ग्रामीणों के लिए दोहरी मार साबित होगी कोरोना महामारी

देश में आर्थिक गतिविधियां पहले से ही ठप हैं, आने वाला मौसम भी ग्रामीणों के लिए कष्टदायक साबित होगा

By Richard Mahapatra

On: Thursday 19 March 2020
 
कोरोनावायरस की वजह से ग्रामीणों को दोहरी मार का सामना करना पड़ेगा। फोटो: मीता अहलावत

कोरोनावायरस (कोविड-19) बीमारी की वजह से हमारे समाज की असमानता सामने नहीं आई है। मुक्त बाजार काल में इसे अस्तित्व के खतरे के तौर पर पहले ही स्वीकार किया जा चुका है। कोरोनावायरस की वजह से यह जरूर स्पष्ट हुआ है कि आर्थिक रूप से हाशिए पर खड़े लोगों को स्वास्थ्य आपातकाल का सामना कैसे करना पड़ेगा। उदाहरण के लिए, अगर हम अमेरिका की बात करें तो कई मीडिया रिपोर्ट्स बताती हैं कि वहां कोविड-19 के लक्षणों के बावजूद पीड़ित व्यक्ति स्वास्थ्य केंद्रों तक इसलिए नहीं गए, क्योंकि उनके पास खर्च वहन करने की क्षमता नहीं थी।

विकसित देशों में शामिल होने के बावजूद अमेरिका में सबसे कम प्रति व्यक्ति अस्पताल के बिस्तर उपलब्ध हैं और उनके पास एक सार्वभौमिक स्वास्थ्य प्रणाली भी नहीं है। अमेरिका का स्वास्थ्य बीमा कवरेज भी पर्याप्त नहीं है। इसका परिणाम है कि कई गरीब रोगियों को चिकित्सा परामर्श के लिए जाने की तुलना में मौत चुनने के लिए मजबूर होना पड़ा।

भारत इस समय महामारी से जूझ रहा है। अब तक जो भी प्रयास किए जा रहे हैं, उनका मकसद वायरस के संक्रमण को फैलने से रोकना है। कई विशेषज्ञों का कहना है कि अप्रैल के मध्य तक वायरस समुदाय के बीच में फैलने के स्तर (कम्युनिटी ट्रांसमिशन लेवल) पर पहुंच जाएगा। तब चाहे जो भी हो, भारतीय भी उस स्थिति में पहुंच जाएंगे, जिस स्थिति में अभी अमेरिकी हैं। भारत में सरकारी सुविधाएं अपर्याप्त हैं और निजी स्वास्थ्य सेवाओं का कब्जा है। इलाज पर होने वाला हमारा खर्च इतना ज्यादा है कि इमरजेंसी होने पर लोगों को गरीब बना देता है। यहां तक कि अगर इन खर्चों को गरीबी की गणना के साथ जोड़ दिया जाए तो गरीबी की दर में 3 प्रतिशत तक वृद्धि हो जाएगी। और अगर देशभर में कोरोनावायरस फैल गया तो देखना है कि इसका गरीबों पर कितना असर पड़ेगा।

गरीब भारतीय या ग्रामीण आबादी के लिए यह एक दोहरी मार होगा। पहला, महामारी के कारण अर्थव्यवस्था पर असर पड़ेगा। टेक्सटाइल जैसे क्षेत्रों में काम कर रहे दैनिक मजदूर पहले से ही नौकरी गंवा चुके हैं या गंवा रहे हैं। जैसा ही समुद्री उत्पाद के निर्यात पर प्रतिबंध लगाया गया, इससे कई गरीब मछुआरों ने अपनी आजीविका खो दी है। दूसरा, ऐसी स्थिति में लोगों को कोरोनावायरस से बचने या इलाज के लिए चिकित्सा खर्च उठाना पड़ेगा। एक मजबूत सरकारी स्वास्थ्य सेवाएं ऐसी स्थिति में काफी मदद कर सकती हैं, लेकिन यह आसान बात नहीं है।

लग रहा है कि देश में लॉकडाउन लंबे समय तक चलेगा, जबकि यहां पहले से ही आर्थिक गतिविधियां ठप है। उदाहरण के लिए, सामूहिक समारोहों को रोकने के लिए कई राज्यों ने दुकानों और मॉल और ग्रामीण स्थानीय बाजारों को बंद कर दिया है। यह पैदा होने वाली मांगों को और भी ज्यादा दबा सकती है। इससे हालात बिगड़ सकते हैं, क्योंकि ग्रामीण भारत पहले ही आर्थिक मंदी की चपेट में है। छत्तीसगढ़, झारखंड और ओडिशा जैसे राज्यों के स्थानीय बाजारों में बिक्री में भारी गिरावट की खबरें आ रही हैं।

लेकिन यह आर्थिक क्वारंटीन जारी रहेगा। इन दिनों बेमौसमी भारी बारिश और ओलावृष्टि की वजह से नौ राज्यों की फसल को काफी नुकसान पहुंच चुका है। हालांकि यह खबर कोविड-19 की प्रलय में दफन हो गई। कोविड-19 महामारी से पहले मौसम विभाग के पूर्वानुमान में कहा गया है कि अप्रैल से जून के बीच गर्म लू का दौर चलेगा। पिछले साल भी हम इन दिनों बुरा दौर झेल चुके हैं। जलवायु परिवर्तन का इंसानों पर पड़ रहे असर को लेकर जारी लैंसेट की रिपोर्ट के अनुसार 2017 में बढ़ते तापमान के कारण भारत में 75 अरब श्रम घंटे का नुकसान हुआ, क्योंकि लोग नियमित और निरंतर काम नहीं कर पाए। शारीरिक श्रम अभी भी ग्रामीण अर्थव्यवस्था की रीढ़ है, जो धीरे-धीरे कृषि आय को विस्थापित कर रहा है। इसका मतलब है कि लाखों लोग पहले से ही मंदी के कारण आर्थिक तनाव में हैं और कोरोनावायरस के चलते आगे चलकर उन्हें आर्थिक अनिश्चितता में धकेल दिया जाएगा। विश्व मौसम विज्ञान संगठन (डब्ल्यूएमओ) भी इस वर्ष भारत में होने वाली अनियमित बारिश, जून से अक्टूबर के दौरान बड़े चक्रवात और तेज गर्मी के संकेत दे चुका है। इसका मतलब है कि भारत में प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से कृषि क्षेत्र से जुड़े लोगों को पूरे साल आर्थिक गतिरोध को झेलना पड़ेगा। आखिर इसका क्या मतलब है?

मतलब साफ है कि लोग आगे चलकर और अधिक गरीबी के गर्त में गिरेंगे। इससे उनके लिए अस्पतालों का अतिरिक्त खर्च वहन करना और कठिन हो जाएगा। साथ ही, उनकी नियमित आमदनी भी प्रभावित होगी। क्या इसके अलावा उनके पास कोई दूसरा विकल्प है?

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