नेपाल, बांग्लादेश, पाकिस्तान सहित 55 देशों में है स्वास्थ्य कर्मियों की भारी किल्लत: डब्ल्यूएचओ

कोरोना महामारी के मद्देनजर बहुत से विकसित देशों ने स्वास्थ्यकर्मियों की भर्ती के प्रयास तेज कर दिए हैं। नतीजन जो देश पहले ही इनकी कमी से जूझ रहे थे वहां दबाव बढ़ रहा है

By Lalit Maurya

On: Thursday 16 March 2023
 
अस्पताल में सर्जरी के बाद बुजुर्ग रोगी को सांत्वना देती नर्स; फोटो: आईस्टॉक

विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) के अनुसार नेपाल, बांग्लादेश, पाकिस्तान, सहित 55 देशों में डॉक्टर, नर्स और मिडवाइफ जैसे स्वास्थ्य कर्मियों की भारी किल्लत है। जानकारी मिली है कि इन देशों में स्वास्थ्य कर्मियों का औसत घनत्व, इनके वैश्विक औसत से भी काफी कम है।

गौरतलब है कि वैश्विक स्तर पर प्रति दस हजार की आबादी पर 49 स्वास्थ्य कर्मी (डॉक्टरों, नर्सों और मिडवाइफ) उपलब्ध हैं। रिपोर्ट के मुताबिक कोरोना महामारी के मद्देनजर बहुत से विकसित देशों ने स्वास्थ्यकर्मियों की भर्ती के प्रयास तेज कर दिए हैं। नतीजन जो देश पहले ही इन स्वास्थ्य कर्मियों की कमी से जूझ रहे थे वहां मौजूद स्वास्थ्यकर्मी भी बेहतर आय का फायदा लेने के लिए इन विकसित देशों की और रुख कर रहे हैं।

इस बारे में विश्व स्वास्थ्य संगठन 14 मार्च 2023 को “डब्ल्यूएचओ हेल्थ वर्कफोर्स सपोर्ट एंड सेफगार्डस लिस्ट 2023” जारी की है, जिसमें उन देशों की पहचान की गई है जिनमें 2030 तक स्वास्थ्य लक्ष्यों को हासिल करने के लिए आवश्यक स्वास्थ्य कर्मियों की भारी कमी है।

रिपोर्ट से पता चला है कि अफ्रीकी देश इस कमी से सबसे ज्यादा प्रभावित है। नई जारी लिस्ट में अंगोला, कैमरून, चाड, बुर्किना फासो, नाइजीरिया, कांगो, रवांडा सहित 37 अफ्रीकी देश भी शामिल हैं। ऐसे में यह देश 2030 तक सार्वभौमिक स्वास्थ्य कवरेज का लक्ष्य कैसे हासिल करेंगें यह अपने आप में एक बड़ा प्रश्न है।

इस बारे में डब्ल्यूएचओ में हेल्थ वर्कर पालिसी से जुड़े निदेशक डॉक्टर जिम कैम्पबेल का कहना है, कि "अफ्रीका के भीतर एक सशक्त अर्थव्यवस्था है, जो नए अवसरों का सृजन कर रही है।" उनके अनुसार खाड़ी देश परम्परागत रूप से विदेशी कर्मियों पर निर्भर रहे हैं।

वहीं कुछ उच्च आय वाले देशों ने अपने यहां कोरोना संक्रमण और महामारी का मुकाबला करने के लिए भर्ती और रोजगार के अवसर बढ़ाए हैं, जिससे महामारी के दौरान कर्मियों की अनुपस्थिति जैसी स्थिति से निपटा जा सके।

वहीं देखा जाए तो इस भर्ती से जो देश पहले ही स्वास्थ्यकर्मियों की कमी से जूझ रहे थे वहां इनकी समस्या कहीं ज्यादा गंभीर हो रही है। इसी को ध्यान में रखते हुए स्वास्थ्य संगठन ने यह नई सूचि जारी की है, जिससे उन देशों को रेखांकित किया जा सके जहां प्रशिक्षित स्वास्थ्य देखभाल कर्मियों की भारी कमी है।

क्या कमजोर देशों की स्वास्थ्य व्यवस्था को कमजोर कर रही है, विकसित देशों में स्वास्थ्य कर्मियों की बढ़ती मांग 

यदि वैश्विक स्तर पर मौजूद स्वास्थ्य कर्मियों से जुड़े आंकड़ों को देखें तो 2020 में दुनिया भर में 2.9 करोड़ नर्सें, 1.27 करोड़ डॉक्टर, 37 लाख फार्मासिस्ट, 25 लाख  दंत चिकित्सक, 22 लाख दाइयां और 1.49 करोड़ अन्य स्वास्थ्य कर्मी थे। इस तरह दुनिया भर में 6.5 करोड़ से ज्यादा स्वास्थ्य कर्मी हैं।

देखने में यह आंकड़ा बड़ा लग सकता है लेकिन इसका वितरण बहुत असमान है। पता चला है कि उच्च और निम्न आय वाले देशों में इनके घनत्व के बीच साढ़े छह गुना का अंतर है।

वहीं अनुमान है कि 2030 में स्वास्थ्यकर्मियों का यह आंकड़ा बढ़कर 8.4 करोड़ पर पहुंच जाएगा। देखा जाए तो 2020 में डेढ़ करोड़ स्वास्थ्यकर्मियों की कमी थी। जिनके बारे में माना जा रहा है कि इसमें 33 फीसदी की गिरावट के साथ घटकर यह आंकड़ा 2030 में एक करोड़ रह जाएगा।

हालांकि इसके बावजूद अफ्रीकी देशों में यह गिरावट वैश्विक औसत से कम रहने की आशंका है। अफ्रीका में स्वास्थ्यकर्मियों की कमी में सात फीसदी का सुधार आने का अनुमान है, जबकि वैश्विक स्तर में इस कमी में 33 फीसदी की गिरावट आ सकती है।

यदि “स्टेट ऑफ वर्ल्ड नर्सिंग 2022” में जारी आंकड़ों को देखें तो दुनिया की करीब 81 फीसदी नर्सें तीन क्षेत्रों (अमेरिका, यूरोप और पश्चिमी प्रशांत) में काम करती हैं, जहां दुनिया की केवल 51 फीसदी आबादी बसती है।

असमानता की यह खाई कितनी गहरी है इसका अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि जहां अफ्रीका में दुनिया की केवल तीन फीसदी नर्सें हैं। जहां इनकी संख्या प्रति दस हजार की आबादी पर नौ से भी कम है। वहीं अमेरिका में यह आंकड़ा 83.4, जबकि यूरोप में 79.3 है। देखा जाए तो दुनिया की करीब 30 फीसदी नर्सें अमेरिकी देशों में हैं।

इस बारे में विश्व स्वास्थ्य संगठन ने जोर देकर कहा है कि इन देशों को स्वास्थ्य व्यवस्था और अपने स्वास्थ्य कार्यबल के विकास के लिए समर्थन की दरकार है। इसके साथ ही संगठन ने ऐसे अतिरिक्त सुरक्षा उपायों की जरूरत पर भी बल दिया है जिससे सक्रिय रूप से होती अन्तरराष्ट्रीय भर्ती को सीमित किया जा सके।

इस बारे में विश्व स्वास्थ्य संगठन के महानिदेशक डॉक्टर टैड्रॉस ऐडहेनॉम घेबरेयेसस ने भी सभी देशों से, डब्लूएचओ द्वारा जारी इस सूची के प्रावधानों का सम्मान करने का आहवान किया है।

डॉक्टर टैड्रॉस का कहना है कि, "स्वास्थ्य कर्मी, हर स्वास्थ्य व्यवस्था की रीढ़ होते हैं। वहीं दुनिया की कुछ सबसे कमजोर स्वास्थ्य व्यवस्थाओं वाले 55 देशों में, पर्याप्त संख्या में स्वास्थ्य कर्मी नहीं हैं। वहीं बहुत से देशों के स्वास्थ्य कर्मी, अपना देश छोड़ दूसरे देशों को पलायन कर रहे हैं।

उन्होंने आगाह करते हुए कहा कि वैसे तो बहुत से देश, स्वास्थ्य देखभाल कर्मियों की भर्ती के मामले में डब्लूएचओ द्वारा जारी दिशा-निर्देशों का सम्मान करते हैं, लेकिन अभी भी कुछ देश इसे पूरी तरह स्वीकार नहीं कर रहे।

देखा जाए तो विश्व स्वास्थ्य संगठन की यह लिस्ट अन्तरराष्ट्रीय भर्ती पर रोक नहीं लगाती, लेकिन यह सिफारिश करती है कि ऐसे भर्ती कार्यक्रमों में शामिल देशों की सरकारों को उन देशों में इसके पड़ने वाले प्रभावों के बारे में भी जानकारी होनी चाहिए। जहां से वो प्रशिक्षित और योग्य स्वास्थ्य कर्मियों की भर्ती करते हैं।

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