तफ्तीश: क्या भारत के लिए स्थानीय महामारी बन जाएगा कोविड-19?

महामारी विज्ञानियों और ऐतिहासिक रुझानों के अनुसार, कोविड-19 जल्द ही भारत के लिए स्थानीय हो जाएगा

On: Thursday 24 June 2021
 
पहली लहर के दौरान 60 वर्ष से अधिक उम्र वाले और पहले से बीमार लोगों में संक्रमण अधिक था लेकिन अब 20-50 वर्ष के लोग इसकी चपेट में अधिक आ रहे हैं। आशंका है कि तीसरी लहर 20 वर्ष के नीचे के उन लोगों को अपनी जद में लेगी जिनका टीकाकरण नहीं हुआ है (फोटो: रॉयटर्स )

भारत में कोविड-19 की दूसरी लहर के लिए आखिर जिम्मेवार कौन हैं। यह जानने के लिए डाउन टू अर्थ ने एक व्यापक तफ्तीश की।  दिल्ली से रिचर्ड महापात्रा, बनजोत कौर, विभा वार्ष्णेय, शगुन कपिल, किरण पांडे, विवेक मिश्रा और रजित सेनगुप्ता के साथ वाराणसी से ऋतुपर्णा पालित, भोपाल से राकेश कुमार मालवीय, नुआपाड़ा से अजीत पांडा, तिरुवनंतपुरम से केए शाजी, कोलकाता से जयंत बसु, अहमदाबाद से जुमाना शाह, बंगलुरु से तमन्ना नसीर और चेन्नई से ऐश्वर्या सुधा गोविंदराजन ने रिपोर्ट की। पहले भाग में आपने पढ़ा कि किस तरह दूसरी लहर में पूरे देश में हालात बन गए थे, रिपोर्ट पढ़ने के लिए क्लिक करें। दूसरे भाग में आपने पढ़ा - कोविड-19 की दूसरी लहर के लिए सरकार कितनी दोषी? । पढ़ें, अगला भाग -

भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद (आईसीएमआर) के 10 मई, 2021 के आंकड़ों के अनुसार, भारत के 700 जिलों में से 70 प्रतिशत से अधिक की टेस्टिंग पॉजिटिविटी रेट 10 प्रतिशत से अधिक था। नेशनल पॉजिटिविटी रेट 20-21 प्रतिशत था। लेकिन देश के 42 प्रतिशत जिलों ने इससे अधिक दर की सूचना दी। जिससे स्पष्ट पता चला कि महामारी की दूसरी लहर न केवल ग्रामीण क्षेत्रों तक पहुंच गई, बल्कि काफी व्यापक हो गई। जांच के बुनियादी ढांचे की कमी को देखते हुए, सरकार को अधिक रैपिड एंटीजन टेस्ट की अनुमति देकर अपने परीक्षण दिशानिर्देशों में संशोधन करना पड़ा है। इससे पहले सरकार ने आरटी-पीसीआर परीक्षणों की सिफारिश करते हुए कुल परीक्षणों के 30 प्रतिशत को रैपिड एंटीजन टेस्ट तक सीमित कर दिया था, क्योंकि वे अधिक सटीक थे। चूंकि परीक्षण और आइसोलेशन संक्रमण प्रसार को रोकने में महत्वपूर्ण है और आरटी-पीसीआर परीक्षण के परिणाम में समय लगता है, सरकार ने अपने दिशानिर्देश बदल दिए।

भारत अभी भी दूसरी लहर के बीच में है। ऐसे में केंद्र के प्रमुख वैज्ञानिक सलाहकार के विजय राघवन ने एक और लहर की चेतावनी दी है। 5 मई को एक प्रेस कांफ्रेंस में उन्होंने कहा, “जिस उच्च स्तर पर यह वायरस फैल रहा है, तीसरी लहर अपरिहार्य है। लेकिन यह स्पष्ट नहीं है कि यह तीसरी लहर किस वक्त आएगी।” हालांकि, दो दिन बाद एक अन्य संवाददाता सम्मेलन में, उन्होंने चेतावनी को कुछ हल्का करने के लिए इसके साथ एक शर्त लगा दी कि मजबूत उपाय के अभाव में ऐसा हो सकता है। महामारी विज्ञानियों और सार्वजनिक स्वास्थ्य विशेषज्ञों के बीच इस बात पर आम सहमति बन रही है कि भारत को आने वाले महीनों तक इस महामारी को झेलना होगा। केरल के तिरुवनंतपुरम में राजीव गांधी सेंटर फॉर बायोटेक्नोलॉजी द्वारा 28 फरवरी को आयोजित वर्चुअल “नेशनल साइंस डे लेक्चर्स” में काउंसिल ऑफ साइंटिफिक एंड इंडस्ट्रियल रिसर्च के महानिदेशक शेखर सी मांडे ने चेतावनी दी, “कोविड-19 का खात्मा अभी बहुत दूर है। तीसरी लहर के गंभीर परिणाम हो सकते हैं।”

हालांकि, महामारी में लहरें एक अस्थायी संकट हैं। विशेषज्ञों के लिए जो बड़ा और डरावना परिदृश्य है, वह है आने वाले वर्षों के लिए नोवेल कोरोनावायरस का सर्कुलेशन। महामारी विज्ञानियों और ऐतिहासिक रुझानों के अनुसार, कोविड-19 जल्द ही भारत के लिए स्थानीय हो जाएगा। इसका अर्थ है कि स्वास्थ्य के बुनियादी ढांचे को नियमित रूप से इस महामारी से लड़ना होगा, जैसे यह डेंगू के लिए खुद को तैयार करता है।

अंतरराष्ट्रीय जर्नल “नेचर” ने इस साल जनवरी में 100 इम्यूनोलॉजिस्ट, संक्रामक-रोग शोधकर्ताओं और वायरोलॉजिस्ट के बीच एक सर्वेक्षण किया कि क्या नोवेल कोरोनावायरस को खत्म किया जा सकता है। लगभग 90 प्रतिशत उत्तरदाताओं ने कहा कि यह स्थानीय बन जाएगा। अमेरिका के मिनियापोलिस में मिनेसोटा विश्वविद्यालय के एक महामारी विज्ञानी माइकल ओस्टरहोम ने सर्वे के जवाब में बताया, “इस वायरस को अभी दुनिया से मिटाना बहुत कुछ ऐसा है जैसे चांद पर कदम रखने वाले रास्ते को बनाने की कोशिश करना। यह लगभग असंभव है।” हालांकि, एक तिहाई उत्तरदाताओं का विचार है कि कुछ क्षेत्रों में वायरस का उन्मूलन किया जा सकता है जबकि कुछ में यह स्थानीय बन जाएगा।

वैज्ञानिक और महामारी विज्ञानी एक ऐसी स्थिति भी देखते हैं, जहां निकट भविष्य में बच्चे वायरस से संक्रमित होंगे, उनमें हल्का लक्षण विकसित होगा और वे अपने भीतर प्रतिरक्षा (इम्यूनिटी) विकसित कर लेंगे। टीका बचपन का अहम हिस्सा बन जाएगा।

यह तस्वीर चार स्थानिक कोरोनावायरस (ओसी43, 229ई, एनएल63 और एचकेयू1) के साथ हमारे अनुभवों पर आधारित है, जो वर्तमान में मनुष्यों को प्रभावित करते हैं। माना जाता है कि इन चार में से तीन सैकड़ों वर्षों से मानव आबादी के बीच घूम रहे हैं। लोगों ने संक्रमण के जरिए उनके खिलाफ प्रतिरोधक क्षमता विकसित कर ली है। ऐसा ही कोविड-19 के साथ भी हो सकता है। हम टीका की सहायता से इसके खिलाफ प्रतिरक्षा विकसित कर सकते हैं, लेकिन वायरस भी इस ढाल से बचने के लिए विकसित हो सकता है। नेचर के सर्वे में जवाब देने वाले आधे से अधिक वैज्ञानिकों का मानना ​​है कि कमजोर प्रतिरक्षा वायरस के स्थानिक होने के मुख्य कारणों में से एक होगी।

उन्मूलन की संभावना क्षीण

अमेरिका के जॉर्जटाउन यूनिवर्सिटी सेंटर फॉर ग्लोबल हेल्थ साइंस एंड सिक्योरिटी से संबद्ध वायरोलॉजिस्ट और कनाडा के वैक्सीन एंड इंफेक्शियस डिजीज ऑर्गनाइजेशन के शोध वैज्ञानिक एंजेला रैस्म्यूसेन ने डाउन टू अर्थ को बताया कि भारत, कनाडा और अमेरिका जैसे देशों में, जहां सामुदायिक संचरण हुआ है, वहां वायरस को असल में कभी खत्म नहीं किया जा सकता। वह कहती हैं, “कोविड-19 एक ऐसी चीज है, जिसके साथ देशों को जीना सीखना होगा।” वह कहती हैं कि भारत, कनाडा, ब्राजील संकट की स्थिति में हैं, जबकि अमेरिका और यूरोप के कुछ हिस्सों में वायरस कम हो रहा है। लेकिन बहुत कुछ वायरस के प्रसार और टीकाकरण पर निर्भर करेगा। यह एक जटिल सवाल है। मैं ईमानदारी से इसका जवाब नहीं जानती।

रैस्म्यूसेन कहती हैं, “कुछ लोग तर्क देते हैं कि यह पहले से ही स्थानीय है। भारत एक अच्छा उदाहरण है। 2021 की शुरुआत में संक्रमण इतना कम था कि लोग लिख रहे थे कि भारत हर्ड इम्यूनिटी तक पहुंच गया है। छोटे स्तर पर कम्यूनिटी ट्रांसमिशन था। कुछ लोगों के लिए यह वायरस की समाप्ति जैसा था। यह तीव्र महामारी पैदा नहीं कर रहा था। यह फिर से नए पशुओं में लौटकर दोबारा मानव तक आ सकता है। हमने डेनमार्क और नीदरलैंड में देखा है। मैं बिल्लियों में संक्रमण को लेकर चिंतित हूं। क्योंकि वे हर जगह हैं और लोग उनके साथ मिलजुल कर रहते हैं। यही कारण है कि टीकाकरण महत्वपूर्ण है, ताकि आगे स्थानीय कोरोना महामारी को संभालना आसान हो सके।”

सोनीपत, हरियाणा के अशोका यूनिवर्सिटी में भौतिकी और जीव विज्ञान के प्रोफेसर गौतम मेनन का मानना ​​​​है कि नोवेल कोरोनावायरस जल्द ही हमारी सामान्य रोग प्रणाली का हिस्सा होगा। वह कहते हैं, “हम जानते हैं कि अन्य कोरोनावायरस कॉमन कोल्ड पैदा करते हैं और वे मौसमी होते हैं। वे उन बड़े वायरस का हिस्सा हैं, जो फैलते हैं। वे स्थानीय हैं। सिद्धांत रूप में, ऐसा कोई कारण नहीं है कि कोविड-19 एक स्थानीय महामारी नहीं बनेगा।” लेकिन ये कब एंडेमिक (स्थानिक) बनेगा? मेनन का कहना है कि यह सब इस बात पर निर्भर करता है कि पिछले संक्रमण ने किस तरह के प्रतिरक्षा का निर्माण किया और टीका इस नए संक्रमण को रोकने में कितने कारगर हैं। वह कहते हैं कि अगर यह पता चलता है कि रीइंफेक्शन (दोबारा संक्रमण) कम हो रहा है और टीकाकरण बहुत ज्यादा सुरक्षात्मक है, तो आप मान कर चले कि यह एंडेमिक नहीं होगा।

क्रिश्चियन मेडिकल कॉलेज, वेल्लोर में प्रोफेसर और वायरोलॉजिस्ट टी जैकब जॉन कहते हैं कि कोविड-19 एक “पैन-एंडेमिक” बन जाएगा, जो पूरी दुनिया को कवर करेगा। वरिष्ठ नागरिकों और मौजूदा कमजोर आबादी के अतिरिक्त नवजात शिशु इसके निशाने पर होंगे। वह कहते हैं, ““हम देश में कम से कम 5 प्रतिशत लोगों में प्रतिदिन कोविड-19 के लक्षण विकसित होने की उम्मीद कर सकते हैं। हालांकि हमने समय-समय पर कई स्थानिक रोगों का सामना किया है, लेकिन सरकार के पास कभी भी उन्हें नियंत्रित करने की कोई योजना नहीं थी। इन्फ्लुएंजा एच1एन1 भी एक महामारी थी। यह अभी भी लोगों को मारती है। वास्तव में, भारत में तपेदिक अति-स्थानीय है। इसे नियंत्रित करने के लिए हमारे पास कोई राष्ट्रीय नीति नहीं है, सिवाए मुफ्त इलाज देने के। वायरस का इलाज करने से बीमारी पर नियंत्रण नहीं होता है। हम स्थानीय महामारियों के साथ जीते रहे हैं और इसी तरह हमें आगे कोविड-19 के साथ भी जीना सीखना होगा।”

विजय कोहली ने अहमदाबाद नगर निगम (एएमसी) के स्वास्थ्य विभाग में 15 वर्षों तक काम किया है और साथ ही काफी लंबे समय तक इंडियन काउंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च के साथ भी काम किया है। कोहली का कहना है कि मलेरिया को छोड़कर, नए वायरस या बैक्टीरिया को संभालने के लिए हमारे पास कोई प्रणाली नहीं है। सब कुछ त्वरित मोड में होता है। आग लगने पर कुंआ खोदने जैसा। स्वास्थ्य संरचना वितरण प्रणालियों को वर्टिकल प्रोग्राम की आवश्यकता होती है जिसका अर्थ है किसी क्षेत्र में किसी विशिष्ट बीमारी के हर पहलू से निपटने में विशेषज्ञता रखने वाले लोगों का एक समूह हमारे पास हो। मलेरिया कार्यकर्ता अपने क्षेत्रों के विशेषज्ञ हैं। अब हम केवल हॉरिजोंटल प्रणाली विकसित कर रहे हैं। मतलब हर कोई हर चीज के बारे में थोड़ा जानता है, लेकिन कोई एक क्षेत्र का विशेषज्ञ नहीं हैं।”

क्षेत्रीय कारक, जैसे मौसम, किसी समुदाय की जनसांख्यिकीय और आनुवंशिक संरचना और वायरस के व्यवहार पर इसके प्रभाव को पर्याप्त रूप से समझा नहीं गया है। कोहली अब सेवानिवृत्त हो चुके हैं। वह कहते हैं कि वे जब एएमसी में काम कर रहे थे तब उस दौरान शहर ने क्रीमियन कांगो हेमोरेजिक फीवर, चिकनगुनिया, डेंगू, स्वाइन फ्लू, जीका वायरस और बर्ड फ्लू का सामना किया। वह जोर देकर कहते हैं, “हम निगरानी और सटीक डेटा प्रोसेसिंग के कारण सफलता प्राप्त कर सकते हैं। डेटा के बिना, हम नहीं सीख सकते। हालांकि ये बीमारियां नियंत्रण में हैं, लेकिन मानक संचालन प्रक्रियाएं गायब हैं। डॉक्टर अभी भी सीख रहे हैं। इस तरह का ढुलमुल रवैया रोकना होगा।”

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