प्रमुख दवाओं के खिलाफ टाइफाइड के बैक्टीरिया ने विकसित की प्रतिरोधक क्षमता, भारत के लिए खतरे के संकेत

अध्ययन के मुताबिक दवा प्रतिरोधी वेरिएंट, उनमें से लगभग सभी दक्षिण एशिया में उत्पन्न हुए, 1990 के बाद से कम से कम 200 बार अन्य देशों में फैल चुके हैं।

By Dayanidhi

On: Thursday 23 June 2022
 

एक नए अध्ययन के मुताबिक, टाइफाइड बुखार पैदा करने वाले बैक्टीरिया कुछ सबसे अधिक उपयोग किए जाने वाले एंटीबायोटिक दवाओं के प्रति तेजी से प्रतिरोधी होते जा रहे हैं। इसका मतलब है कि ये प्रमुख दवाएं टायफाइड के इलाज में काम नहीं कर रही हैं।

अमेरिका में स्टैनफोर्ड विश्वविद्यालय के शोधकर्ताओं सहित एक अंतरराष्ट्रीय टीम द्वारा किए गए अध्ययन में पाया गया कि इस तरह के वेरिएंटों, जो कुछ हद तक दवा प्रतिरोध करते हैं, पिछले 30 वर्षों में भारत जैसे देशों में तेजी से फैल रहे हैं।

टाइफाइड का बुखार दूषित पानी या भोजन से फैलता है, जिसके कारण 110 लाख संक्रमण तथा यह हर साल 1 लाख से अधिक मौतों के लिए जिम्मेवार है। दुनिया भर में होने वाली यह बीमारी 70 फीसदी तक दक्षिण एशिया में होती है।

जबकि टाइफाइड के बुखार के संक्रमण का सफलतापूर्वक इलाज करने के लिए एंटीबायोटिक दवाओं का उपयोग किया जा सकता है। दवाओं की प्रभावशीलता को जीवाणु, साल्मोनेला एंटरिका सेरोवर टाइफी (एस टाइफी) के दवा प्रतिरोधी नए रूपों से खतरा है।

शोधकर्ताओं ने 2014 से 2019 के बीच भारत, बांग्लादेश, नेपाल और पाकिस्तान में टाइफाइड रोगियों से एकत्र किए गए 3,489 एस टाइफी नमूनों पर पूरे-जीनोम अनुक्रमण का खुलासा किया। उन्होंने 1905 से 2018 के बीच 70 से अधिक देशों से अलग-अलग एस टाइफी के 4,169 अतिरिक्त नमूनों के अनुक्रमण के आंकड़ों का भी विश्लेषण किया। 

उन्होंने पाया कि दवा प्रतिरोधी वेरिएंट, उनमें से लगभग सभी दक्षिण एशिया में उत्पन्न हुए, 1990 के बाद से कम से कम 200 बार अन्य देशों में फैल चुके हैं।

प्रमुख अध्ययनकर्ता जेसन एंड्रयूज ने कहा कि हाल के वर्षों में जिस गति से एस टाइफी के अत्यधिक प्रतिरोधी वेरिएंटों का उदय और प्रसार हुआ है। वह चिंता का एक वास्तविक कारण है और विशेष रूप से सबसे बड़े खतरे वाले देशों में रोकथाम के उपायों को तत्काल बढ़ाने की आवश्यकता है। जेसन एंड्रयूज, स्टैनफोर्ड विश्वविद्यालय में शोधकर्ता हैं।

उन्होंने बताया एस टाइफी के दवा प्रतिरोधी वेरिएंट अंतरराष्ट्रीय स्तर पर कई बार फैल गए हैं। टाइफाइड नियंत्रण और एंटीबायोटिक प्रतिरोध को आम तौर पर स्थानीय समस्या के बजाय वैश्विक रूप में देखने की आवश्यकता है।

अनेक दवाओं के प्रतिरोधी वेरिएंट

शोधकर्ताओं ने आनुवंशिक विविधताओं के साथ 7,658 नमूनों की पहचान की, जिसमें एस टाइफी जीवाणु पर दवा का प्रतिरोध पाया गया।

वेरिएंटों को मल्टी ड्रग-प्रतिरोधी (एमडीआर) के रूप में वर्गीकृत किया गया था, उनमें ऐसे जीन पाए गए थे जो उन्हें एम्पीसिलीन, क्लोरैम्फेनिकॉल, और ट्राइमेथोप्रिम या सल्फामेथोक्साजोल जैसे कई एंटीबायोटिक दवाओं के लिए प्रतिरोधी बनाते हैं।

अध्ययन के मुताबिक उत्परिवर्तन या म्युटेशन जिसने बैक्टीरिया को एज़िथ्रोमाइसिन के लिए प्रतिरोधी बना दिया। यह एक बहुत अधिक इस्तेमाल किया जाने वाला एंटीबायोटिक है, जो पिछले 20 वर्षों में कम से कम 7 बार प्रतिरोधी पाया गया।

इसके अलावा शोधकर्ता एस टाइफी के नमूनों में जीन की पहचान करने में भी सक्षम थे जो बैक्टीरिया को मैक्रोलाइड्स और क्विनोलोन के लिए प्रतिरोधी बनाते हैं, जो सबसे खतरनाक एंटीमाइक्रोबियल्स में से हैं।

शोध से पता चला है कि दवा प्रतिरोधी एस टाइफी वेरिएंट 1990 के बाद से कम से कम अलग-अलग देशों में 197 बार फैला। जबकि इनमें से अधिकांश वेरिएंट दक्षिण और दक्षिण पूर्व एशिया और पूर्वी और दक्षिण अफ्रीका में पाए गए थे, कुछ यूके, अमेरिका और कनाडा में भी पाए गए।

2000 के बाद से बांग्लादेश और भारत में एस टाइफी के मल्टीड्रग-प्रतिरोधी (एमडीआर) वेरिएंटों में लगातार गिरावट आई है। हालांकि इन्हें अब अन्य एंटीबायोटिक दवाओं के प्रतिरोधी वेरिएंटों द्वारा बदला जा रहा है।

जीन म्युटेशन या उत्परिवर्तन जो क्विनोलोन दवा के लिए प्रतिरोधी होते हैं। एंटीबायोटिक दवाओं का एक बड़ा समूह जो सीधे जीवाणु कोशिकाओं को मारता है। 1990 के बाद से कम से कम यह 94 बार फैला, इन वेरिएंटों में से लगभग 97 फीसदी की उत्पत्ति दक्षिण एशिया में हुई है।

2000 के दशक की शुरुआत तक बांग्लादेश में पाए गए एस टाइफी के नमूनों में क्विनोलोन-प्रतिरोधी वेरिएंटों का हिस्सा 85 फीसदी से अधिक था। 2010 तक, इन वेरिएंटों में भारत, पाकिस्तान और नेपाल के अलग-अलग किए गए नमूनों में 95 फीसदी से अधिक का हिस्सा था। यह अध्ययन द लैंसेट माइक्रोब जर्नल में प्रकाशित हुआ है।

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