कचरे के पहाड़ की वजह से खतरे में है 2 लाख लोगों का जीवन

ग्राउंड रिपोर्ट: देहरादून से 30 किमी दूर कचरे के प्रबंधन के लिए बनाया प्लांट काम नहीं कर रहा है, जिससे आसपास रह रहे 2 लाख लोग नारकीय जीवन जी रहे हैं

By Trilochan Bhatt

On: Saturday 31 August 2019
 
उत्तराखंड की राजधानी देहरादून से 30 किमी दूर सेलाकुई के शीशमबाड़ा प्लांट में खड़ा कूड़े का पहाड़। फोटो: त्रिलोचन भट्‌ट

 

देहरादून से करीब 30 किमी दूर सेलाकुई में 36 करोड़ रुपये की लागत से लगाया गया 350 मीट्रिक टन क्षमता वाला शीशमबाड़ा साॅलिड वेस्ट मैनेजमेंट प्लांट फिर चर्चा में है। प्लांट के आसपास रहने वाले लोग एक बार फिर प्लांट के विरोध में उतर आये हैं। सेलाकुई औद्योगिक क्षेत्र और आसपास के क्षेत्रों में रह रही करीब दो लाख की आबादी इस प्लांट से फैल रही बदबू के बीच रह रही है। ‘डाउन टू अर्थ‘ ने मौके पर जाकर मामले की पड़ताल की।

देहरादून आईएसबीटी से शिमला बाईपास पकड़ने के साथ ही सड़क पर गड्ढों वाली जगहों या स्पीड ब्रेकर के आसपास कूड़ा बिखरा नजर आता है। करीब 15 किमी चलकर गणेशपुर कस्बा है। यहां एक स्पीड ब्रेकर पर भारी मात्रा में कूड़ा बिखरा है और बदबू फैली हुई है। इसी जगह मुख्य सड़क के किनारे सेवानिवृत्त सैन्यकर्मी बलदेव नेगी का घर है। वे बताते हैं, यहां से रात को दर्जनों की संख्या में कूड़े की गाड़ियां निकलती हैं। गाड़ियों खुली होती हैं और उनमें क्षमता से ज्यादा कूड़ा लदा होता है। पूरे इलाके में रातभर और सुबह तक बदबू फैली रहती है। लोगों ने सुबह टहलना छोड़ दिया है। घरों के बाहर सड़क पर गिरा हुआ कूड़ा हमें खुद साफ करना पड़ता है।

यहां करीब 15 किमी आगे चलकर आसन नदी मिलती है। बताया गया कि यह एक मात्र ऐसी नदी है, जो पश्चिम दिशा में बहती है। नदी के बाईं तरफ शिवालिक नाम का एक बड़ा निजी शिक्षण संस्थान है। नदी के पुल से करीब 300 मीटर दूर एक नीली बिल्डिंग नजर आती है और साथ ही चाहरदीवारी से लगता कूड़े का एक पहाड़। यही है शीशमबाड़ा साॅलिड वेस्ट मैनेजमेंट प्लांट। आसन नदी के पुल तक प्लांट की बदबू फैली हुई है।

करीब दो सौ मीटर आगे प्लांट की चहारदीवारी से कुछ मीटर की दूरी पर एक घर है। यहां इब्राहीम और उनका परिवार रहता है। यह वन गूजर परिवार है। जंगल छूट जाने के बाद यहां किराये का घर लेकर रहते हैं। कुछ मवेशी भी पाल रखे हैं। इब्राहीम अपने घर की छत से कुछ मीटर की दूरी पर खड़े कचरे के पहाड़ को दिखाते हैं। वे बताते हैं कि कचरे के इस ढेर से पानी रिसता है। इस पानी को पीने से उनकी तीन गायें मर गई। प्लांट के खिलाफ पुलिस में शिकायत की। पुलिस आई, गायों का पोस्टमार्टम भी हुआ और जहरीले पानी से उनके मरने की पुष्टि हुई। लेकिन, न तो मुआवजा मिला, न कोई कार्रवाई हुई।

उत्तराखंड की राजधानी देहरादून से 30 किमी दूर सेलाकुई के शीशमबाड़ा प्लांट से लगते बाईखाला के लोग इसका विरोध कर रहे हैं। । फोटो: त्रिलोचन भट्‌ट
इब्राहीम के घर से कुछ आगे मुख्य सड़क पर दाहिनी ओर हिमगिरि जी यूनिवर्सिटी है और करीब 50 मीटर दूर बाईं ओर देहरादून वेस्ट मैनेजमंेट प्लांट का गेट। प्लांट रैमकी नामक एक प्राइवेट कंपनी चलाती है। प्लांट में जाने की सख्त मनाही है। फोन से संपर्क करने पर प्लांट के प्रबंधक मोहित द्विवेदी कहते हैं कि प्लांट विजिट करने के लिए नगर निगम के स्वास्थ्य अधिकारी से परमिशन लेनी होगी। नगर निगम के स्वास्थ्य अधिकारी डाॅ. आरके सिंह फोन सुने बिना ही मीटिंग में होने और थोड़ी देर में काॅल बैक करने की बात कहकर फोन काट देते हैं।

प्लांट से लगती लाल शाह बाबा कमाल शाह की मजार है। मजार के पास ही पाॅलीथीन सीट से बने छप्पर के नीचे एक टूटी खटिया पर लेटेे सेवादार शफीक मिलते हैं। वे कहते हैं कि यहां सिर्फ प्लास्टिक का कूड़ा लाने की बात कही गई थी, लेकिन मरे हुए जानवर भी यहां लाये जा रहे हैं। वे बतातेे हैं कि प्लांट में दो लोग मर भी चुके हैं। यहां से करीब 500 मीटर चलकर देहरादून-अंबाला हाईवे मिलता है और सेलाकुई की तरफ करीब डेढ़ किमी चलकर बाईं तरफ बाईखाला बस्ती है। यह बस्ती इस प्लांट के कारण सबसे ज्यादा प्रभावित है। बस्ती में सभी घर अच्छे बने हुए हैं, कुछ कोठीनुमा भी। करीब एक किमी चलकर बस्ती का अंतिम घर है। यह प्लांट का पिछला हिस्सा है। बस्ती के आखिरी घर से प्लांट की चाहरदीवारी और कूड़े का वह पहाड़ बमुश्किल दो सौ मीटर की दूरी पर है।



आवाज देने पर घर से पहले एक युवक बाहर आता है और फिर एक बुजुर्ग। बुजुर्ग की उम्र करीब 65 वर्ष है। उनका नाम शैलेन्द्र सिंह पंवार है। प्लांट से हो रही परेशानी के बारे में पूछते ही वे हाथ जोड़कर देते हैं, कहते हैं हमें किसी तरह बचा लो। बातचीत के दौरान शैलेन्द्र सिंह पंवार लगभग रो पड़ते हैं। वे मूलरूप से रुद्रप्रयाग जिले के रहने वाले हैं। कहते हैं, सरकारी स्कूल में शिक्षक था। 2014 में रिटायरमेंट पर जो पैसा मिला था, उससे ये प्लाॅट लिया। मकान बनाया, लेकिन 2016 में हमारे सिर पर कूड़े का ढेर लगा दिया गया। प्लाॅट को बेचने की कोशिश की, पर कूड़े के इस ढेर पर कौन आएगा? वे कहते हैं, मैंने तो अपने हाथों अपनी पीढ़ियों को खत्म कर दिया है। 

... जारी 

Subscribe to our daily hindi newsletter