कोविड-19 रिस्पॉन्स रणनीति में संशोधन करे भारत, विशेषज्ञों की सलाह

कोविड-19 प्रोटोकॉल ने पाया कि टीकाकरण अभियान में सुस्ती आई है

By Taran Deol

On: Thursday 23 June 2022
 
One year since we first reported on this coronavirus – what we’ve learned and still need to know

विशेषज्ञों का मानना है कि भारत को अपनी कोविड-19 महामारी रोकथाम रणनीति के रूप में टेस्टिंग और ट्रेसिंग से आगे जा कर मरीजों के अस्पताल में भर्ती होने के साथ-साथ वायरस के बदलते व्यवहार पर ध्यान केंद्रित करने की आवश्यकता है।

केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय के आंकड़ों से पता चलता है कि भारत की कोविड-19 पॉजिटिविटी दर पिछले कुछ हफ्तों में तेजी से बढ़ रही है। जून 2022 की शुरुआत में यह 0.6 प्रतिशत थी, जो बढ़कर 22 जून तक 3.94 प्रतिशत हो गई है।

इसके बावजूद, देश में रोजाना टेस्टिंग की संख्या 200,000-300,000 की सीमा के भीतर ही रहा, जो कभी-कभार लगभग 400,000 तक गया।

हालांकि, वर्तमान पोजिटीविटी दर अभी भी विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा निर्धारित पांच प्रतिशत की सीमा के भीतर ही है, जो बताता है कि महामारी नियंत्रण में है या नहीं।

सरकारी आंकड़ों के विश्लेषण से पता चला है कि मौतें और अस्पताल में भर्ती होने की घटना अभी खतरनाक स्तर तक नहीं पहुंची है।

एक्सपर्ट्स का तर्क है कि ऐसी स्थिति में, टेस्टिंग और ट्रेसिंग इस महामारी से निकलने का रास्ता नहीं है। एक्सपर्ट्स का सुझाव है कि इस वक्त भारत को अपनी कोविड-19 रेस्पोंस रणनीति को संशोधित करना चाहिए, जो कमजोर लोगों की सुरक्षा पर केंद्रित हो।

सार्वजनिक स्वास्थ्य विश्लेषक और महामारी विज्ञानी चंद्रकांत लहरिया ने डाउन टू अर्थ (डीटीई) को बताया:

वैश्विक महामारी या स्थानीय महामारी के रूप में बीमारी का वर्गीकरण केवल अकादमिक प्रासंगिकता रखता है। महत्वपूर्ण यह है कि भारत में कोविड-19 अब सार्वजनिक स्वास्थ्य का मुद्दा नहीं है। इसलिए, सरकार द्वारा अनुशंसित 'टेस्ट, ट्रैक, ट्रीट, वैक्सीनेट और कोविड अनुकूल व्यवहार' की अपनी रणनीति पर पुनर्विचार की आवश्यकता है।

पुणे में इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ साइंस एजुकेशन एंड रिसर्च में इम्यूनोलॉजिस्ट और विजिटिंग फैकल्टी सत्यजीत रथ ने कहा, "चूंकि परीक्षण और परीक्षण-रिपोर्टिंग अब देश में कम और व्यवस्थित हो गई है, इसलिए नई आती संख्या की व्याख्या करना कठिन होता जा रहा है।"

लेकिन सार्वजनिक स्वास्थ्य विशेषज्ञों के अनुसार, पोजिटीविटी दर और अस्पताल में भर्ती होने जैसे संकेत अभी चिंताजनक नहीं हैं।

क्रमिक बदलाव

जनवरी 2022 में कॉन्टैक्ट-ट्रेसिंग के लिए दिशानिर्देशों में ढील दी गई, जब इंडियन काउंसिल फॉर मेडिकल रिसर्च ने कहा कि जो सार्स-सीओवी-2 वायरस पोजिटीव पाए जा चुके है, उनकी टेस्टिंग की तब तक जरूरत नहीं है, जब तक कि वे उम्र या गंभीर बीमारी के आधार पर हाई रिस्क श्रेणी में न हो।

एक्सपर्ट्स ने इस कदम की सराहना की थी। क्रिश्चियन मेडिकल कॉलेज, वेल्लोर के एक वायरोलॉजिस्ट गगनदीप कांग ने पहले डीटीई को बताया था, “अब उन सभी को खोजने या टेस्ट करने की जरूरत नहीं है जो किसी कोविड-​19 पोजिटिव व्यक्ति के संपर्क में थे।” उनका तर्क था कि हम पहले से ही 10 में से 9 लोगोँ को नहीं पहचान पा रहे थे, जिनमेँ लक्षण नहीं दिख रहे थे।

पब्लिक हेल्थ फाउंडेशन ऑफ इंडिया के अध्यक्ष के. श्रीनाथ रेड्डी ने यह तर्क देते हुए सहमति व्यक्त की थी कि उपचार समान रहता है। अलग-थलग रहेँ, मास्क पहनें और शारीरिक दूरी का पालन करें। क्योंकि ऐसे लोगोँ के टेस्ट रिजल्ट की क्लिनिकल ​​​​प्रासंगिकता बहुत कम है।

पिछले कुछ महीनों में भारत के टेस्टिंग और ट्रैकिंग प्रयासों के साथ-साथ टीकाकरण अभियान में भी बदलाव आया है। सरकारी आंकड़ों के अनुसार, 22 जून तक 1.96 बिलियन से अधिक वैक्सीन खुराक दी जा चुकी हैं। इनमें से 1,014,916,146 पहली खुराक और 906,949,409 दूसरी खुराक थीं। वैसे तो यह आंकड़ा बड़ा है, लेकिन प्राथमिक टीकाकरण अब स्थिर हो गया है और बूस्टर डोज लेने का आकडा बहुत अच्छा नहीं रहा है।

7 अप्रैल तक, भारत ने अपनी टीका लेने योग्य आबादी के 60 प्रतिशत के लिए प्रारंभिक टीकाकरण प्रोटोकॉल पूरा कर लिया था। आवर वर्ल्ड इन डेटा के अनुसार, इसके बाद के लगभग तीन महीने मेँ ही, यानी 21 जून को यह आंकड़ा बढ़कर 65 प्रतिशत हो गया।

यह ट्रेंड उन लोगों के लिए समान है, जिन्होंने कम से कम एक खुराक ली है। 5 जनवरी से इस अनुपात में 10 प्रतिशत अंक की वृद्धि हुई  और 21 जून तक 72 प्रतिशत थी।

10 जनवरी को स्वास्थ्य सेवा और फ्रंटलाइन कार्यकर्ताओं और 60 वर्ष और उससे अधिक उम्र के लोगों के लिए शुरू हुआ था। 21 जून तक, प्रति 100 बूस्टर खुराक केवल 2.91 था, जबकि 18 वर्ष से अधिक आयु के सभी लोग दोनोँ डोज लगने के नौ महीने बाद बूस्टर डोज ले सकते हैँ।

रथ ने कहा, "टीकाकरण अभियानों की गति भी कम हो गई है। चूंकि टीके गंभीर बीमारी से बचाते हैं, लेकिन संक्रमण-संचरण के खिलाफ कारगर नहीं है और यह नए ट्रांसमिसिबल वेरिएंट को काफी तेजी से उभर सकने की अनुमति देता हैं।"

उन्होंने कहा कि यह साफ है कि समुदायों और सरकारों ने अब शारीरिक दूरी वाले उपायों को छोड़ दिया है, जबकि वायरस अभी भी फैल रहा है।

कांग का मानना ​​​​है कि यह समय है कि हम अपनी इस समझ को बदलें कि कोविड-उपयुक्त व्यवहार क्या है। जब एक आबादी को टीका लगाया जाता है या अत्यधिक संक्रमित होता है, जो कि अभी भारत के मामले में है, तो हमें उतनी चिंता करने की आवश्यकता नहीं है।

उन्होँने डीटीई को बताया, “अब, हमें केसेज की संख्या नहीं बल्कि अस्पताल में भर्ती होने वालोँ पर नज़र रखने की ज़रूरत है। हमें यह जानने की जरूरत है कि वायरस शरीर को कैसे संक्रमित कर रहा है। हमेँ यह भी समझना होगा कि कौन सा वेरिएंट कैसे पनपा रहा है और कौन लोग अस्पताल मेँ भर्ती हो रहे है (बिना टीका लगाए गए या टीका लगाए गए और कौन सा टीका)।“

कांग ने कहा कि इस प्रकार की जानकारी हमें अभी जमा करनी चाहिए क्योंकि संक्रमण होता रहेगा। जब कोई नया वेरिएंट सामने आता है, तो कोविड-उपयुक्त व्यवहार लागू किया जाना चाहिए।

जैसे-जैसे महामारी विकसित होगी, हर देश का अपना पैटर्न भी विकसित होगा। उन्होँने कहा,"मामलों में मौजूदा वृद्धि तब तक एक कृत्रिम उछाल है जब तक कि यह लोगों को अस्पताल में भर्ती होने पर मजबूर नहीँ कर रहा है।“ वह पूछती है कि अस्पताल के 90 फीसदी बिस्तर खाली हैं, तो मामले में यह कैसा उछाल है।

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