मोटी हो रही हैं शहर की लड़कियां और महिलाएं, अध्ययन में सामने आए रोचक पहलू

एक अध्ययन में पाया गया है कि बीते 17 वर्ष के दौरान भारत में मोटापे से ग्रस्त महिलाओं व लड़कियों की संख्या दोगुनी हो गई है

By Dayanidhi

On: Monday 02 September 2019
 

एक तरफ जहां भारत में महिलाएं और बच्चे कुपोषण के शिकार है, वही दूसरी तरफ यहां अधिक वजन वाली लड़कियों और महिलाओं की संख्या भी बढ़ रही है। खासकर शहरी, शिक्षित और अमीर परिवारों में, ऐसा पाया गया है। अधिक वजन और मोटापे से ग्रस्त महिलाओं का अनुपात 17 वर्षों में लगभग दोगुना हो गया है।

यह अध्ययन दक्षिण एशिया में कम उम्र के बच्चों (प्री-स्कूल एज चिल्ड्रेन), किशोरियों और वयस्क महिलाओं में बढ़ते वजन से सम्बंधित है, जो न्यूट्रिएंट्स पत्रिका में प्रकाशित हुआ है। 1999 से 2016 तक इन 17  वर्षों में, पांच वर्ष से कम आयु के अधिक वजन वाले बच्चों का अनुपात 2.9 फीसदी से 2.1 फीसदी तक कम हो गया था। हालांकि, इसी अवधि के दौरान, 15 से 19 वर्ष की आयु की किशोरियों और 20 से 49 वर्ष की आयु वाली महिलाओं का अनुपात, जो क्रमशः 1.6 फीसदी से 4.9 फीसदी और 11.4 फीसदी से 24 फीसदी था, इनका वजन दोगुने से अधिक था। इस आयु वर्ग की महिलाओं में मोटापे की व्यापकता 2.4 फीसदी से 6 फीसदी तक थी, जोकि दोगुनी है।

अध्ययन में दक्षिण एशिया के छह देश अफगानिस्तान, बांग्लादेश, भारत, पाकिस्तान, मालदीव और नेपाल को शामिल किया गया। इसमें कम उम्र के बच्चों, किशोर और वयस्क महिलाओं की जांच की गई। अध्ययन के दौरान सभी देशों में अतिरिक्त वजन और बढ़ते मोटापे मे समानता पाई गई।

नेपाल, भारत और बांग्लादेश में समय के साथ अधिक वजन वाली लड़कियों और महिलाओं का अनुपात बढ़ा है। अध्ययन में पाया गया है कि इन देशों में अभी भी इनकी आबादी का एक बड़ा हिस्सा कुपोषण से जूझ रहा है, जबकि दूसरे हिस्से में पोषण की अधिकता है, चाहे वे ग्रामीण क्षेत्रों में रहने वाली महिलाए और लड़कियां हों या अशिक्षित और गरीब परिवार हो।

शोधकर्ताओं ने विश्व स्तर पर पाया कि, किशोर, अधिक वजन और मोटापे में वृद्धि की तुलना में कम वजन वाले लोगों की संख्या में गिरावट आई है।  यह अनुमान लगाया गया है कि यदि इस प्रकार के रुझान जारी रहे, तो वर्ष 2022 तक बच्चे और किशोर मोटापे की व्यापकता दर को पार कर जाएंगे।

हालांकि, दक्षिण एशिया में महिलाओं के शरीर के अधिक वजन के मामले में भारत सबसे कम - सिर्फ 24 फीसदी ही था। जबकि मालदीव 46 फीसदी और पाकिस्तान 41 फीसदी के स्तर पर है, जो वैश्विक अनुमान 38 फीसदी से काफी अधिक है।

भारत में कई स्वास्थ्य कार्यक्रमों के बावजूद, कुपोषित बच्चों, किशोरियों और महिलाओं का अनुपात बहुत अधिक है। उदाहरण के लिए 2016 में  पांच से कम उम्र के 37.4 फीसदी बच्चों का विकास नहीं हो पाया था, अथवा वे शरीर से नाटे रह गए थे,  41.8 फीसदी किशोरियों और 18.8 फीसदी महिलाओं का वजन कम था। हालांकि, इस बात के सबूत हैं कि कुपोषण और शरीर के अतिरिक्त वजन में समान देशों, समुदायों और यहां तक कि परिवारों में समानता है।

इससे पहले, नेशनल इंस्टीट्यूट फॉर न्यूट्रीशन, जो भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद के अंतर्गत आता है, ने 2016 के एक अध्ययन में वयस्कों में मोटापा बढ़ने की बात कही थी - भारत की 44 फीसदी शहरी महिलाएं मोटापे से ग्रस्त थीं और 11 फीसदी महिलाओं का वजन कम था। 2017 में अनुमानित 72 मिलियन मामलों के साथ, वर्तमान भारत में दुनिया के 49 फीसदी मधुमेह रोगी रहते है, यह आंकड़ा 2025 तक लगभग 134 मिलियन तक होने की आशंका है।

शोधकर्ताओं ने सुझाव दिया कि सार्वजनिक नीति में सुधार के साथ-साथ बड़े पैमाने पर शिशु आहार के माध्यम से कुपोषण से निपटने पर ध्यान दिया जाना चाहिए, साथ ही अधिक पोषण (ओवर- न्यूट्रिशन) बढ़ रहा है, इसलिए इसकी भी निगरानी की जानी चाहिए। एक ओर जहां स्तनपान से मोटापे के खिलाफ सुरक्षात्मक प्रभाव पड़ता है, वही अन्य आहार शैली मोटापा, बीमारियां आदि बढ़ा सकते हैं।

इस अध्ययन से यह भी पता चलता है कि कम शिक्षित और गरीब लोगों में मोटे और अधिक वजन वाले लोगों का अनुपात तेजी से बढ़ रहा है, जबकि ये लोग पहले से ही कुपोषण, सूक्ष्म पोषक तत्वों की कमी (माइक्रोनुट्रिएंट डेफिसिएन्सिएस) और गैर-संचारी रोगों की चपेट में हैं। 

जैसे-जैसे आय बढ़ती है, लोगों के आहार में अधिक कार्बोहाइड्रेट, खाद्य तेलों, मिठा और पशु-स्रोत खाद्य पदार्थों की मात्रा बढ़ जाती है अर्थात लोग अपने आहार में इन चीजों की मात्रा बढ़ा देते है, जिसको शोध ने गैर-संचारी रोगों से जोड़ा है।  शोधकर्ता कहते है कि दक्षिण एशिया में अधिक वजन और मोटापे की बढ़ती चिंताओं को दूर करने के लिए, खाद्य खाद्य पदार्थों की जांच, अच्छी गुणवत्ता वाले आहार तक पहुंच और कुपोषण के सभी रूपों के संबंध में भोजन आधारित कार्यक्रम बनाने की जरुरत है।

दक्षिण एशिया, विशेष रूप से भारत में, अधिक वजन वाली माताओं के बच्चों को उन बच्चों की तुलना में अधिक वजन होने की संभावना होती है जिनकी माताएं अधिक वजन की नहीं हैं। यह संबंध 1999, 2001 और 2016 के जिला स्वास्थ्य सर्वेक्षणों के माध्यम से यह स्थिर रहा, हालांकि समय के साथ इसकी संभावना कम हो गई।

अध्ययन में कहा गया है कि जिन बच्चों ने कम से कम अलग-अलग प्रकार के आहारों का सेवन किया है - अलग-अलग प्रकार के आहारों में प्रत्येक भोजन में आठ खाद्य समूहों से कम से कम पांच शामिल हैं - इनमें अधिक वजन होने की संभावना थी।

अध्ययन में कहा गया है कि भारत में किशोरावस्था की लड़कियां जो शहरी क्षेत्रों में रहती थीं, उनका वजन अधिक होने की संभावना थी, क्योंकि अन्य देशों के समकक्षों की तुलना में उनका वजन अधिक था।  शोधकर्ताओं ने पाया कि सन 1999 की तुलना में 2016 में अधिक वजन वाली भारतीय महिलाओं की संख्या बढ़ गई थी, खासकर जो शहरी क्षेत्रों में रहते थे, शिक्षित थे और अमीर घरों से थे।

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