आखिर क्यों बेअसर साबित होती है मिर्गी की दवा?

भारतीय वैज्ञानिकों ने खोजा मिर्गी की दवा बेअसर होने का कारण

By Bhavya Khullar

On: Tuesday 13 June 2017
 
अध्ययनकर्ताओं की टीम में पी. तलवार, एन. कनौजिया, एस. महेंद्रु, आर. बघेल, एस. ग्रोवर, जी. अरोड़ा, जी.के. ग्रेवाल, एस. परवीन, ए. श्रीवास्तव, एम. सिंह, एस. विग, एस. कुशवाहा, एस. शर्मा, के. बाला, एस. कुकरेती, और रितुश्री कुकरेती शामिल

मिर्गी का बेहतर उपचार उपलब्ध होने के बावजूद डॉक्टरों ने कई बार पाया है कि मिर्गी की दवाएं कुछ महिलाओं पर असरदार साबित नहीं होती हैं। भारतीय वैज्ञानिकों ने इलाज के बावजूद कुछ मरीजों में मिर्गी के बार-बार उभरने के कारणों का अब पता लगा लिया है।

नई दिल्ली स्थित इंस्टीट्यूट ऑफ जीनोमिक्स ऐंड इंटीग्रेटिव बायोलॉजी और इंस्टीट्यूट ऑफ ह्यूमन बिहेवियर ऐंड एलाइड साइंसेज के वैज्ञानिकों ने पाया है कि साइटोक्रोम-पी4501ए1 (सीवाईपी1ए1) नामक एक जीन में भिन्नता इसके लिए जिम्मेदार है। इस शोध के नतीजे फार्माकोजीनोमिक्स  शोध पत्रिका में प्रकाशित किए गए हैं।

महिलाओं के रक्त में एस्ट्रोजेन नामक हार्मोन को नियंत्रित करने वाले एक एंजाइम का निर्माण करने में सीवाईपी1ए1 जीन की भूमिका होती है। वैज्ञानिकों के अनुसार यह एंजाइम मिर्गी से पीड़ित महिलाओं के इलाज में उपयोग होने वाली दवाओं के प्रभाव को नियंत्रित करने में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।

शोधकर्ताओं के मुताबिक, सीवाईपी1ए1 एस्ट्रोजन हार्मोन के प्रसार से संबंधित है। इस आधार पर अनुमान लगाया गया कि इस जीन की उपलब्धता एस्ट्राडियोल के स्तर को बढ़ा देती है। इसके चलते महिलाओं में मिर्गी के दौरे पड़ने और दवाओं के बेअसर होने की संभावना बढ़ जाती है। अध्ययन में यह बात साबित हो गई है। अध्ययन में 579 मरीजों को शामिल किया गया था, जिसमें 45 प्रतिशत महिलाएं थीं। इस ताजा अध्ययन के आधार पर शोधकर्ताओं ने मिर्गी के उपचार में दवाओं के प्रभाव का पता लगाने के लिए एक जेनेटिक मार्कर की पहचान की है, जिसके आधार पर जेनेटिक टेस्ट भी विकसित किया जा सकता है।

बीएचयू के इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल साइंसेज में न्यूरोलॉजी के प्रोफेसर डॉ. विजयनाथ मिश्र ने इस अध्ययन पर अपनी प्रतिक्रिया देते हुए कहा कि “आनुवांशिक भिन्नता को लेकर दूसरे देशों में भी अध्ययन हुए हैं, जिनके कई तरह के नतीजे मिले हैं। लेकिन, भारतीय परिप्रेक्ष्य में देखें तो यह अध्ययन महत्वपूर्ण है। हम अब भी बार-बार पड़ने वाले मिर्गी के दौरे का सर्वश्रेष्ठ प्रबंधन खोजने की कोशिश कर रहे हैं। उम्मीद की जानी चाहिए कि मिर्गी दौरे के बारे मिली यह नई जानकारी भविष्य में इसके उपचार के लिए बेहतर दवा विकसित करने में मददगार साबित हो सकती है।” अध्ययनकर्ताओं की टीम में पी. तलवार, एन. कनौजिया, एस. महेंद्रु, आर. बघेल, एस. ग्रोवर, जी. अरोड़ा, जी.के. ग्रेवाल, एस. परवीन, ए. श्रीवास्तव, एम. सिंह, एस. विग, एस. कुशवाहा, एस. शर्मा, के. बाला, एस. कुकरेती, और रितुश्री कुकरेती शामिल थे।

(इंडिया साइंस वायर)

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