क्या जूनोटिक रोगों का हॉटस्पॉट बन सकता है भारत?

अध्ययन में कहा गया है कि कम से कम 10 हजार वायरस प्रजातियों के लोगों को संक्रमित करने के आसार हैं

By Dayanidhi

On: Wednesday 04 May 2022
 

जहां एक ओर दुनिया कोरोना महामारी से जूझ रही है, वहीं स्टेट ऑफ द वर्ल्ड फॉरेस्ट रिपोर्ट 2022 के मुताबिक भारत और चीन के नए जूनोटिक संक्रामक रोगों के सबसे बड़े हॉटस्पॉट के रूप में उभरने की बात सामने आ रही है। जूनोटिक का मतलब वन्यजीवों से अन्य स्तनधारियों में फैलने वाले रोगों से है।

अगले कुछ दशकों में लोगों पर बहुत अधिक दबाव बढ़ने के आसार हैं,  जंगलों पर बढ़ते दबावों को देखते हुए इसकी आशंका बहुत अधिक है। रिपोर्ट में कहा गया है कि लोगों और वन्यजीवों की बीच सम्पर्क बढ़ रहे हैं।

एक अन्य शोध पत्र में इसी तरह का अनुमान लगाया गया है। जिसमें यह भी कहा गया है कि जलवायु परिवर्तन के चलते अगले 50 वर्षों में अन्य स्तनधारियों में वायरस फैलाने वाले स्तनधारियों के 15,000 से अधिक नए मामले सामने आ सकते हैं।

अध्ययन में कहा गया है कि कम से कम 10,000 वायरस प्रजातियों के मनुष्यों को संक्रमित करने की क्षमता है। जलवायु परिवर्तन की वजह से प्रजातियों से संक्रमण का खतरा बढ़ जाता है। ये वायरस जंगल में रहने वाले स्तनधारियों में चुपचाप फैल रहे हैं। हालांकि अध्ययन के अंतिम प्रकाशन के निष्कर्ष अभी आने बाकी हैं।

अध्ययन में चेतावनी दी गई है कि जलवायु और भूमि उपयोग में बदलाव की वजह से वन्यजीवों की भौगोलिक दृष्टि से अलग-अलग प्रजातियों के बीच संक्रमण के एक दूसरे में फैलने के नए अवसर पैदा होंगे, जिसके परिणामस्वरूप जूनोटिक स्पिलओवर, जानवरों से मनुष्यों में फैलने वाली बीमारियों में लगातार बढ़ोतरी होंगी।

कैसे हो भूमि उपयोग

यदि इन रोगों के संक्रमण के फैलने से बचना है तो भूमि उपयोग को सही से लागू करना होगा। न्यूनतम आवश्यकताओं की पूर्ति करने के लिए कृषि में विस्तार किया जा सकता है जिससे वनों की कम से कम कटाई हो।

जलवायु परिवर्तन के अनुकूल होना

इस बात के प्रमाण बढ़ते जा रहे हैं कि वनों सहित पारिस्थितिकी तंत्र के नुकसान और गिरावट से लोगों की जलवायु परिवर्तन, विशेष रूप से स्वदेशी लोगों और स्थानीय समुदायों के प्रति संवेदनशीलता बढ़ जाती है।

जंगल पारिस्थितिकी तंत्र सेवाएं जैसे पानी और बढ़ते तापमान, बाढ़ के खतरों में कमी, पोषक चक्र, परागण और सांस्कृतिक सेवाओं के माध्यम से लोगों और पारिस्थितिक तंत्र के अनुरूप क्षमता के लचीलापन को बढ़ाती हैं।

अध्ययन में कहा गया है कि यह जोखिम एशिया और अफ्रीका में जहां मानव जनसंख्या घनत्व वाले क्षेत्रों में सबसे अधिक होगा। इस तरह के संक्रामक रोग के फैलने की दर में 4,000 गुना वृद्धि देखी जा सकती है।

अध्ययन में कहा गया है कि हैरानी की बात है, पारिस्थितिक संक्रमण पहले से ही चल रहा है और सदी के भीतर तापमान को 2  डिग्री सेल्सियस से नीचे रखने से भविष्य में संक्रमण का फैलना कम नहीं होगा। निष्कर्ष बताते हैं कि जैव विविधता सर्वेक्षणों के साथ संक्रमण की निगरानी और खोज के प्रयासों को जोड़ने की तत्काल जरूरत पर जोर देते हैं, विशेष रूप से उष्णकटिबंधीय क्षेत्रों में जहां तेजी से बढ़ते तापमान की वजह से जानवरों से फैलने वाले रोगों की संख्या सबसे अधिक हो सकती है।

जब से कोविड-19 महामारी ने जूनोटिक रोगों के फैलाने पर नए सिरे से चिंता उभर कर सामने आई है और यह बात स्टेट ऑफ द वर्ल्ड फॉरेस्ट 2022 रिपोर्ट में भी सामने आई है। इसमें कहा गया है कि मानव स्वास्थ्य, पशु स्वास्थ्य और साझा पर्यावरण से निकटता से जुड़ा हुआ है।

रिपोर्ट के मुताबिक यह स्पष्ट हो गया है कि जिम्मेदार भूमि-उपयोग योजना के माध्यम से पारिस्थितिकी तंत्र और स्वास्थ्य संबंधित मुद्दों का समाधान करना होगा। वन और वन्यजीव क्षेत्रों और प्राकृतिक संसाधनों के प्रबंधकों की अधिक भागीदारी महत्वपूर्ण है। इसने खतरे को नियंत्रित करने के लिए निरंतर निगरानी और निगरानी से संबंधित आंकड़े को साझा करना और साक्ष्य-आधारित निर्णय लेने का सुझाव दिया गया है।

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