भारत में अप्रैल में कोरोना से हुई मौतों में आधे से ज्यादा मौतें गांवों में हुई

उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, बिहार और सात अन्य राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों ने बीते महीने ग्रामीण जिलों में संक्रमण और मौतों के सबसे ज्यादा मामले दर्ज किए

By Rajit Sengupta

On: Wednesday 05 May 2021
 

भारत के लिए अप्रैल का महीना बहुत क्रूर साबित हुआ। विश्व स्वास्थ्य संगठन के मुताबिक, देश ने अप्रत्याशित रूप से 46,000 मौतों के साथ नोवल कोरोना वायरस बीमारी (कोविड-19) के 66 लाख से ज्यादा नए मामले दर्ज किए।

महीने के आखिरी दिन, भारत एक दिन में 4,00,000 से ज्यादा नए मामले दर्ज करने वाला एकमात्र देश बन गया, जो बताता है कि यह उफान बहुत जल्द नहीं थमने वाला है।

इस महीने ने स्पष्ट संकेत दे दिया कि वायरस ग्रामीण जिलों में तेजी से फैल रहा है और पहली लहर के विपरीत यह इस वक्त बहुत ज्यादा लोगों की मौत का कारण बन रहा है।

पिछले महीने पहली बार शहरी जिलों के मुकाबले ग्रामीण जिलों में सबसे ज्यादा मौतें दर्ज की गईं, भले ही मामलों की कुल संख्या शहरी जिलों में ज्यादा रही। भले ही अप्रैल में सभी दिन शहरी जिलों में सबसे ज्यादा मामले रहे हों, लेकिन उनमें से 17 दिनों में सबसे ज्यादा मौतें ग्रामीण जिलों में हुईं थीं।

भविष्य काल

अप्रैल में शुरू हुए ग्रामीण अभियान के आने वाले महीनों में सिर्फ दो कारणों से बदतर होने की आशंका है। भारत में दूसरी लहर का चरम आना अभी बाकी है, के साथ स्वास्थ्य विशेषज्ञ अनुमान लगा रहे हैं कि मई के मध्य या उससे आगे तक (संक्रमण में) बढ़ोतरी का रुझान बना रहेगा।

और दिल्ली, कर्नाटक और महाराष्ट्र समेत सबसे ज्यादा प्रभावित राज्यों ने लॉकडाउन लगा रहे हैं, जो गांवों की ओर दोबारा पलायन की आशंका को बढ़ा रहा है।

देश ने पिछले साल भी ऐसा ही संकट देखा था। 24 मार्च से 30 मई के बीच देशव्यापी लॉकडाउन के बाद, केंद्र ने चरणबद्ध तरीके से लॉकडाउन हटाने की प्रक्रिया शुरू की। देश ने लॉकडाउन हटाने के चार चरण देखें, जो सितंबर 2020 तक जारी रहे, जब देश में पहली लहर अपने चरम पर थी।

पिछला सितंबर एकमात्र ऐसा महीना है, जब ग्रामीण भारत में 50 फीसदी से ज्यादा मौतें दर्ज की गईं, क्योंकि तब तक गांवों की ओर पलायन का बड़ा दौर खत्म हो चुका था।

अप्रैल में मौत के मामले बढ़ने के कई कारण हैं। ग्रामीण भारत में स्वास्थ्य का बुनियादी ढांचा शहरों में मौजूद ढांचे से काफी कमजोर है। विश्व बैंक के अनुसार, भारत का 65 प्रतिशत से ज्यादा हिस्सा ग्रामीण जिलों में रहता है। नेशनल हेल्थ प्रोफ़ाइल-2019 के अनुसार, सरकारी अस्पतालों के सिर्फ 37 प्रतिशत बिस्तर ही ग्रामीण भारत में हैं।

जांच करने और उपचार के बारे में जागरूकता की कमी और अनिच्छा के चलते ग्रामीण आबादी कोविड-19 के प्रति अधिक संवेदनशील है। इसमें अतिरिक्त चुनौती यह भी है कि सीमित जांच और नतीजे आने में देरी के कारण (मामलों की) आधिकारिक संख्या, विशेष रूप से ग्रामीण जिलों में, भ्रामक तरीके से कम है।

गांव को लेकर डर

24 अप्रैल को, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने स्वीकार किया कि कोविड-19 की चुनौती इस साल बड़ी है और गांवों को प्रभावित होने से बचाने के लिए प्रयास करने की जरूरत है।

उन्होंने कहा, “मुझे विश्वास है कि अगर कोरोनोवायरस के खिलाफ इस लड़ाई में कोई सबसे पहले जीत हासिल करने जा रहा है, तो वह भारत के गांव और इन गांवों की अगुवाई करने वाले हैं। गांवों के लोग देश और दुनिया को रास्ता दिखाएंगे।” लेकिन आंकड़े उनके इस आशावाद को झुठलाया है।

अप्रैल में कम से कम 10 राज्यों/केंद्र शासित प्रदेशों के ग्रामीण जिलों में कोरोना संक्रमण और मौतें के अधिक मामले दर्ज किए गए। इस सूची में अन्य राज्यों के अलावा उत्तर प्रदेश, बिहार, मध्य प्रदेश और राजस्थान जैसे सबसे ज्यादा जोखिम वाले राज्य शामिल हैं।

तेलंगाना और असम में भी ग्रामीण दबाव बहुत ज्यादा है. हालांकि, जिलेवार आंकड़े कुछ दिनों के ही उपलब्ध थे।

तीन अन्य राज्यों - महाराष्ट्र, हरियाणा और पंजाब - ने शहरी जिलों में ज्यादा मामले देखें हैं, लेकिन ग्रामीण जिलों में मौतों की संख्या ज्यादा है। महाराष्ट्र में, ग्रामीण जिलों में संक्रमण के लगभग 42 प्रतिशत और मौतों के लगभग 60 प्रतिशत मामले सामने आए हैं।

उत्तराखंड और जम्मू-कश्मीर में, कहानी ठीक विपरीत थी, यहां ग्रामीण जिलों में संक्रमण के मामले ज्यादा थे, जबकि शहरी जिलों में मौतों के मामले अधिक थे।

 हमने इसे कैसे पाया

सरकार ने मई 2020 की शुरुआत के बाद से जिला स्तर के आंकड़े जारी नहीं किए हैं। तब कोरोना वायरस संक्रमण के कुल मामलों की संख्या 4,000 थी;  जो अब 195 लाख (19.5 मिलियन) से ज्यादा हैं। आधिकारिक संख्या के अभाव में, 709 जिलों को शहरी और ग्रामीण जिलों (जिनमें 60 प्रतिशत से अधिक ग्रामीण आबादी रहती हो) में छांटने के लिए हमने हाउ इंडिया लाइव्स - सार्वजनिक आंकड़ों के कोष- की ओर से जुटाए गए आंकड़ों की तरफ रुख किया और जनगणना 2011 व राज्यों की वेबसाइट्स का उपयोग किया।

यह विश्लेषण सभी राज्यों/केंद्र शासित प्रदेशों के लिए जिला-स्तर पर उपलब्ध आंकड़ों पर आधारित है। हालांकि, अंडमान-निकोबार, असम, गोवा, मणिपुर और तेलंगाना के लिए आंशिक आंकड़े ही उपलब्ध हैं।

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