विश्लेषण: पूरे भारत में लॉकडाउन से कितना काबू आया कोरोनावायरस?
सामुदायिक स्वास्थ्य के वैश्विक विशेषज्ञों ने डाउन टू अर्थ को बताया कि भारत ने लॉकडाउन के दौरान मिले तैयारियों के समय का कितना उपयोग किया
On: Wednesday 06 May 2020
भारत दुनिया का सबसे बड़ा देश है, जिसने 42 दिन के लॉकडाउन का सामना किया। लगभग 130 करोड़ लोग कोरोनावायरस से होने वाली बीमारी (कोविड-19) को फैलने से रोकने के लिए अपने घरों में बंद रहे।
दो चरणों का लॉकडाउन खत्म होने के बाद सरकारी अधिकारियों ने दावा किया कि इन लॉकडाउन से कई फायदे हुए हैं। इनमें से एक बड़ा फायदा यह हुआ कि भारत ने कोरोनावायरस के संक्रमण फैलने से काफी हद तक रोक दिया। कहा गया कि मामलों के दोगुना होने की दर में सुधार हुआ है और संक्रमण के मामले जिस तेजी से दोगुने हो रहे थे, उसमें कमी आई है। कई दफा केंद्रीय स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय के संयुक्त सचिव लव अग्रवाल दैनिक प्रेस वार्ता में कहा कि मामलों के दोगुने होने की दर अब 12 दिन पहुंच चुकी है जो कि लॉकडाउन की शुरुआत में 25 मार्च को महज 3 दिन था। पर क्या यह सच में एक वैध संकेतक है?
स्वाथ्य मंत्रालय की नेशनल हेल्थ सिस्टम रिसोर्स सेंटर के पूर्व प्रमुख टी सुंदरा रमन ने डाउन टू अर्थ से कहा कि इस वक़्त संक्रमण के मामले 45,000 से अधिक हैं। अब सरकार कह रही है कि इसको 90,000 पहुंचने में तीन दिन से अधिक लग रहे तो यह उनके लिए एक उपलब्धि है। हमें शुरुआती आंकड़ा भी देखना चाहिए। यह सामान्य समझ की बात है कि जब मामले सैकड़ों में होंगे तो हजारों में होने की तुलना में दोगुने होने में कम वक्त लेंगे। उन्होंने कहा कि बेहतर होगा कि हम ये देखें कि कितने दिनों में 5,000 और उससे अधिक केस जुड़ रहे हैं।
आंकड़ों पर नजदीक से नजर डालने पर दिखता है कि 5000 केस जुड़ने के दिनों की दर घटती जा रहा है, जिससे यह संकेत मिलता है कि संक्रमण की रफ्तार कम नहीं हुई है।
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बढ़ते मामलों को देखना का एक और तरीका तीन दिन का औसत है। worldometers.info जो कि एक स्वतंत्र कोविड-19 के मामलों का ट्रैकर है, कहता है कि अभी भारत में 3 दिन में 3060 मामले सामने आ रहे हैं, जो कि शुरुआत में 76 थे।
भारत दूसरे अत्यधिक प्रभावित देशों के साथ कैसे तुलना करता है? भारत से अधिक मामलों वाले 10 शीर्ष के देशों में तीन दिन में आने वाले औसत मामले सभी में कम है, सिर्फ ब्राजील और रूस को छोड़कर जिसका 3 दिन का औसत 5,386 और 10,279 है।
इस गणना में स्पेन, यूनाइटेड किंगडम, इटली और अमेरिका को शामिल नहीं किया गया है, क्योंकि सूची में से भारत से अधिक मामले वाले देशों को बढ़ते क्रम में शामिल किया गया है।
"हमने कर्व को सीधा (फ्लेट) कर दिया है," दो मई को लव अग्रवाल ने यह कहा। हालांकि ऊपर जो आंकड़े पेश किए गए उससे उनके दावे की पुष्टि नहीं होती। विशेषज्ञों को भी इस बात पर संदेह है। "लॉकडाउन की घोषणा जब हुई थी, तब 257 मामले थे। अब मामले 155 गुणा बढ़ चुके हैं। अगर आप उम्मीद करते हैं कि यह 200 गुणा बढ़ने वाले थे, तो यह एक तरह से अच्छी खबर बनाई गई है," मशहूर वायरोलॉजिस्ट टी जैकब जॉन कहते हैं।
"कोई यह कैसे दावा कर सकता है कि कर्व अब सपाट हो गया है, जबकि पूरा देश लॉकडाउन में है। यह कृत्रिम रूप से पैदा की गई स्थिति है। लॉकडाउन खत्म करने के बाद सही आंकड़े सामने आएंगे," यह कहना है एक वरिष्ठ वैज्ञानिक का जो विज्ञान और तकनीक मंत्रालय में काम करते हैं। संयोगवश भारत एकमात्र देश है, जहां कोरोना मरीजों की संख्या 45,000 से अधिक होने के बाद भी दावा किया जा रहा है कि वायरस का सामुदायिक प्रसार (कॉम्युनिटी ट्रांसमिशन) शुरू नहीं हुआ है।
इसके अलावा यह भी दावा किया जा रहा है कि भारत में मरीजों के ठीक होने की दर काफी अच्छी है। स्वास्थ्य मंत्रालय के अधिकारियों के मुताबिक पांच मई की प्रेस वार्ता में ठीक होने की दर 27.41 थी, जबकि वैश्विक औसत 32 प्रतिशत है। पेरू जो कि संक्रमण के मामले में भारत के समकक्ष है, का ठीक होने का दर 30 फीसदी है।
जांच के लिए हमने कितनी तैयारियां की?
यह सब लोग जानते हैं कि लॉकडाउन से केस कम नहीं होेते, बल्कि आगे की तैयारियां के लिए समय मिल जाता है, ताकि लॉकडाउन खत्म होने के बाद संक्रमण पर काबू पाया जा सके। तैयारियों में सबसे महत्वपूर्ण जांच की संख्या बढ़ाना है। भारत सरकार ने लॉकडाउन शुरू होते समय महज कुछ हजार प्रतिदिन की क्षमता को बढ़ाकर अब 60,000 जांच प्रतिदिन पर ला दिया है। लेकिन भारत अभी भी कहां है? भारत प्रति 1000 जनसंख्या पर 0.86 जांच कर रहा है और केवल केन्या, इथियोपिया, नाइजीरिया, नेपाल, म्यामार, इंडोनेशिया और मैक्सिको से ऊपर है। ऑक्सफ़ोर्ड यूनिवर्सिटी के डाटाबेस 'आवर वर्ल्ड इन डाटा' के अनुसार सेनेगल, यूगांडा, ज़िम्बाब्वे और पड़ोसी पाकिस्तान जैसे देश भारत से बेहतर कर रहे हैं।
सेंटर फॉर डिजीज डायनामिक्स इकोनॉमिक्स एंड पॉलिसी यूनिवर्सिटी (सीडीडीईपी) ऑफ वाशिंगटन के फाउंडर डायरेक्टर रामानन लक्ष्मीनारायण कहते हैं कि जांच की संख्या को काफी तेजी से बढ़ाया गया, लेकिन जांच की योजना अब बदलनी होगी। अबतक भारत हर एक मामलों को कन्टेनमेंट के लिए खोज रहा था और प्रसार को समझने के लिए जांच कर रहा था। अब आगे चलकर बुजुर्ग नागरिकों की पहचान करनी होगी जिनको अधिक खतरा है और उन्हें चिन्हित कर इलाज की प्रक्रिया में लाना पड़ेगा। भारत को एक दिन में इसके लिए 5 लाख टेस्ट करने की जरूरत पड़ सकती है।
उन्होंने कहा, "दरअसल, हमारा अनुमान कहता है कि भारत 10 प्रतिशत संक्रमण ही खोज पा रहा है और उनमें आधे लक्षण वाले संक्रमण हैं।"
हालांकि, सरकारी अधिकारी इस बात को मानने से इनकार करते हैं कि जांच पर्याप्त नहीं हो रही। 23 अप्रैल को एक प्रेस वार्ता में केंद्रीय सरकार के सचिव सीके मिश्रा जो कि कोविड-19 के लिए बने 11 इम्पावर्ड ग्रुप में से एक के अध्यक्ष हैं ने एक कुछ आंकड़े प्रस्तुत किए। उन्होंने कहा कि 22 अप्रैल को जांच और पॉजिटिव मरीज का अनुपात 5 7 प्रतिशत था, जो कि लॉकडाउन से पहले 4.5 प्रतिशत था, इसका मतलब जांच से कोई मरीज छूट नहीं रहा।
जॉन होपकिंग्स इंस्टीटूट फॉर एप्लाइड इकोनॉमिक्स, ग्लोबल हेल्थ एंड द स्टडी ऑफ बिजनेस एंटरप्राइज के स्टीव हांक ने डाउन टू अर्थ को बताया कि यह आंकड़े बहुत थोड़ा बता रहे हैं। भारत में आंकड़े काफी तेजी से अलग-अलग राज्य में बदल रहे हैं। उदाहरण के लिए केरल में पॉजिटिव मरीज की दर 1.91 प्रतिशत है, जबकि महाराष्ट्र और गुजरात में क्रमशः 7.3 और 7.4 प्रतिशत है।
डाउन टू अर्थ से बात करने वाले स्वास्थ्य के सभी जानकार इस बात से सहमत दिखे की संक्रमण अब समुदाय में फैलने लगा है। अब यह उचित नहीं है कि सिर्फ यात्रा का इतिहास या संक्रमित मरीज के संपर्क में आने वाला की ही जांच की जाए। ऐसे समय में जब लॉकडाउन में छूट मिल रही है और मामले बढ़ने वाले हैं, अब जांच हर उस व्यक्ति की हो जिसे बुखार, खांसी हो।
ये तो हुई जांच की संख्या की बात। चीन की दो कंपनियों को रैपिड एंटीबाडी किट का आर्डर देते समय काफी उल्लास था, लेकिन इस किट को सही नहीं पाया गया। तीन बार डेडलाइन चूकने के बाद ये किट 17 अप्रैल को आए। 28 अप्रैल को इसे नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ वायरोलॉजी द्वारा परखने के बाद राज्यों को भेजा गया। सुंदरारमन कहती हैं कि इस बात का पता सबको था कि ये किट जांच के लिए नहीं बल्कि संक्रमण के प्रसार को समझने के लिए है, इसे जांच की सभी समस्याओं के समाधान के रूप में प्रस्तुत किया गया। इसे स्वीकारने और खारिज करने की प्रक्रिया ने देश ने 15 महत्वपूर्ण दिन खो दिए। उन्होंने आगे कहा, "आईसीएमआर खरीदी के लिए नहीं बना है जबकि हमारे पास खरीदी के लिए अलग एजेंसी है। इससे यह लगता है कि काम के दौरान ही हर चीज सीखी जा रही है।"
अब आगे क्या होना है? अब सरकार वापस वहीं लौट आई है और आरटी-पीसीआर किट को ही जांच का पुख्ता साधन मान रही है। यह किट पहले भी इस्तेमाल में थे और इसे जांच का सबसे अच्छा तरीका माना जाता है। क्या सिर्फ इसी किट पर निर्भर रहने से मदद मिलेगी?
केंद्रीय विज्ञान एवं टेक्नोलॉजी मंत्रालय के अधीन काम कर रहे एक संस्थान में कार्यरत वरष्ठि वैज्ञानिक ने बताया कि भारत की कई कंपनियां और सरकारी संस्थान एंटीजन पर आधारित किट तैयार कर रहे हैं जो वायरस के प्रोटीन को खोजता है। पीसीआर किट से वे काफी सस्ते होते हैं। दूसरे देशों की तुलना में भारत की जनसंख्या काफी अधिक है और हमें करोड़ों में जांच करनी है। भारत को इस किट के अलावा दूसरे विकल्पों की तरफ भी देखना चाहिए।
अस्पतालों की स्थिति
मिश्रा ने अपने प्रेजेंटेशन में कहा था कि 1.95 लाख आइसोलेशन बेड, 24,644 आईसीयू बेड, 12,731 वेंटीलेटर देश में उपलब्ध हैं। कोविड-19 के सक्षम समिति के ग्रुप-3 के अध्यक्ष पीडी वाघेला के द्वारा तैयार प्रेजेंटेशन जिसे एक मई को प्रस्तुत किया गया कहता है, 19,398 वेंटीलेटर उपलब्ध हैं जबकि मांग अगले 3 महीने में 75,000 की है। बचे हुए वेंटीलेटर मंगाए जा रहे हैं। 2.22 करोड़ पीपीई की जरूरत है और इसके लिए अधिकतर घरेलू निर्माताओं को आर्डर दिया जा चुका है।
"मार्च 30 तक, पीपीई का घरेलू उत्पादन 3,312 पीपीई प्रतिदिन था, जिसे बढ़ाकर 1.9 लाख प्रतिदिन किया गया है,” वह कहते हैं। इसी तरह, 2.01 करोड़ एन-95/99 मास्क की मांग ओरी करने के लिए उत्पादन क्षमता दोगुना किया गया है।
क्या ये इंतजाम काफी होंगे? इस बात पर जॉन कहते हैं कि इसके लिए संक्रमण की सही संख्या जानना जरूरी है, जो कि नहीं पता चल रही। लक्ष्मीनारायण कहते हैं कि हर राज्यों की स्थिति देखकर तैयारियों का स्तर बदलेगा। दरअसल, सबसे प्रभावित पांच राज्यों ने ये आंकड़े सामने नहीं रखे हैं। न ही केंद्र सरकार कोविड-19 के लिए राज्यवार उपलब्ध संसाधनों को बताने को तैयार है।
सीडीडीईपी के फाउंडर लक्ष्मी नारायण ने कहा कि अंततः बेड और वेंटीलेटर से ही सब नहीं होता, बल्कि इसके लिए स्वास्थ्यकर्मी भी जरूरी हैं। हम एक बेड छोटे समय में भी बना सकते हैं लेकिन वक प्रशिक्षित नर्स जो कि संक्रमण को काबू पाने के तरीके समझती हो या एक सांस रोग विशेषज्ञ जिन्हें एक महीने में तैयार करना संभव नहीं होगा। यह लंबे वक्त का निवेश है जिसे बहुत पहले समय पहले किया जाना चाहिए थी, जो कि नहीं किया गया।
क्या हम चरम स्थिति के लिए तैयार हैं? लॉकडाउन जैसे कदम से संक्रमण के मामलों में तेजी से होने वाली वृद्धि कुछ समय के लिए थम जाती है, जिससे अस्पतालों में लोगों को इलाज मिलता जाता है। महामारी अभी भी भारत में चरम पर नहीं गया है जो कि मध्य जुलाई या शुरुआती अगस्त में पहुंच सकता है। यह कहना है एक एक शोधकर्ताओं के समूह का जिनका शोध प्रकाशन की प्रक्रिया में है। तो भारत के पास बुरे समय के लिए अपनी तैयारियां दुरुस्त करने के लिए 2 महीने का समय है।