संस्थागत प्रसव के बावजूद स्तनपान में पिछड़ा भारत

वर्ष 2015 में भारत का स्कोर 100 में से सिर्फ 44 था, जो नाममात्र की बढ़ोत्तरी के साथ अब 45 हुआ है। 

By Umashankar Mishra

On: Thursday 09 August 2018
 
नई दिल्ली में जारी की गई ‘अरेस्टेड डेवलपमेंट, द फिफ्थ रिपोर्ट ऑफ इंडियाज पॉलिसी ऐंड प्रोग्राम्स ऑन ब्रेस्टफीडिंग ऐंड इन्फेंट ऐंड यंग चाइल्ड फीडिंग-2018’ नामक इस रिपोर्ट में स्तनपान के संदर्भ में महिलाओं की सहायता संबंधी नीति और कार्यक्रमों की पड़ताल की गई है।

भारत में हर साल जन्म लेने वाले 2.6 करोड़ शिशुओं में 1.50 करोड़ शिशु अपने जन्म के एक घंटे के भीतर स्तनपान नहीं कर पाते, जबकि 80 प्रतिशत महिलाएं अस्पतालों में प्रसव कराती हैं। अस्पतालों में प्रसव होने के बावजूद नवजात को सही समय पर स्तनपान नहीं कराए जाने के पीछे सही देखभाल और सलाह संबंधी सेवाओं की कमी को मुख्य रूप से जिम्मेदार पाई गई है।

नई दिल्ली में जारी की गई ‘अरेस्टेड डेवलपमेंट, द फिफ्थ रिपोर्ट ऑफ इंडियाज पॉलिसी ऐंड प्रोग्राम्स ऑन ब्रेस्टफीडिंग ऐंड इन्फेंट ऐंड यंग चाइल्ड फीडिंग-2018’ नामक इस रिपोर्ट में स्तनपान के संदर्भ में महिलाओं की सहायता संबंधी नीति और कार्यक्रमों की पड़ताल की गई है। रिपोर्ट के अनुसार, भारत स्तनपान सहायता सेवाओं के मामले में 97 देशों की सूची में 78वें पायदान पर है। इस रिपोर्ट को वर्ल्ड ब्रेस्टफीडिंग ट्रेंड्स इनिशिएटिव (डब्ल्यूबीटीआई) की पहल पर सार्वजनिक स्वास्थ्य संस्थानों तथा एजेंसियों के कंशोर्शियम ने तैयार किया है।

डब्ल्यूबीटीआई के अनुसार, स्तनपान और शिशु एवं छोटे बच्चों की आहार-पूर्ति संबंधी नीतियों और कार्यक्रमों के मामले में भी भारत की स्थिति ठीक नहीं कही जा सकती। इस संबंध में वर्ष 2015 में भारत का स्कोर 100 में से सिर्फ 44 था, जो नाममात्र की बढ़ोत्तरी के साथ अब 45 हुआ है। यह रिपोर्ट दर्शाती है कि विभिन्न क्षेत्रों में अपने शिशुओं एवं छोटे बच्चों को बेहतर आहार उपलब्ध कराने से जुड़ी बाधाओं को दूर करने के लिए महिलाओं को बेहद कम मदद मिल पाती है। इन क्षेत्रों में स्वास्थ्य, महिला एवं बाल विकास, एचआईवी, आपदा प्रबंधन और श्रम मुख्य रूप से शामिल हैं।

जीवन के विभिन्न क्षेत्रों में पर्याप्त सहयोग नहीं मिल पाने की वजह से दो महीने तक शिशु को स्तनपान कराने वाली 1.88 करोड़ महिलाओं की संख्या शिशु के छह महीने का होने तक गिरकर 1.07 करोड़ रह जाती है। 6-8 महीने की आयु के पांच में से केवल दो शिशु एवं छोटे बच्चे निरंतर जारी स्तनपान के साथ-साथ ठोस आहार का सेवन शुरू कर पाते हैं। इसी तरह, 06-24 महीने तक की आयु के दस में से केवल एक बच्चा चार खाद्य समूहों की किस्मों वाला न्यूनतम स्वीकार्य आहार का सेवन कर पाता है।

इस रिपोर्ट में पाया गया है कि निरंतर स्तनपान, उसके प्रोत्साहन और सहायता के लिए खर्च होने वाली राशि अनुशंसा की गई रकम से भी बेहद कम है। ब्रेस्ट फीडिंग नेटवर्क ऑफ इंडिया के राष्ट्रीय संयोजक अरुण गुप्ता के अनुसार, “सभी महिलाओं तक स्तनपान सहायता की पहुंच आगे बढ़ाने के लिए सरकार को फंडिंग में बढ़ोत्तरी करनी होगी। इस राशि का उपयोग डिब्बाबंद फूड्स के विपणन एवं प्रोत्साहन को नियंत्रित करने, आपदाओं के दौरान कौशलपूर्ण परामर्श और स्वास्थ्य सुविधाओं तथा एचआईवी स्थितियों में सहायता प्रणाली, प्रखंड स्तर पर परामर्शदाता टीम और ग्राम स्तर पर मातृ सहायता के नेटवर्क की स्थापना, क्षमता निर्माण, निगरानी एवं आकलन के विनियमन के लिए प्रचलित कानून को लागू करने में उपयोग किया जा सकेगा।”

शिशु एवं छोटे बच्चों की आहार-पूर्ति संबंधी भारत सरकार की संचालन समिति ने वर्ष 2015 और 2017 में सभी प्रसव केंद्रों पर एक स्तनपान परामर्शदाता की नियुक्ति, इन्फेंट मिल्क सब्सिट्यूड ऐक्ट को असरदार ढंग से लागू करने और सूचना पुस्तिकाओं के जरिये सभी गर्भवती महिलाओं तक पहुंचने का फैसला किया था। पब्लिक हेल्थ रिसोर्स नेटवर्क की संयोजक वंदना प्रसाद के अनुसार, “यह निराशाजनक है कि इस फैसले पर अमल नहीं किया गया और न ही समुचित फंडिंग का आवंटन किया गया।”

प्रसाद के मुताबिक, “मातृ स्वास्थ्य एवं पोषण में सुधार संबंधी भारत सरकार की योजना – पीएमवीवीवाई को व्यापक बना दिया जाए तो उन महिलाओं को इससे लाभ हो सकता है, जो अपने कार्य और देखभाल की जिम्मेदारियों के बीच संघर्ष करती रहती हैं। लेकिन, मातृत्व लाभ अधिनियम में भी अनौपचारिक क्षेत्र में कार्यरत महिलाओं को मातृत्व संबंधी अधिकार प्रदान करने संबंधी अंतर को पाटने की कोई व्यवस्था नहीं की गई है।” (इंडिया साइंस वायर)

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