येल यूनिवर्सिटी ने फाइब्रोसिस की खोजी नयी दवा, कोविड-19 के इलाज में हो सकती है सहायक

येल यूनिवर्सिटी के शोधकर्ताओं द्वारा खोजी गयी 'सोबेट्रियम' नामक यह दवा कोविड-19 के मरीजों में होने वाले एक्यूट रेस्पिरेटरी डिस्ट्रेस सिंड्रोम की रोकथाम और उपचार में कारगर हो सकती है

By Lalit Maurya

On: Thursday 09 April 2020
 
Photo: 247wallst.com

येल यूनिवर्सिटी के शोधकर्ताओं ने एक ऐसे दवा बनाने का दावा किया है जो फेफड़ों से सम्बंधित रोग फाइब्रोसिस की रोकथाम में मदद कर सकती है। गौरतलब है कि पल्मोनरी या लंग फाइब्रोसिस एक ऐसी स्थिति है जो फेफड़ों में जख्म और अकड़न का कारण बनती है। इसके चलते शरीर को पर्याप्त मात्रा में ऑक्सीजन नहीं मिल पाती, जिससे सांस लेना मुश्किल हो जाता है। साथ ही इसके चलते दिल संबंधी विकार और अन्य जटिलताएं उत्पन्न हो सकती हैं।

येल पल्मोनोलॉजिस्ट नफ्ताली कमिंसकी ने कुछ साल पहले इस दवा पर काम करना शुरू किया था। जिससे लंग फाइब्रोसिस का इलाज किया जा सके। पर वर्तमान शोध से पता चला है कि यह दवा कोविड-19 के इलाज में भी कारगर हो सकती है। अब डॉ नफ्ताली और उनकी टीम जल्द से जल्द इस दवा का क्लीनिकल ट्रायल करने पर काम कर रही है। 

सोबेट्रियम नामक यह दवा, थायरॉयड हार्मोन थेरेपी की तरह ही काम करती है, जोकि घावों को भर देती है और फेफड़ों में मौजूद सेल्स के फ़ंक्शन को बेहतर बनाती है। यह दवा ह्रदय और मांसपेशियों के लिए भी नुकसानदेह नहीं होती है।

नफ्ताली कमिंसकी, येल के सेंटर फॉर पल्मोनरी इन्फेक्शन रिसर्च एंड ट्रीटमेंट के निदेशक चार्ल्स डेला क्रूज़ और ड्यूक यूनिवर्सिटी से सम्बंधित पैटी जे ली - ने हाल ही में पता लगाया है कि यह दवा एक्यूट रेस्पिरेटरी डिस्ट्रेस सिंड्रोम (एआरडीएस) की रोकथाम और उपचार में भी कारगर है।

गौरतलब है कि कोरोनावायरस के चलते गंभीर रूप से बीमार मरीजों में श्वशन सम्बन्धी विकार उत्पन्न हो जाता है। जिसे एक्यूट रेस्पिरेटरी डिस्ट्रेस सिंड्रोम के नाम से जाना जाता है। इस बीमारी में मरीज के फेफड़े फूल जाते है और उनमें फ्लूइड जमा हो जाता है। जिस वजह से मरीजों के सांस लेने में कठिनाई उत्पन्न हो जाती है।

परिणामस्वरूप उन्हें गहन देखभाल और वेंटिलेटर पर रखने की जरुरत पड़ जाती है। कमिंसकी ने बताया कि चूहे पर किये अध्ययन में यह दवा 'सोबेट्रियम' अत्यधिक प्रभावी सिद्ध हुई है। हालांकि कोविड-19 के मरीजों पर एआरडीएस के लिए इस दवा का परीक्षण अभी तक नहीं किया गया है।

कैसे काम करती है यह दवा

कमिंसकी ने बताया कि कोविड-19 का एक लरकिंग पीरियड या "गुप्त अवधि" होती है। यह वह अवधि होती है जिसमें रोगी के शरीर में सांस की तकलीफ और ऑक्सीजन के स्तर में गिरावट जैसे लक्षण दिखने शुरू नहीं होते हैं। उनसे पहले ही शरीर में मौजूद प्रतिरक्षा प्रणाली अपना काम करना शुरू कर देती है। इस दौरान बीमारी से निपटने के लिए इम्यून सिस्टम तेजी से प्रतिक्रिया करने लगता है। और रोगी के फेफड़ों में इम्यून सेल्स की बाढ़ सी आ जाती है। इस प्रतिक्रिया को 'साइटोकिन स्टॉर्म' के नाम से जाना जाता है। जिससे रोगी के फेफड़ों में फ्लूइड जमा होने लगता है। परिणामस्वरूप रोगी में सांस की तकलीफ इतनी बढ़ जाती है कि मृत्यु तक हो सकती है।

यह दवा 'सोबेट्रियम' शरीर में आने वाले इस 'साइटोकिन स्टॉर्म' से निपट सकती है। जल्द ही इसका क्लीनिकल ट्रायल किया जा सकता है। क्योंकि इससे पहले मरीजों पर जब इस दवा को टेस्ट किया गया था, तो यह इंसानों के लिए पूरी तरह सुरक्षित पायी गयी थी

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