कोरोना से जंग: कितनी सक्षम हैं झारखंड की स्वास्थ्य सेवाएं?

झारखंड उन राज्यों में से है, जहां कोरोनावायरस का प्रकोप देरी से दिखा, लेकिन ऐसे में सवाल आता है कि क्या झारखंड कोरोना जैसी महामारी से निपटने के लिए सक्षम भी है?

On: Thursday 02 April 2020
 

झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन स्वास्थ्य सेवाओं का जायजा लेते हुए। फोटो: twitter/ @nayan_ankur

रांची से मो. असग़र ख़ान

कई दिनों बाद ही सही, लेकिन अब झारखंड कोरोनावायरस की चपेट में आ चुका है। 31 मार्च को यहां एक महिला में कोरोना संक्रमण की पुष्टि हुई। इसके साथ ही यह सवाल खड़ा होता है कि झारखंड इस वैश्विक महामारी से निपटने के लिए कितना तैयार है?

लगभग चार करोड़ की आबादी वाले राज्य में स्वास्थ्य सेवाएं आरंभ से अभी तक मुद्दा बनी हुई हैं। सरकारी डॉक्टरों, नर्सों, टेक्नीशियन की भारी किल्लत है। राज्य में 3378 पद हैं पर मात्र 1524 ही डॉक्टर सेवा दे रहे हैं। कोरोना संक्रमित लोगों के लिए सबसे जरूरी वेंटिलेटर बताया जा रहा है, लेकिन प्रदेश के किसी भी जिला अस्पताल में वेंटिलेटर की व्यवस्था नहीं है। झारखंड के सरकारी और गैर-सरकारी अस्पतालों को मिलाकर मात्र 350 ही वेंटिलेटर बताए जा रहे हैं। इनमें राजेंद्र इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल साइंस (रिम्स) के पास लगभग 50, रांची सदर में 2, जमशेदपुर एमजीएम में 5, धनबाद पीएमसीएच में 4 और शेष राज्य की राजधानी रांची के बड़े प्राइवेट अस्पतालों में हैं। ऐसे में लगभग 73 हजार लोगों पर एक ही वेंटिलेटर है।

जबकि आईसीयू की सुविधा सिर्फ 14 जिलों के अस्पताल में ही है। एक रिपोर्ट के मुताबिक सरकारी अस्पतालों से रेफर किए जाने के बाद आठ हजार मरीज हर महीने दूसरे राज्यों में इलाज के लिए पलायन करते हैं। वहीं रिम्स अस्पताल की क्षमता 2400 नर्सों की बताई जाती है, जबकि 450 नर्स ही अस्पताल में काम कर रही हैं।

राज्य की चरमराती स्वास्थ्य व्यवस्था पर प्रदेश के नए मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन भी चिंता जाहिर कर चुके हैं। पिछले दिनों रिम्स में संसाधनों की कमी के कारण 1150 बच्चों की मौत की खबर को ट्वीट करते हुए मुख्यमंत्री सोरेन कहा था, ‘ये अत्यंत दुखद है. झारखंड की यह स्थिति बदलेगी।’

कोरोना वायरस के जांच सुविधा भी इस राज्य की एक बड़ी परेशानी बनी हुई है। हालांकि सरकारी स्वास्थ्य महकमा इस प्रयास में लगा हुआ है कि इसकी जांच जिलावार शुरु की जाए, लेकिन जमशेदपुर के महात्मा गांधी मेमोरियल (एमजीएम) मेडिकल कॉलेज के के बाद बीते एक हफ्ते से रांची के रिम्स में इसकी जांच की जा रही है. जबकि इससे पहले यह राज्य कोलकाता व पुणे पर पूर्ण रुप से निर्भर था। सरकारी अस्पतालों में आइसोलेशन का इंतजाम भी पर्याप्त नहीं है। मेडिकल कॉलेज और अस्पतालों के मिलाकर 600 आइसोलेशन वार्ड बताए जाते हैं।

रिम्स के निदेशक डॉ डीके सिंह अस्पतालों में संसाधनों की कमी के सवाल पर कहते हैं, “रिम्स में नर्स, टेक्नीयिंशस, वार्ड बॉय की भारी किल्लत है। इससे काम काफी प्रभावित होता है। जब भारी संख्या में कोरोना के मरीज या संदिग्ध आएंगे तो इसके जांच और ट्रीटमेंट दोनो प्रभावित हो सकते हैं।”

डॉ डीके सिंह यह भी कहना है कि अगर कम कोरोना के कम मरीज या संग्गिध आते हैं तो आइसोलेशन और क्वारंटाइन की पर्याप्त व्यवस्था है, लेकिन इनकी संख्या बढ़ने की समस्या बढ़ सकती है। सिंह के मुताबिक रिम्स में 30 के करीब वेंटिलेटर तो है, लेकिन इसे ऑपरेट करने वालों की कमी है।

वहीं वरिष्ठ पत्रकार फैसल अनुराग कहते हैं कि झारखंड में चिकित्सा व्यवस्था एक बड़ी समस्या है. सरकार इससे मुंह नहीं मोड़ सकता है. लेकिन राज्य के लिए अच्छी बात यह है कि कोरोना का प्रकोप अन्य राज्यों की तरह नहीं है. अगले तीन दिन में सरकार को मास्क, ग्लव्स अधिक से अधिक लोगों के बीच वितरण कराने होंगे. वेंटिलेटर, आइसोलेशन, क्वॉरेंटाइन सेंटर की संख्या हर अस्पतालों में बढ़ानी होंगी। ज्यादा से ज्यादा डॉक्टरों को कोरोना वायरस के ट्रीटमेंट को लेकर अलग से ट्रेंड करने की जरूरत है और हर जिले में जांच सेंटर खोलने की।

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