कोविड-19 ने गरीब देशों में शिक्षा हासिल करने के अंतर को 70 फीसदी तक बढ़ाया: रिपोर्ट

कोविड-19 महामारी के चलते दुनिया भर के स्कूलों के बंद होने से 160 करोड़ छात्रों की शिक्षा पर रोक लग गई थी और इसने लिंग संबंधी भेदभावों को भी बढ़ाया।

By Dayanidhi

On: Tuesday 07 December 2021
 
फोटो : विकिमीडिया कॉमन्स

विश्व बैंक, यूनेस्को और यूनिसेफ की एक नई रिपोर्ट के मुताबिक कोविड-19 महामारी के चलते स्कूल बंद होने की वजह से छात्रों की पढ़ाई का भारी नुकसान हुआ है। यह नुकसान वर्तमान पीढ़ी के छात्रों के जीवन भर की कमाई का 17 ट्रिलियन डॉलर के बराबर है। दूसरे शब्दों में कहें तो यह आज के वैश्विक सकल घरेलू उत्पाद का लगभग 14 फीसदी के नुकसान के बराबर है। नए प्रक्षेपण से पता चलता है कि प्रभाव पहले की तुलना में अधिक गंभीर है और 2020 में लगाए गए अनुमान 10 ट्रिलियन डॉलर की तुलना में कहीं अधिक है।

द स्टेट ऑफ द ग्लोबल एजुकेशन क्राइसिस: ए पाथ टू रिकवरी रिपोर्ट से पता चलता है कि निम्न और मध्यम आय वाले देशों में, पढ़ने के सुविधाओं का अभाव वाले बच्चों की हिस्सेदारी महामारी से पहले ही 53 फीसदी के करीब थी जो अब लगभग 70 फीसदी तक पहुंच गई है। लंबे समय तक स्कूलों के बंद रहने और स्कूल बंद होने के दौरान पढ़ाई जारी रखने के लिए दूरस्थ शिक्षा का प्रभाव हीन होना इसमें शामिल है।

विश्व बैंक के ग्लोबल डायरेक्टर फॉर एजुकेशन जैमे सावेद्रा ने कहा कि कोविड-19 संकट ने दुनिया भर में शिक्षा प्रणालियों पर रोक लगा दी है। 21 महीने के बाद भी लाखों बच्चे स्कूल नहीं जा सकते हैं क्योंकि स्कूल अभी भी बंद हैं और कुछ ऐसे भी हैं जो अब कभी भी स्कूल नहीं लौट पाएंगे।

रिपोर्ट में कहा गया है कि कई बच्चों की पढ़ाई का नुकसान हो रहा है जो की ठीक नहीं है। पढ़ने की सुविधाओं का अभाव बच्चों और युवाओं, उनके परिवारों और दुनिया की अर्थव्यवस्थाओं की उत्पादकता, कमाई और कल्याण पर विनाशकारी प्रभाव डाल सकती है।

सिमुलेशन का अनुमान है कि स्कूलों के बंद होने से शिक्षा हासिल करने का सबसे अधिक नुकसान हुआ है, अब इस बात की पुष्टि वास्तविक आंकड़ों द्वारा की जा रही है। उदाहरण के लिए, ब्राजील, पाकिस्तान, ग्रामीण भारत, दक्षिण अफ्रीका और मैक्सिको के क्षेत्रीय साक्ष्य, गणित के प्रश्नो को हल करने और पढ़ने में पर्याप्त नुकसान के बारे में बताते हैं। विश्लेषण से पता चलता है कि कुछ देशों में, शिक्षा का नुकसान स्कूलों के बंद होने की औसत लंबाई के समानुपाती होते हैं।

हालांकि, सभी देशों में और विषय के आधार पर, छात्रों की सामाजिक आर्थिक स्थिति, लिंग और ग्रेड के आधार पर काफी अलग थी। उदाहरण के लिए, मेक्सिको में दो राज्यों के परिणाम 10 से 15 वर्ष की आयु के छात्रों के लिए पढ़ने और गणित में सीखने में महत्वपूर्ण कमी को दिखाते हैं। अनुमानित सीखने की हानि गणित के प्रश्नों को हल करने तुलना में अधिक थी, इसने युवा छात्रों, कम आय वाले पृष्ठभूमि के छात्रों के साथ-साथ लड़कियों को भी प्रभावित किया।   

क्या केवल कोविड-19 महामारी के चलते स्कूल बंद हो रहे हैं

कोविड-19 महामारी पर किसी का नियंत्रण नहीं था लेकिन वायु प्रदूषण को तो रोका जा सकता था। हाल ही में दिल्ली-एनसीआर के स्कूलों को वायु प्रदूषण के चलते बंद कर दिया गया। सर्दियों के मौसम के आने से पहले दिल्ली में वायु प्रदूषण पर रोक लगाने के लिए योजना बना कर इसे लागू किया जा सकता था। योजना में ऐसे उद्योगों को बंद करना जो प्रदूषण करते हैं, कचरे को जलाने पर रोक, सड़क की धूल पर अंकुश लगाना आदि शामिल है।   

कोरोना संकट ने शिक्षा में असमानताओं को बढ़ाया

रिपोर्ट के मुताबिक कम आय वाले परिवारों के बच्चों, विकलांग बच्चों और लड़कियों के अपने साथियों की तुलना में दूरस्थ शिक्षा तक पहुंचने की संभावना कम थी। यह अक्सर सुलभ तकनीकों की कमी और बिजली, इंटर नेट कनेक्टिविटी और उपकरणों की उपलब्धता के साथ-साथ भेदभाव के कारण पाया गया।

कुछ अपवादों को छोड़कर, दुनिया भर में कोरोना संकट ने शिक्षा में असमानताओं को बढ़ा दिया है।

छोटे बच्चों की दूरस्थ शिक्षा तक कम पहुंच थी और वे पुराने छात्रों की तुलना में शिक्षा न ले पाने से अधिक प्रभावित थे, विशेष रूप से प्री-स्कूल आयु के बच्चों में जो सीखने और विकास के महत्वपूर्ण चरणों में थे।

भारत के राज्य कर्नाटक के ग्रामीण इलाके में, साधारण घटाने वाले प्रश्नों को हल करने में सरकारी स्कूलों के ग्रेड तीन के छात्रों की हिस्सेदारी 2018 में 24 फीसदी से गिरकर 2020 में केवल 16 फीसदी रह गई।

Source : World Bank

कोविड-19 महामारी के चलते दुनिया भर के स्कूलों के बंद होने से 160 करोड़ छात्रों की शिक्षा पर रोक लग गई थी और इसने लिंग संबंधी भेदभावों को भी बढ़ाया। कुछ देशों में, लड़कियों में शिक्षा हासिल करने की अधिक हानि और बाल श्रम, लिंग आधारित हिंसा, कम उम्र में विवाह और गर्भावस्था का सामना करने के जोखिम में वृद्धि देखी जा रही है। यूनिसेफ के शिक्षा निदेशक रॉबर्ट जेनकिंस ने कहा इस पीढ़ी के इन प्रभवों को दूर करने के लिए, हमें स्कूलों को फिर से खोलना चाहिए और उन्हें खुला रखना चाहिए, छात्रों को स्कूल वापस लाने का लक्ष्य बनाना चाहिए और सीखने की प्रक्रिया में तेजी लानी चाहिए।

रिपोर्ट के मुताबिक जबकि दुनिया के लगभग हर देश ने छात्रों के लिए दूरस्थ शिक्षा के अवसरों को सुलभ करवाया, इस तरह की पहल की गुणवत्ता और पहुंच अलग-अलग थी। ज्यादातर मामलों में, उन्होंने व्यक्तिगत रूप से निर्देश के बजाय आंशिक विकल्प की पेशकश की। 20 करोड़ से अधिक शिक्षार्थी निम्न और निम्न मध्यम आय वाले देशों में रहते हैं जो कोरोना काल में स्कूल बंद होने के दौरान दूरस्थ शिक्षा को पूरी तरह लागू करने में असमर्थ पाए गए। 

हर बच्चे की शिक्षा तक पहुंच के लिए रिपोर्ट में दिए गए सुझाव

रिपोर्ट में कहा गया है कि शिक्षा प्रणाली को अधिक लचीली बनाने के लिए, देशों को इस पर विचार करना चाहिए। सभी छात्रों के लिए डिजिटल माध्यम से शिक्षा हासिल करने के अवसर हासिल हो। बच्चों की शिक्षा में माता-पिता, परिवारों और समुदायों की भूमिका को सुदृढ़ करना। यह सुनिश्चित करना कि शिक्षकों के पास उच्च गुणवत्ता वाले व्यावसायिक विकास के अवसरों तक पहुंच है। प्रोत्साहन पैकेजों के राष्ट्रीय बजट आवंटन में शिक्षा का हिस्सा बढ़ाना।

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