42 महीने पहले चल जाएगा अल्जाइमर का पता, वैज्ञानिकों ने विकसित किया नया ब्लड टेस्ट

दुनिया भर में पांच करोड़ लोग इस बीमारी से ग्रस्त हैं, जिनके मस्तिष्क की कोशिकाओं में शिथिलता आ चुकी है और उन्हें नुकसान पहुंचा है

By Lalit Maurya

On: Tuesday 31 January 2023
 
अल्जाइमर से ग्रस्त महिला; फोटो: पिक्साबे

किंग्स कॉलेज लंदन के मनोचिकित्सा, मनोविज्ञान और तंत्रिका विज्ञान संस्थान के वैज्ञानिकों ने एक ऐसे ब्लड टेस्ट की खोज की है, जिसकी मदद से क्लीनिकल डायग्नोसिस से करीब साढ़े तीन साल पहले अल्जाइमर की बीमारी का पता लगाया जा सकता है। इससे जुड़ा अध्ययन जर्नल ‘ब्रेन’ में प्रकाशित हुआ है।

गौरतलब है कि किसी व्यक्ति को अल्जाइमर है या नहीं इसका पता लगाने के लिए वर्तमान में डॉक्टर कॉग्निटिव टेस्ट पर भरोसा करते हैं। साथ ही इस बीमारी के कारण मस्तिष्क में होने वाले बदलावों का पता लगाने के लिए डॉक्टर ब्रेन इमेजिंग और लंबर पंचर जैसी चिकित्सा प्रक्रियाओं का उपयोग करते हैं। हालांकि देखा जाए तो यह विधियां बहुत महंगी हैं, जो आमतौर पर दुनिया के कई देशों में उपलब्ध नहीं हैं।

अल्जाइमर कितना खतरनाक है इसका अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि दुनिया भर में पांच करोड़ लोग इस रोग से ग्रस्त हैं, जिनके मस्तिष्क की कोशिकाओं में शिथिलता आ चुकी है और उन्हें नुकसान पहुंचा है। इसके लक्षणों में समय के साथ याददाश्त में कमी आना, सोचने-समझने, तर्क करने और निर्णय लेने की क्षमता पर असर पड़ना शामिल है।

लक्षणों के प्रकट होने से काफी पहले ही मस्तिष्क को प्रभावित कर चुका होता है यह रोग

देखा जाए तो इस बीमारी से ग्रस्त रोगी उस समय जांच के लिए जाते हैं जब उन्हें याददाश्त संबंधी तकलीफें होने लगती हैं। लेकिन देखा जाए तो यह रोग, लक्षणों के प्रकट होने से कम से कम 10 से 20 साल पहले ही मस्तिष्क को प्रभावित कर चुका होता है।

रिसर्च के मुताबिक मानव रक्त में मौजूद घटक मस्तिष्क में नई कोशिकाओं के गठन को नियंत्रित कर सकते हैं। इस प्रक्रिया को न्यूरोजेनेसिस कहा जाता है। देखा जाए तो न्यूरोजेनेसिस की यह प्रक्रिया मस्तिष्क के एक महत्वपूर्ण हिस्से में होती है, जिसे हिप्पोकैम्पस कहते हैं। यह मस्तिष्क का वह हिस्सा है, जो याद रखने और सीखने में मदद करता है।

शोधकर्ताओं के मुताबिक इस बीमारी के शुरूआती चरणों के दौरान अल्जाइमर हिप्पोकैम्पस में नई मस्तिष्क कोशिकाओं के निर्माण को प्रभावित करता है। हालांकि पिछले अध्ययन ऑटोप्सी के माध्यम से केवल इसके बाद के चरणों में न्यूरोजेनेसिस का अध्ययन करने में सक्षम रहे हैं।

अपने इस अध्ययन में प्रारंभिक परिवर्तनों को समझने के लिए वैज्ञानिकों ने ऐसे 56 व्यक्तियों से कई वर्षों तक रक्त के नमूने लिए थे, जिनकी संज्ञानात्मक क्षमता में हल्की गिरावट देखी गई थी। हालांकि देखा जाए तो संज्ञानात्मक क्षमता में गिरावट का अनुभव करने वाले सभी लोगों अल्जाइमर रोग विकसित नहीं होता है। इस अध्ययन में शामिल 56 में से 36 लोगों में अल्जाइमर के लक्षण देखे गए थे।

रक्त, मस्तिष्क की कोशिकाओं को कैसे प्रभावित कर रहा था, इसके अध्ययन से शोधकर्ताओं को कई अहम बातें पता चली हैं। रिसर्च के मुताबिक उन लोगों से जिनसे रक्त के नमूने लिए गए थे और जिनमें आगे चलकर अल्जाइमर रोग के लक्षण सामने आए थे। उनकी कोशिकाओं में होने वाली वृद्धि और विभाजन में कमी दर्ज की गई थी।

इतना ही नहीं उन लोगों में एपोप्टोटिक सेल डेथ में वृद्धि दर्ज की गई थी। गौरतलब है कि एपोप्टोटिक सेल डेथ एक ऐसी प्रक्रिया है जिसके द्वारा कोशिकाओं को मरने के लिए प्रोग्राम किया जाता है। शोधकर्ताओं ने नोट किया कि इन नमूनों में अपरिपक्व मस्तिष्क कोशिकाओं से हिप्पोकैम्पस न्यूरॉन्स में होते रूपांतरण में भी वृद्धि आई थी। आपकी जानकारी के लिए बता दें कि एपोप्टोसिस के कारण एक औसत वयस्क व्यक्ति हर दिन 5,000 से 7,000 करोड़ कोशिकाओं को खो देता है।

देखा जाए तो बढे हुए न्यूरोजेनेसिस के लिए कौन से आधारभूत कारण जिम्मेवार है, वो स्पष्ट नहीं है। लेकिन शोधकर्ताओं का मानना है कि यह उन लोगों के लिए जिनमें अल्जाइमर रोग विकसित हुआ था, उनमें न्यूरोडीजेनेरेशन यानी दिमागी कोशिकाओं को होने वाले नुकसान के लिए एक प्रारंभिक क्षतिपूर्ति तंत्र हो सकता है।

शोधकर्ताओं को रक्त के नमूनों से पता चला कि जब तक अध्ययन में शामिल लोगों में अल्जाइमर रोग का पता चला उससे साढ़े तीन साल पहले न्यूरोजेनेसिस में परिवर्तन हुआ था। साथ ही शोधकर्ताओं का मानना है कि इस रिसर्च के नतीजे अल्जाइमर रोग के शुरुआती चरणों के दौरान मस्तिष्क में होने वाले बदलावों को समझने में मददगार हो सकते हैं। 

Subscribe to our daily hindi newsletter