दुनिया भर में 90 फीसदी कैंसर होने का कारण है कार्बनिक पदार्थों का जलाया जाना : अध्ययन

कार्बनिक पदार्थों से होने वाले कैंसर के लिए बेंजो (ए) पायरीन लगभग 11 फीसदी, अन्य रसायनों से 89 फीसदी जिनमें से 17 फीसदी सड़े-गले या नष्ट हुए उत्पादों से होता है।

By Dayanidhi

On: Friday 24 September 2021
 
फोटो : विकिमीडिया कॉमन्स

विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) के मुताबिक कैंसर दुनिया भर में मौत का एक प्रमुख कारण है। 2020 में कैंसर से लगभग 1 करोड़ मौतें हुई थी। वहीं दुनिया भर में फेफड़े के कैंसर के 22.1 लाख मामले हैं। फेफड़े के कैंसर के लिए पॉलीसाइक्लिक एरोमैटिक हाइड्रोकार्बन (पीएएच) नामक केमिकल काफी हद तक जिम्मेदार हैं। पॉलीसाइक्लिक एरोमैटिक हाइड्रोकार्बन (पीएएच) होते क्या हैं?

जब भी कार्बनिक पदार्थ जलाए जाते हैं, जैसे कि जंगल की आग, बिजली संयंत्र, वाहनों से निकलने वाला धुआं या रोज खाना पकाने में उपयोग होने वाले ठोस ईंधन आदि से पॉलीसाइक्लिक एरोमैटिक हाइड्रोकार्बन (पीएएच) निकलती है। इन सभी प्रदूषकों का एक वर्ग ऐसा है जिनसे 90 फीसदी तक फेफड़ों का कैंसर होता है।

वातावरण में हर दिन 100 से अधिक तरह के पॉलीसाइक्लिक एरोमैटिक हाइड्रोकार्बन (पीएएच) यौगिक उत्सर्जित होते हैं। हालांकि, नियम बनाने वालों ने ऐतिहासिक रूप से एक यौगिक, बेंजो (ए) पाइरीन के माप पर भरोसा किया है, ताकि पीएएच के खतरों से लोगों में होने वाले कैंसर के जोखिम का आकलन किया जा सके। अब मैसाचुसेट्स इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी (एमआईटी) के वैज्ञानिकों ने पाया है कि बेंजो (ए) पायरीन की कैंसर के खतरे में बहुत कम भूमिका है।

अध्ययन के आधार पर टीम ने बताया कि दुनिया भर में पीएएच से जुड़े कैंसर के विकास के खतरों में बेंजो (ए) पायरीन एक छोटी सी भूमिका निभाता है जो लगभग 11 फीसदी है। इसके बजाय, कैंसर के 89 फीसदी खतरे अन्य पीएएच यौगिकों से होते हैं, उनमें से कईयों पर कोई नियम लागू नहीं होते हैं।

दिलचस्प बात यह है कि पीएएच से जुड़े कैंसर के जोखिम का लगभग 17 प्रतिशत सड़े-गले या नष्ट होने वाले केमिकल उत्पादों से आता है। ये केमिकल तब बनते हैं जब उत्सर्जित होने वाले पीएएच वातावरण में प्रतिक्रिया करते हैं। इनमें से कई नष्ट होने वाले उत्पाद वास्तव में उत्सर्जित पीएएच की तुलना में अधिक जहरीले हो सकते हैं, जिससे वे बनते हैं।

टीम को उम्मीद है कि परिणाम वैज्ञानिकों और नियामकों को बेंजो (ए) पायरीन से आगे देखने के लिए प्रोत्साहित करेंगे, ताकि लोगों में कैंसर के जोखिम का आकलन करते समय पॉलीसाइक्लिक एरोमैटिक हाइड्रोकार्बन (पीएएच)  के व्यापक वर्ग पर विचार किया जा सके।

एमआईटी के प्रोफेसर और अध्ययनकर्ता नोएल सेलिन कहते हैं कि पीएएच के लिए अधिकांश नियामक विज्ञान और मानक बेंजो (ए) पायरीन स्तरों पर आधारित हैं। लेकिन यह एक बड़ी अंधी गली है जो आपको यह आकलन करने के मामले में एक बहुत ही गलत रास्ते पर ले जा सकती है। इससे कैंसर के जोखिम में सुधार हो रहा है या नहीं और क्या यह एक जगह से दूसरे स्थान पर अपेक्षाकृत सबसे खतरनाक है इस बात का पता नहीं चल पाएगा।

पीएएच के लिए बेंजो (ए) पायरीन ऐतिहासिक रूप से एक बड़ा केमिकल रहा है। यौगिक की स्थिति काफी हद तक प्रारंभिक विष विज्ञान संबंधी अध्ययनों पर आधारित है। लेकिन हाल के शोध से पता चलता है कि रसायन पीएएच समूह का नहीं हो सकता है जिस पर नियम बनाने वालों ने लंबे समय तक भरोसा किया है।

केली और उनके सहयोगियों ने पीएएच संकेतक के रूप में बेंज़ो (ए) पायरीन की उपयुक्तता का मूल्यांकन करने के लिए एक व्यवस्थित दृष्टिकोण अपनाया। टीम ने जीईओएस-केम, एक वैश्विक, त्रि-आयामी रासायनिक घूमने वाले मॉडल का उपयोग करके शुरू किया, जो दुनिया को अलग-अलग ग्रिड बॉक्स में विभाजित है और प्रत्येक बॉक्स के भीतर वातावरण में रसायनों की प्रतिक्रियाओं और सांद्रता का सिम्युलेशन किया जाता है।

उन्होंने इस मॉडल का विस्तार रासायनिक विवरणों को शामिल करने के लिए किया कि कैसे बेंजो (ए) पायरीन सहित विभिन्न पीएएच यौगिक वातावरण में प्रतिक्रिया करेंगे। इसके बाद टीम ने उत्सर्जन सूची और मौसम संबंधी अवलोकनों से हाल के आंकड़ों को जोड़ा और समय के साथ दुनिया भर में विभिन्न पीएएच रसायनों की सांद्रता का सिम्युलेशन करने के लिए मॉडल को आगे बढ़ाया।

केमिकल की खतरनाक प्रतिक्रिया

अपने सिमुलेशन में, शोधकर्ताओं ने बेंजो (ए) पाइरेन समेत 16 अपेक्षाकृत बहुत अच्छे ढंग से अध्ययन किए गए पीएएच रसायनों के साथ शुरू किया। इन रसायनों की सांद्रता का पता लगाया, साथ ही दो पीढ़ियों या रासायनिक परिवर्तनों के चलते उनके उत्पादों में आने वाली गिरावट की एकाग्रता का पता लगाया। कुल मिलाकर, टीम ने 48 पीएएच प्रजातियों का मूल्यांकन किया।

फिर उन्होंने इन सांद्रता की तुलना उन्हीं रसायनों की वास्तविक सांद्रता से की, जिन्हें दुनिया भर के निगरानी स्टेशनों द्वारा रिकॉर्ड किया गया था। यह तुलना यह दिखाने के लिए काफी करीब थी कि मॉडल की एकाग्रता का पूर्वानुमान वास्तविक था।

फिर प्रत्येक मॉडल के ग्रिड बॉक्स के भीतर, शोधकर्ताओं ने प्रत्येक पीएएच रसायन की एकाग्रता को उससे होने वाले कैंसर से संबंधित खतरे से जोड़ा। ऐसा करने के लिए, उन्हें विभिन्न रसायनों से दो बार गणना करने से बचने के लिए पिछले अध्ययनों के आधार पर एक नई विधि विकसित करनी पड़ी। अंत में, उन्होंने प्रत्येक स्थान में एक विशिष्ट पीएएच रसायन की एकाग्रता और विषाक्तता के आधार पर, विश्व स्तर पर कैंसर के मामलों की संख्या का पूर्वानुमान लगाने के लिए जनसंख्या घनत्व और उसका मानचित्रण किया।

कैंसर के मामलों को आबादी से विभाजित करने से उस रसायन से जुड़े कैंसर होने के खतरों के बारे में पता लगाया। इस तरह, टीम ने 48 यौगिकों में से प्रत्येक के लिए कैंसर के जोखिम की गणना की, फिर कुल जोखिम में प्रत्येक रसायन की भूमिका को निर्धारित किया।

इस विश्लेषण से पता चला कि दुनिया भर में पीएएच से संबंधित कैंसर के विकास के समग्र खतरों के लिए बेंजो (ए) पायरीन लगभग 11 फीसदी के लिए जिम्मेवार है। 89 फीसदी कैंसर का खतरा अन्य रसायनों से आया है इनमें से इस खतरे का 17 फीसदी सड़े-गले या नष्ट हुए उत्पादों से उत्पन्न हुआ था।

सेलिन कहते हैं कि हम ऐसे स्थान भी देखते हैं जहां कि बेंजो (ए) पायरीन की सांद्रता कम होती है, लेकिन इन सड़े-गले या नष्ट हुए उत्पादों के कारण खतरा अधिक होता है। ये उत्पाद अधिक जहरीले हो सकते हैं, इसलिए कम मात्रा में होने का मतलब यह नहीं है कि आप उन्हें अनदेखा कर दें।

जब शोधकर्ताओं ने दुनिया भर में गणना किए गए पीएएच से जुड़े कैंसर के खतरों की तुलना की, तो उन्हें इस आधार पर महत्वपूर्ण अंतर मिला कि क्या खतरे की गणना पूरी तरह से बेंजो (ए) पायरीन की सांद्रता पर या पीएएच यौगिकों के क्षेत्र के व्यापक मिश्रण पर आधारित थे। यह अध्ययन जियो हेल्थ पत्रिका में प्रकाशित हुआ है।

केली कहते हैं यदि आप पुरानी पद्धति का उपयोग करते हैं, तो आप पाएंगे कि हांगकांग बनाम दक्षिण भारत में आजीवन कैंसर का जोखिम 3.5 गुना अधिक है, लेकिन पीएएच मिश्रण में अंतर को ध्यान में रखते हुए, आपको 12 गुना का अंतर मिलता है। तो, दो स्थानों के बीच सापेक्ष कैंसर के जोखिम में एक बड़ा अंतर है और हमें लगता है कि यौगिकों के समूह का विस्तार करना महत्वपूर्ण है, जिसके बारे में नियम  बनाने वाले या नियामक केवल एक रसायन के बारे में सोच रहे हैं।

वायु गुणवत्ता विशेषज्ञ और एलिजाबेथ गैलार्नौ कहते हैं, टीम का यह अध्ययन इन सभी जगहों में फैले प्रदूषकों को बेहतर ढंग से समझने में महत्वपूर्ण योगदान देता है।

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