सोना खनन में लगे 40 लाख से ज्यादा महिलाएं और बच्चे खतरे की कगार पर: अध्ययन

खतरनाक तरीके से सोने के खनन की प्रक्रिया में लोगों द्वारा लगभग 40 प्रतिशत पारे का उत्सर्जन किया जाता है, जो इसे पारे के प्रदूषण का सबसे बड़ा स्रोत बनाती है

By Dayanidhi

On: Friday 24 March 2023
 
फोटो साभार :आई-स्टॉक

छोटे स्तर पर सोना खोजने और निकालने के लिए जहरीले पारे का उपयोग किया जाता रहा है, जिससे इससे जुड़े लोगों के स्वास्थ्य को भारी खतरा होता है। जबकि इसकी रोकथाम को लेकर मिनामाटा कन्वेंशन नामक एक वैश्विक संधि भी है, जिसमें सोने के खनन वाले देशों को नियमित रूप से जहरीले पारे की मात्रा के उपयोग की जानकारी देनी होती है। यह संधि देशों को पारे का उपयोग कम से कम करने में मदद करने के लिए है, जबकि दुनिया भर में पारे का उपयोग सबसे अधिक किया जाता है।

यह पारे के उत्सर्जन के अनुमान के आधार पर 25 देशों द्वारा दी गई जानकारी का एक अध्ययन है। जिसमें कई अफ्रीकी, दक्षिण अमेरिकी और एशियाई देश शामिल है। अध्ययन में कहा गया है कि देशों के द्वारा पारे के बारे में पर्याप्त जानकारी नहीं दी जाती है।

अंदाजा इस बात से भी लगाया जा सकता है कि कोई देश अपने सोने के उत्पादन की मात्रा कैसे निर्धारित करता है, जिससे पता चल सके कि पारे की कितनी मात्रा का उपयोग किया गया। फिर भी, देश अक्सर संभावित अनुमानों की इस जानकारी को प्रदान नहीं करते हैं।

खतरे में लाखों लोग 

अध्ययन के मुताबिक दुनिया भर में लगभग 1.5 करोड़ कारीगर और छोटे पैमाने पर सोने से जुड़े लोग खनन के काम में लगे हुए है। ये लोग हर दिन इस काम से जुड़े खतरनाक स्थिति का सामना करते हैं। पारा एक शक्तिशाली न्यूरोटॉक्सिन है जिसके ये लगातार संपर्क में रहते हैं। पारे की वाष्प तंत्रिका, पाचन और प्रतिरक्षा प्रणाली, फेफड़े और गुर्दे आदि पर खतरनाक असर डालती हैं जो जानलेवा भी हो सकती हैं। पारा विशेषकर बच्चों और गर्भवती महिलाओं के लिए हानिकारक है, जिनके विकासशील भ्रूण पर न्यूरोटॉक्सिक का भारी असर पड़ता है।

अध्ययन में कहा गया है कि सोना खनन में लगे लगभग 1.5 करोड़ खनन कारीगरों में से 40 से 50 लाख महिलाएं या बच्चे हैं।

प्रोफेसर कैथलीन एम. स्मिट्स ने कहा कि, पारे के उपयोग को लेकर प्रभावशाली हस्तक्षेप और नीतियां बनाने के लिए, पहले यह सुनिश्चित करना होगा कि पारे के उत्सर्जन का अनुमान सही हो। उनके द्वारा दर्ज की गई जानकारी अधिक पारदर्शिता प्रदान करने से मदद कर सकती है। कैथलीन एम. एसएमयू के लायल स्कूल ऑफ इंजीनियरिंग के प्रोफेसर हैं।

शोध टीम ने 22 देशों की राष्ट्रीय कार्य योजनाओं (एनएपी) का विश्लेषण किया, जिसमें मिनामाटा कन्वेंशन के तहत एकत्र किए गए उनके वार्षिक आधारभूत अनुमान शामिल थे जो कि संगठन की वेबसाइट पर पोस्ट किए गए थे। टीम ने राष्ट्रीय सरकार या गैर-सरकारी वेबसाइटों पर पोस्ट की गई प्रासंगिक जानकारी वाले तीन अतिरिक्त देशों को भी देखा।

 स्मट्स और उनके सहयोगियों ने पैराग्वे के लिए आधारभूत अनुमानों की गणना की, जिन्हें विभिन्न दरों पर उपयोग किया गया था। इस अध्ययन में विश्लेषण के लिए दक्षिण अमेरिकी देश का चयन किया गया, जिसका आधार देश की रिपोर्टिंग की पारदर्शिता के कारण किया गया था।

देशों के आधारभूत अनुमानों में अहम आंकड़ों का अभाव

आधारभूत या बेसलाइन पारा उत्सर्जन अनुमान यह निर्धारित करने की कोशिश करते हैं कि कारीगर सोने के खनन के दौरान हर साल वातावरण में कितने किलोग्राम पारे का प्रदूषण कर रहे हैं। ऐसा करने के लिए, देश गणना करते हैं कि खनन करने वालों के द्वारा कितना सोना खोजा गया, इसलिए इसे हासिल  करने के लिए पारे का कितना उपयोग किया गया होगा, इसका एक अनुमान लगाया जा सकता है।

देश मुख्य रूप से खनन करने वालों, सोने और पारा व्यापारियों और सोने के खनन व्यवसाय में अन्य प्रमुख लोगों के साक्षात्कार करके जानकारी एकत्र करते हैं। साथ ही वे इस अनुपात का पता लगाते हैं जो पारे से सोने के अनुपात की गणना करते हैं।

लेकिन अध्ययन में पाया गया कि वर्तमान में उन अनुमानों की गणना के तरीके में काफी कमियां देखी गई हैं -

सोने के उत्पादन संबंधी अनुमानों को लेकर पर्याप्त आंकड़ों की कमी है। मध्य अफ्रीकी गणराज्य और मेडागास्कर जैसे पंद्रह देश, सोने की उत्पादन दर की गणना के लिए केवल एक स्रोत प्रदान करते हैं, फिर भी जैसा कि जिम्बाब्वे प्रदर्शित करता है, आंकड़ों के अलग-अलग स्रोत बहुत अलग जानकारी प्रदान कर सकते हैं।

एक दूसरे अध्ययन में, जिम्बाब्वे ने बताया कि सोना निकालने, प्रसंस्करण और खनिकों की आय की जानकारी के परिणामस्वरूप 2012 के खनन के आंकड़ों का उपयोग करके सोने के उत्पादन का अनुमान 11 से 55 प्रतिशत के बीच और 2018 के खनन के आंकड़ों का उपयोग करके नौ प्रतिशत से 35 प्रतिशत के बीच अलग-अलग देखा गया। 

महत्वपूर्ण मीट्रिक चुनने के तरीके में देश एक जैसे नहीं हैं। पारा सोने के अनुपात (एचजी: एयू) का उपयोग सोने की दी गई मात्रा का उत्पादन करने के लिए उपयोग किए जाने वाले पारे की मात्रा का अनुमान लगाने के लिए किया जाता है। कितना पारा उत्सर्जित किया गया था, इसके लिए एक अलग अनुपात अलग-अलग उचित अनुमान लगा सकता है।

अध्ययन में, एचजी: एयू के अनुपात के रूप में पांच अलग-अलग तरीकों को सूचीबद्ध किया गया था। कुछ देशों ने अपनी राष्ट्रीय कार्य योजना में एक से अधिक का हवाला दिया। इसी तरह, विभिन्न देशों ने उत्सर्जित पारा के राष्ट्रीय अनुमान के साथ आने के लिए विभिन्न तकनीकों का इस्तेमाल किया, कुछ खानों के एक छोटे से नमूने के आधार पर और कुछ अन्य स्रोतों के साथ आंकड़ों को सत्यापित किए बिना इसे दर्ज किया गया।

स्मट्स ने कहा कि अगर देशों को अपनी राष्ट्रीय कार्य योजनाओं में पारे में कमी के लक्ष्यों का मसौदा तैयार करना है तो उन्हें इन बदलावों के लिए बेहतर काम करना होगा।

खनन से सोना हासिल करने के लिए जहरीले पारे का उपयोग क्यों करते हैं?

छोटे पैमाने पर सोने के खनन करने वाले लोगों के पास सोना निकालने के लिए मशीन का विकल्प नहीं होता है क्योंकि वे खर्चे को वहन नहीं कर सकते हैं। नदियों में चट्टानों के माध्यम से तलछट पर पारे को जमा किया जाता है, जो सोने से चिपका होता है। फिर आग का उपयोग करके पारे को सोने से अलग करते हैं, इस प्रक्रिया में पारे की जहरीली वाष्प हवा में मिल जाती है।

यह सोने के खनन का एक सस्ता तरीका है, लेकिन पारा हवा में विषाक्त पदार्थों का रिसाव कर सकता है और जल प्रणालियों को प्रदूषित कर सकता है।

संयुक्त राष्ट्र (यूएन) के मुताबिक खतरनाक तरीके से सोने के खनन की प्रक्रिया में लोगों द्वारा लगभग 40 प्रतिशत पारे का उत्सर्जन किया जाता है, जो इसे पारे के प्रदूषण का सबसे बड़ा स्रोत बनाती है

2013 में, संयुक्त राष्ट्र ने कारीगर और छोटे पैमाने पर सोने के खनन के साथ-साथ अन्य पारा उत्सर्जन करने को चरणबद्ध करने की कोशिश करने के लिए मिनमाटा कन्वेंशन नामक वैश्विक संधि बनाई। इस संधि में वर्तमान में 139 देश अपने लक्ष्य के लिए प्रतिबद्ध हैं।

मोनिफा थॉमस-गुयेन ने कहा, संधि में शामिल होने के लिए, देशों को नियमित रूप से सोने के खनन में पारे के उत्सर्जन के अनुमानों की जानकारी देनी होती है और इसे एक राष्ट्रीय कार्य योजना में शामिल किया जाता है ताकि वे पारे के लिए अपने देश के पदचिह्न को कम किया जा सके। यह अध्ययन एनवायर्नमेंटल साइंस एंड पॉलिसी नामक पत्रिका में प्रकाशित किया गया है।

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