बैठे ठाले: कोरोना को रोना क्यों आता है?
जब विश्व विजेता कोरोनावायरस भारत पहुंचा तो उसके साथ क्या हुआ, पढ़ें, एक व्यंग्य
On: Wednesday 01 April 2020
सैकड़ों-हजारों वर्षों पहले राजे-महाराजे एक अजीब खेल खेलते थे। खेल कुछ यूं होता था कि कोई एक राजा एक आवारा घोड़े को, “जा सिमरन, जी ले अपनी जिंदगी” की तर्ज पर छुट्टा छोड़ देता था। आवारा घोड़ा एक इलाके से दूसरे इलाके, एक राज्य से दूसरे राज्य में भटकता रहता। कभी किसी के खेत में खड़ी फसल चरता तो कभी किसी सब्जी- वाले के ठली पर मुंह मारता। क्या मजाल कोई उस घोड़े को कुछ बोल दे! कोई राजा अगर भूले-भटके उस घोड़े को रोक लेता तो उसे उक्त घोड़े के मालिक राजा से युद्ध करना पड़ता था। अगर घोड़े को रोकने वाला राजा हार जाता तो घोड़ा तो घोड़ा उसे अपना राजपाठ, विधानसभा में फ्लोर टेस्ट बिना फेस किये ही दे देना पड़ता था।
कालांतर में जाने कैसे यह रोग जनता तक जा पहुंचा। इंसानों से होता हुआ यह रोग एक समय विषाणुओं के जीनोम तक जा पहुंचा और उसने अच्छे भले विषाणु की आदत बदल डाली। कल तक के जेंटलमैन विषाणु इस जीनोम में बदलाव के चलते एक आवारा घोड़े जैसे एक इलाके से दूसरे इलाके आवारागर्दी करने लगे। कोरोना भी एक ऐसा ही विषाणु था। कहते हैं यह कोरोना नामी विषाणु चीन का रहने वाला था। अच्छा भला रह रहा था कि जाने एक दिन उसे महसूस हुआ कि सैर कर दुनिया के गाफिल/ जिंदगानी फिर कहां/जिंदगानी जो मिली तो यह जवानी फिर कहां?
और वह निकल पड़ा और भटकता हुआ सबसे पहले वह यूरोप गया। कोरोना यूरोप के वैभवशाली शहरों, साफ सड़कों को देखकर इतना हैरत अंगेज था कि वह पहले-पहल यही भूल गया कि वह तो इन देशों को जीतने के लिए निकला था। जल्द ही कोरोना ने इटली, स्पेन, फ्रांस, बेल्जियम जैसे यूरोपीय देशों को जीत लिया। उसके बाद एशिया का रुख किया। ईरान, मलेशिया, कतर कैसे छोटे-बड़े जो देश आते गए, उन्हें जीतता हुआ विश्व-विजेता कोरोना आखिरकार “सारे जहां से अच्छा” तक जा पहुंचा। उन दिनों वहां स्वच्छ भारत मिशन पूरे जोर शोर से चल रहा था। लोगों के दिमाग अक्ल से साफ थे, जेब रुपए पैसों से साफ थी। जंगल पेड़ों से साफ थे और नदियां-तालाब-पोखरे पानी से साफ थे। पर नालियां प्लास्टिक की पन्नी से जाम हुई पड़ी थीं। नाली का बदबूदार पानी गली-मुहल्लों में फैला था। कोरोना ने कभी इतनी गंदगी नहीं देखी थी। उसे यह देखकर बड़ी हैरानी हुई कि इन्हीं गंदी नालियों के पानी में नंग-धड़ंग बच्चे मजे से खेल रहे थे। सड़क में फैले बदबूदार कीचड़ और ठहरे हुए गंदे पानी के किनारे रेहड़ी पर चाय-समोसे और खाने की दुकानें लगी थीं।
यह सब देखकर कोरोना बुरी तरह से खौफजदा हो गया। कोरोना को पहली बार डर लगा। उसे लगा कि अगर वह ज्यादा देर यहां रहा तो वह जिंदा अपने वतन नहीं लौट पाएगा। अचानक कोरोना को लगा कि उसके पैर के नीचे जमीन सरक रही है। उसका डर सही था, क्योंकि वह एक मैनहोल के ढक्कन पर खड़ा था। ढक्कन खुला और उसके अंदर से गंदगी और मल से लिप्त सीवर की सफाई करने वाला बाहर निकला। कोरोना डर से भागने वाला था कि उस आदमी ने कोरोना को पकड़ लिया और पूछा, “बोल तेरे साथ क्या सुलूक किया जाए?”
कोरोना को रोना आ गया। रोता हुआ वह बोला, “वही सलूक जो गंदगी और कूड़े में रहने वाला एक शख्स दूसरे के साथ करता है। उस आदमी ने हंसकर कहा, “स्मार्ट ब्वाय! तुम्हारे जवाब को सुनकर हम खुश हुए। जाओ हम तुम्हें छोड़ देते हैं।”
कोरोना ने तब कभी विश्व विजेता न बनने की कसम खाई और वापस अपने मुल्क लौट गया।