उप सहारा अफ्रीका में फर्जी और घटिया दवाओं का जाल, हर साल पांच लाख लोगों की ले रहा जान

पहले ही आपदाओं, भुखमरी और कुपोषण का दंश झेल रहे अफ्रीका में अवसरवादी लोगों का लालच हर साल लाखों लोगों की जान ले रहा है।

By Lalit Maurya

On: Thursday 02 February 2023
 

पहले ही आपदाओं, भुखमरी और कुपोषण का दंश झेल रहे अफ्रीका में अवसरवादी लोगों का लालच हर साल लाखों लोगों की जान ले रहा है।

इस बारे में संयुक्त राष्ट्र ड्रग्स और अपराध कार्यालय (यूएनओडीसी) द्वारा जारी नई रिपोर्ट “ट्रैफिकिंग इन मेडिकल प्रोडक्टस इन द सहेल” से पता चला है कि तस्करी के जरिए लाए गई फर्जी और घटिया दवाओं के चलते उप सहारा अफ्रीका में हर साल तकरीबन पांच लाख लोगों की जान जा रही है।

रिपोर्ट के मुताबिक स्वास्थ्य सुविधाओं की सुलभता और दवाओं के आभाव का फायदा अवसरवादी तत्व उठा रहे हैं। देखा जाए तो चिकित्सा उत्पादों की मांग और पूर्ति में उपजे इस असन्तुलन के जानलेवा नतीजे सामने आए हैं। ऐसे में इसे रोकने के लिए तत्काल कड़े कदम उठाने की जरूरत है।

पता चला है कि नकली और घटिया एंटी-मलेरिया दवाओं के चलते इस क्षेत्र में हर साल 2.67 लाख लोगों की मौत हो रही है। इसी तरह बच्चों में गंभीर न्यूमोनिया के ईलाज में उपयोग की जा रही नकली और घटिया एंटीबायोटिक दवाएं हर साल 169,271 लोगों की जान ले रही हैं।

संयुक्त राष्ट्र विशेषज्ञों का कहना है कि स्वास्थ्य से जुड़े इन उत्पादों की तस्करी से प्रभावित देशों पर प्रत्यक्ष रूप से आर्थिक प्रभाव भी पड़ रहा है। विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्लूएचओ) का अनुमान है कि सब-सहारा अफ्रीका में मलेरिया के ईलाज के लिए नकली और घटिया उत्पादों का इस्तेमाल कर रहे लोगों की स्वास्थ्य देखभाल पर हर वर्ष 366 करोड़ रुपए (4.47 करोड़ डॉलर) से ज्यादा का खर्च हो रहा है।

605 टन से ज्यादा फर्जी उत्पाद किए गए जब्त

इस समस्या से निपटने के लिए अन्तरराष्ट्रीय स्तर पर अभियान शुरू किए गए हैं। नतीजन पश्चिमी अफ्रीका में जनवरी 2017 से दिसंबर 2021 के बीच 605 टन से अधिक चिकित्सा से जुड़े उत्पाद जब्त किए गए हैं। आम तौर पर इन उत्पादों की प्रमुख अन्तरराष्ट्रीय व्यापार मार्गों विशेष तौर पर समुद्री मार्गों के जरिए तस्करी की जाती है।

पता चला है कि गिनी की खाड़ी, कोन्टुनू (बेनिन), कोनाक्री (गिनी), टेमा (घाना), लोमे (टोगो) और अपापा (नाइजीरिया) में बन्दरगाह सहेल देशों जिनमें बुर्किना फासो, चाड, माली, मॉरीटेनिया और नाइजर शामिल हैं, चिकित्सा उत्पादों के लिए प्रमुख प्रवेश द्वार हैं।

देखा जाए तो ये उत्पाद अक्सर बड़े निर्यातक देशों से सहेल क्षेत्र में आते हैं। जिनमें चीन, बेल्जियम, फ्रांस और भारत शामिल हैं। वहीं अन्य दूसरे उत्पादों को आसपास के देशों में तैयार किया जाता है। वहीं पश्चिमी अफ्रीका में पहुंचने के बाद, तस्कर इन चिकित्सा उत्पादों को बस, कारों और ट्रकों के जरिए सहेल क्षेत्र तक पहुंचाते हैं। इसके लिए वो तस्करी के लिए मौजूदा मार्गों को चुनते हैं, जिससे सीमा चौकियों पर जांच से बचा जा सके।

जानकारी मिली है कि दवाओं और स्वास्थ्य उत्पादों की इस तस्करी में आतंकवादी भी संलग्न हैं। हालांकि उनकी मिलीभगत सीमित है। यह आतंकवादी और गैर सरकारी सशस्त्र गुट अपने कब्जे वाले क्षेत्रों में टैक्स लेते हैं या फिर स्वयं दवाओं का गलत इस्तेमाल करते हैं।

गौरतलब है कि आइवरी कोस्ट और नाइजीरिया में अल-कायदा और बोको हराम जैसे आतंकवादी संगठनों द्वारा दवाओं के चिकित्सा के अलावा अन्य उद्देश्यों में इस्तेमाल को लेकर खबरे 2016 से सामने आती रही हैं।

ऐसे में रिपोर्ट में इस तस्करी की वजह से सार्वजनिक स्वास्थ्य पर मंडराते खतरे से निपटने के लिए राष्ट्रीय व अन्तरराष्ट्रीय स्तर पर मजबूत और समन्वित कार्रवाई करने पर जोर दिया गया है। इससे वैध तरीके से स्वास्थ्य उत्पादों की सुलभता बेहतर करी जा सकेगी और इन आपूर्ति श्रृंखलाओं में आने वाले व्यवधानों से निपटना संभव हो सकेगा।

इसके साथ ही अफ्रीकन यूनियन ने महाद्वीप में दवाओं के सम्बन्ध में नियमों में एकरूपता लाने की दिशा में प्रयास किए हैं। रिपोर्ट के मुताबिक चिकित्सा उत्पादों की तस्करी पर रोक लगाने के लिए मौजूदा कानूनों में भी आवश्यक बदलाव किए जाने जरूरी हैं।

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