इंसानों में भी पहुंचा एच3एन8 बर्ड फ्लू, चीन में दर्ज हुई पहली मौत

महिला के अस्पताल में भर्ती होने के 24 दिनों और मौत के करीब 11 दिन बाद चीन ने डब्लूएचओ को इसकी जानकारी दी है, जबकि 24 घंटे में ऐसा करना अनिवार्य होता है

By Taran Deol, Lalit Maurya

On: Thursday 13 April 2023
 
Photo: iStock

कोरोना वायरस का कहर अभी थमा भी नहीं है। इस बीच चीन में एवियन इन्फ्लूएंजा यानी बर्ड फ्लू वायरस के एक सबटाइप एच3एन8 ने लोगों के बीच हलचल बढ़ा दी है। दुनिया में पहली बार एच3एन8 बर्ड फ्लू ने किसी इंसान की जान ली है। इस वायरस से हुई मौत का पहला मामला चीन में सामने आया है।

वहीं यह दुनिया का तीसरा मामला है जब इस वायरस के इंसानों में पाए जाने की बात सामने आई है। इससे पहले अप्रैल-मई 2022 के बीच चीन में दो अन्य मामलों की जानकारी सामने आई थी।

विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) ने इस घटना के बारे में जानकारी देते हुए बताया है कि चीन के ग्वांगडोंग प्रांत की एक 56 वर्षीय महिला 22 फरवरी 2022 को बीमारी पाई गई थी, जिसे 3 मार्च 2023 को गंभीर निमोनिया के साथ अस्पताल में भर्ती कराया गया था। वहीं 16 मार्च 2023 को इस महिला की मौत हो गई थी।

हालांकि पीपुल्स रिपब्लिक ऑफ चाइना के राष्ट्रीय स्वास्थ्य आयोग ने महिला के अस्पताल में भर्ती होने के करीब 24 दिनों और उसकी मौत के 11 दिन बाद विश्व स्वास्थ्य संगठन को इसकी जानकारी दी है। लेकिन नियमों के मुताबिक यदि किसी देश में इंसानों में ऐसा फ्लू संक्रमण पाया जाता है जो इंसानों में दुर्लभ है तो उसकी जानकारी 24 घंटों के भीतर डब्ल्यूएचओ के साथ साझा की जानी चाहिए।

11 अप्रैल 2023 डब्लएचओ ने इस बारे में कहा है कि, "इस संक्रमण का सटीक स्रोत क्या है, यह अभी भी स्पष्ट नहीं है। साथ ही यह वायरस अन्य एवियन इन्फ्लूएंजा ए (एच3एन8) वायरस जो जानवरों में पाया गया है उससे कैसे संबंधित है इस बारे में भी पुख्ता जानकारी नहीं है।

हालांकि डब्ल्यूएचओ के अनुसार इस महिला के संपर्क में आए किसी अन्य व्यक्ति या चीन में इससे पहले संक्रमित पाए गए दो अन्य लोगों के अलावा किसी में इस वायरस की पुष्टि नहीं हुई है, जो दर्शाता है कि यह वायरस इंसानों में आसानी से नहीं फैलता है। ऐसे में राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर इसके फैलने का जोखिम कम है।

संयुक्त राष्ट्र स्वास्थ्य एजेंसी ने यह भी कहा है कि, "हालांकि, इन्फ्लूएंजा वायरस की प्रकृति लगातार विकसित होने वाली है। यही वजह है कि डब्ल्यूएचओ मानव (या पशु) स्वास्थ्य को प्रभावित कर सकने वाले किसी भी इन्फ्लूएंजा वायरस से जुड़े वायरोलॉजिकल, महामारी विज्ञान और नैदानिक ​​​​परिवर्तनों का पता लगाने के लिए वैश्विक निगरानी के महत्व पर जोर देता है।"

पिछले दो मामलों में से एक मरीज गंभीर रूप से बीमार था, जबकि दूसरे में हल्के लक्षण पाए थे। जानकारी मिली है कि वो दोनों ही मरीज अब ठीक हो चुके हैं। वहीं हाल ही में जिस महिला की मौत इस संक्रमण से हुई है उसकी जानकारी गंभीर तीव्र श्वसन संक्रमण (एसएआरआई) निगरानी प्रणाली के माध्यम से सामने आई है।

आमतौर पर इंसानों में नहीं फैलता एच3एन8 बर्ड फ्लू

जानकारी मिली है कि महिला के बीमार पड़ने से पहले उसके घर के आसपास पक्षियों में भी इस वायरस के पाए जाने के सबूत मिले थे। डब्ल्यूएचओ ने बताया है कि इससे जुड़े सैम्पल्स मरीज के घर और वेट मार्किट से एकत्र किए गए थे, जहां रोगी ने बीमारी की शुरुआत से पहले समय बिताया था। परीक्षण के परिणामों से पता चला है कि वेट मार्किट से जो सैम्पल्स लिए गए हैं वो इन्फ्लूएंजा ए (एच3) पॉजिटिव थे।

एवियन इन्फ्लूएंजा का यह स्ट्रेन आमतौर पर दुनिया भर के पक्षियों में पाया गया है, यहां तक ​​कि कुछ स्तनधारियों में भी इसके पाए जाने जानकारी सामने आई है। हालांकि कुछ छिटपुट विरले मामलों में ही इस वायरस के मनुष्यों में फैलने की बात पता चली है, क्योंकि यह वायरस आसानी से इंसानों को अपनी चपेट में नहीं लेता है।

डब्ल्यूएचओ ने बताया कि इंसानों में फैले एवियन इन्फ्लूएंजा वायरस के अधिकांश मामले संक्रमित पोल्ट्री या दूषित वातावरण के संपर्क में आने से जुड़े थे। "चूंकि पोल्ट्री में एवियन इन्फ्लूएंजा वायरस से जुड़े मामले अब भी सामने आ रहे हैं, ऐसे में इस बात की आशंका है कि भविष्य में इसके छिटपुट मामले इंसानों में सामने आ सकते हैं।"

गौरतलब है कि एवियन इन्फ्लूएंजा के एक और प्रकार, एच5एन1 का मामला पिछले महीने उस समय सुर्खियों में आया था जब कंबोडिया में इसके संक्रमण से एक 11 वर्षीय बच्ची की मौत हो गई थी। इससे कुछ ही समय पहले, यह वायरस नियमित तौर पर कई स्तनधारी जीवों में पाया गया था। इनमें मिंक, भालू, लोमड़ियां, स्कंक्स, पॉसम, रैकून और सील शामिल थे।

अभी तक जो जानकारी है उसके मुताबिक एच5एन1, वायरस एच3एन8 की तरह ही इंसानों में कम ही फैलता है। पता चला है कि हांगकांग में 1997 में इंसानों में फैले प्रकोप के बाद से अब तक इसके 800 से अधिक मामले दर्ज किए गए हैं। इनमें से आधे मामले जानलेवा थे।

देखा जाए तो H5N1 से महामारी के फैलने का खतरा कहीं अधिक है, लेकिन पिछले 25 वर्षों में ऐसा कुछ भी सामने नहीं आया है। विशेष रूप से इसके मामलों में इजाफा नहीं हुआ है, जोकि एक अच्छी खबर है।

इस बारे में विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा जानवरों और पक्षियों में इन्फ्लुएंजा की इकोलॉजी पर अध्ययन के लिए बनाए सहयोग केंद्र के निदेशक रिचर्ड वेबबी ने डाउन टू अर्थ को बताया कि, "इन वायरसों को जोखिम कितना है उसे मात्रात्मक रूप से निर्दिष्ट करना बहुत मुश्किल है। हमें इस बात का कुछ अंदाजा है कि इन वायरसों को और अधिक मानव-अनुकूल बनने के लिए क्या बदलाव करने होंगे, लेकिन इस बात की स्पष्ट जानकारी नहीं है कि यह वायरस कितनी आसानी से इन बदलावों को अपना सकते हैं।"

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