मलेरिया से हर 51 सेकंड में जा रही एक की जान, 2021 में 25 करोड़ लोग पड़े बीमार

रिपोर्ट के अनुसार कोरोना महामारी के कारण मलेरिया नियंत्रण के किए जा रहे प्रयासों में आई बाधा के चलते दुनिया भर में 1.3 करोड़ अतिरिक्त मामले सामने आए थे, जबकि 63,000 लोगों बचाया नहीं जा सका था

By Lalit Maurya

On: Friday 09 December 2022
 

दुनिया भर में मलेरिया के चलते हर 51 सेकंड में एक व्यक्ति की जान जा रही है, जबकि 2021 में औसतन एक दिन में 676,712 मामले सामने आए थे। यह जानकारी विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्लूएचओ) द्वारा आज जारी ‘वर्ल्ड मलेरिया रिपोर्ट 2022’ में सामने आई है। रिपोर्ट के मुताबिक 2021 में मलेरिया के चलते दुनियाभर में 619,000 लोगों की मौत हुई थी, जबकि 24.7 करोड़ मामले सामने आए थे।

गौरतलब है कि 2021 में सामने आए मलेरिया के 95 फीसदी यानी करीब 23.4 करोड़ मामले अकेले अफ्रीका महाद्वीप में दर्ज किए गए थे। इसी तरह मलेरिया से हुई करीब 96 फीसदी मौतें भी अफ्रीका में ही दर्ज की गई थी।

वहीं 2020 में मलेरिया के करीब 24.5 करोड़ मामले आए सामने आए थे। मतलब की पिछले वर्ष की तुलना में इस साल 20 लाख ज्यादा मामले सामने आए थे। जबकि 2019 में मलेरिया संक्रमितों की संख्या 23.2 करोड़ रिकॉर्ड की गई थी।

इतना ही नहीं रिपोर्ट में प्रकाशित आंकड़ों से पता चला है कि दुनिया के केवल 29 देश मलेरिया का 96 फीसदी बोझ ढो रहे हैं। इनमें वो चार अफ्रीका देश नाइजीरिया (27 फीसदी), डेमोक्रेटिक रिपब्लिक ऑफ कांगो (12 फीसदी), युगांडा (5 फीसदी) और मोजाम्बिक (4 फीसदी) भी शामिल हैं जिनमें दुनिया के 50 फीसदी से ज्यादा मामले सामने आए हैं।

डब्ल्यूएचओ द्वारा जारी इस रिपोर्ट में मलेरिया की रोकथाम पर कोविड-19 के पड़ते प्रभावों का भी उल्लेख किया है, जिसके अनुसार महामारी ने मलेरिया को नियंत्रित करने के लिए किए जा रहे प्रयासों को सीमित कर दिया था। नतीजन मलेरिया की रोकथाम, निदान और उपचार में आए व्यवधान के चलते पिछले दो वर्षों में वैश्विक स्तर पर 63,000 अतिरिक्त मौतें हुईं थी।

वहीं कोविड-19 महामारी दुनिया भर में मलेरिया के 1.3 करोड़ अतिरिक्त मामलों के लिए भी जिम्मेवार थी। इस बारे में विश्व स्वास्थ्य संगठन में मलेरिया विभाग के एक वरिष्ठ अधिकारी अब्दिसलन नूर का कहना है कि, ‘महामारी के पहले भी हम सही ढर्रे पर नहीं थे, लेकिन महामारी ने अब हालात और बदतर बना दिए हैं।

भारत में सामने आए हैं दक्षिण पूर्व एशिया के 79 फीसदी मामले

यदि दक्षिण पूर्व एशिया क्षेत्र की बात करें तो इस क्षेत्र के 79 फीसदी मामले अकेले भारत में सामने आए थे, जबकि इस क्षेत्र में मलेरिया से हुई 83 फीसदी मौतें भारत में दर्ज की गई थी। गौरतलब है कि इस क्षेत्र में मलेरिया से होने वाली मौतों में भी उल्लेखनीय वृद्धि दर्ज की गई है। वहीं 2016 में श्रीलंका को मलेरिया मुक्त घोषित किया गया था। वहां अभी भी मलेरिया के मामले सामने नहीं आए हैं।

2000 से 2019 के बीच इस क्षेत्र में मलेरिया से होने वाली मौतों में करीब 79 फीसदी की गिरावट आई है। इस क्षेत्र में जहां मलेरिया के चलते 35,000 लोगों की मौत हुई थी वहीं 2019 में यह आंकड़ा घटकर 9,000 पर पहुंच गया था। वहीं पिछले तीन वर्षों से इस आंकड़े में कोई बदलाव नहीं हुआ है।

देखा जाए तो वैश्विक महामारी और मानवीय संकटों के कारण उपजे व्यवधान से स्वास्थ्य प्रणालियों के सामने खड़ी चुनौतियां गंभीर हो गई हैं। इसके अलावा वित्त में आई रूकावट, बढ़ते जैविक खतरों और बीमारी से बचाव के उपायों में आई गिरावट ने संकट को और बढ़ा दिया है।

हालांकि 2021 में मलेरिया से बचाव के लिए साढ़े तीन अरब डॉलर का फण्ड दिया गया था, जोकि पिछले दो वर्षों की तुलना में वृद्धि को दर्शाता है। हालांकि इसके बावजूद यह 730 करोड़ डॉलर के लक्ष्य से काफी पीछे है। महामारी के दौरान मलेरिया पर नियंत्रण के मच्छरदानी जैसे प्रभावी उपायों में भी कमी देखी गई है, जिससे मलेरिया के विरुद्ध प्रयासों में हो रही प्रगति पर असर पड़ा है।

इतना ही नहीं जहां एक तरफ मच्छरदानी लोगों की आसान पहुंच से बाहर है। वहीं साथ ही कीटनाशकों के बढ़ते उपयोग से प्रतिरोध बढ़ रहा है। इसी तरह मलेरिया की दवाओं के प्रति प्रतिरोध भी बढ़ रहा है और कीटनाशक-प्रतिरोधी मच्छर फैल रहे हैं।

विश्व स्वास्थ्य संगठन के महानिदेशक टैड्रॉस एडहेनॉम घेबरेयेसस का कहना है कि “हमारे सामने अनेक चुनौतियां हैं, लेकिन आशावान होने के भी कई कारण मौजूद हैं।” उनका कहना है कि इसकी रोकथाम और बचाव के उपायों को सशक्त करके, जोखिम को समझ कर उनमें कमी की जा सकती है। इतना है नहीं बेहतर तैयारी और शोध की मदद से मलेरिया मुक्त भविष्य का सपना साकार किया जा सकता है। रिपोर्ट के मुताबिक यह वैश्विक प्रयासों का ही नतीजा है कि वैश्विक स्तर पर 2000 से 2021 के बीच मलेरिया के संभावित 200 करोड़ मामलों और 1.17 करोड़ मौतों को टाला जा सका है।

इससे बचाव के लिए डब्लूएचओ और संयुक्त राष्ट्र पर्यावास एजेंसी ने शहरी इलाकों में मलेरिया से निपटने के लिए एक वैश्विक फ़्रेमवर्क तैयार किया है, जिसमें मलेरिया के विरुद्ध लड़ाई में अन्य हितधारकों के लिए दिशा-निर्देश प्रस्तुत किये हैं। इस बीच, शोध एवं विकास पर भी ध्यान दिया जाएगा, ताकि मलेरिया पर नियंत्रण के लिए बेहतर उपाय विकसित किया जा सके, और वैश्विक लक्ष्यों की दिशा में तेजी से आगे बढ़ा जा सके।

इन उपायों में लम्बे समय तक चलने वाली मच्छरदानियां, नए कीटनाशकों का इस्तेमाल, मच्छरों को दूर रखें वाले उपकारों के साथ उनमें जेनेटिक बदलाव करना शामिल है। इसके साथ ही रोग के निदान के लिए नए परीक्षणों और बेहतर दवाओं को विकसित किया जाएगा, जिससे मलेरिया की दवाओं के प्रति बढ़ते प्रतिरोध को रोका जा सके।

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