स्टेट ऑफ इंडियाज एनवायरमेंट 2021: कोरोना की दूसरी लहर में शहरों के मुकाबले गांव अधिक प्रभावित

विश्व पर्यावरण दिवस के मौके पर सीएसई और डाउन टू अर्थ ने स्टेट ऑफ इंडियाज एनवायरमेंट इन फिगर्स 2021 रिपोर्ट जारी की

By DTE Staff

On: Saturday 05 June 2021
 
पिछले साल ग्रामीणों ने कोरोनावायरस संक्रमण से बचने के लिए बाहर के लोगों के आने पर पाबंदी लगा दी थी। फोटो: पुरुषोत्तम ठाकुर

कोविड-19 (कोरोना) महामारी ने भारत की स्वास्थ्य प्रणाली को बुरी तरह बेनकाब कर दिया है। शहरी भारत में स्वास्थ्य सेवाओं की बदतर स्थिति व कोरोना से लड़ने की उसकी तैयारियां सुर्खियों में रही है। वहीं ग्रामीण भारत के भीतरी इलाकों से जो परिदृश्य उभर कर आई, वो अत्यधिक चिंताजनक रही- यह बातें आज सेंटर फॉर साईंस एंड एनवायरनमेंट एवं डाउन टू अर्थ पत्रिका द्वारा संयुक्त रूप से जारी की गई स्टेट ऑफ इंडियाज एनवायरमेंट एन फिगर्स 2021 रिपोर्ट में कही गई है।

 रिपोर्ट बताती है कि- ग्रामीण भारत में सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्रों को 76 प्रतिशत अधिक डॉक्टरों56 प्रतिशत अधिक रेडियोग्राफरों और 35 प्रतिशत अधिक लैब तकनीशियनों की आवश्यकता है।

इस रिपोर्ट में वायु प्रदूषण और जलवायु परिवर्तन से लेकर जैव विविधता, कोविड, कृषि और भूमि से लेकर पानी व कचरे तक कई महत्वपूर्ण विषयों को शामिल किया गया है।

पर्यावरण और विकास के आंकड़ों पर आधारित वार्षिक रिपोर्ट को सीएसई द्वारा आयोजित एक वेबिनार में जारी करते हुए केंद्र की महानिदेशक सुनीता नारायण ने कहा, "यह संख्याओं का नाटक जैसा ही है,  खासकर जब ये नंबर आपको एक ट्रेंड देती है और बताती है कि चीजें बेहतर या बदतर हो रही है।

यह और भी शक्तिशाली हो जाती है जब आप संकट, चुनौती और अवसर को समझने के लिए इन संख्याओं के ट्रेंड का उपयोग करते हैं।"

महामारी के संकेतक/ बिंदु

संख्या के माध्यम से महामारी के बारे में विश्लेषणात्मक रिपोर्ट तैयार किया गया है इसने कई अन्य दिलचस्प तथ्यों की एक श्रृंखला को सामने लाने में मदद की  है।

डाउन टू अर्थ के प्रबंध संपादक रिचर्ड महापात्रा कहते हैं: “एक महत्वपूर्ण जानकारी जो सामने आ रही है, वह यह है कि दूसरी लहर में, भारत विश्व स्तर पर सबसे बुरी तरह प्रभावित हुआ है और ग्रामीण भारत, हमारे शहरी क्षेत्रों की तुलना में काफी बुरी तरह प्रभावित हुआ है।

इस साल मई में, छह दिनों में दैनिक रूप से जो विश्व में संक्रमण के मामलों आये उसमें आधे से अधिक में अकेले भारत का योगदान था। संक्रमण अपने चरम पर दिखा क्योंकि ग्रामीण जिलों में संक्रमण के मामलों में काफी वृद्धि देखी गई। ” 

महापात्रा आगे कहते हैं: "जलवायु संबंधी जोखिमों के साथ, संक्रामक रोग 2006 के बाद पहली बार प्रमुख वैश्विक आर्थिक खतरों की सूची में शामिल हुए हैं।"

बायोमेडिकल कचरा (वेस्ट) के भार की ओर इशारा करते हुए यह उल्लेख किया गया है कि देश इस वक्त महामारी से जूझ रहा है।

रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि अप्रैल और मई 2021 के बीच कोविड-19 बायोमेडिकल कचरे के उत्सर्जन में 46 प्रतिशत की वृद्धि हुई है।

वहीं दूसरी ओर इसके ट्रीटमेंट (प्रबंधन) में  गिरावट आई है: 2019 में, भारत अपने 88 प्रतिशत बायोमेडिकल कचरे का ट्रीटमेंट करने में कामयाब रहा - हालांकि 2017 देश लगभग 93 प्रतिशत तक कचरे का ट्रीटमेंट स्वंय करता था।  

देश में कुल आबादी का 3.12 प्रतिशत लोगों का पूरी तरह से टीकाकरण हो चुका है, टीकाकरण का वैश्विक औसत 5.48 प्रतिशत है। उस लिहाज से टीकाकरण में अभी भी कमी है।

महामारी के आर्थिक प्रभाव बहुत गंभीर रहे हैं - और रहेंगे। रिपोर्ट के प्रमुख लेखकों में से एक रजित सेनगुप्ता कहते हैं, "महामारी कमजोर ग्रामीण जिलों में फैल गई"इसका मतलब है कि देश को ठीक होने में अधिक समय लगेगा। इससे अगले साल सकल घरेलू उत्पाद की वृद्धि दर धीमी होने की आशंका है।" जबकि मई 2021 में शहरी बेरोजगारी दर लगभग 15 प्रतिशत तक पहुंच गई,

महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम का कार्यान्वयन में ढ़िलाई एवं भुगतान में काफी देरी देखी गई है। जम्मू और कश्मीर, बिहार, पश्चिम बंगाल और उत्तर प्रदेश के राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में भुगतान में अधिकतम विलंब दर्ज किया गया है। 

जलवायु परिवर्तन: एक ऐसा खतरा जिसे नज़रअंदाज़ नहीं किया जा सकता

सीएसई की  इस रिपोर्ट में जलवायु परिवर्तन पर विशेष जोर दिया गया है। नारायण कहती हैं: “जब हम एक ऐसे खतरनाक महामारी से जूझ रहे हैं, जो लोगों को दुर्बल बना देती है ऐसे में हम एक और स्पष्ट और वर्तमान की खतरे से मुंह नहीं मोर सकते हैं जो हमारे अस्तित्व को खतरे में डाल रहा है। वह खतरा है जलवायु परिवर्तन।हमारी रिपोर्ट का डेटा खतरे की भयावहता को स्पष्ट रूप से दर्शाता है।"

रिपोर्ट बताती है कि  २००६ और २०२० के बीच की अवधि में १५ वर्षों में भारत में १२सबसे गर्म वर्ष दर्ज किए गए। यह रिकॉर्ड के रूप में सबसे गर्म दशक था। देश भर में मौसम अपने चरम पर रही और इससे जुड़ी हुई घटनाओं ने अपना कहर जारी रखा। इन आपदाओं के कारण आंतरिक विस्थापन के मामले और नुकसान के लिहाज से भारत का दुनिया में चौथा स्थान रहा। 

नारायण कहती हैः: “ प्रवासियों से संबंधित बहुत ही कम आंकड़ें है – इसलिए जब भी लॉकडाउन लगाया जाता है तब शहरों से पलायन को लेकर जो स्थिति बनती है उसके संदर्भ में सरकार की तैयारी अपूर्ण रहती है। यह भी तथ्य है कि लोग अपने घरों से छोड़ कर – प्रवास को इसलिए जाते हैं क्योंकि उनके समक्ष जलवायु परिवर्तन और प्राकृतिक आपदाओं के कारण उनके समक्ष घोर आर्थिक और पारिस्थितिक संकट उत्पन्न हो जाती है और उन्हे अपना घर छोड़ना पड़ता है।”

वह आगे कहती हैं: "यह रिपोर्ट हमें बताती है कि 2020 में, दुनिया में 76 प्रतिशत आंतरिक विस्थापन जलवायु आपदाओं के कारण ही हुए ।

 2008 और 2020 के बीच, बाढ़, भूकंप, चक्रवात और सूखे के कारण प्रति वर्ष लगभग 3.73 मिलियन लोग विस्थापित हुए ।

2020 में जो महत्वपूर्ण मौसम संबंधी घटनाएं घटी उसका सचित्रण इस नक्शा में किया गया है और दूसरे अर्थों में कहे तो यह देश की नई घटनाओं का मानचित्र (कार्टोग्राफी) है।

फिर इन सारे तथ्यों को जोड़ कर देखें तो फिर आपको पता चलेगा  कैसे सरकारों ने इन तथाकथित प्राकृतिक आपदाओं से हुए नुकसान की भरपाई हेतु भारी मात्रा में खर्च की है और आपको समझ में आएगा कि कैसे इस तरह की हर घटना के साथ विकास के लाभांश को कैसे बर्बाद किया जा रहा है। ”

 ग्लेशियरों के पिघलने से खतरा और बढ़ा

सीएसई पर्यावरण संसाधनों के कार्यक्रम निदेशक और रिपोर्ट के प्रमुख लेखक किरण पांडे के  कहते हैं:

"39 ग्लेशियर हैं जिनके अपने क्षेत्र में गतिविधियों में उल्लेखनीय वृद्धि देखी गई है और ये सर्वाधिक आपदाग्रस्त क्षेत्रों में चिन्हांकित हैं   हैं।" (डेटा कार्ड देखें)

रिपोर्ट में कहा गया है कि देश इसके संदर्भ में उपर्युक्त कार्रवाई करने में पिछड़ती दिख रही है। 

अक्षय ऊर्जा 

भारत का महत्वाकांक्षी अक्षय लक्ष्य, जो हरित होने की दिशा में एक सराहनीय कदम था, उसमें वो  फिसल गया है जैसा दिखता है।  भारत इस संदर्भ में अपने लक्ष्य के केवल 55 प्रतिशत ही पूर्ति कर पाया है, इस लिहाज से देखें तो भारत 2022 तक 175 GW  नवीकरणीय क्षमता वाले संयत्र स्थापित कर लेगा ऐसा लगता ही नहीं है क्योंकि ये उसके करीब तक भी नहीं पहुंच पाया है।  देश में 2021-22 तक कम से कम 50 सोलर पार्क स्थापित करने का भी लक्ष्य है। अब तक, उनमें से एक को भी चालू नहीं हो पाया है। (डेटा कार्ड देखें)

नारायण कहते हैं: " हम ऐसे समय और युग में  है जहां हमारे पास आमतौर पर  उपलब्ध डेटा की गुणवत्ता या तो खराब होती है -इसमें या तो आंकड़े अधिकतर गायब है, सार्वजनिक रूप से अनुपलब्ध है या तो उसकी गुणवत्ता संदिग्ध है – ऐसी परिस्थिति में इस तरह के अगर प्रमाणिक एवं गुणवत्ता युक्त संग्रह अगर मिल जाए तो वह बेहद मददगार हो सकता है, खासकर पत्रकारों के लिए।

डेटा की गुणवत्ता में सुधार तभी हो सकता है जब हम इसे नीति के लिए उपयोग करते हैं। चल रही महामारी का ही मामला लें। जरा सोचिए कि हमने इस पिछले एक साल में कितना नुकसान उठाया है क्योंकि हमारे पास परीक्षणों, या मौतों की संख्या, या सीरोलॉजिकल सर्वेक्षण, या वेरिएंट की जीनोमिक अनुक्रमण पर पर्याप्त या सटीक डेटा नहीं था। नीति निर्माण के लिए डेटा का होना महत्वपूर्ण होता है।

वह आगे कहती हैं: "डेटा संग्रह महत्वपूर्ण है - यह शासन करने की कला का हिस्सा है - लेकिन पूरे डेटा सेट को साझा किया जाना चाहिए उस पर काम किया जाना चाहिए ऐसा करना उतना ही महत्वपूर्ण भी है ताकि इसकी सकारात्मक आलोचना हो। ऐसा करने से इसका उपयोग बढ़ेगा और उत्तरोतर सुधार किया जा सकेगा।"

Subscribe to our daily hindi newsletter