इम्युनिटी डेब्ट क्या है, और यह क्यों बढ़ा रहा है स्वाइन फ्लू के केस

दिल्ली में इसकी वजह से अगस्त में स्वाइन फ्लू के 15 मरीज थे जबकि महाराष्ट्र में इस साल यह 1500 केसों और 43 मौतों की वजह बना

By Taran Deol

On: Thursday 25 August 2022
 

कोविड-19 की संभवतः ओमिक्रॉन के उप- वैरिएंट्स (बीए डॉट5 और बीए डॉट2 डॉट75) के कारण आई लहर अब भारत में थमती हुई नजर आ रही है। हालांकि इस बार जब इसके मामले बढ़ रहे थे तो उसी दौरान देश में, खासकर दिल्ली और महाराष्ट्र में स्वाइन फ्लू के केस भी बढ़ते पाए गए। 

मीडिया रिपोर्टों के मुताबिक, देश की राजधानी में अगस्त 2022 तक स्वाइन फ्लू के कम से कम 15 केस दर्ज किए गए हैं, जबकि इस साल महाराष्ट्र में इसके लगभग 1,500 केस और 43 मौतें दर्ज हुई हैं।

कोविड-19 महामारी के दौरान लॉकडाउन के नियमों और  सामाजिक दूरी का पालन करने से 2020 और 2021 में स्वाइन फ्लू के केसों में कमी आई थी। हालांकि अस्पतालों ने बताया कि इस दौरान वाह्य-रोग विभागों में इसके मरीजों की तादाद बढ़ी और ऐसे मरीजों की भी, जिन्हें अस्पताल में भर्ती करने की जरूरत थी।
 
गौरतलब है कि स्वाइन फ्लू के लक्षण कोविड-19 के लक्षण जैसे ही हैं, जिसमें खांसी, नाक बहना और गला खराब होना शामिल है। इसके बावजूद सवाल यह है कि क्या स्वाइन फ्लू के केसों के बढ़ने में कुछ असामान्य है ?

वायरस आमतौर पर मानसून के दौरान तेजी से फैलते हैं। हालांकि विशेषज्ञों का मानना है कि इसके पीछे दो मुख्य वजहें हैं। पहली - ‘इम्युनिटी डेब्ट’ नाम की परिघटना और दूसरा, कोरोना महामारी के कारण स्वास्थ्य-सेवा के प्रति लोगों की संवेदनशीलता का बढ़ना, इसके लिए जिम्मेदार हो सकता है।
 
जन-स्वास्थ्य विश्लेषक और महामारी विज्ञानी डॉ चंद्रकांत लहरिया कहते हैं कि हमारे शरीर में सामान्य वायरसों और बैक्टीरिया की कमी, इम्युनिटी डेब्ट कहलाती है। उनके मुताबिक, ‘ इस साल वायरस से जुड़ी बीमारियों के केस और ज्यादा दर्ज होने की उम्मीद है क्योंकि पिछले दो सालों से लोग या तो घरों में थे या फिर वे मास्क का इस्तेमाल कर रहे थे।’
 
वह कहते हैं कि इन सावधानियों के चलते लोग ऐसे सामान्य रोगाणुओं के संपर्क में कम आए, जो हमारे शरीर में प्रतिरोधी तंत्र बनाते हैं। अब, जब लोग, सामान्य दिनचर्या में लौट रहे हैं तो रोगाणुओं के शरीर में नामौजूदगी के चलते प्रतिरोधी तंत्र पहले की तरह मजबूत नहीं है। उनके मुताबिक, ‘ अब लोग, संक्रमण के प्रति ज्यादा संवेदनशील हो गए हैं और ऐसा केवल हमारे यहां ही नहीं पूरी दुनिया मे हो रहा है।’
 
कई अन्य देशों में सांस से जुड़ी बीमारियों के मामलों में बेमौसम वृद्धि दर्ज की गई है। उदाहरण के लिए, ऑस्ट्रेलिया ने 2020 के अंत में और 2021 की गर्मियों में गंभीर रेस्पाइरेटरी सिनसिटयल वायरस (आरएसवी) के मामले दर्ज किए, क्योंकि इस दौरान वहां महामारी से जुड़े प्रतिबंधों में ढील दी गई थी।

मई 2022 में नेचर में प्रकाशित एक अध्ययन में दर्ज किया गया कि - ‘2020 से पहले आरएसवी की सक्रियता बसंत के मध्य (अप्रैल-मई ) में शुरू हुई और सामान्य तौर पर ऑस्ट्रेलियाई सर्दियों के बीच में महामारी के चरम के साथ छह महीने तक बनी रही (जुलाई के मध्य तक यानी 27-29 सप्ताह तक)।’ इसके उलट 2020 में आरएसवी की सक्रियता छह से नौ महीने बाद देखी गई। ऐतिहासिक तौर पर ऐसा पहली बार देखा गया था।
 
अध्ययन के मुताबिक, प्रयोगशाला में इसकी पुष्टि हुई कि ऑस्ट्रेलिया के हर राज्य और क्षेत्र में आरएसवी की गतिविधि के चरम पर सकारात्मकता दर पिछले तीन सत्रों की तुलना में इस बार काफी अधिक थी। इम्युनिटी डेब्ट क्या कर सकता है, इसका एक उदाहरण अमेरिका में देखा गया, जहां पिछले एक दशक के बाद इस साल मार्च में फ्लू का चरण, शीर्ष तक पहुंच गया था।
हालांकि भारत में स्वाइन फ्लू के केसों में वृद्धि वास्तविक है या फिर यह बेतहर टेस्टिंग प्रक्रिया का नतीजा है? यह झूठी हो सकती है, इसकी वजह मुंबई के हिंदुजा अस्पताल के फुफ्फृसीय रोग विशेषज्ञ (पल्मोनोलॉजिस्ट)  डॉ.  लांसेलोट पिंटो ने बताई। उनके मुताबिक, कोविड-19 महामारी ने लोगों को श्वसन-तंत्र की बीमारियों के प्रति संवेदनशील बना दिया है और अब वे टेस्ट कराने के लिए आगे आ रहे हैं।

वह कहते हैं, ‘ पहले नाक से सैंपल केवल अस्पाल के स्तर पर लिया जाता था लेकिन टेस्टिंग किट मिलने के कारण अब यह लोगों की पहुंच में आसानी से है। इस तरह की चीजों के चलते ही स्वाइन फ्लू के केसों में वृद्धि हो सकती है।’ विशेषज्ञों का मानना है कि इसके केसो में वृद्धि, स्वास्थ्य प्रणाली की तत्परता और स्वेच्छा से लोगों के सामने आने के संयुक्त कारक के परिणामस्वरूप होती दिख रही है।

स्वाइन फ्लू के केसों के बढ़ने और कोविड-19 के वापस जाने के बीच क्या हमें इन दोनों के लिए एक साथ पॉजिटिव होने को लेकर चिंता करनी चाहिए। डॉ. लहरिया ने तर्क दिया कि दो बीमारियों का सह-संक्रमण, आम तौर पर  सांस   के सामान्य वायरस के लिए इस्तेमाल की जाने वाली शब्दावली नहीं है क्योंकि इसमें सार्वजनिक स्वास्थ्य या रोग के निदान की प्रासंगिकता नहीं है।
 
हालांकि डॉ. पिंटो कुछ केसों में सह-संक्रमण देखते हैं, फिर भी यह किसी गंभीर संक्रमण में नहीं बदला है। उन्होंने कहा, ‘ इसकी व्याख्या करना मुश्किल है क्योंकि कभी-कभी आरटी-पीसीआर टेस्ट एक महीने तक  पॉॅजिटिव  आ सकता है। तो क्या इससे सह-संक्रमण हो सकता है?’

स्वाइन फ्लू एक मानव श्वसन संक्रमण है, जो इन्फ्लूएंजा की विकृति के कारण होता है। इसने सबसे पहले सूअरों को प्रभावित किया था, इसीलिए इसे यह नाम दिया गया। विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) ने इसे 2009 में महामारी घोषित किया था, जब इसने पहली बार मनुष्यों को संक्रमित किया था।
 
अप्रैल 2009 में उत्तरी अमेरिका से शुरुआती प्रकोप की रिपोर्ट मिलने के बाद, इसका वायरस तेजी से दुनिया भर में फैल गया। इस साल जून तक 74 देशों और क्षेत्रों में इसके संक्रमण की पुष्टि हुई है।

डब्ल्यूएचओ ने कहा,- ‘फ्लू के पारंपरिक मौसमी पैटर्न के विपरीत नए वायरस ने उत्तरी गोलार्द्ध में गर्मियों  में उच्च-स्तर का संक्रमण किया है, यहां तक कि सर्दियों के दौरान भी इसकी सक्रियता उच्च-स्तर की बनी रही। यह नया वायरस, मौत और बीमारियों की वजह भी बना, जो सामान्य तौर पर इन्फ्लूएंजा के संक्रमण में नहीं देखा जाता है।’ आज, यह वायरस मौसमी रूप से फैलता है और इसे सालाना अपडेट किए जाने वाले इन्फ्लूएंजा के टीके में शामिल किया जाता है।

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