कहां हो सकता है नए कोरोनावायरस का जन्म, वैज्ञानिकों ने हॉटस्पॉट का लगाया पता

जंगलों पर बढ़ता अतिक्रमण, बदलता भूमिउपयोग और बड़े पैमाने पर पशुधन उत्पादन के चलते चीन में कई हिस्से इस वायरस के लिए हॉटस्पॉट हो सकते हैं

By Lalit Maurya

On: Thursday 03 June 2021
 

दुनिया में कहां-कहां नए कोरोनावायरस का जन्म हो सकता है, वैज्ञानिकों ने इस बात का पता लगाया है। दुनिया भर में बड़े पैमाने पर भूमि उपयोग में बदलाव आ रहा है, जिसमें वनों में बदलाव, कृषि विस्तार और मवेशियों का उत्पादन शामिल हैं। यह उन चमगादड़ों के लिए अनुकूल 'हॉट स्पॉट' बना रहे हैं, जो कोरोनावायरस को ले जा सकते हैं और जहां यह बीमारी चमगादड़ों से इंसानों में फैल सकती है।

यह जानकारी कैलिफोर्निया विश्वविद्यालय, बर्कले, पॉलिटेक्निको डि मिलानो और न्यूजीलैंड के मैसी विश्वविद्यालय के शोधकर्ताओं द्वारा किए विश्लेषण में सामने आई है जोकि अंतराष्ट्रीय जर्नल नेचर फूड में प्रकाशित हुआ है।

हालांकि यदि कोरोनावायरस सार्स-कोव-2 की उत्पत्ति की बात करें तो यह पहेली अब तक अनसुलझी है। इस बारे में हमें इतना ही पता है कि यह वायरस जोकि हॉर्सशू बैट को संक्रमित कर सकता है, वो या तो सीधे तौर पर चमगादड़ से या फिर किसी अन्य जानवर जैसे पैंगोलिन की मदद से इन्सानों में फैला था।

यदि हॉर्सशू बैट की बात करें तो यह चमगादड़ कई तरह के कोरोनावायरस को धारण कर सकता है, जिसमें कई ऐसे वाइरस भी शामिल हैं जो आनुवंशिक रूप से उन कोरोनावायरस से मिलते हैं जो कोविड-19 और सार्स का कारण बनते हैं।

इस शोध से जुड़े शोधकर्ता पाओलो डी'ओडोरिको ने बताया कि भूमि उपयोग में हो रहा बदलाव स्वास्थ्य पर प्रभाव डाल सकता है, क्योंकि हम पर्यावरण में बदलाव कर रहे हैं इसके चलते यह जूनोटिक बीमारियां स्वास्थ्य के प्रति जोखिम को और बढ़ा सकती हैं।

इस नए शोध में रिमोट सेंसिंग का इस्तेमाल उन क्षेत्रों के भूमि उपयोग का विश्लेषण करने के लिए किया है जहां हॉर्सशू बैट पाए जाते हैं। यह क्षेत्र पश्चिमी यूरोप से दक्षिण पूर्व एशिया तक फैला हुआ है। शोधकर्ताओं ने इन स्थानों पर वनों में बदलाव, कृषि विस्तार और मवेशियों के क्षेत्रों की पहचान करके उनकी तुलना इस हॉर्सशू बैट के आवास से की है। इसकी मदद से उन्होंने उन संभावित 'हॉट स्पॉट' स्थानों की पहचान की है, जो इन चमगादड़ों के रहने के लिए अनुकूल है।

साथ ही जहां इन चमगादड़ों से यह जूनोटिक वायरस इंसानों में फैल सकता है। साथ ही वैज्ञानिकों ने उन स्थानों की भी पहचान की है जहां भविष्य में यदि भूमि उपयोग में बदलाव आता है तो वो इस वायरस के लिए हॉटस्पॉट बन सकते हैं।  

भूमि उपयोग में होता बदलाव और जंगलों पर बढ़ता अतिक्रमण है जिम्मेवार

शोध के अनुसार इनमें से ज्यादातर हॉटस्पॉट चीन में हैं, जहां मांस उत्पादों की बढ़ती मांग ने बड़े पैमाने पर औद्योगिक स्तर पर मवेशी पालन के विस्तार को प्रेरित किया है। शोधकर्ताओं ने बताया कि बड़े स्तर पर मवेशियों का पालन इस स्थान बीमारियों को फैलने का हॉटस्पॉट बनाता है क्योंकि यह जानवर जेनेटिक रूप से समान होते हैं, इनका इम्यून इतना कमजोर होता है जिनमें यह वायरस आसानी से फ़ैल सकता है।

इसके साथ ही विश्लेषण में यह भी पता चला है कि जापान के कुछ हिस्से, उत्तरी फिलीपींस और चीन के दक्षिण में शंघाई भविष्य के हॉटस्पॉट बन सकते हैं, जहां जंगलों में किए जा रहे बदलाव इसे फैलने में मदद कर सकते हैं। वहीं भारत-चीन और थाईलैंड के कुछ हिस्सों में बढ़ते पशुधन उत्पादन के कारण यह क्षेत्र भविष्य में संक्रमण के लिए हॉटस्पॉट बन सकते हैं।

हॉर्सशू बैट भी इन्हीं सामान्य श्रेणी की प्रजातियों में से है, जो अक्सर उन क्षेत्रों में पाई जाती हैं जहां इंसानों द्वारा अतिक्रमण किया जाता है। इससे पहले भी रूली डी'ओडोरिको और इस शोध से जुड़े शोधकर्ता डेविड हेमैन ने अफ्रीका में जंगलों में बढ़ते अतिक्रमण और इबोला वायरस के बीच के सम्बन्ध को साबित किया था।

डी'ओडोरिको ने जानकारी दी है कि हालांकि हमें इस बारे में स्पष्ट जानकारी नहीं है कि सार्स-कोव-2 जानवरों से इंसानों में कैसे फैला था, लेकिन हमें यह पता है कि इंसानों द्वारा भूमि उपयोग में किए बदलावों से यह स्थान चमगादड़ों के बसने के काबिल बन गए थे। जो इन वायरसों को धारण करने के काबिल हैं।

पिछले दो दशकों में चीन ने बड़े पैमाने पर जंगलों का विस्तार करने का प्रयास किया है, इनमें से कई पेड़ उन स्थानों पर भी लगाए हैं जहां वनों का विनाश हुआ था। लेकिन यह ध्यान रखना होगा कि पेड़ों के कुल आवरण को बढ़ाने की जगह, इन विशिष्ट प्रजातियों के आवास को दोबारा बसाना और जंगलों को पहले जैसा करना कहीं ज्यादा महत्वपूर्ण है।

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