काेरोना से जंग: इन देशों से सीख ले सकता है भारत

इस महामारी को नियंत्रित करने के लिए किसी देश को क्या करना चाहिए, इसका सबसे अच्छा उदाहरण है दक्षिण कोरिया 

By Vibha Varshney

On: Tuesday 31 March 2020
 
Credit: Pixabay

दिसंबर 2019 में पहली बार कोरोना संक्रमण का केस सामने आया। इस बीमारी को नियंत्रित करने के लिए किसी देश को क्या करना चाहिए, इसका सबसे अच्छा उदाहरण है दक्षिण कोरिया। जनवरी में पहला मामला सामने आने के तुरंत बाद ही सरकार ने नैदानिक ​​किट निर्माताओं से न केवल घरेलू उपयोग बल्कि निर्यात के लिए भी पर्याप्त किट के उत्पादन के लिए कहा। इसे संभव बनाने के लिए लाइसेंस तेजी से बांटे गए। जैसे ही किट उपलब्ध हुई, दक्षिण कोरिया ने संक्रमित लोगों की पहचान करने और उनके संपर्कों को अलग करने के लिए बड़े पैमाने पर स्क्रीनिंग (परीक्षण) शुरू कर दिए। संक्रमण प्रसार रोकने के लिए लोगों को सामाजिक दूरी बनाए रखने और मास्क पहनने के लिए भी कहा गया। देश पहले की तरह काम करता रहा। लोग काम पर गए और स्कूल खुले रहे।

इसके विपरीत, चीन ने यात्रा प्रतिबंधों के साथ जनवरी 2020 में बड़े पैमाने पर लॉकडाउन की घोषणा कर दी। महामारी के खिलाफ जापान की प्रतिक्रिया सबसे खराब रही। उन क्षेत्रों में स्कूल बंद कर दिए गए जहां कोरोना पॉजिटिव मामले पाए गए। स्वैच्छिक रूप से सामाजिक दूरी बनाने के निर्देश थे। इसलिए, लोग मिलते-जुलते रहे, काम पर गए, सार्वजनिक परिवहन में यात्रा की और यहां तक ​​कि वसंत का जश्न मनाने के लिए समूहों में भी साथ आए। जापान की तरह ही ब्रिटेन ने भी कोई ठोस उपाय नहीं किए। इसने सिर्फ बीमार लोगों को घर पर रहने के लिए बोल दिया। सरकार ने यह कहते हुए इसे उचित ठहराया कि वे स्वास्थ्य प्रणाली पर अनावश्यक रूप से अतिरिक्त बोझ डाले बिना सबसे कमजोर लोगों की रक्षा कर रहे थे।

भारत ने यात्रा सुरक्षा पर 17 जनवरी को एक सलाह जारी की और चीन से आने वाले यात्रियों की स्क्रीनिंग शुरू की। तब तक यह वायरस दुनिया भर में फैल गया था। केंद्र सरकार ने 29 जनवरी को एक और सलाह जारी करते हुए कहा कि भारतीयों को चीन की यात्रा नहीं करनी चाहिए। इसके बावजूद, 30 जनवरी को देश में पहला संक्रमण का केस सामने आया।

इसी दिन विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) ने कोविड-19 को अंतर्राष्ट्रीय चिंता वाला सार्वजनिक स्वास्थ्य आपातकाल घोषित किया था। भारत ने 11 मार्च को सभी विदेशी नागरिकों के वीजा निलंबित कर दिए। तब तक देश में कुल 60 पॉजिटिव मामले सामने आ गए थे। डब्ल्यूएचओ ने उसी दिन कोविड-19 को महामारी घोषित कर दिया। 22 मार्च को स्वैच्छिक कर्फ्यू के बाद, 31 मार्च तक देशव्यापी लॉकडाउन की गई और इसे बाद में 15 अप्रैल तक के लिए बढ़ा दिया गया।

सवाल है कि क्या ये उपाय काम करेंगे? शायद करें।

लॉस एलामोस नेशनल लेबोरेटरी की जैव विविधता और सार्वजनिक स्वास्थ्य विशेषज्ञ जीन फेयर के नेतृत्व में एक टीम ने इन्फ्लुएंजा वायरस प्रसार का मॉडल तैयार किया। टीम ने 2012 में इंटरनेशनल जर्नल ऑफ रिस्क असेसमेंट एंड मैनेजमेंट में प्रकाशित एक अध्ययन में कहा था कि संक्रमण के प्रसार को कम करने और लक्षणों में औसतन 16 फीसदी की कमी लाने में सामाजिक दूरी प्रभावी थी।

सामाजिक दूरी की अवधारणा को हाल ही में वैश्विक समर्थन मिला है। मार्च 2020 में, द लांसेट में प्रकाशित एक लेख में ब्रिटेन और नीदरलैंड के शोधकर्ताओं ने कहा कि  सोशल डिस्टेंसिंग - सरकार द्वारा लगया गया या खुद से लागू- दोनों महत्वपूर्ण थे। उनके अनुसार सरकारी कार्रवाई, जैसे विभिन्न समारोहों पर प्रतिबंध लगाना, कार्यस्थलों, स्कूलों और संस्थानों को बंद करना और यह सुनिश्चित करना कि बेहतर नैदानिक सुविधाओं के साथ ही दूरस्थ इलाकों में हेल्पलाईन के जरिए बेहतर सलाह उपलब्ध कराया जाना महत्वपूर्ण है।

लेकिन, स्वस्थ प्रथाओं का पालन भी एक महत्वपूर्ण पहलू है। हार्वर्ड स्कूल ऑफ पब्लिक हेल्थ, बोस्टन और इंपीरियल कॉलेज लंदन के शोधकर्ताओं की एक टीम ने 2012 में अर्जेंटीना, जापान, मैक्सिको, ब्रिटेन और अमेरिका में 2009 के एच1एन1 महामारी पर लोगों की प्रतिक्रिया का अध्ययन किया। शोधकर्ताओं के अनुसार, लगभग 73 प्रतिशत ब्रिटिश लोग खांसते या छींकते समय टिश्यू पेपर से अपना मुंह या नाक नहीं ढकते थे। इसी तरह, उनमें से लगभग 27 फीसदी लोगों ने अपने हाथ नहीं धोए या हैंड सैनिटाइजर का इस्तेमाल नहीं किया।

बीएमसी इंफेक्शियस डिसीज जर्नल में प्रकाशित 2015 के एक अध्ययन के अनुसार, गरीब पृष्ठभूमि के लोगों के बीच मानदंडों का पालन करने की कम संभावना थी, क्योंकि उन्हें जीवनयापन के लिए काम करने की जरूरत थी और काम के घंटे के साथ समझौता करना उनके लिए बेहद मुश्किल था।

2012 में इंटरनेशनल जर्नल ऑफ रिस्क असेसमेंट एंड मैनेजमेंट में प्रकाशित एक अध्ययन में कहा गया था कि रोग से लड़ने के लिए एंटीवायरल का इस्तेमाल करने के मुकाबले सामाजिक दूरी 50 प्रतिशत अधिक महंगी है। शोधकर्ताओं ने सुझाव दिया कि फ्लू महामारी को रोकने के लिए दवा और गैर-दवा उपायों को एक साथ अपनाने की आवश्यकता थी। हालांकि, यह सुझाव वर्तमान संकट से निपटने में मदद नहीं करता है क्योंकि कोविड-19 के लिए दवाइयां अभी भी विकास के चरण में हैं।

चीन में लोगों की आवाजाही और महामारी विज्ञान के आंकड़ों के विश्लेषण से पता चला कि महामारी के केन्द्र से होने वाली यात्रा पर प्रतिबंध बहुत देर से लगाया गया। विदेशों से आए संक्रमण के मुकाबले स्थानीय प्रसार अधिक महत्वपूर्ण हो गया था, क्योंकि वायरस 14 दिनों तक जिन्दा रहते है। बहरहाल, अगले कुछ दिनों में पता चलेगा कि इस महामारी के खिलाफ भारत ने सही कदम पर सही कदम उठाए थे या नहीं।

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