मुझे कोरोना वायरस का संक्रमण संभवतः एक पुलिस अधिकारी से हुआ। तारीख एक अप्रैल रही होगी। एक साफ सुथरे केबिन में किसी वायरस के होने की कोई कल्पना नहीं कर सकता था, लेकिन वायरस सिर्फ भीड़-भाड़ या गंदे इलाकों में नहीं, बल्कि कहीं भी हो सकता है। दो अप्रैल आते-आते मुझे बुखार जैसा अहसास हुआ, पूरी तरह से बुखार तो नहीं, लेकिन शरीर में हरारत जैसा था।
पत्रकार होने के नाते मेरी जागरूकता काम आई और मैंने परिवार से एक तय दूरी बना ली। मैंने खुद को कमरे में अकेला कर लिया। जांच की रिपोर्ट आई तो मैं संक्रमित था। कोरोना की वजह से जिस तरह का माहौल है, उसे देखते हुए मेरा पूरा परिवार दहशत में आ गया। ये खबर आग की तरह मेरे पत्रकार साथियों और अधिकारियों तक पहुंची। सब बेहद चिंतित हुए।
यह अनुभव काफी डराने वाला था। डर सबको लगता है और शुरुआत में, मैं भी काफी डरा था। अस्पताल में भर्ती होने के बाद तरह-तरह की बातें दिमाग में चलने लगी। सबसे बड़ी चिंता घर वालों की थी कि कहीं उनमें न संक्रमण फैला हो। वार्ड में भी किसी से बात नहीं होती थी। हालांकि, मैं खुशकिस्मत हूं कि जल्दी बात समझ आ गई कि डरने से समस्या बढ़ेगी।
घर वालों की रिपोर्ट भी नेगेटिव आई तो सुकून और बढ़ गया। फिर मैं डर को दूर करने लगा। सबसे पहले नकारात्मकता से दूरी बनाई। मुझे सैकड़ों शुभचिंतकों के फोन आते थे, उनमें से कई बीमारी से हो रही समस्या के बारे बात करना चाहते थे। मैंने किसी से बीमारी के लक्षण या इलाज के बारे में बात नहीं की। मैं मानता हूं कि डॉक्टर को ही सभी बातें बतानी चाहिए, इसके अलावा लक्षणों पर बात करने से नाहक तनाव होता है।
मैंने चिकित्सकों की हर बात मानी। खूब पानी पीना और ऑक्सीजन लेना चिकित्सकों की मुख्य सलाह थी। सुबह शाम हल्का गर्म पानी पीया और दिनभर सामान्य पानी। डॉक्टर बताते थे कि पानी एकसाथ ही पीना है, घूंट-घूंट नहीं। वायरस ने शरीर पर जोर आजमाइश की। कुछ समय में सीने में संक्रमण फैल गया जिस वजह से खतरा बढ़ गया था। मुझे 18 घंटे ऑक्सीजन लेने को कहा गया था, जिसका मैंने पालन किया।
मेरे जैसे सक्रिय और व्यस्त व्यक्ति के लिए 14 दिन अस्पताल के बिस्तर पर पड़े रहने एक मुश्किल काम है। एक समय ऐसा आया कि समय काटना मुश्किल हो गया। हर एक घंटा गिनने लगा। हालांकि, मैं मानता हूं कि बीमार होना कोई सामान्य घटना नहीं, सो सब कुछ पहले जैसा नहीं रहता। घर वालों से सिर्फ फोन पर बातें होती, तो उनको भी ढांढस बंधाता।
मैंने खबरों से दूरी बना ली थी, क्योंकि इससे नकारात्मकता बढ़ सकती थी। कोई मुनक्का के पानी पीने को कहता तो कोई कई तरह के योग, लेकिन मैंने अपने चिकित्सक के अलावा किसी की सलाह या कोई नुस्खा नहीं माना। मैं इन सबसे दूर रहा और केवल डॉक्टर की बात मानी। सीने में संक्रमण से आत्मविश्वास में कमी आने लगी थी। ऐसे में गायत्री मंत्र के जाप से मुझे काफी संबल मिला।
इस दौरान मैंने रोज बहुत सारा चॉकलेट खाया, रोज लगभग 5-6। इससे भीतर से अच्छा लगता था। अब मुझे पता चला कि लोग एक दूसरे को चॉकलेट क्यों देते हैं। मैंने भोजन सामान्य रखा। शुरुआती डर के बाद अब मैं इस डर से जीतने लगा था। डर के साथ-साथ कोरोना से भी मैं जीतने लगा था।
चिरायु अस्पताल में कोविड-19 के कई मरीज भर्ती हैं, इससे ये फायदा हुआ कि अपने जैसे लोगों से बात करने का मौका मिला। दूरी बनाकर, मास्क पहनकर मैं उनसे बीमारी से लेकर दूसरी बातें करता, कई लोग इलाज के दौरान बिना लक्षण के रहे और स्वास्थ्य हुए। शुरुआत में मैं किसी से बात नहीं करता, इसकी वजह डर थी। लेकिन जल्दी ही साथ के मरीजों से बात होने लगी और उनको सामान्य देखकर डर भी खत्म हो गया।
इलाज के बाद अब मैं बिल्कुल स्वस्थ हूं। मुझे इस बात का सुकून है कि मैंने अपने परिवार को समय रहते खुद से अलग कर दिया, जिस वजह से सब स्वस्थ्य हैं। यह बहुत जिम्मेदारी का काम है और कुछ लोग लापरवाही में अपने परिवार को भी संक्रमित कर देते हैं। मेरे लिए मेरा परिवार, मेरे बच्चे बहुत मायने रखते हैं।
वापस घर आने के बाद भी डॉक्टरों के सलाह के मुताबिक मैं 20 दिन तक क्वारंटाइन में रहूंगा और उसके बाद काम पर लौटूंगा। मैं कोरोना के लिए एक ही बात कहूंगा कि यह लाइलाज बीमारी नहीं है। इसे मनोबल और मित्रों के साथ से जीता जा सकता है।
(मनीष मिश्र से बातचीत पर आधारित)