नजरअंदाज नहीं किया जा सकता एंटीबायोटिक रेसिस्टेन्स, हर साल ले रहा है करीब 13 लाख जानें

रिपोर्ट के अनुसार एंटीबायोटिक रेसिस्टेन्स ने सीधे तौर पर 12.7 लाख लोगों की जान ली थी। वहीं अनुमान है कि 2019 में मरने वाले 49.5 लाख लोग कम से कम एक दवा प्रतिरोधी संक्रमण से पीड़ित थे 

By Lalit Maurya

On: Thursday 20 January 2022
 

दुनिया के सामने एंटीबायोटिक रेसिस्टेन्स (एएमआर) यानी रोगाणुरोधी प्रतिरोध का खतरा तेजी से बढ़ता जा रहा है, जिसे और नजरअंदाज नहीं किया जा सकता। हाल ही में इंस्टिट्यूट फॉर हेल्थ मैट्रिक्स एंड इवैल्यूएशन (आईएचएमई) द्वारा जारी रिपोर्ट के अनुसार एंटीबायोटिक रेसिस्टेन्स ने सीधे तौर पर 12.7 लाख लोगों की जान ली थी। वहीं अनुमान है कि 2019 में मरने वाले 49.5 लाख लोग कम से कम एक दवा प्रतिरोधी संक्रमण से पीड़ित थे। 

जर्नल लैंसेट में प्रकाशित रिपोर्ट के अनुसार एएमआर, मलेरिया और एड्स से भी ज्यादा लोगों की जान ले रहा है।  गौरतलब है कि 2019 में वैश्विक स्तर पर एड्स से 6,80,000 लोगों की जान गई थी, वहीं मलेरिया 6,27,000 मौतों की वजह था। यदि संक्रमण से होने वाली मौतों को देखें तो इस लिहाज से एंटीबायोटिक रेसिस्टेन्स का नंबर कोविड-19 और ट्यूबरक्लोसिस (टीबी) के बाद आता है।

लैंसेट में प्रकाशित यह रिपोर्ट अंतरराष्ट्रीय शोधकर्ताओं की एक टीम द्वारा 204 देशों में एंटीबायोटिक रेसिस्टेन्स के कारण होती मौतों के विश्लेषण पर आधारित है। अपनी इस रिपोर्ट में वैज्ञानिकों ने 23 रोगजनकों और 88 पैथोजन और दवाओं के संयोजन से होने वाली मौतों का अनुमान लगाया है।    

कब और कैसे पैदा होती है रोगाणुरोधी प्रतिरोध की समस्या

यहां यह समझना महत्वपूर्ण है कि एंटीबायोटिक रेसिस्टेन्स क्या होता है और यह समस्या कब पैदा होती है। इस सवाल का जबाव हमारी एंटीबायोटिक दवाओं में छुपा है, यह वो दवाएं हैं जो किसी मरीज की जान बचाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकती है। पर जब इन जीवनरक्षक दवाओं का स्वास्थ्य के क्षेत्र में धड़ल्ले से इस्तेमाल किया जाता है, तो वो एक बड़ी समस्या पैदा कर देती है। 

रोगाणुरोधी प्रतिरोध तब पैदा होता है, बीमारी फैलाने वाले सूक्ष्मजीव जैसे बैक्टीरिया, कवक, वायरस, और परजीवी, इन एंटीबायोटिक्स दवाओं के लगातार संपर्क में आने के कारण अपने आप को इन दवाओं के अनुरूप ढाल लेते है, अपने शरीर में किए बदलावों के चलते वो धीरे-धीरे इन दवाओं के प्रति प्रतिरोध विकसित कर लेते है जिसकी वजह से यह दवाएं उन रोगाणुओं पर असर नहीं करती हैं। इसकी वजह से रोगी का संक्रमण जल्द ठीक नहीं होता। 

रिपोर्ट के मुताबिक एएमआर से  होने वाली अधिकांश मौतें सांस से जुड़े संक्रमण जैसे निमोनिया और रक्त में होने वाले संक्रमण का नतीजा थी। गौरतलब है कि सांस सम्बन्धी संक्रमण के कारण होने वाली 15 लाख मौतों का सम्बन्ध एएमआर से था। 

रिपोर्ट की मानें तो कमजोर देश इससे सबसे ज्यादा प्रभावित हैं, लेकिन यह भी सही है कि एंटीबायोटिक्स रेसिस्टेन्स हर किसी के स्वास्थ्य के लिए खतरा है। दुनिया में इसका सबसे ज्यादा बोझ उप-सहारा अफ्रीका और दक्षिण एशिया ढो रहें हैं। रिपोर्ट के मुताबिक पश्चिमी उप सहारा अफ्रीका में सीधे तौर पर प्रति एक लाख पर होने वाली 27.3 मौतों के लिए एंटीबायोटिक रेजिस्टेंस जिम्मेवार था, जबकि प्रति लाख पर 114.8 मौतें एएमआर से जुड़ी थी। 

रिपोर्ट के अनुसार मध्य एवं पूर्वी यूरोप और मध्य एशिया में होने वाली 2.83 लाख मौतें एंटीबायोटिक रेजिस्टेंस से सम्बंधित थी। वहीं उच्च आय वाले देशों में यह आंकड़ा 6.04 लाख था, जबकि दक्षिण अमेरिका और कैरेबियन में 3.38 लाख, उत्तरी अफ्रीका और मध्य पूर्व में होने वाली 2.56 लाख मौतें एएमआर से जुड़ी थी।

 यदि दक्षिण एशिया की बात की जाए तो यह आंकड़ा सबसे ज्यादा 13.9 लाख था, जबकि दक्षिण पूर्व, पूर्वी एशिया और ओशिनिया में 10.2 लाख और उप सहारा अफ्रीका में 10.7 लाख था।   

विश्व बैंक के मुताबिक एंटीबायोटिक रेसिस्टेन्स का इलाज कराने के चलते 2030 तक और 2.4 करोड़ लोग गरीबी के गर्त में जा सकते हैं। साथ ही इसके कारण वैश्विक अर्थव्यवस्था को भी भारी नुकसान उठाना पड़ेगा।

वहीं अनुमान है कि यदि इस पर अभी ध्यान नहीं दिया गया तो 2050 तक इसके कारण हर साल करीब एक करोड़ लोगों की जान जा सकती है। हालांकि देखा जाए तो इससे सम्बंधित मौतों का आंकड़ा अभी ही 49.5 लाख पर पहुंच चुका है। ऐसे में यह समस्या कितनी तेजी से अपने पैर पसार रही है उसका अंदाजा लगाना मुश्किल नहीं है। 

सिर्फ इंसानों ही नहीं जानवरों में भी बढ़ रहा है एएमआर का खतरा

ऐसा नहीं है कि यह समस्या सिर्फ इंसानों में ही बढ़ रही है आज जिस तरह से पशुओं से प्राप्त होने वाले प्रोटीन की मांग दिनों दिन बढ़ती जा रही है, उसकी वजह से उनपर भी इन एंटीबायोटिक दवाओं का अंधाधुंध  प्रयोग किया जा रहा है जिससे उन जानवरों से ज्यादा से ज्यादा मांस और प्रोटीन प्राप्त किया जा सके।

लेकिन इस वजह से इन पशुओं में रोगाणुरोधी प्रतिरोध तेजी से बढ़ रहा है। जिसका खामियाजा इनका सेवन करने वालों को ही भुगतना पड़ेगा। आंकड़े दर्शाते हैं कि 2000 से लेकर 2018 के बीच मवेशियों में पाए जाने वाले जीवाणु तीन गुना अधिक एंटीबायोटिक रेसिस्टेन्स हो गए हैं, जोकि एक बड़ा खतरा है, क्योंकि यह जीवाणु बड़े आसानी से मनुष्यों के शरीर में भी प्रवेश कर सकते हैं।  

यह समस्या कितनी गंभीर है इसका अंदाजा आप इसी से लगा सकते हैं कि दुनिया भर में बेची जाने वाले करीब 73 फीसदी एंटीबायोटिक्स का प्रयोग उन जानवरों पर किया जाता है, जिन्हे भोजन के लिए पाला गया है। वहीं बाकि बची 27 फीसदी एंटीबायोटिक्स को मनुष्यों के लिए दवाई और अन्य जगहों पर प्रयोग किया जाता है। गौरतलब है कि कुछ समय पहले सेंटर फॉर साइंस एंड एनवायरनमेंट (सीएसई) ने भी अपने अध्ययन में चेताया था कि पोल्ट्री इंडस्ट्री में एंटीबायोटिक दवाओं के बड़े पैमाने पर होते अनियमित उपयोग के चलते भारतीयों में भी एंटीबायोटिक रेसिस्टेन्स के मामले बढ़ रहे हैं।  

ऐसे में इससे बचने के लिए विशेषज्ञों ने नई दवाओं पर तत्काल निवेश और मौजूदा दवाओं के अधिक समझदारी से उपयोग करने की सिफारिश की है। इतना ही नहीं मवेशियों में भी इन दवाओं का उपयोग समझदारी से करना चाहिए। सिर्फ फायदे के लिए मवेशियों को दिया जा रहा एंटीबायोटिक्स पूरे समाज के लिए गंभीर खतरा बन सकता है। ऐसे में सरकार को चाहिए की वो इन दवाओं के लिए कड़े नियम बनाए जिससे इनके अनुचित उपयोग को रोका जा सके। 

Subscribe to our daily hindi newsletter