कोविड-19 टीका सभी के लिए : भारत में बिगड़ती जा रही टीके के आपूर्ति की कहानी

वैक्सीनेशन ने भारत को कोविड-19 की अफरा-तफरी से उबरने के लिए रास्ता दिया है, लेकिन वैक्सीन की आपूर्ति ही पर्याप्त नहीं है और इसके लिए बजट के बारे में भी स्थिति स्पष्ट नहीं है।

By Vibha Varshney

On: Friday 14 May 2021
 

भारत ने जब टीकाकरण अभियान के लिए योजना बनाई थी, तब बहुत मामूली लक्ष्य तय किया था। भारत सरकार ने 28 दिसंबर, 2020 को कोविड-19 वैक्सीन के लिए ऑपरेशनल गाइडलाइन  जारी की थी, ताकि बगैर किसी बाधा के टीकाकरण को लागू किया जा सके। हालांकि, किसी समय-सीमा का उल्लेख नहीं किया गया था और जो कुछ कहा गया था, उसमें शामिल था कि जो भी व्यक्ति वैक्सीन के लिए पात्र हैं, उन्हें इसे लगाया जाएगा।

पहले दौर में, लगभग 30 करोड़ लोगों को वैक्सीन लगनी थी। इसमें स्वास्थ्य कर्मी, फ्रंटलाइन वर्कर, 50 वर्ष से अधिक उम्र के व्यक्ति और दूसरे रोगों का सामना करने वाले व्यक्ति शामिल थे।

जो समस्या आज हम लोग देखते हैं, वह यह है कि सरकार संक्रमण की दूसरी लहर का अनुमान कर पाने में विफल रही, जो एक बहुत ज्यादा संक्रामक वायरस की वजह से हुआ है। सभी वैक्सीन चाहते है और वे इसे अभी चाहते है।

देश इसके लिए कभी तैयार ही नहीं था। 12 मई, 2021 तक, भारत में वैक्सीन की कुल 17.52 करोड़ (175.2 मिलियन) डोज लगाई गई है और सिर्फ 3.8 करोड़ (38.6 मिलियन) लोगों का ही टीकाकरण पूरा हो पाया है यानी उन्हें वैक्सीन की दूसरी डोज लग पाई है।

आज कम दाम पर वैक्सीन की आपूर्ति और इसे देश भर में पहुंचाने और लोगों तक वायरस और इसके वेरिएंट पहुंचे, इससे पहले उनका टीकाकरण करने की चुनौती है।

कितनी वैक्सीन की जरूरत है?

भारत की अनुमानित जनसंख्या 139 करोड़ है। अगर हम यह मान लें कि इनमें से 70 प्रतिशत आबादी वैक्सीन के लिए पात्र है तो यह संख्या लगभग 97.4 करोड़ आती है। अगर हम यह मान लें कि हर्ड इम्यूनिटी पाने के लिए इनमें से 60 प्रतिशत आबादी को वैक्सीन लगाना जरूरी होगा, तब हमें 58.4 करोड़ लोगों का टीकाकरण करना ही पड़ेगा। अगर इसे सुलझाकर कहें तो 60 करोड़ से लेकर एक अरब आबादी टीकाकरण के लिए पात्र है।

इसका मतलब है कि भारत में उपलब्ध दोहरे डोज वाली वैक्सीन के साथ सभी का टीकाकरण करने के लिए हमें 1.2 अरब से 2 अरब डोज की जरूरत है।

 

वैक्सीन आपूर्ति की मौजूदा स्थिति क्या है?

इतने ज्यादा लोगों को वैक्सीन लगाने के लिए उत्पादन क्षमता बहुत महत्वपूर्ण है। 9 मई, 2021 को केंद्रीय स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय की ओर से सुप्रीम कोर्ट में दाखिल हलफनामे के अनुसार:

  • सीरम इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया (जो कोविशिल्ड का उत्पादन करता है) ने अपनी उत्पादन क्षमता को प्रति माह पांच करोड़ से 6.5 करोड़ तक बढ़ाया है
  • भारत बायोटेक इंटरनेशनल लिमिटेड (जो कोवैक्सिन उत्पादित करता है) ने अपने उत्पादन को 9 लाख डोज से दो करोड़ डोज तक बढ़ाया। यह उम्मीद है कि यह जुलाई के अंत तक प्रति माह 5.5 करोड़ डोज बढ़ जाएगी।
  • स्पूतनिक-V (डॉ. रेड्डीज लैब की ओर से वितरित) की आपूर्ति जुलाई के अंत तक तीन लाख डोज से बढ़कर 1.2 करोड़ डोज तक पहुंचने की उम्मीद है।

इस प्रकार हमारे पास जुलाई के अंत तक प्रति माग 13.2 करोड़ डोज उपलब्ध होगी। अगर हम यह मान लें कि सभी लोगों का टीकाकरण करने में चार महीने लग जाएंगे, तब भारत को हर महीने 30-60 करोड़ डोज की जरूरत है।

आने वाले दिनों में डोज की उपलब्धता में बढ़ने की उम्मीद है, क्योंकि केंद्र सरकार ने विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ), अमेरिका और यूरोपीय संघ के ड्रग रेगुलेटर्स से मंजूरी पा चुकी वैक्सीन को आयात करने की अनुमति दे दी है।

इसने मॉडर्ना इंक, फाइजर इंक, जॉनसन एंड जॉनसन और सिनोफार्मा की वैक्सीन के लिए दरवाजे खोल दिए हैं। स्पूतनिक-V समेत ये टीके, केवल निजी बाजार में या ग्लोबल टेंडर के जरिए मिलने की उम्मीद है। अभी राज्य सरकारें ये ग्लोबल टेंडर ला रही हैं।

जायडस कैडिला की डीएनए वैक्सीन के साथ क्षमता में और इजाफा हुआ, जो अगले महीने के अंत में बाजार में आएगी और वैक्सीन की प्रति माह क्षमता में एक करोड़ डोज जोड़ेगी।

भविष्य में कोवैक्सिन का उत्पादन भी बढ़ने की संभावना है, जिसमें तीन सार्वजनिक क्षेत्र की इकाइयों को शामिल किया जाएगा। हालांकि, इसमें समय लगेगा, क्योंकि इन इकाइयों को पहले उन्नत बनाने की जरूरत है।

वितरण भी उतना महत्वपूर्ण है, जितना कि आपूर्ति

भारत के पास एक अतुलनीय रूप से खर्चीले और प्रभावी जन टीकाकरण कार्यक्रम का अनुभव है। सवाल यह है कि क्या मौजूदा टीकाकरण अभियान का जो विस्तार है, वह इस प्रणाली की क्षमता से ही परे है? क्या इसे और तेजी से बढ़ाया जा सकता है? क्या खूबियां होंगी? What will it take? 

मौजूदा सार्वभौमिक टीकाकरण कार्यक्रम (यूनिवर्सल इम्युनाइजेशन कार्यक्रम) के तहत, नवजात शिशुओं और गर्भवती माताओं को हर साल लगभग 39 करोड़ डोज दी जाती है। कोविड-19 से राहत के लिए, देश को अपनी इस क्षमता और रफ्तार दोनों को दोगुना करने की जरूरत पड़ेगी।

ऐसा इस कारण से है कि अभी भी कई राज्य अपने पास मौजूद वैक्सीन स्टॉक को ‘वितरित’ करने में दिक्कतों का सामना कर रहे हैं। 11 मई को जारी प्रेस इंफॉर्मेशन ब्यूरो की रिलीज के अनुसार, राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों के पास 90 लाख से ज्यादा कोविड-19 वैक्सीन की डोज मौजूद हैं, जिनका इस्तेमाल अभी बाकी है।

वैक्सीन की 120-200 करोड़ डोज को वैक्सीन सेंटर्स तक पहुंचाने के लिए बुनियादी ढांचे को भी मजबूत करने की जरूरत है। प्रत्येक टीकाकरण केंद्र में कम से कम पांच व्यक्तियों को रखने की जरूरत है, जिसमें एक वैक्सीनेटर शामिल है। भविष्य की जरूरतें पूरी करने के लिए, राज्यों को नए टीकाकरण केंद्र बनाने की भी सलाह दी गई है।

केंद्र सरकार के कोविन पोर्टल के अनुसार, जो कोविड-19 टीकाकरण प्रक्रिया की निगरानी करता है:

  • 11 मई 2021 को भारत में कुल 56,288 टीकाकरण केंद्र थे।
  • इनमें से 54,852 केंद्र सरकारी क्षेत्र में और 1,436 निजी में थे
  • 11 मई को वैक्सीन के कुल 24,20,915 डोज लगाए गए
  • प्रति केंद्र के हिसाब से सिर्फ 43 डोज लगे

वितरण को सुधारने के लिए स्पष्टता लाने की बहुत ज्यादा जरूरत है। 11 मई को जारी प्रेस रिलीज बताती है कि अगले तीन दिनों में राज्यों/केंद्र शासित प्रदेशों में वैक्सीन की 7 लाख डोज भेजी जाएगी।

यह दिखाता है कि वैक्सीन की आपूर्ति लगातार घट रही है। केंद्र ने 7 मई को कहा था कि अगले 3 दिनों में राज्यों/केंद्र शासित प्रदेशों में लगभग 10 लाख डोज भेजी जाएंगी, जबकि इससे पहले 4 मई को उतने ही समय में 48 लाख डोज भेजने की बात कही गई थी।

राज्यों को सतर्क रहना होगा, क्योंकि केंद्र सरकार का मुफ्त वैक्सीन आवंटन का तरीका बहुत अनिश्चित है। इसके मुताबिक, वैक्सीन का वितरण (टीकाकरण में) राज्यों के प्रदर्शन और बीमारी के विस्तार के आधार पर तय होगा। लेकिन, विशेषज्ञों ने पाया है कि सबसे अच्छा प्रदर्शन करने वाले राज्यों में शामिल केरल को दूसरे में 60 से ज्यादा उम्र के प्रति व्यक्ति पर 0.3 डोज मिले, जबकि गुजरात और राजस्थान में प्रति प्रति व्यक्ति पर 0.6-0.7 डोज दिए गए।

दाम क्या है?

सरकार की लिबरलाइज्ड एंड एक्सीलरेटेड फेज 3 स्ट्रेटजी (उदारीकृत और त्वरित चरण-3 रणनीति) चिंता की बड़ी वजह है, जिसे 19 अप्रैल, 2021 को लाया गया था।

यह निर्माताओं को राज्यों और निजी अस्पतालों को अपने उत्पादों को ऊंचे दाम पर बेचने की छूट देता है। सुप्रीम कोर्ट में दाखिल केंद्र सरकार के हलफनामे के मुताबिक, “भारत सरकार के अलावा अन्य” के लिए आवंटित 50% कोटे में से, आधा राज्य सरकारों और आधा निजी क्षेत्रों के लिए उपलब्ध हैं, जिसे वे अपने चैनल से लोगों तक पहुंचाएंगे।

केंद्र सरकार के मुताबिक, यह अंतर इसलिए रखा गया है, ताकि कमजोर समूहों को प्राथमिकता दी जा सके:

“विशेष रूप से, देश में कोविड से जुड़ी मौतों के विश्लेषण से पता चलता है कि कुल मौतों में 54 फीसदी मौतें 60 साल से अधिक आयु वर्ग के बीच हुईं, जबकि 50-59 वर्ष आयु वर्ग में यह सिर्फ 24 प्रतिशत रहीं और यह भी आकलन है कि 85 प्रतिशत से ज्यादा मौतें 45 वर्ष से अधिक आयु वर्ग में हुई हैं।”

इसके मुताबिक, जिनकी 45 वर्ष से ज्यादा उम्र है, उन्हें केंद्रीय कोटा (उत्पादित/आपूर्ति का आधा हिस्सा) से वैक्सीन मिलेगी और इसे लोगों को मुफ्त में भेजा जा सकता है। कम जोखिम वाली युवा आबादी के लिए मिलने वाली बाकी की आधी डोज की कीमत को ऊंची रखा गया है, जिसकी खरीद राज्यों और निजी क्षेत्र को करना है।

सवाल यह है कि राज्यों को आवंटन कैसे होगा? केंद्र सरकार के हलफनामे के अनुसार, समान वितरण सुनिश्चित करने के लिए इसे सभी राज्यों की 18-44 वर्ष आयु की जनसंख्या के आधार पर तय किया गया है। सभी राज्यों में वैक्सीन की समान उपलब्धता सुनिश्चित करने के लिए प्रत्येक राज्य इस जनसंख्या के आधार पर पूर्व निर्धारित अनुपात (प्रो राटा बेसिस) में निर्माताओं से टीकों की एक तय मात्रा को खरीदने में सक्षम होंगे।

केंद्र सरकार के हलफनामे के अनुसार, मई के पहले पखवाड़े में राज्यों और निजी संस्थाओं के लिए कुल दो करोड़ वैक्सीन की खुराक उपलब्ध थी। इसमें से डेढ़ लाख कोविशिल्ड और 50 लाख कोवैक्सिन थी। भारत बायोटेक ने घोषणा की थी कि वह राज्यों को अपनी वैक्सीन को 400 रुपये प्रति डोज के हिसाब से बेचेगी, जबकि सीरम इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया ने इसका दाम 300 रुपये प्रति डोज तय किया है।

इसमें निजी क्षेत्र को ज्यादा खर्च करना पड़ेगा: क्योंकि एसआईआई ने इसकी कीमत 600 रुपये प्रति डोज तय की है, जबकि भारत बायोटेक ने अभी तक इसकी कीमत नहीं बताई है। इसकी ऊंची कीमत का परिणाम निजी केंद्रों पर वैक्सीन की ऊंची कीमत के रूप में सामने आया है।

भारत बायोटेक की कोवैक्सिन 1,250-1,500 रुपये में और एसआईआई का कोविशिल्ड 700-900 रुपये में उपलब्ध है। कोविन वेबसाइट के अनुसार, निजी क्षेत्र के बड़े खरीदारों में अपोलो, मैक्स, फोर्टिस और मणिपाल जैसे बड़े ब्रांड वाले अस्पताल शामिल हैं।

भारत के सभी राज्यों ने कहा है कि वे वैक्सीन खरीदेंगे, लेकिन अपने राज्य में 18-44 आयु वर्ग को नि:शुल्क लगाया जाएगा। यह निश्चित तौर पर उनके खजाने पर बोझ डालेगा, लेकिन उनका यह फैसला सभी लोगों का टीकाकरण को सुनिश्चित करने की जरूरत से उपजा है।

राज्य अब टीके की आपूर्ति में तेजी लाने के लिए ग्लोबल टेंडर निकाल रहे हैं। इसकी कीमत स्पष्ट नहीं है, जो यह तो तय है कि ऐसे टेंडर के साथ बहुत अच्छी तरह मोलभाव करना होता है, ताकि दाम को कम से कम रहे और इसकी आपूर्ति में प्रतिस्पर्धा हो,  लेकिन मूल्यवान वस्तु का दाम न बढ़े।

गणित:

60 करोड़ से 1 अरब भारतीयों को वैक्सीन लगाने की जरूरत = 1.2 अरब से 2 अरब डोज

मान लिया कि 50 प्रतिशत केंद्र को 150 रुपये प्रति डोज के हिसाब से मिलेगा = 15,000 करोड़ रुपये (1 अरब खुराक के लिए)

अगर बाकी का 50 प्रतिशत 300-400 रुपये प्रति डोज की दर से राज्यों और निजी अस्पतालों को मिला तो खर्च = 30,000-40,000 करोड़ रुपये

अब कुल खर्च को जोड़ लें तो यह 45,000-55,000 करोड़ रुपये होगा।

इस प्रकार से यह राशि वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण की ओर से 2021-22 के बजट में कोविड-19 टीकाकरण के लिए आवंटित 35,000 करोड़ रुपये से कहीं ज्यादा है। चीजों को एक साथ रखने पर, राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन के लिए साल भर का अनुमानित बजट 37,130 करोड़ रुपये आता है। केंद्रीय आवास और शहरी मामलों के सेंट्रल विस्टा प्रोजेक्ट का खर्च (वर्षों के लिए) 20,000 करोड़ रुपये है। अगर इतना टीकाकरण पर खर्च किया जाए तो कोविड-19 को हराने में भारत को निश्चित तौर पर मदद मिल जाएगी।

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