कोविड-19 महामारी के दौरान लोगों में हाई ब्लड प्रेशर की बीमारी बढ़ी

आइसोलेशन अवधि के दौरान अस्पताल के आपातकालीन विभाग में भर्ती 23.8 फीसदी रोगियों में हाई ब्लड प्रेशर की शिकायत पाई गई

By Dayanidhi

On: Friday 20 November 2020
 

सामाजिक रूप से अलग रहना (आइसोलेशन) और हाई ब्लड प्रेशर यानी उच्च रक्तचाप के बीच संबंध होने के कई कारण हैं। उदाहरण के लिए, महामारी के कारण तनाव में वृद्धि, सीमित व्यक्तिगत संपर्क और वित्तीय या पारिवारिक कठिनाइयों की शुरुआत या व्यवहार में परिवर्तन। भोजन और शराब के अधिक सेवन, गतिहीन जीवन शैली और वजन के बढ़ने ने भी ब्लड प्रेशर बढ़ाने में अहम भूमिका निभाई है।

इसके अलावा यात्रा में  प्रतिबंध और पुलिस नियंत्रण और घर छोड़ने के बाद कोरोनावायरस से संक्रमित होने का डर, मरीजों को अस्पताल ले जाने के दौरान अधिक मनोवैज्ञानिक तनाव महसूस हो सकता है। इसके अलावा हाई ब्लड प्रेशर का इलाज किए जा रहे रोगियों का दवा न लेना आदि।

अध्ययनों से पता चला है कि हाई ब्लड प्रेशर वाले लोगों में कोविड-19 संक्रमण और जटिलताओं का अधिक खतरा होता है। भारत में सबसे अधिक मौतें दिल की बीमारी के कारण होती हैं। कोरोना काल में मधुमेह और दिल की बीमारी के कारण शरीर पर वायरस के अधिक गंभीर प्रभाव पड़ सकते हैं।

चीन और अमेरिका दोनों के शुरुआती आंकड़ों के विश्लेषण से पता चलता है कि हाई ब्लड से 30 फीसदी से 50 फीसदी रोगी प्रभावित होते है। अन्य स्वास्थ्य स्थितियों में कैंसर, मधुमेह या फेफड़ों की बीमारी शामिल थी। एक रिपोर्ट में कहा गया है कि इटली में कोरोना से मरने वाले 99 फीसदी से अधिक लोग उपरोक्त एक या उससे अधिक बीमारियों से ग्रस्त थे, उनमें से 76 फीसदी में हाई ब्लड प्रेशर था।

कोविड-19 महामारी के कारण लॉकडाउन के दौरान अस्पताल के आपातकालीन विभाग में भर्ती रोगियों में ब्लड प्रेशर में वृद्धि देखी गई। ब्यूनस आयर्स के फावलोरो फाउंडेशन यूनिवर्सिटी अस्पताल के अध्ययनकर्ता डॉ. माटीस फोस्को ने कहा सामाजिक रूप से अलग रहने की अवधि के दौरान आपातकालीन विभाग में भर्ती रोगियों में हाई ब्लड प्रेशर होने की आशंका 37 फीसदी बढ़ गई।

कोविड-19 के कारण जरुरी आइसोलेशन के लिए 20 मार्च को अर्जेंटीना के एक भाग में लॉकडाउन लगाया गया था। केवल आवश्यक सेवाओं को छोड़कर लोगों को घर पर रहने के लिए कहा गया था। स्कूलों और विश्वविद्यालयों को बंद कर दिया गया, और सार्वजनिक कार्यक्रमों पर रोक लगा दी गई।

डॉ. फोस्को ने कहा सामाजिक रूप से अलग रहने की अवधि के दौरान, हमने देखा कि आपातकाल में आने वाले अधिक रोगियों में हाई ब्लड प्रेशर था। उन्होंने आगे कहा हमने इसकी पुष्टि करने के लिए यह अध्ययन किया।

यह अध्ययन फावलोरो फाउंडेशन यूनिवर्सिटी अस्पताल के आपातकालीन विभाग के द्वारा आयोजित किया गया था। तीन महीने के सामाजिक दूरी (20 मार्च से 25 जून 2020) के दौरान 21 और उससे अधिक उम्र के रोगियों में हाई ब्लड प्रेशर की तुलना पिछले दो अवधियों से की गई थी। 2019 में वही तीन महीने (21 मार्च से 27 जून 2019) और लॉकडाउन की अवधि से तुरंत पहले के तीन महीने (13 दिसंबर 2019 से 19 मार्च 2020) के दौरान की गई।

आपातकालीन विभाग में भर्ती होने पर ब्लड प्रेशर की माप करना आवश्यक होता है और 21 मार्च 2019 से 25 जून 2020 के बीच भर्ती किए गए लगभग प्रत्येक रोगी (98.2 फीसदी) को अध्ययन में शामिल किया गया था। भर्ती होने के सबसे सामान्य कारणों में सीने में दर्द, सांस की तकलीफ, चक्कर आना, पेट में दर्द, बुखार, खांसी और हाई ब्लड प्रेशर थे।

अध्ययन में 12,241 मरीज शामिल थे, जिनकी औसत आयु 57 वर्ष थी और इनमें 45.6 फीसदी महिलाएं शामिल थीं। तीन महीने की आइसोलेशन अवधि के दौरान 1,643 मरीजों को आपातकालीन विभाग में भर्ती कराया गया था। आइसोलेशन अवधि के दौरान अस्पताल के आपातकालीन विभाग में भर्ती 391 (23.8 फीसदी) रोगियों में हाई ब्लड प्रेशर था। जोकि 2019 में इसी अवधि की तुलना में यह अनुपात काफी अधिक था, जबकि तब यह 17.5 फीसदी था, सामाजिक आइसोलेशन से पहले के तीन महीनों की तुलना में यह 15.4 फीसदी था।

उन्होंने निष्कर्ष निकाला कि रक्तचाप नियंत्रण से दिल के दौरे और स्ट्रोक और कोविड-19 जैसी गंभीर बीमारी को रोकने में मदद मिलती है। इसलिए स्वस्थ जीवन शैली की आदतों को बनाए रखना आवश्यक है, यहां तक कि सामाजिक आइसोलेशन और लॉकडाउन स्थितियों के तहत भी इन्हें अपनाया जाना चाहिए। महामारी से संबंधित कई नियमों में अब ढील दी जा चुकी है। इसके बाद जांच की जा रही है कि क्या अस्पताल के आपातकालीन विभाग में भर्ती मरीजों के रक्तचाप में बदलाव होता है।

अध्ययनकर्ता ने कहा कि कई अध्ययनों में मनोवैज्ञानिक समस्या के बारे में बताया गया है, जिसे हम परामर्श के दौरान हर दिन अनुभव करते हैं और जिसमें भय, निराशा, चिड़चिड़ापन और ध्यान केंद्रित करने में कठिनाई के रूप में व्यक्त किया जाता है। यह पारस्परिक संबंधों और शारीरिक स्वास्थ्य को प्रभावित करता है।

प्रोफेसर जोस लुइस ज़मोरानो ने कहा यह अध्ययन बहुत ही रोचक है यह इस बात पर प्रकाश डालता है कि हम हृदय रोग विशेषज्ञों को महामारी के दोरान दिल के रोगियों पर निगरानी रखनी चाहिए। यदि हम इसका समय पर इलाज नहीं करते हैं और सावधानी नहीं बरतते है तो महामारी के दौरान रोगियों और उनके स्वास्थ्य पर पड़ने वाले प्रतिकूल परिणामों में वृद्धि होगी।

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