कैसे मध्यप्रदेश का एक पिछड़ा जिला कोविड नियंत्रण में हुआ अव्वल ?
आलीराजपुर जिले की सफलता के पीछे सबसे बड़ा कारण संस्थागत इलाज की रणनीति को माना जा रहा है
On: Monday 24 May 2021
मध्यप्रदेश गुजरात सीमा पर बसे आलीराजपुर को कई कारणों से पिछड़ा जिला कहा जाते रहा है, लेकिन कोविड की दूसरी लहर में इस जिले ने बेहतर प्रबंधन से सबसे तेजी से केस कम किए हैं। 20 मई को यहां पर केवल 46 एक्टिव केस रह गए हैं। यह प्रदेश में सबसे कम केस वाला जिला बन गया है।
आलीराजपुर में स्वास्थ्य सेवाओं के संकट के बावजूद यह कमाल कैसे हुआ, इस पर चर्चा हो रही है। ऐसा नहीं है कि इस जिले में कोरोना संकट नहीं आया। राज्य के हेल्थ बुलेटिन के अनुसार बीस मई तक जिले में कोविड के 3442 केस दर्ज हुए, इनमें से 3351 मरीजों को स्वस्थ किया गया। कोविड संकट शुरू होने के बाद जिले में केवल 45 लोगों की मृत्यु ही दर्ज की गई है।
आलीराजपुर जिले की सफलता के पीछे सबसे बड़ा कारण संस्थागत इलाज की रणनीति को माना जा रहा है। आलीराजपुर कलेक्टर सुरभि गुप्ता ने बताया कि रणनीति अन्य जिलों की तरह ही थी, लेकिन इसका पूरी तरह से पालन करने से स्थिति जल्दी नियं.ित हो पाई। जैसे ही लॉकडाउन लगा जिले में सोशल गैदरिंग बंद हो गई, बाजार बंद हुए, समुदाय ने इसमें अच्छा सहयोग दिया। शुरुआत से ही संस्थागत इलाज के लिए जोर दिया, इसकी एक वजह थी ज्यादातर 20 से 40 आयुवर्ग में संक्रमण हो रहा था, यह वर्ग ऐसा है जो ज्यादा घरों में नहीं ठहरता, संक्रमण न फैले इसलिए उन्हें कोविड केयर सेंटर में लाया गया, और दूसरे स्तर पर उन्हें अच्छा पोषण मिले, जिससे वह जल्दी ठीक हो पाएं।
सुश्री गुप्ता ने बताया कि राज्य सरकार की गाइडलाइन के मुताबिक किल कोरोना अभियान तो चलाया ही गया, लेकिन चार हजार सरकारीकर्मियों के जरिए गांव—गांव समुदाय की खबर रखना और संक्रमितों के इलाज और अन्य सुविधाओं के लिए जिला में बनाए गए कंट्रोल रूम ने रात दिन काम किया। इस रूम से पचास लोगों की टीम ने हर एक संक्रमित व्यक्ति की हर तरह से मदद की। कोविड के खिलाफ जागरूकता अभियान स्थानीय बोली में करना भी कारगर रहा।
आलीराजपुर के पत्रकार चंद्रभानसिंह भदौरिया का कहना है कि शहरों में लॉकडाउन का ठीक से पालन करना और ग्रामीण क्षेत्रों में कुछ मौतों के बाद लोगों का सावधान हो जाना नियंत्रण की एक बड़ी वजह रहा। दूर-दराज के भी फलिए में पॉजिटिव केस निकलने पर पूरे गांव की सैंपलिंग की गई, कॉन्टेक्ट ट्रेसिंग पर ध्यान दिया गया।
इस इलाके की भौगोलिक बनावट ने भी इसमें बड़ा योगदान दिया है। इस आदिवासी बाहुल्य इलाके में लोग फलियों में रहते हैं, यहां पर एक दूसरे के घर काफी दूरी पर बने होते हैं, इस वजह से लोगों में सोशल डिस्टेंसिंग बनी रहती है, लेकिन इसके बावजूद जिले में बड़ी संख्या में लोग गुजरात, राजस्थान और महाराष्ट्र में पलायन करते हैं। कोविड की दूसरी लहर में भी लोग पलायन से लौटकर आ रहे थे, इसलिए संक्रमण आने का बड़ा खतरा था।
स्थानीय व्यापारियों ने भी इस बात को समझा। जब अन्य जिलों में अस्पतालों की हालात खराब होने लगी तो स्थानीय व्यापारी संघ ने खुद से आगे आकर जिलों में कोविड कफर्यू को आगे बढ़ाने का प्रस्ताव दिया। व्यापारी संघ का मानना था कि यदि जिले में केस बढ़े तो इसको संभालना बेहद मुश्किल हो जाएगा क्योंकि अस्पतालों में पर्याप्त इंतजाम नहीं हुए। इसका नतीजा यह हुआ कि बाजार में भीड़ नहीं हुई, और कोविड प्रोटोकाल का पालन बेहतर होते रहा।
हालांकि तीन हजार से ज्यादा मामलों को ठीक करना भी एक चुनौती था, वह भी तब जब स्वास्थ्य सुविधाएं जरुरत के हिसाब से नहीं हो। कलेक्टर सुरभि गुप्ता का कहना है कि यह चुनौती जरूर रही, लेकिन सरकार के निर्देशों के अनुसार हमने आयुष डॉक्टरों और अन्य उपलब्ध मानव संसाधनों की मदद ली। आक्सीजन वगैरह का इंतजाम आक्सीजन कंसटे्ेटर से किया गया। इससे यहां स्थिति ज्यादा बिगड़ी नहीं।