केंद्र सरकार का सूत्र मॉडल कोविड की दूसरी लहर आंकने में रहा विफल, हर्ड इम्यूनिटी का दावा भी था गलत
डाउन टू अर्थ ने प्रोफेसर गौतम मेनन से पूछा कि भारत में नोवल कोरोना वायरस की दूसरी लहर का अनुमान लगाने में केंद्र का मॉडल ‘सूत्र क्यों विफल रहा।
On: Tuesday 11 May 2021


भारत में नोवल कोरोना वायरस बीमारी (कोविड-19) की दूसरी लहर का अनुमान लगाने में केंद्र सरकार का बनाया मॉडल ‘सूत्र’’ क्यों विफल रहा ? उन्होंने कहा कि शोधकर्ताओं ने महामारी विज्ञान को लगातार कम करके आंका है और इसकी बारीकियों और गहराइयों को गंभीरता से नहीं लिया है।
अप्रैल 2021 का महीना गवाह बना कि कैसे भारत नोवल कोरोनावायरस बीमारी (कोविड-19) के रोगियों की संख्या में उछाल से निपटने के लिए बिल्कुल भी तैयार नहीं था। केंद्रीय विज्ञान और प्रौद्योगिकी मंत्रालय का गणितीय मॉडल, सूत्र (SUTRA), दूसरी लहर का पूर्वानुमान करने में पूरी तरह रहा और मामलों के बोझ (केस लोड) को नजरअंदाज किया, जिससे निपटने के लिए सरकार को तैयार होना चाहिए था।
क्या गलत हुआ? हरियाणा की अशोका यूनिवर्सिटी में भौतिकी और जीव विज्ञान विभाग के प्रोफेसर गौतम मेनन से विभा वार्ष्णेय ने बात की और आपदा का विश्लेषण किया है। संपादित अंश :
विभा वार्ष्णेय: भारत में कोविड-19 मामलों की इस अभूतपूर्व दूसरी लहर बढ़ने के पीछे क्या वजह रही है?
गौतम मेनन: भारत में (कोविड-19) मामलों में दो कारणों से अचानक उछाल आया। पहला, वायरस का नया वेरिएंट आया, जो ज्यादा संक्रामक है। दूसरा, दिसंबर और उसके बाद देश को कोरोना महामारी से बचाव की पांदियों से छूत देने की शुरुआत होना।
देश के कुछ हिस्सों में स्कूल दोबारा खुल गए; सार्वजनिक जगहों पर भीड़ फिर से जुटने लगी; राजनीतिक गतिविधि शुरू हो गईं और मुंबई जैसे सघन आबादी वाले इलाकों में सार्वजनिक परिवहन दोबारा शुरू हो गया।
चूंकि, इन सभी ने मिलकर मामलों की संख्या में इजाफा किया है, लेकिन वेरिएंट्स की अनुपस्थतियों में इतना तेज उछाल शायद नहीं आया होता।
ऐसी औचक घटनाओं के कारण बनने वाली परिस्थितियों का पूर्वनुमान कर पाना असंभव होता है। लेकिन, हम ब्राजील और यूके जैसे देशों के अनुभवों से सावधान हो सकते थे, जहां वायरस के विभिन्न वेरिएंट्स ने बीमारी के तौर-तरीके में नाटकीय रूप से बदलाव ला दिया था।
विभा वार्ष्णेय : हमारे पास बीमारी का पूर्वानुमान करने में मदद करने के लिए केंद्रीय विज्ञान और प्रौद्योगिकी मंत्रालय का गणितीय मॉडल सूत्र है। इसने कोई सहायता क्यों नहीं की?
गौतम मेनन : संक्रमण की लहर के बारे में पहले ही अनुमान कर लेना असंभव होता है, क्योंकि यह वास्तव में अचानक होने वाली एक घटना है। हालांकि, एक बार जब यह महसूस हो गया कि लहर शुरू हो गई है और पिछली लहर की तुलना में मामलों की संख्या अधिक तेजी से बढ़ रही है, तब मौजूदा स्थिति को समझने और विभिन्न परिस्थितियों के मॉडल बनाने का जोरदार प्रयास होना चाहिए था। पूर्वानुमान के ऐसे मॉडल को आने वाले नए आंकड़ों के हिसाब से व्यवस्थित किया जाना चाहिए था।
मंत्रालय का मॉडल सूत्र बहुत अच्छे से नहीं तैयार किया गया, जैसे कि अव्वल एपिडेमियोलॉजिकल मॉडल होते हैं। इसमें शामिल वैज्ञानिक लंबी अवधि की पूर्वानुमान करने की कोशिश कर रहे हैं और लगता है कि मॉडल में बहुत ज्यादा विश्वास है, जो न्याय संगत नहीं है।
इस प्रकार, वे अनुमानों और अनिश्चितताओं की व्याख्या करने के बारे में लापरवाह बने हुए हैं। मॉडल लंबे समय की भविष्यवाणियां नहीं कर सकते हैं, क्योंकि समय के साथ चीजें बदल जाती हैं। सूत्र के वैज्ञानिकों ने मॉडलिंग से जुड़ी अनिश्चितताओं के साथ बहुत सतही तरीके से व्यवहार किया है।
अमूर्त कल्पना करने में मॉडलिंग का कोई मतलब नहीं बनता है। आपको देश के विभिन्न हिस्सों में मामलों में होने वाली बढ़ोतरी के प्रति सचेत रहना पड़ता है। आपको पता होना चाहिए कि कौन से वेरिएंट आ रहे हैं, उनके बारे में क्या-क्या पता है और वे कितने अधिक संक्रामक हैं।
इसके अलावा महामारी को नियंत्रित करने के लिए अपनाए गए उपायों के कारण भी नतीजे बदल भी सकते हैं। अगर हर कोई घर में रहे और चार सप्ताह तक बाहर ना निकले तो बीमारी का विस्तार तुरंत थम जाएगा।
शोधकर्ताओं को वेरिएंट्स के संभावित उभार को लेकर जागरुक रहना चाहिए था। यह एक समय में संक्रमित लोगों की संख्या में तेज उछाल के रूप में दिखाई दिया होगा। इन रोगियों की जीनोमिक सीक्वेंसिंग दिखाता कि इसकी वैरिएंट्स के माध्यम से व्याख्या हो सकती है।
मामलों में उछाल के बारे में एक बार सचेत होने के बाद, टीम को इसका आकलन करने की कोशिश करनी चाहिए थी। चूंकि, वे लोग महामारी विज्ञान की पृष्ठभूमि से नहीं आते हैं, इसलिए वे इस क्षेत्र की लगातार कम करके आंकते और इसकी बारीकियों व गहराई के प्रति उचित सम्मान न देते हुए दिखाई दिए।
विभा वार्ष्णेय : स्वतंत्र मॉडलर्स ने हस्तक्षेप क्यों नहीं किया और सूत्र को बेहतर बनाने में मदद क्यों नहीं की?
गौतम मेनन : मंत्रालय का मूल उद्देश्य भी ठीक-ठीक यही करना था- एक ऐसा मॉडल हो, जिसमें कई समूह अपना योगदान दे सकें और जो सामुदायिक प्रयास के रूप में उन्नत हो सके। वास्तव में, अधिकारियों ने कहा कि मंत्रालय ने इस क्षेत्र में विशेषज्ञता रखने वालों को एकत्रित करने और देश भर के लिए एक मॉडल बनाने के लिए यह पहल की थी। ऐसे मॉडल को साक्ष्य-आधारित पूर्वानुमान करने के लिए सख्त परीक्षणों की जररूत होगी, जैसे मौसम पूर्वानुमान करने वाले लगातार करते हैं।
अधिकारियों ने भी कहा: समन्वय करने वाली टीम मॉडलिंग के क्षेत्र में सक्रिय समूहों, विभिन्न सॉफ्टवेयर डेवलपर्स और प्रतिष्ठित कंपनियों से सलाह लेगी और उनके साथ काम करेगी, ताकि एक उपयुक्त यूजर इंटरफ़ेस और सॉफ़्टवेयर को निश्चित तौर पर उपलब्ध कराया जा सके।
हालांकि, इस मामले में भी मॉडलर्स इसे पूरी तरह से नजरअंदाज करते दिखाई दिए और मंत्रालय ने भी इसे सही करने की कोई कोशिश नहीं की।
इन सब के पीछे पारदर्शिता की कमी है। हमें सूत्र के मॉडेलर्स और सरकार के रिश्तों के बारे में कुछ नहीं पता है। हमें नहीं पता है कि उन्होंने सरकार को क्या और किस समय सलाह दी है।
मॉडल की सार्वजनिक मंचों पर आलोचना की गई है, लेकिन हमें नहीं पता है कि टीम इस आलोचना से कुछ सीख भी रही है या नहीं। ऐसा भी कोई संकेत नहीं था कि स्वतंत्र मॉडलर्स की बातें सुनी जाएंगी और सरकार पूरी तरह से खुश लग रही थी, वे सूत्र के मॉडलर्स से जो सुन रहे थे।
विभा वार्ष्णेय : बेहतर मॉडलिंग की जरूरत क्यों है?
गौतम मेनन: मॉडल उपयोगी हैं, क्योंकि वे सरकार को यह समझने में सक्षम बनाते हैं कि महामारी के दौरान स्वास्थ्य प्रणाली किसका सामना करेगी, कितनी दवाएं खरीदनी चाहिए, कितने गहन चिकित्सा वाले बिस्तरों को बनाने की जरूरत पड़ेगी, इत्यादि।
यूके के वेरिएंट ने यूके में भी मामलों को बहुत ज्यादा बढ़ाने का काम किया, लेकिन उनके विपरीत, हमारी स्वास्थ्य प्रणाली इतनी मजबूत नहीं थी कि फरवरी के बाद के मामलों में आने वाले ऐसे किसी उछाल को झेल सके। हमें पहले ही प्रयास करने चाहिए थे और इसका अनुमान कर लेना चाहिए था कि मामलों में तेज उछाल आएगा।
एक बार मामले जब एक सीमा को पार कर जाते हैं, तब आप आग बुझाने के अलावा कुछ नहीं कर सकते हैं। यह एक सबक है कि उस वक्त क्या होता है, जब जनस्वास्थ्य प्रणाली वर्तमान में जारी संकट से निपटने के लिए पर्याप्त तत्परता से काम नहीं करती है। अब देश में कई तरह के वेरिएंट्स हैं। विभिन्न हिस्सों में बहुत जटिल लॉकडाउन लागू हैं। अगर आप तेजी से काम करें तो आप अभी भी संक्रमण का फैलाव सीमित कर सकते हैं।
विभा वार्ष्णेय : क्या हमारे पास भारत में मजबूत मॉडल्स की मदद करने वाले कोविड-19 पर भरोसेमंद आंकड़े हैं?
गौतम मेनन : पूरी दुनिया में आंकड़ों की समस्या है। भारत में, आंकड़ों की हालत बदतर है, लेकिन यहां पर कई उन्नत सांख्यिकीय तरीके हैं, जो ऐसी अनिश्चितता के लिए आकलन में मदद कर सकते हैं। यह जांचने के कई तरीके मौजूद हैं कि मौतों की संख्या और मामले संख्या एक-दूसरे के अनुरूप हैं या नहीं।
लेकिन इसके लिए, आपके पास कोविड-19 के महामारी विज्ञान के बारे में बहुत ही स्पष्ट समझ होनी जरूरी है। भारत में, मैं इंडियन काउंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च (आईसीएमआर) के सेरो-सर्विलांस डेटा पर भरोसा करना चाहूंगा। मुझे ताज्जुब है कि मॉडलर्स अपनी गलत पूर्वानुमानों के लिए इसे दोषी ठहरा रहे हैं।
हालांकि, मुझे कहना चाहिए कि शहरी सेरोलॉजिकल सर्वेक्षणों की बड़ी संख्या और संख्या में अंतर करना एक भ्रामक तस्वीर खींच सकता है। यह बीमारी ग्रामीण इलाकों में उतनी नहीं फैली थी, जितनी कि शहरों में।
इस दावे पर मॉडलर्स गलत थे कि सितंबर/अक्टूबर में, 60 प्रतिशत लोग संक्रमित हुए हैं और हम हर्ड इम्युनिटी तक पहुंच गए हैं। यह आईसीएमआर सेरोलॉजिकल सर्वेक्षण के निष्कर्षों के ठीक उलटा था, जिसने बताया था कि हम ऐसी किसी स्थिति से बहुत दूर हैं।
विभा वार्ष्णेय : क्या आप भी महामारी की मॉडलिंग में शामिल हैं? आपके आंकड़े क्या कहते हैं?
गौतम मेनन : हां, हम कुछ राज्यों और शहरों में बीमारी का अध्ययन कर रहे हैं, जन स्वास्थ्य प्राधिकारियों और स्थानीय सरकारों को सुझाव भी दे रहे हैं। सामान्य तौर पर, हमारा निष्कर्ष है कि मुंबई और बेंगलुरु जैसी जगहों पर पूरे भारत को एक मानकर बात करने का कोई मतलब नहीं है।
ये दोनों महानगर अलग-अलग चीजें कर रहे हैं और बीमारी का तरीका भी अलग-अलग है- बेंगलुरु में लॉकडाउन लागू है, जबकि मुंबई लॉकडाउन से बाहर आ रहा है। हम आंकड़ों के साथ बहुत नजदीकी के साथ काम कर रहे हैं और हम अग्रिम तौर पर बहुत ज्यादा पूर्वानुमान नहीं करते हैं।
हमारे मॉडल के आधार पर, भारत यही कुछ 10 दिनों में, मई के मध्य तक, चरम पर होगा, लेकिन हम जानते हैं कि इस पूर्वानुमान में बड़ी अनिश्चितताएं हैं, हर तरफ से दो-तीन हफ्ते की। जैसे ज्यादा आंकड़े आते हैं, हमें लगातार इस गणना को दोबारा करना पड़ेगा।
मॉडलर्स को हमेशा अनिश्चितताओं की भूमिका पर जोर देना चाहिए, इनपुट डेटा (आंकड़ों) की गुणवत्ता का आकलन करना चाहिए और इसमें त्रुटियों को भी हमेशा जोड़कर चलना चाहिए और कभी भी यह दावा नहीं करना चाहिए कि दूसरे मॉडल जितने सटीक हो सकते हैं, यह मॉडल उससे कहीं ज्यादा सटीक है.
विभा वार्ष्णेय: मॉडलिंग में कैसे सुधार किया जा सकता है?
जीएम: ज्यादातर अच्छे मॉडल आयु के वर्गीकरण का इस्तेमाल करते हैं, जिसमें जनसंख्या को 10-20 वर्ष 20-30 वर्ष के आयु उपसमूहों में बांट दिया जाता है। फिर वे अध्ययन करते हैं कि इन समूहों के बीच मृत्यु दर और संक्रामकता में कितना अंतर है।
वे सामाजिक व्यवहार को इस रूप में इसमें शामिल करते है कि हमारे मुताबिक इन समूहों के बीच संपर्क की मात्रा कितनी होती है। उदाहरण के लिए, 0-10 साल के कितने बच्चे 20-30 साल के लोगों में मिले-जुले होते हैं, 20-30 साल के कितने लोग 60-70 साल के लोगों में मिले-जुले हैं। यह सोशल मिक्सिंग पैटर्न भी मॉडल में शामिल होता है, जो बहुत महत्वपूर्ण है, क्योंकि एक 80 वर्षीय व्यक्ति के सामने एक 20 वर्षीय व्यक्ति की तुलना में कोविड-19 के चलते मौत का जोखिम ज्यादा होता है।
सरकारे के मॉडल सूत्र के साथ ऐसा नहीं हुआ है। उन्होंने पूरी आबादी को एक समरूप खंड के रूप में पेश किया। जो लोग कभी-कभार मॉडल पर काम करते हैं, वे इस तरीके से एक जटिल स्थिति का सरलीकरण कर देते हैं। लेकिन उन्हें यह याद रखने की जरूरत है कि वे एक स्थिति का इसलिए सरलीकरण कर रहे हैं, ताकि एक पूर्वानुमान मिले और इसे स्पष्ट रूप से सटीक बनाया जा सके।
भारत जैसे युवा देश के लिए संक्रमण से होने वाली मौत का उचित अनुपात क्या है और कैसे यह यूके या ब्राजील से अलग हो सकता है, इस बारे में चल रही मौजूदा सघन बहस को मॉडलर्स समझते हुए नहीं दिखाई देते हैं।
वे इस सच्चाई को इंजीनियर या डेटा वैज्ञानिक की तरह आंकड़ों में फिट करते हुए दिखाई देते हैं, न कि महामारी विज्ञान में समस्या के तौर पर। वे ऐसे मॉडलर्स हैं, जो महामारी विज्ञान की तुलना में गणित में ज्यादा भरोसा करते हैं।
आदर्श रूप से, विभिन्न मॉडलों का इस्तेमाल करने वाले कई समूह होने चाहिए, उनके पूर्वानुमानों को सरकार के गलियारों में पहुंचाया जाना चाहिए। प्रभावी पूर्वानुमानों पाने के लिए इन्हें आपस में जोड़ा जा सकता है, जो व्यक्तिगत पूर्वानुमानों से बेहतर होता है।
अनुमानों को पूरे देश के लिए एक साथ करने की जगह पर खंडवार, जिले के स्तर पर किए जाने की जरूरत ज्यादा है। आंकड़ों में बहुत ज्यादा गड़बड़ियां हैं और इसमें से ज्यादातर बहुत कमजोर गुणवत्ता वाले हैं। मॉडलर्स को इन समस्याओं से निपटने का एक तरीका खोजना चाहिए। गलती है कि सरकार ने एक ही मॉडल पर पूरी तरह से भरोसा कर लिया है, ना तो बाहरी सुझावों (इनपुट) मॉडल्स को सुधारने की इजाजत दी जा रही है, ना ही महामारी विज्ञान संबंधी सुझावों के साथ उस गंभीरता के साथ व्यवहार किया जा रहा है, जिसके वे हकदार हैं।