उत्तराखंड के पहाड़ी जिलों में कोविड-19 के मामले बढ़े तो कम कर दी टेस्टिंग

कोविड-19 के लक्षण विकसित होने के बाद लोगों को टेस्ट कराने के लिए 10 किलोमीटर दूर जाना पड़ रहा है, लेकिन वहां भी टेस्ट नहीं हो रहे हैं

By Trilochan Bhatt

On: Friday 21 May 2021
 
उत्तराखंड में राज्य की सीमाओं पर की गई है कोविड सैंपलिंग की व्यवस्था। फोटो: त्रिलोचन भट्ट

पहाड़ों में कोविड टेस्टिंग की क्या स्थिति है इसका उदाहरण नैनीताल जिले के सुदूर रामगढ़ ब्लाॅक के गांवों में देखा जा सकता है। इन गांवों के लोग कोविड सिम्टम्स होने पर 10 से 15 किलोमीटर चलकर प्राथमिक स्वास्थ्य केन्द्र पर पहुंच रहे हैं। लेकिन, वहां उन्हें टेस्ट करवाने के लिए 7 से 10 दिन बाद की डेट दी जा रही है।

नैनीताल जिला उत्तराखंड के उन कुछ जिलों में शामिल है, जिनका कुछ हिस्सा मैदानी है और ज्यादातर दुर्गम पहाड़ी। जिले के पहाड़ी क्षेत्रों में एक ब्लाॅक है रामगढ़। पूरे राज्य की तरह की इस ब्लाॅक के गांवों में भी लोग खांसी, जुकाम और बुखार जैसी परेशानी से जूझ रहे हैं। लेकिन, दवा और टेस्टिंग की इन गांवों में कोई व्यवस्था नहीं है। कई गांवों के बीच सतबूंगा में एक प्राथमिक स्वास्थ्य केन्द्र है। हर रोज बड़ी संख्या में लोग कई किमी चलकर सतबूंगा स्वास्थ्य केंद्र में पहुंच रहे हैं। लेकिन, वहां न तो टेस्ट की सुविधा उपलब्ध है और न दवाइयां। हाॅस्पिटल में तैनात डाॅक्टर उन्हें बुखार आदि की कुछ सामान्य गोलियां पकड़ा कर टेस्ट के लिए 4 से 10 दिन बाद की डेट देकर घर भेज देते हैं।

रामगढ़ ब्लाॅक का सबसे बड़ा गांव है सूपी। यह गांव जिला मुख्यालय से करीब 85 किमी दूर दुर्गम क्षेत्र में है। गांव की आबादी करीब 3500 है। इस गांव में हर परिवार में कोई न कोई बीमार है। गांव के पर्यावरण कार्यकर्ता बच्ची सिंह बिष्ट कहते हैं कि पिछले कई दिनों से गांव में ज्यादातर लोग खांसी- बुखार से पीड़ित हैं। कोविड की आशंका के चलते लोग सतबूंगा स्वास्थ्य केन्द्र पहुंचते हैं तो वहां डाॅक्टर 24 मई केे बाद की डेट दे रहे हैं। दरअसल फिलहाल इस स्वास्थ्य केंद्र में कोविड टेस्ट करने की कोई व्यवस्था ही नहीं है। कमोबेश यही स्थिति रामगढ़ ब्लाॅक के लोद, चापड़, गल्ला, म्योड़ा आदि गांवों में भी है। बिष्ट कहते हैं, टेस्ट के लिए 4 से 10 दिन बाद की डेट मिल रही है। यदि टेस्ट हो भी जाए तो रिपोर्ट कब तक आएगी, इसका कोई ठिकाना नहीं है।\

नैनीताल जिले के ही रामनगर ब्लाॅक के पाटकोट गांव में भी स्थितियां बेहद खराब हैं। हल्द्वानी के कार्तिक उपाध्याय अपने साथियों के मदद से इस गांव में दवाइयां भिजवाने का प्रयास कर रहे हैं। कार्तिक बताते हैं कि गांव में कई लोग बीमार हैं। इनमें से कुछ का टेस्ट हुआ है, लेकिन टेस्ट रिपोर्ट आने में 10 दिन तक का समय लग रहा है। तब तक संक्रमित लोग अनजाने में कई दूसरे लोगों को संक्रमित कर देते हैं।  सूपी और पाटकोट जैसी हालत राज्य में सभी पर्वतीय क्षेत्रों के गांवों की है।

पिछले एक हफ्ते के दौरान राज्य के 9 पर्वतीय और एक अर्द्ध पर्वतीय नैनीताल जिले में की गई सैंपलिंग और पाॅजिटिविटी की बात करें तो बेहद चिन्ताजक स्थिति सामने आती है। राज्य में अब तक मैदानी जिलों में पाॅजिटिविटी रेट लगातार ज्यादा बना रहा है। लेकिन, पिछले कुछ दिनों से पर्वतीय जिलों में पाॅजिटिविटी रेट मैदानी जिलों की तुलना में काफी ज्यादा दर्ज किया गया। 12 से 18 मई के बीच सबसे खराब स्थिति पौड़ी जिले की रही। पौड़ी में इस दौरान 2734 पाॅजिटिव मामले आये और पाॅजिटिवटी रेट सबसे ज्यादा 28.31 प्रतिशत रहा। दूसरे स्थान पर टिहरी जिला रहा, जहां कुल पाॅजिटिव मामलों की संख्या 2792 और पाॅजिटिविटी रेट 24.95 प्रतिशत रहा। राज्य का अर्द्ध सरकारी जिला नैनीताल पाॅजिटिविटी रेट में तीसरे स्थान पर रहा। यहां 3706 पाॅजिटिव मामले सामने आये और पाॅजिटिविटी रेट 24.89 प्रतिशत रहा। दूसरी तरफ मैदानी जिलों में पाॅजिटिविटी रेट अपेक्षाकृत कम रहा। हरिद्वार जिले में 12 से 18 मई के बीच 5166 पाॅजिटिव मामले सामने आये और पाॅजिटिविटी रेट 12.81 प्रतिशत रहा। राज्य में अब तक सबसे ज्यादा कोविड प्रभावित देहरादून जिले में इस हफ्ते पाॅजिटिव मामलों की संख्या 10678 रही और पाॅजिटिविटी रेट 17.10 प्रतिशत दर्ज किया गया।
 
मामले बढ़े तो कम कर दी टेस्टिंग
उत्तराखंड में हेल्थ विभाग की ओर से जारी जिलावार आंकड़ों को विश्लेषण करने पर एक दूसरा ट्रेंड भी नजर आता है। ज्यादा टेस्ट करने पर जब भी किसी जिले में ज्यादा पाॅजिटिव मामले सामने आते हैं तो अगले दिन आमतौर पर उस जिले में सैंपलिंग कम कर दी जाती है। उदाहरण के तौर पर 15 मई को अल्मोड़ा जिले में 1000 सैंपल लिये गये और 753 पाॅजिटिव मामले सामने आये। 16 मई को इस जिले में सिर्फ 753 सैंपल लिये गये। उत्तरकाशी जिले में 15 मई को 1004 सैंपल लिये गये और पाॅजिटिव मामलों की संख्या 428 रही। 16 मई को उत्तरकाशी जिले में सिर्फ 557 टेस्ट किये गये। यही स्थिति चमोली जिले की रही। 15 मई को 1663 सैंपल की जांच में 482 पाॅजिटिव मामले आये, यहां भी 16 मई को सैंपलिंग की संख्या कम करके 1036 कर दी गई।
 
ऐसा ही एक अन्य उदाहरण 13 और 14 मई के आंकड़ों में भी देखा जा सकता है। रुद्रप्रयाग जैसे छोटे जिले में 13 मई को पाॅजिटिविटी रेट 33 परसेंट था। इस दिन इस जिले में 903 सैंपल लिये गये और पाॅजिटिव मामलों की संख्या 304 रही। इस स्थिति के बाद उम्मीद की जा रही थी कि जिले में सैंपलिंग ज्यादा से ज्यादा बढ़ाई जाएगी, लेकिन 14 मई को जिले में सैंपलिंग कम कर दी गई। केवल 751 सैंपल लिये गये।
 
13 मई को ही अल्मोड़ा में 850 सैंपल लिये गये और 210 पाॅजिटिव आये। 14 मई को यहां 692 सैंपल लिये गये। उत्तरकाशी जिले में 13 मई को 1054 सैंपल लिये गये और 317 पाॅजिटिव केस आये। अगले दिन सैंपलिंग में तेजी लाने के बजाए इसे कम करके 717 कर दिया गया। ऐसे और भी कई उदाहरण हेल्थ डिपार्टमेंट के कोविड संबंधी आंकड़ों में देखे जा सकते हैं।
 
राज्य में हेल्थ सर्विसेज और कोविड की स्थिति पर लगातार नजर रख रहे एसडीसी फाउंडेशन के संस्थापक अध्यक्ष अनूप नौटियाल बताते हैं कि राज्य में स्थितियां बेहद खराब हैं। वे कहते हैं कि इस समय जब पर्वतीय क्षेत्रों में तेजी से बुखार फैलने की खबरें आ रही हैं, सरकार को निजी पैथोलाॅजी लैबों की मदद लेकर ज्यादा से ज्यादा सैंपलिंग और टेस्टिंग करनी चाहिए। लेकिन, ऐसा नहीं हो पा रहा है। राज्य के 9 पर्वतीय जिलों की आबादी करीब 45 लाख है और 12 से 18 मई के बीच इन जिलों में केवल 10983 कोविड टेस्ट किये गये। यानी कि प्रति दिन एक लाख की जनसंख्या पर मात्र 244 टेस्ट किये जा रहे हैं। हर पर्वतीय जिले में हर रोज औसतन 1220 टेस्ट किये जा रहे हैं।
 
अनूप नौटियाल कहते हैं कि पिछले एक हफ्ते के दौरान राज्य में जितने टेस्ट हुए हैं, उनमें 65 प्रतिशत 3 मैदानी और एक अर्द्ध मैदानी नैनीताल जिले में हुए हैं। बाकी 9 पर्वतीय जिलों की हिस्सें में केवल 35 प्रतिशत टेस्ट आये हैं। वे हालात को देखते हुए पर्वतीय जिलों में ज्यादा से ज्यादा टेस्टिंग करने की जरूरत बताते हैं।

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