हादसे और हिंसा हर मिनट ले रहे आठ से ज्यादा लोगों की जान, रोकथाम के लिए त्वरंत कार्रवाई की दरकार

हिंसा और हादसों में लगने वाली चोटों की वजह से हर साल 44 लाख लोगों की मौत होती है। देखा जाए तो दुनिया में होने वाली हर बारहवीं मौत के लिए यह चोटें ही जिम्मेवार हैं

By Lalit Maurya

On: Thursday 01 December 2022
 

विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा जारी नई रिपोर्ट “प्रिवेंशन इंजरीस एंड वॉयलेंस: एन ओवरव्यू” से पता चला है कि हादसे और हिंसा की घटनाओं में हर दिन 12,055 लोगों की जान जा रही है। रिपोर्ट के मुताबिक हिंसा और अनजाने में लगने वाली इन चोटों की वजह से हर साल 44 लाख लोगों की मौत होती है। देखा जाए तो दुनिया में होने वाली हर बारहवीं मौत के लिए यह चोटें ही जिम्मेवार हैं।

आंकड़ों से पता चला है कि 2019 में 8 फीसदी मौतों के लिए यह चोटें और हिंसा ही जिम्मेवार थी। इस साल अनजाने में हुई चोटों ने 31.6 लाख लोगों की जान ली थी जबकि हिंसा के दौरान लगी चोटों ने 12.5 लाख लोगों की जान ली थी।

इतना ही नहीं पता चला है कि इनमें हर तीन में से एक व्यक्ति की मृत्यु सड़क दुर्घटना की वजह से होती हैं। वहीं छह में से एक की मौत आत्महत्या के कारण, नौ में से एक की मृत्यु हत्या के चलते और 61 में से एक व्यक्ति की मौत युद्ध और संघर्ष के कारण होती हैं।

इनके अलावा हर साल लाखों लोग ऐसी चोटों का शिकार बन जाते हैं, जिनसे उनकी मृत्यु तो नहीं होती लेकिन इसके कारण उन्हें अस्पताल तक जाना पड़ता है जबकि कुछ मामलों में तो इमरजेंसी में भर्ती करने तक की जरूरत पड़ जाती है। इन चोटों से घायल होने वाले लोग स्थाई रूप से विकलांग हो सकते है। साथ ही उन्हें लम्बे समय तक स्वास्थ्य देखभाल की जरूरत पड़ सकती है। वहीं ऐसे रोगियों को मानसिक स्वास्थ्य सम्बन्धी देखभाल और पुनर्वास की जरूरत भी पड़ सकती है।

चोट लगने और हिंसा की यह घटनाएं केवल शारीरिक नुकसान ही नहीं पहुंचाती बल्कि इनके चलते अर्थव्यवस्था पर भी व्यापक प्रभाव पड़ता है। पता चला है कि इन हादसों के चलते हर साल दुनिया भर में देशों को करोड़ों डॉलर अपनी स्वास्थ्य व्यवस्था पर खर्च करने पड़ रहे हैं। वहीं इसका खामियाजा चोट और हिंसा के शिकार लोगों को उनकी घटती कार्यक्षमता, उत्पादकता और गिरती आय के रूप में भी चुकाना पड़ता है। 

इस बारे में विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्लूएचओ) के प्रमुख डॉक्टर टैड्रॉस ऐडहेनॉम घेबरेयेसस ने पत्रकारों को बताया कि, "गरीबी में गुजर कर रहे लोगों में चोट लगने की कहीं ज्यादा सम्भावना होती है।" ऐसे में उनके अनुसार इन स्वास्थ्य असमानताओं को दूर करने और चोटों व हिंसा की रोकथाम में स्वास्थ्य क्षेत्र की एक प्रमुख भूमिका है।

देखा जाए तो यह क्षेत्र इनसे जुड़े आंकड़े एकत्र करता है, नीतियां बनाता है। रोकथाम व देखभाल संबंधी सेवाएं प्रदान करने के साथ ही क्षमता निर्माण और जिन लोगों तक उनकी पहुंच नहीं हैं, उनपर ज्यादा ध्यान देने की वकालत करता है।

युवाओं के लिए सबसे बड़ी हत्यारिन है सड़क दुर्घटनाएं

इतना ही नहीं रिपोर्ट से पता चला है कि पांच से 29 साल के लोगों की मृत्यु के पांच प्रमुख कारणों में सड़क दुर्घटना में घायल होना, हत्या और आत्महत्या शामिल हैं। वहीं चोट लगना या घायलावस्था संबंधी अन्य कारणों में पानी में डूबना, गिरना, जलना और जहर खाने से होने वाली मौतें शामिल हैं।

यदि 15 से 29 वर्ष के युवाओं की बात करें तो उनकी मौत की सबसे बड़ी वजह सड़क दुर्घटनाओं में लगने वाली चोटें हैं। जिनकी वजह से 271,990 युवाओं की जान हर साल जा रही है।

रिपोर्ट में यह भी सामने आया है कि इन दुर्घटनाओं और हादसों को बेहत कम लागत की मदद से सीमित किया जा सकता है। उदाहरण के लिए, स्पेन के शहरों में वाहनों की गति सीमा 30 किलोमीटर प्रति घंटा करने से, सड़क हादसों में कमी आई है। इसी तरह वियतनाम में भी लोगों को तैराकी प्रशिक्षण देने से पानी में डूबने से होने वाली मौतों के आंकड़ों में कमी दर्ज की गई है। इसी तरह फिलीपींस में भी नाबालिगों को यौन हिंसा से बचाने के लिए, यौन सहमति की उम्र 12 वर्ष से बढ़ाकर 16 वर्ष करने के बाद सकारात्मक बदलाव सामने आए हैं।

देखा जाए तो ज्यादातर देशों में जीवन रक्षा के लिए किए जा रहे उपाय पर्याप्त नहीं हैं। इसके लिए राजनैतिक इच्छाशक्ति और निवेश की जरूरत है। इस बारे में डब्लूएचओ के निदेशक एटिएन क्रुग का कहना है कि, "हर साल लाखों परिवारों को इस अनावश्यक पीड़ा से बचाने के लिए त्वरंत कार्रवाई की आवश्यकता है।" उन्होंने बताया कि हम जानते हैं कि क्या कुछ करने की जरूरत है। ऐसे में लोगों के जीवन को बचाने के लिए ये प्रभावी उपाय देशों और समुदायों को बड़े पैमाने पर लागू किए जाने की आवश्यकता है।

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