बैठे ठाले: सारे जहां से अच्छा

कोरोना को बड़ा अचरज हुआ कि भला यह कैसा देश है जहां इंसान नहीं रहते

By Sorit Gupto

On: Monday 10 August 2020
 

सोरित / सीएसई देखने में यह विश्वयुद्ध पर बनी किसी फिल्म जैसा सेट था। बड़े से हॉल में बड़ा-सा टेबल, सामने की दीवार पर बड़ा-सा विश्व का मानचित्र टंगा था। विश्व विजेता कोरोना ने सामने दीवार पर टंगे गूगल मैप को देखा और मन ही मन हंसते हुए बुदबुदाया, “चला था अकेला ही जानिब-ए -मंजिल/ म्युटेशन होते गए और कारवां बढ़ता गया।” उसकी बातों में दम था। कभी वह अकेला चीन से टूरिस्ट वीजा लेकर किसी इत्सिंग, फाह्यान की तर्ज पर विश्व भ्रमण पर निकला था और किसी भी आधुनिक एशियाई की तरह चीन से निकलते ही उसने यूरोप का रुख किया लेकिन यूरोप के देशों ने उसका टूरिस्ट वीजा कैंसिल कर दिया और एक के बाद एक उसके गुलाम बनते गए। यह देख कोरोना में जल्द ही विश्व विजेता बनने की इच्छा बलवती हो गई। यूरोप के बाद वह ऑस्ट्रेलिया, दक्षिणी अमेरिका के देशों को जीतता हुआ एशिया की ओर मुड़ा और एक दिन उसने खुद को “सारे जहां से अच्छा” की सीमाओं पर पाया।

सामने खाली सड़कें, सूनी गलियां और बंद बाजार थे।

कोरोना को बड़ा अचरज हुआ कि भला यह कैसा देश है जहां इंसान नहीं रहते?

अचानक उसे चारों ओर से शोर सुनाई दिया। थोड़ी देर पहले तक सुनसान और वीरान दिखने वाले मकानों के बालकनियों में लोग निकल आए और जोर-जोर से थालियां बजाने लगे। कुछ लोग तालियां बजा रहे थे। कोरोना को लगा कि खेतों पर चिड़ियों ने हमला कर दिया है और उन्हें भागने के लिए लोग ऐसा कर रहे हैं।

कोरोना ने आसमान आवारा हेलिकॉप्टरों को उड़ते हुए देखा जो न जाने किस पर फूल बरसा रहे थे। यह देखकर उसे बड़ा आश्चर्य हुआ।

इससे पहले वह कभी ऐसे देश में नहीं गया था जहां इंसान पहले तो अपने घर की बत्तियां बुझों दें और फिर बालकनी पर मच्छरों की भीड़ में मोमबत्ती लेकर खड़े हो जाएं।

कोरोना के लिए यह देश कम और अजूबा ज्यादा था। यहां ऐसे स्कूल थे जहां लोगों को मवेशियों की तरह रखा गया था। अखबार थे पर उसमें सब्जी परोसी जा रही थी। नेता थे जो झूठ पर झूठ बोलते थे। सरकारी अस्पताल में डॉक्टर-नर्सों को ठेके पर और बगैर वेतन के रखा जाता था। निजी अस्पतालों में मरीजों के शवों को अगवा कर फिरौती मांगी जा रही थी। मालिक डॉक्टरों-नर्सों को घर से निकाल रहे थे।

कोरोना को यह सब बहुत मजेदार लग रहा था। चलते-चलते वह एक गौशाला के सामने से गुजरा। वहां भारी भीड़ लगी थी। पूछने पर पता चला कि वहां किसी महामारी की वैक्सीन बांटी जा रही है। कोरोना किसी तरह भीड़ में जगह बनाते हुए सामने गया तो उसने देखा कि लोग गिलास-कप-प्यालों में दबादब गोमूत्र पी रहे हैं। थोड़ी देर तक कोरोना ने अपने आपको संभालकर रखा था पर अब उससे रहा नहीं गया। उसकी आंखों से आंसू बहने लगे।

विश्व विजेता कोरोना रो रहा था।

रोते हुए उसने गोमूत्र पी रहे एक व्यक्ति से लिपटकर कहा, “मैं गलत था। मेरा विश्व विजेता बनने का सपना गलत था। मुझे आज अपना वह घर मिल गया जिसकी तलाश में मैं पूरी दुनिया में भटक रहा था।”

कहते हैं कि कोरोना गौशाला से बाहर निकलकर सीधे नागरिकता दफ्तर गया और इस देश की स्थायी नागरिकता के लिए अर्जी दे दी।

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