को अरुणाचल में प्रवेश करने के लिए इनर लाइन परमिट लेना होता है। इसे सस्पेंड करने के अरुणाचल सरकार के फैसले ने समस्या को और बढ़ाया है। 

गुहा कहते हैं, कभी-कभी गैर-जरूरी सामानों की आवाजाही पर भी प्रतिबंध लगा दिया जाता है, जिसकी वजह से वे खरपतवारनाशी और कवकनाशी नहीं खरीद पाते हैं। उनकी जरूरत का सामान जिस निकटतम स्थान पर उपलब्ध है, वह 120 किलोमीटर दूर असम में स्थित एक वाणिज्यिक केंद्र तिनसुकिया है। वे कहते हैं, “मुझे लगता है कोविड -19 के दौरान चाय की मांग में इजाफा हुआ है। लेकिन मुझे नहीं लगता कि जब तक अरुणाचल प्रदेश में या असम में प्रतिबंध लागू हैं, तब तक मुझे इसका फायदा मिल सकता है।”

आगे पढ़ें, हिमाचल प्रदेश के लाहौल स्पीति की जमीनी पड़ताल

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