एनएफएचएस-5 : भारत में अब भी पुरुषों से ज्यादा नहीं हैं महिलाएं , जानिए क्यों?

लगातार पिछले तीन दशकों में लिंगानुपात में सुधार हुआ है। इसलिए एनएफएचएस-5 के आंकड़ों में महिलाओं की संख्या बढ़कर दिखाई दे सकती है। 

By Vivek Mishra

On: Thursday 25 November 2021
 

पांचवे चरण के राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण (एनएफएचएस-5) के मुताबिक भारत में प्रति 1000 पुरुषों पर महिलाओं की संख्या 1020 पहुंच गई है। ऐसा उत्साहजनक आंकड़ा अब तक के सभी पुराने चार एनएफएचएस ( 1992 से 2016 तक) रिपोर्ट में कभी नहीं दर्ज किया गया। इसके बावजूद यह उत्साह का विषय नहीं है क्योंकि लिंगानुपात के मुद्दे पर काम करने वाले एक्सपर्ट यह मानते हैं कि एनएफएचएस के आंकड़ों से लिंगानपुात की सही तस्वीर नहीं पेश की जा सकती। 

आखिर क्यों एनएफएचएस के आंकड़े लिंगानुपात का सही प्रतिनिधित्व नहीं करते हैं ?

सर्वेक्षण रिपोर्ट में स्वयं आगाह किया गया है कि कई मामलों में कुछ राज्यों और संघ शासित प्रदेश के नमूनों का आकार बहुत ही छोटा है, ऐसे में इसकी व्याख्या और तुलना में सतर्कता बरतनी चाहिए। इस समूचे सर्वे की सूचनाएं देश के कुल 6.36 लाख परिवारों से ली गई हैं, जिसमें 724,115 महिलाएं और 101,839 पुरुष शामिल हैं। 

महाराष्ट्र के मुंबई स्थित इंटरनेशनल इंस्टीट्यूट फॉर पापुलेशन साइंसेज के रिसर्च फेलो नंदलाल मिश्रा डाउन टू अर्थ को बताते हैं " लिंगानुपात में प्रति 1000 पुरुषों पर महिलाओं की संख्या का बढ़ना दो कारणों से दिखाई देता है। पहला सर्वेक्षण के फैक्ट शीट में डी-फैक्टो गणना है। डीफैक्टो का अर्थ है कि वह महिला और पुरुष जो सर्वे की रात घर में ठहरे थे। दूसरा गणना का अत्यधिक अनुमान इसलिए भी दिखाई देता है क्योंकि बीते तीन दशकों में लिंगानुपात में सुधार हुआ है। हालांकि, यह स्पष्ट समझना चाहिए कि भारत में पुरुषों के मुकाबले महिलाओं की संख्या बढ़ गई है, यह तथ्य के तौर पर कहना पूरी तरह से भ्रामक है।"

एनएफएचएस-5  यह भी बताता है कि प्रति 1000 ग्रामीण पुरुषों  पर ग्रामीण महिलाओं की संख्या 1037 पहुंच गई है। ग्रामीण महिलाओं की संख्या में हो रही बढ़ोत्तरी का यह नया रिकॉर्ड है।  इसके अलावा बीते सभी सर्वे में ग्रामीण महिलाओं की संख्या लगातार बढ़ रही है। इन आंकड़ों पर भी सावधान होने की जरूरत है क्योंकि ग्रामीण महिलाओं की संख्या बढ़ने को भी लिंगानुपात से नहीं समझाया जा सकता। यह भ्रम पैदा कर सकता है। 

एनएफएचएस के डी-फैक्टो गणना में यह बहुत हद तक संभव है कि किसी गांव से पलायन करने वाला पुरुष या महिला सर्वे की रात अपने घर में न हो और वह सर्वेक्षण की गिनती से बाहर हो जाए। हालांकि, इस बार जारी एनएफएचएस-5 इसलिए बेहद खास है क्योंकि इस सर्वेक्षण की समयअवधि काफी अहम है। 

सर्वे का पहला चरण प्री कोविड (17 जून, 2019 से जनवरी, 2020 तक) और दूसरा चरण (2 जनवरी, 2020 से 30 अप्रैल, 2021) कोविड की पहली लहर के बाद किया गया।

लिंगानुपात के भ्रम को समझने के लिए दूसरे चरण (2 जनवरी, 2020 से 30 अप्रैल, 2021 तक) के सर्वेक्षण पर ध्यान देना जरूरी है क्योंकि दूसरे चरण में 14 राज्यों और संघ शासित प्रदेशों की गणना कोरोनाकाल की अवधि में हुई। दूसरे चरण सर्वेक्षण में बड़ी आबादी वाले राज्य उत्तर प्रदेश, उड़ीसा, राजस्थान, मध्य प्रदेश भी शामिल हैं। खासतौर से इन्हीं राज्यों में महानगरों से बड़ी संख्या अपने गांव और घर को लौटी थी।  

एनएफएचएस-5 की रिपोर्ट के आधार पर इन बड़ी आबादी और प्रवासी श्रमिकों वाले राज्यों में पुरुष-महिला लिंगानुपात को देखें तो मध्य प्रदेश में 1000 पुरुष पर महिलाओं का अनुपात 970 है, जबकि उत्तर प्रदेश में प्रति 1000 पुरुषों पर महिलाओं की संख्या 1,017 है। इसी तरह से उड़ीसा में प्रति 1000 पुरुष पर 1063 महिलाएं और राजस्थान में प्रति 1000 पुरुष पर 1009 महिलाएं हैं। 

क्या इन सभी राज्यों में भी पुरुषों के मुकाबले महिलाओं की आबादी बढ़ गई है? यह कहना भी भ्रामक होगा। दरअसल इन सभी राज्यों में महिलाओं की संख्या पुरुष से ज्यादा हो गयी है, यह कहना ठीक नहीं है।

वर्ष 1998 में एनएफएचएस सर्वे -2 में बताया गया था कि देश में ग्रामीण क्षेत्रों में प्रति 1000 पुरुष पर 957 महिलाएं थीं, जबकि शहरों में प्रति 1000 पुरुषों पर 928 महिलाएं थीं। इस सर्वे रिपोर्ट में कहा गया यह आंकड़ा हमें बताता है कि "महिलाओं के मुकाबले ज्यादा पुरुष शहरी क्षेत्रों की तरफ पलायन कर रहे हैं।"

हालांकि, यदि इस विश्लेषण को आधार बनाया जाए तो फिर कोविड काल के बाद आने वाला एनएफएचएस-5 रिपोर्ट लॉकडाउन के बाद आजाद भारत के सबसे बड़े भीतरी पलायन का आंकड़ा इस डी-फैक्टो गणना वाले सर्वे में स्पष्ट नहीं दिखाई देता।   

वर्ष 2005-06 में एनएएफएचएस-3 रिपोर्ट में पहली बार प्रति 1000 पुरुषों पर महिलाओं का अनुपात 1000 यानी बराबर दर्ज किया गया था। हालांकि जनगणना के आंकड़े दूसरी तस्वीर पेश करते हैं। लेकिन ऐसा क्यों है ? 

लिंगानुपात मामलों की जानकार जसोधरा दासगुप्ता डाउन टू अर्थ से कहती हैं कि एनएफएचएस रिपोर्ट के आधार पर लिंगानुपात का निष्कर्ष निकालना सही नहीं है। इन आंकड़ों पर ही सवाल हैं। जनगणना के लिंगानुपात आंकड़े ही स्पष्ट निष्कर्ष निकाल सकते हैं क्योंकि इसमें हम समूची आबादी (1.3 अरब लोग) की गिनती करते हैं और फिर अनुपात निकालते हैं। वहीं, एनएफएचएस में विशिष्ट उम्र वर्ग वाली कुछ  महिलाओं की गिनती होती हैं। एनएएफएचएस एकतरफ झुका हुआ (बायज) सर्वे है। राज्यों के ही लिंगानुपात आंकड़ों को देखें जहां सर्वे का आकार बहुत ही कम है। हमें जनगणना के नए आंकड़ों का इंतजार करना चाहिए।"

बहरहाल जनगनणना 2011 के मुताबिक भारत का लिंगानुपात प्रति 1000 पुरुष पर 933 है। 

अब तक एनएफएचएस के पांच रिपोर्ट जारी की जा चुकी हैं।  पहली रिपोर्ट 1992-92, दूसरी रिपोर्ट 1998-99 और तीसरी 2005-06 और चौथी सर्वेक्षण रिपोर्ट 2015-16 में जारी की गई थी। 

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