कोरोनावायरस: कहां से आते हैं नए वायरस?

पहली बात तो यह कि वायरस अचानक किसी अन्य प्रजाति में कूद कर नहीं पहुंच जाता....

By Naomi Forrester-Soto

On: Tuesday 21 April 2020
 
Photo: Pixabay

कोरोना वायरस कहां से आता है: कोरोनावायरस के उद्भव ने इस ओर ध्यान खींचा है कि कुछ जोखिम वाले जानवर, मानव के लिए खतरनाक वायरस के स्त्रोत हो सकते हैं। नोवेल कोरोना वायरस को सार्स-सीओवी-2 के नाम से जाना जाता है। इसका उद्गम स्त्रोत चीन के वुहान शहर का वो बाजार बताया गया, जहां जंगली जानवरों का व्यापार होता है। हालांकि, यह पक्का नहीं है कि क्या मानव तक इस वायरस के पहुंचने का जरिया वो बाजार ही था। फिर चमगादड़ की पहचान इस वायरस के वाहक के रूप में की गई। फिर भी, हम यकीनन ये नहीं कह सकते कि चमगादड़ ही सार्स-सीओवी-2 का जनक है।

तो सवाल है कि नया वायरस आखिर पर्यावरण से निकला कैसे और कैसे इसने मनुष्यों को संक्रमित करना शुरू कर दिया? समय और प्रक्रिया की बात करें तो, प्रत्येक विषाणु का उद्भव अपने आप में एक अद्वितीय घटना है। लेकिन कुछ ऐसे तथ्य हैं, जो सभी किस्म के उभरते हुए वायरस प्रजातियों के लिए लागू होते हैं।

पहली बात तो यह है कि वायरस अचानक किसी अन्य प्रजाति में कूद कर नहीं पहुंच जाता। ऐसा होना दुर्लभ है। सफलतापूर्वक किसी अन्य प्रजाति (होस्ट) तक सफलतापूर्वक पहुंचने से पहले वायरस को कई काम करने में सक्षम होना चाहिए।

सबसे पहले, तो वायरस को खुद की संख्या बढाते हुए मेजबान शरीर में संक्रमण पैदा करने में सक्षम होना चाहिए। ज्यादातर वायरस कुछ विशिष्ट प्रकार की कोशिकाओं को संक्रमित कर सकते हैं। जैसे, फेफड़े की कोशिकाएं या गुर्दे की कोशिकाएं। कोशिका पर हमला करते समय, वायरस कोशिका की सतह पर विशिष्ट रिसेप्टर अणुओं को बांधता है और इसलिए ये अन्य कोशिकाओं में ये काम करने में सक्षम नहीं हो सकते है। या फिर किन्हीं कारणों से वायरस कोशिका के अंदर खुद की संख्या बढा पाने में असमर्थ हो सकते है।

एक बार जब यह एक नए मेजबान को संक्रमित कर लेता है, तो वायरस को खुद की संख्या बढाने में सक्षम होना चाहिए। तभी ये दूसरों को संक्रमित कर सकेगा। ऐसा होना भी बहुत दुर्लभ है और अधिकांश वायरस अपने मेजबान के शरीर में ही खत्म हो जाते है। इसलिए इसे "डेड-एंड होस्ट" भी कहते हैं।

उदाहरण के लिए, इन्फ्लूएंजा वायरस एच5एन1 या बर्ड फ्लू पक्षियों से मनुष्य को संक्रमित कर सकता है, लेकिन मनुष्यों के बीच इसका प्रसार बहुत सीमित है। कभी-कभी एक नया वायरस अपने होस्ट (मेजबान) से नए होस्ट तक पहुंच जाता है और एक नई प्रसार श्रृंखला बना कर महामारी की स्थिति पैदा कर देता है।

पिछले कुछ दशकों के शोध से हमने कुछ ऐसे तंत्रों को समझा है, जिसकी वजह से वायरस विभिन्न प्रजातियों के बीच पहुंचता हैं। इन्फ्लुएंजा वायरस इसका एक शानदार उदाहरण है। वायरस में आठ जीनोम सेगमेंट होते हैं। यदि दो अलग-अलग वायरस एक ही सेल को संक्रमित करते हैं, तो दोनों के सेगमेंट मिल कर एक नॉवेल वायरस प्रजाति बना सकते हैं। यदि नए वायरस की सतह पर पाया जाने वाला प्रोटीन मौजूदा इन्फ्लूएंजा वायरस के मुकाबले बदल जाता है, तो ये आसानी से फैल जाएगा और किसी के पास भी इसके खिलाफ इम्यूनिटी (प्रतिरक्षा) नहीं होगी ।

इन्फ्लूएंजा वायरस में इस बदलाव को एंटीजेनिक शिफ्ट कहा जाता है। 2009 के एच1एन1 इन्फ्लूएंजा महामारी के साथ भी ऐसा ही हुआ था। इसी एंटीजेनिक शिफ्ट की वजह से ये सूअरों से मानव तक पहुंचा। इस बात के आनुवांशिक प्रमाण भी हैं कि ऐसा ही मैकेनिज्म कोरोना वायरस के साथ भी काम कर सकता है, हालांकि सार्स-सीओवी-2 के उद्भव में इसकी भूमिका अभी तय होनी बाकी है।

वायरस जीनोम के भीतर आनुवंशिक परिवर्तन की वजह से भी नए वायरस उभर सकते हैं। ये एक आम बात है कि वायरस अपने जेनेटिक इंफॉर्मेशन (आनुवांशिक सूचनाएं) डीऑक्सीराइबोन्यूक्लिक एसिड (डीएनए) के बजाय रिबोन्यूक्लिक एसिड (आरएनए) में जमा करते हैं। यही कारण है कि ये वायरस (कोरोना वायरस अपवाद है) जब खुद की संख्या बढाते हैं, तब अपनी गलतियों की जांच नहीं कर पाते हैं। वायरस के खुद की संख्या बढाने के दौरान जो परिवर्तन होते है, वे इसके लिए नुकसानदायक होते है। लेकिन कुछ परिवर्तन वायरस को एक नए मेजबान को अधिक प्रभावी ढंग से संक्रमित करने में सक्षम भी बना सकते हैं।

नया कोरोना वायरस

सवाल है कि सार्स-सीओवी-2 के मामले में क्या हुआ? जीनोम के हालिया विश्लेषण से पता चलता है कि वायरस लगभग 40 वर्षों से इसी रूप में घूम रहा था। अभी तक हम जो पहचान कर सके है, उसके मुताबिक ये वायरस चमगादड़ में पाया गया है। हालांकि, कोरोना वायरस और सार्स-सीओवी-2 का लगभग 40 से 70 साल पुराना सहसंबंध है। इसलिए, इस महामारी का कारण ये चमगादड़ वायरस ही हो, जरूरी नहीं है।

इन वायरस के बीच एक पुराना सह-संबंध तो है, लेकिन 40 साल के क्रमिक विकास प्रक्रिया ने इन्हें अलग कर दिया है। इसका मतलब यह है कि सार्स-सीओवी-2 चमगादड़ से मनुष्यों तक पहुंचा या किसी अन्य प्रजाति के माध्यम से। उदाहरण के लिए, पैंगोलिन में भी संबंधित वायरस पाए गए हैं। लेकिन आनुवांशिक रूप से सार्स-सीओवी-2 के मनुष्यों तक पहुंचने का सटीक रास्ता तलाश पाना तब तक रहस्य बना रहेगा, जब तक हम पर्यावरण में मौजूद सबसे निकट प्रजाति की तलाश कर पाने में सक्षम नहीं हो जाते।

यह भी साफ नहीं है कि वायरस में ऐसे क्या बदलाव हुए, जिससे मनुष्य इतनी आसानी से संक्रमित होते चले गए। हालांकि, यह देखा गया है कि पिछले 20 वर्षों में कोरोनो वायरस परिवार से तीन प्रमुख बीमारियां सामने आई हैं। सिवियर एक्यूट रेस्पिरेटरी सिंड्रोम (सार्स), मिडल-इस्ट रेस्पिरेटरी सिंड्रोम (एमईआरएस) और कोविड-19। इस बात की भी संभावना है कि आगे कोरोना वायरस फिर से मनुष्य में पहुंच कर एक नई बीमारी का प्रकोप पैदा कर दे।

इस बात की अधिक संभावना है कि जब ये वायरस दुनिया के सभी जानवरों में पहुंच जाए, तब जानवर और मनुष्य के बीच किसी भी सम्पर्क की वजह से ये केवल मनुष्यों तक पहुंच पाने में ही सक्षम हो। मनुष्य हमेशा नए वायरस के संपर्क में आता रहा है, क्योंकि मानव जाति शुरु से दुनिया भर में नए क्षेत्रों की खोज करता रहा है। वन क्षेत्रों में होने वाली मानव गतिविधि में वृद्धि और जंगली जानवरों का व्यापार इस तरह की महामारी/संक्रमण के लिए एक उर्वर जमीन तैयार करता है।

बढता वैश्विक संबंध भी आज कुछ ही दिनों में एक नई महामारी को दुनिया भर में फैला सकता है। हमें इस बात को स्वीकार करना होगा कि हमने प्राकृतिक वातावरण को तबाह किया है और इस वजह ने मनुष्य तक वायरस के पहुंचने की संभावना बढा दी है।

(नाओमी फॉरेस्टर-सोटो, वेक्टर बायोलॉजी, कील यूनिवर्सिटी में रीडर हैं)

यह लेख द कंवर्सेशन में प्रकाशित हुआ है, जिसे क्रिएटिव कॉमंस लाइसेंस के तहत प्रकाशित किया जा रहा है। मूल लेख पढ़ें 

 

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