ओमिक्राॅन के बढ़ते खतरे के बीच विरोध पर क्यों अड़े हैं जूनियर डाॅक्टर्स ?

लगभग 45 से 50 हजार एमबीबीएस डाॅक्टर नीट-पीजी काउंसिलिंग का इंतजार कर रहे हैं

By Taran Deol

On: Thursday 30 December 2021
 
अपनी मांगों के समर्थन में जूनियर डॉक्टर हड़ताल पर हैं। Photo- twitter@NainApurva

देश में एक तरफ कोरोना वायरस के नए वेरिएंट ओमिक्राॅन के चलते कोविड-19 का खतरा बढ़ रहा है, तो दूसरी ओर तमाम जूनियर डाॅक्टर पिछले 15 दिनों से गृह मंत्रालय के सामने विरोध-प्रद्रर्शन कर रहे हैं।

देश का स्वास्थ्य ढांचा पहले से चरमराया हुआ है, महामारी की तीसरी लहर की आशंका के बीच डाॅक्टरों के विरोध-प्रदर्शन और हड़ताल ने राजधानी में हालात और खराब कर दिए हैं।
 
एमबीबीएस पूरा कर चुके लगभग 45000 से पचास हजार डाॅक्टर, पोस्ट ग्रेजुएशन के लिए कराई जाने वाली राष्ट्रीय पात्रता प्रवेश परीक्षा यानी नीट-पीजी की काउंसिलिंग का इंतजार कर रहे हैं। इसके बाद ही वे देश के किसी अस्पताल में जूनियर रेजीडेंट डाॅक्टर के तौर पर सेवाएं दे सकते हैं।
 
दरअसल अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) और आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग (ईडब्ल्यूएस) के लिए आरक्षण पर इस साल जुलाई में राष्ट्रीय परीक्षण एजेंसी (एनटीए) द्वारा जारी एक नोटिस के कारण, जिसे सुप्रीम कोर्ट में लंबित कई याचिकाओं के माध्यम से चुनौती दी गई है, नीट-पीजी की काउंसिलिंग की प्रक्रिया अधर में लटकी हुई है।

आमतौर पर मेडिकल काॅलेजों में पोस्ट ग्रेजुएशन के लिए हर साल होने वाली नीट-पीजी परीक्षा जनवरी में और फिर उसमें पास होने वालों की काउंसिलिंग मार्च-अप्रैल में पूरी हो जाती है।

इस साल यह कई बार टली, पहले इसे जनवरी से अप्रैल के लिए और फिर कोविड-19 की दूसरी लहर के चलते 31 अगस्त के बाद तक के लिए टाला गया। आखिरकार यह परीक्षा लगभग नौ महीने बाद 11 सितंबर को हुई।

एमबीबीएस डाॅक्टर और नीट-पीजी के उम्मीदवार डाॅ शैराने फ्रेडरिक ने डाउन टू टर्थ से कहा, ‘ जूनियर रेजिडेंट डॉक्टर अनिवार्य रूप से वाॅर्डों, आकस्मिक विभागों और ऑपरेशन थिएटरों में फ्रंटलाइन वर्कर के रूप में काम करते हैं। उनकी गैर-मौजूदगी से अस्पतालों में मरीजों की तादाद बढ़ रही है ,जो आने वाले समय में बड़ी दिक्कतें पैदा करेगी। इसका डाॅक्टरों के शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य पर भी बुरा असर पड़ेगा। ’

विश्व स्वास्थ्य संगठन के पैमानों के अनुसार एक हजार लोगों पर एक डाॅक्टर होना चाहिए लेकिन भारत में फिलहाल 1511 लोगों पर एक डाॅक्टर है।

एम्स के पूर्व छात्र डाॅ हरजीत सिंह भट्टी के मुताबिक, काउंसिलिंग में देरी के चलते फर्स्ट ईयर के छात्रों की अभी तक भरती नहीं हुई है, जबकि तीसरे साल के छात्र अपनी परीक्षाओं की तैयारी में लगे हैं। केवल सेकेंड ईयर के स्टूडेंट्स मरीजों को संभाल रहे हैं, जो कुल डाॅक्टरों का केवल एक तिहाई हैं।

इस मामले में इंडियन मेडिकल एसोसिएशन की भी यही राय है।

डॉक्टरों के विरोध ने एक बदसूरत मोड़ भी ले लिया है। उन्होंने आरोप लगाया है कि उन पर पुलिस कार्रवाई के दौरान बदतमीजी की जा रही है। उनकी मांग है कि इस मुद्दे का त्वरित समाधान हो लेकिन सरकार का कहना है कि जब तक आरक्षण का मामला कोर्ट में विचाराधीन है, तब तक वह इसमें बहुत कुछ नहीं कर सकती है।

आर्थिक तौर पर कमजोर वर्ग का मुद्दा

इस मामले की जड़े जनवरी 2019 में केंद्र सरकार के उस फैसले में हैं, जिसमें उसने आर्थिक तौर पर कमजोर, सामान्य वर्ग के लिए मेडिकल में दस फीसदी सीटें बढ़ाने का कानून बनाया। इसके अनुसार, अगर सामान्य वर्ग के किसी छात्र के परिवार की सालाना आय आठ लाख रुपये से कम है तो वह इस श्रेणी में आरक्षण का हकदार होगा। इसे लेकर कोर्ट में कई याचिकाएं दायर की गईं। इस साल जुलाई में सरकार ने कहा कि मामला कोर्ट में होने के बावजूद नया कानून 2021-2022 सत्र में लागू होगा।

21 अक्टूबर 2021 को सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार से कहा, ‘“आपके पास कुछ जनसांख्यिकीय, सामाजिक या सामाजिक-आर्थिक आंकड़े होने चाहिए। आप केवल हवा से 8 लाख रुपये नहीं निकाल सकते। आप केवल यही कह रहेे हैं कि यह कानून ओबीसी के साथ समानता के लिए है।”

इसके बाद 25 अक्टूबर को केंद्र सरकार ने कहा कि जब तक यह मामला हल नहीं होता, तक तक काउंसिलिंग नहीं शुरू होगी। सरकार ने कोर्ट से आर्थिक तौर पर कमजोर की वार्षिक पारिवारिक आय के मानदंड पर फिर से विचार करने के लिए चार सप्ताह का अनुरोध किया। इसकी अगली सुनवाई छह जनवरी को है।

डाॅक्टरों की मांग

इस साल काउंसिलिंग अभी शुरू नहीं हुई है और सरकार ने अगले दौर की नीट-पीजी परीक्षा के लिए 12 मार्च 2022 की तारीख घोषित कर दी है।  फेडरेशन ऑफ ऑल इंडिया मेडिकल एसोसिएशन के सलाहकार डाॅ राकेश बागदी के मुताबिक, ‘उन्होंने अगली परीक्षा की तारीख की घोषणा कर दी है, लेकिन अभी भी पिछली परीक्षा के प्रतिभागी चुने नहीं गए हैं। जो पहले साल में थे, वे दूसरे साल में जाने का इंतजार कर रहे हैं लेकिन उनकी जगह लेने के लिए नया बैच है ही नहीं। इससे उनकी पढ़ाई का भी नुकसान हो रहा है। ’

बहरहाल, 28 दिसंबर को फेडरेशन ऑफ रेजिडेंट डॉक्टर्स एसोसिएशन ने प्रेस कांफ्रेस में सरकार से तीन मांगे रखीं। इसमें छह जनवरी की सुनवाई के बाद काउंसिलिंग शुरू करने के लिए एक तारीख तय करने का वायदा, डाॅक्टरों के साथ गलत बर्ताव के लिए अधिकृत पुलिस अधिकारियों द्वारा माफी और डाॅक्टरों के खिलाफ अभी तक दर्ज एफआईआर वापस लेने की मांग शामिल है। देश भर में विरोध-प्रदर्शनों के बीच डॉक्टरों के कई संगठन, सामूहिक इस्तीफे और पूरी तरह काम बंद करने की धमकी भी दे रहे हैं।

इससे पहले केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री मनसुख मंडाविया ने डाॅक्टरों से अपनी हड़ताल वापस लेने को कहा था लेकिन बात नहीं बनी।
 

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