कोरानावायरस संभावित मरीजों की निजता भंग करना कितना सही है?
राजस्थान के श्रीगंगा नगर सहित कई शहरों में कोरोनावायरस संभावित मरीजों के घरों के बाहर पोस्टर लगाए जा रहे हैं
On: Tuesday 24 March 2020
राजस्थान के श्रीगंगानगर में स्वास्थ्य विभाग के एक काम ने बहस छेड़ दी है। विभाग ने विदेशों से आए लोगों के घरों के आगे स्टीकर लगा दिए हैं और इसे सोशल साइट फेसबुक पर भी शेयर किया गया है। ये कोरोनावायरस संदिग्ध लोग हैं जो 14 दिन के लिए होम क्वेरेंटाइन (घर में अकेले) किए गए हैं।
स्वास्थ्य के क्षेत्र में काम करने वाली संस्थाएं इसे पेशेंट्स राइट्स (मरीजों के अधिकार) और उनकी निजता के नियमों के खिलाफ मान रही हैं। वहीं, विशेषज्ञ इमरजेंसी को देखते हुए इस कदम को सही ठहरा रहे हैं। स्वास्थ्य कार्यकर्ताओं का मानना है कि ऐसा करने से कोरोनावायरस के संदिग्ध लोगों के प्रति सामाजिक छूआछूत बढ़ेगी और उन्हें अलग नजरों से देखा जाएगा। नागौर, जोधपुर में भी कोरोना संदिग्ध मरीजों के घरों के आगे इस तरह के पोस्टर्स चिपकाए गए हैं।
साल 2018 में स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय ने 17 बिंदुओं का एक चार्ट जारी किया था। जिसमें उनकी निजता और गोपनीयता को सार्वजनिक नहीं करना भी शामिल है।
21 मार्च को अजमेर में एक हिंदी अखबार में 46 कोरोना संदिग्धों (जो विदेश से आए थे) के नाम और पते सार्वजनिक कर दिए गए। अखबार में छपी खबर के अनुसार राजस्थान के स्वास्थ्य मंत्री रघु शर्मा के वीडियो कांफ्रेंसिंग पर दिए निर्देशों के बाद नाम सार्वजनिक करने का निर्णय लिया गया। अखबार के मुताबिक अगर कोई आदेशों का पालन नहीं करता तो उसके घर के बाहर सूचना चस्पा करने के भी आदेश मंत्री ने दिए हैं।
राजस्थान में स्वास्थ्य के मुद्दे पर काम करने वाली संस्था जन स्वास्थ्य अभियान ने शनिवार को मुख्यमंत्री अशोक गहलोत को इस संदर्भ में पत्र लिखा। पत्र में कोरोना संदिग्धों की निजता भंग करने वाले आदेशों को वापस लेने की मांग की गई है।
अभियान की राज्य समन्यवयक और प्रयास संस्था की डायरेक्टर छाया पचौली ने डाउन-टू-अर्थ से कहा, ‘यह मरीजों की निजता और उनके अधिकारों का उल्लंघन है। यदि इन संदिग्धों में से कोई भी व्यक्ति कोरोना पॉजिटिव नहीं निकला तो फिर सरकार इन्हें क्या जवाब देगी? दूसरा, संदिग्धों पर नजर रखने के लिए उनकी निजता के साथ खिलवाड़ नहीं होना चाहिए। सरकार और स्वास्थ्य विभाग को ऐसे लोगों पर नजर रखने के लिए कोई वैकल्पिक व्यवस्था करनी चाहिए।’
पचौली आगे कहती हैं, ‘महामारियां अपने साथ कई तरह के स्टिग्मा लेकर आती हैं। इबोला के बाद ऐसी कई रिपोर्ट्स आईं जिनमें प्रभावित परिवारों को सामाजिक हिंसा का सामना करना पड़ा था। पीड़ित परिवारों के बच्चों का स्कूल में मजाक बनाया गया। बहुत सारे लोगों को संक्रमण फैलाने वाले के रूप में समाज में देखा जाने लगा। इसीलिए कोरोना के संदिग्धों के नाम सार्वजनिक करने से बेहतर विकल्प उस क्षेत्र को ही सील कर देना है।’
राजस्थान मेडिकल काउंसिल में सदस्य डॉ. ईश मुंजाल छाया से थोड़ी अलग राय रखते हैं। वे कहते हैं, ‘इस तरह के पोस्टर चिपकाने का कोई नियम तो नहीं है, लेकिन इस आपदा के समय में अगर दूर रखने के लिए ऐसा किया जा रहा है तो इसमें कुछ गलत भी नहीं है। अगर ऐसा सिर्फ कुछ संभावित कोरोना मरीजों के साथ हो रहा है तो ये स्टिग्मा कहा जाएगा। ज्यादा संख्या में इस तरह की प्रक्रिया से सामाजिक भेदभाव वाली बात नहीं होगी।’
डाउन-टू-अर्थ ने श्रीगंगानगर के सीएमएचओ डॉ. गिरधारी लाल से भी इस संदर्भ में बात की। उन्होंने कहा, ‘पोस्टर्स लगाने का मतलब यह बिलकुल नहीं है कि उस घर में कोरोना का पॉजिटिव मरीज है। ये सिर्फ जागरूकता के लिए है। पोस्टर सिर्फ 14 दिन के लिए लगाए हैं। अगर उच्च अधिकारियों से कोई निर्देश मिलते हैं तो हम इसे बंद कर देंगे।’
राजस्थान स्वास्थ्य विभाग के अतिरिक्त मुख्य सचिव रोहित कुमार सिंह कहते हैं, ‘मरीजों की निजता तब भंग होती है जब वे मरीज हों। ये सिर्फ संदिग्ध हैं जिन्हें 14 दिन घरों में रहने के लिए कहा गया है। जैसे अस्पताल के बाहर लिखा होता है कि ये अस्पताल है वैसे ही ये पोस्टर हैं कि यहां कोरोना के संदिग्ध या संभावित मरीज हैं। हां, पॉजिटिव मरीजों के नाम जाहिर नहीं होने चाहिए और हमने अभी तक ऐसा नहीं होने दिया है।’
हालांकि एक तथ्य यह भी है कि जो लोग संदिग्ध हैं वे निर्देशों के बावजूद घरों में नहीं रुक रहे। पिछले दिनों जयपुर के आरयूएचएस अस्पताल में आइसोलेशन में रखा गया एक शख्स भाग गया। उसे सवाई माधोपुर के गंगापुर सिटी शहर से पकड़ा गया।
कोरोनावायरस के संक्रमित और प्रभावित मरीजों की निजता को ध्यान में रखते हुए ओडिशा सरकार ने 21 मार्च को एक नोटिफिकेशन भी जारी किया है। इसमें प्रभावित या संक्रमित व्यक्ति, उसके परिजन, रिश्तेदार, इलाज कर रहे डॉक्टर और पते को गुप्त रखने के निर्देश हैं। निर्देशों के अनुसार संभावित या संक्रमित मरीज, उसके परिजन, रिश्तेदार, इलाज कर रहे डॉक्टर के बारे में किसी भी तरह की निजी जानकारी कोई भी मीडिया संस्थान अपने यहां नहीं छाप सकेगा।