लॉन्ग कोविड के शिकार लोगों में क्यों घट जाती है सूंघने की क्षमता? क्या है दिमाग का कनेक्शन

सूंघने की क्षमता में आने वाली इस कमी को मेडिकल भाषा में एनोस्मिया कहते हैं। रिसर्च से पता चला है कि यह लॉन्ग कोविड की वजह से दिमाग में आने वाले बदलावों से जुड़ी है

By Lalit Maurya

On: Tuesday 25 April 2023
 
एनोस्मिया, गंधहीनता या सूंघने की क्षमता में आई कमी, कोविड-19 के संभावित लक्षणों में से एक है; फोटो: आईस्टॉक

वैज्ञानिकों ने लॉन्ग कोविड के दौरान सूंघने की क्षमता पर पड़ने वाले प्रभाव और मस्तिष्क के बीच की कड़ी को खोज निकाला है। यूनिवर्सिटी कॉलेज लंदन के वैज्ञानिकों द्वारा किए नए अध्ययन से पता चला है कि जो मरीज लॉन्ग कोविड की वजह से सूंघने की समस्या से जूझ रहे हैं, उनके मस्तिष्क के कुछ विशिष्ट क्षेत्रों में अनजान गतिविधियों के विभिन्न पैटर्न देखे गए हैं।

अपने इस अध्ययन में शोधकर्ताओं ने एमआरआई स्कैन का उपयोग किया था, जिससे उन लोगों की दिमागी गतिविधियों को समझा जा सके जो लॉन्ग कोविड की वजह से अपनी सूंघने की क्षमता खो चुके थे।

इस अध्ययन में उन लोगों की भी जांच की गई है, जिन लोगों की सूंघने की क्षमता कोविड से उबरने के बाद सामान्य हो गई थी। साथ ही वैज्ञानिकों ने उन लोगों की भी दिमागी गतिविधियों का अध्ययन किया है जो कभी भी कोविड-19 पॉजिटिव नहीं पाए गए थे। इस अध्ययन के नतीजे जर्नल ई-क्लिनिकल मेडिसिन में प्रकाशित हुए हैं।

क्या है सूंघने की क्षमता और दिमाग के बीच का कनेक्शन

रिसर्च से पता चला है कि जो मरीज लंबे समय से कोविड-19 से पीड़ित थे और जिन्होंने अपनी सूंघने की क्षमता को खो दिया था उन लोगों के मस्तिष्क ने गतिविधियों को कम कर दिया था। साथ ही उनके मस्तिष्क के दो हिस्सों के बीच होने वाले संचार पर असर देखा गया था।

गौरतलब है कि दिमाग के यह दोनों हिस्से ऑर्बिटोफ्रॉन्स्टल कॉर्टेक्स और प्री-फ्रंटल कॉर्टेक्स गंध से जुड़ी अहम जानकारियों को प्रोसेस करते हैं। हालांकि इसके विपरीत यह कनेक्शन उन लोगों में सही पाया गया जिन्होंने कोविड-19 से उबरने के बाद अपने सूंघने की क्षमता वापस पा ली थी।

गौरतलब है कि स्वाद और सूंघने की क्षमता में आने वाली इस कमी को मेडिकल भाषा में एनोस्मिया कहा जाता है। रिसर्च से पता चला है कि यह लॉन्ग कोविड की वजह से दिमाग में आने वाले बदलावों से जुड़ी है। दिमाग में आए यह बदलाव गंध को ठीक से प्रोसेस करने से रोकते हैं। हालांकि रिसर्च से यह भी पता चला है कि  इन प्रभावों से उबरा जा सकता है। शोधकर्ताओं के मुताबिक क्योंकि इसे चिकित्सकीय रूप से बदला जा सकता है। ऐसे में लॉन्ग कोविड की वजह से जिन लोगों की सूंघने की क्षमता प्रभावित हुई है वो इसे ठीक करने के लिए मस्तिष्क को फिर से प्रशिक्षित कर सकते हैं।

इस बारे में अध्ययन से जुड़े प्रमुख शोधकर्ता डॉक्टर जेड विंग्रोव का कहना है कि, "लॉन्ग कोविड की वजह से लम्बे समय तक सूंघने की क्षमता में आई गिरावट यह दर्शाती है कि यह महामारी अभी भी लोगों के जीवन की गुणवत्ता को प्रभावित कर रही है।" उनका कहना है कि गंध एक ऐसी चीज है जिसे हम हल्के में लेते हैं, लेकिन यह कई तरह से हमारा मार्गदर्शन करती है। देखा जाए तो यह हमारी बेहतरी के साथ निकटता से जुड़ी है।

वैज्ञानिकों का इस बारे में क्या कहना है

उन्होंने आगे बताया कि अध्ययन से यह भी पता चला है कि अधिकांश लोगों में उनके सूंघने की क्षमता वापस आ जाती है और उनकी दिमागी गतिविधियों में कोई स्थाई बदलाव नहीं होता है।

इस बारे में अध्ययन से जुड़ी अन्य शोधकर्ता प्रोफेसर क्लाउडिया व्हीलर-किंगशॉट का कहना है कि हमारे निष्कर्ष मस्तिष्क के कार्यों पर पड़ने वाले प्रभावों को उजागर करते हैं। साथ ही वो इस दिलचस्प सम्भावना को भी बढ़ाते हैं कि मस्तिष्क को अलग-अलग गंधों को प्रोसेस करेने के लिए फिर से प्रशिक्षित किया जा सकता है।" उनके अनुसार यह इस बात की सम्भावना को दर्शाता है कि मस्तिष्क अपने खोए हुए कनेक्शन को दोबारा ठीक कर सकता है।

शोधकर्ताओं के मुताबिक अध्ययन में यह भी सामने आया है कि लॉन्ग कोविड की वजह से जिन मरीजों में सूंघने की क्षमता घट जाती है, उनका दिमाग अन्य संवेदी क्षेत्रों के साथ संबंध को मजबूत करके इस खोई हुई भावना की भरपाई कर सकता है।

रिसर्च से पता चला है कि इसकी वजह से मस्तिष्क के उन हिस्सों के बीच गतिविधियां बढ़ गई थी जो गंध और दृष्टि संबंधी जानकारी को प्रोसेस करते हैं। गौरतलब है कि दिमाग में विजुअल कोर्टेक्स इसमें मदद करता है। इस बारे में डॉक्टर जेड विंग्रोव का कहना है कि यह दर्शाता है कि सामान्य रूप से गंध को प्रोसेस करने वाले न्यूरॉन्स अभी भी वहां मौजूद हैं लेकिन बस वे अलग तरह से काम कर रहे हैं।

वहीं वैज्ञानिकों द्वारा किए एक अन्य अध्ययन से पता चला है कि पार्किंसंस और अल्जाइमर की तरह ही कोविड-19 मस्तिष्क में सूजन पैदा कर सकता है, जोकि एक तरह का साइलेंट किलर है।

वहीं अप्रैल 2022 में किए एक अध्ययन में सामने आया है कि कोविड से उबरने के बाद भी एक तिहाई लोगों में लॉन्ग कोविड की समस्या बनी रह सकती है। रिसर्च  के मुताबिक करीब 31 फीसदी मरीजों ने थकान, 15 फीसदी ने सांस सम्बन्धी तकलीफों के बारे में जानकारी दी थी थी। वहीं 16 फीसदी मरीजों में गंध और सूंघने की क्षमता में कमी जैसे लक्षण सामने आए थे। 

वैश्विक स्तर पर देखें तो यह महामारी अब तक 76.4 करोड़ लोगों को बीमार कर चुकी है। वहीं 69 लाख से ज्यादा लोग इस महामारी की भेंट चढ़ चुके हैं। यदि सिर्फ भारत की बात करें तो इस बीमारी की वजह से 4.49 करोड़ लोग बीमार पड़ चुके हैं जबकि 531,369 लोगों की मौत हो चुकी है। वहीं 4.43 करोड़ लोग स्वस्थ हो चुके हैं। हालांकि कितने लोग अभी भी लॉन्ग कोविड से ग्रस्त है इस बारे में सही आंकड़ा अब तक सामने नहीं आया है।

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