दो कुतुबमीनार की ऊंचाई जितना गिरा बीकानेर का भू-जल स्तर

राजस्थान के हर हिस्से में पानी की एक-एक बूंद बचाने के नायाब तरीके अब बोरवेल व्यवस्था की भेंट चढ़ रहे हैं।

By Vivek Mishra

On: Thursday 01 August 2019
 

देश में सबसे ज्यादा भू-जल संकटग्रस्त इलाका राजस्थान का बीकानेर बन गया है। दिल्ली के कुतुबमीनार की ऊंचाई 73 मीटर है, जबकि बीकानेर में अधिकतम भू-जलस्तर की गिरावट जमीन के स्तर से 132.22 मीटर नीचे चली गई है। राजस्थान के बीकानेर में पूर्व मानसून और मानसून के बाद दोनों ही स्थितियों के दौरान भू-जल का स्तर तेजी से गिर रहा है। वहीं, देश में कुल भू-जल की उपलब्धता 411 अरब घन मीटर (411 खरब लीटर) पर टिकी हुई है। यह आंकड़ा केंद्रीय भूजल बोर्ड (सीजीडब्ल्यूबी) की ताजा रिपोर्ट (ग्राउंड वाटर ईयर बुक-इंडिया 2017-18) का है।  

केंद्रीय भू-जल बोर्ड ने देश में 23,196 निगरानी स्टेशनों के आधार पर देश में भू-जल की स्थिति रिपोर्ट जारी की है। रिपोर्ट के मुताबिक निगरानी वाले ज्यादातर कुओं में भू-जल के स्तर में गिरावट आई है। वहीं, करीब 16.22 करोड़ घन मीटर पानी सिंचाई के लिए अब भी उपलब्ध है, यह आंकड़ा 2016-17 के बराबर ही है।  

राजस्थान के बीकानेर में इस मानसून वर्षा में बड़ी गिरावट है, हालांकि अब वर्षा का ट्रेंड यह है कि कुछ ही घंटों में वह अपना सामान्य स्तर छू लेती है। बीकानेर में (1901-70) के आधार पर सामान्य औसत वर्षा का स्तर 249.8 मिलीमीटर है। मानसून सीजन में बीकानेर हर वर्ष औसत या उससे काफी ज्यादा वर्षा जल हासिल करता है। यदि 2007 से 2016 तक के आंकड़ों की बात की जाए तो 2009 को छोड़कर बीकानेर में सामान्य से ज्यादा वर्षा हुई है। 2009 में 190 मिलीमीटर जबकि 2010 में 423 मिलीमीटर और 2015 में 509.1 मिलीमीटर वर्षा हुई थी। बीकानेर में इतनी वर्षा होती है फिर वहां भू-जल संकट क्यों है? राजस्थान में पारंपरिक जल स्रोतों और जलसंरक्षण की नजीर पूरे देश में पेश की जाती है, हालांकि अब बोरवेल व्यवस्था इसे जर्जर कर रही है।

दरअसल, आंकड़े दर्शाते हैं कि बीकानेर में पारंपरिक जलस्रोत खत्म हो चुके हैं। सिंचाई के लिए बोरवेल बड़े पैमाने पर इस्तेमाल किया जा रहा है। बीकानेर में शुद्ध सिंचित क्षेत्र 274,050 हेक्टेयर है। इन्हें 5,157 हेक्टेयर कुओं से और 12,9424  हेक्टेयर बोरवेल या ट्यूबवेल से सिंचित किया जाता है। शेष नहर और अन्य स्रोतों से। बीकानेर में हर वर्ष शुद्ध भू-जल की उपलब्धता 23.75 करोड़ घन मीटर है जबकि भू-जल का दोहन काफी ज्यादा किया जा रहा है।

सिंचाई के लिए 24.02 करोड़ घन मीटर और घरेलू व औद्योगिक इस्तेमाल के लिए 7.48 करोड़ घन मीटर भू-जल की निकासी होती है। इस तरह कुल 31.4 करोड़ घनमीटर भू-जल की निकासी की जा रही है। यह भू-जल का अत्यधिक दोहन है। राजस्थान में सिंचाई संबंधी उपलब्ध सरकारी आंकड़े 2010-11 के हैं, जो 2013 में जारी किए गए थे। वहीं, केंद्रीय भू-जल बोर्ड की ताजा रिपोर्ट यह दर्शाती है कि बीकानेर में कृषि और अन्य कार्यों के लिए भू-जल पर दबाव काफी ज्यादा बढ़ गया है।

बीकानेर में यूं तो आधिपत्य बाजरा की फसल का है लेकिन पानी की ज्यादातर मांग वाली फसलों का चलन भी बढ़ रहा है। मसलन कपास और मसालों में अत्यधिक पानी की जरूरत होती है। इनका सिंचित क्षेत्र भी बढ़ रहा है। इस जल संकट के साथ एक और बड़ी समस्या ने बीकानेर को घेरा है, और वह है भू-जल के नमूनों में फ्लोराइड की मौजूदगी। बीकानेर के भू-जल नमूनों की जांच में 40 से 50 फीसदी फ्लोराइड पाया गया था।

बीकानेर में भू-जल स्तर के गिरावट की रफ्तार देखें तो 2013-14 में प्री-मानसून यहां के भू-जल स्तर में गिरावट 119.60 मीटर थी जो कि 2017-18 में 134.22 मीटर है। इसी तरह बीकानेर में मानसून के बाद की स्थिति भी ऐसी ही है। मानसून बाद की स्थितियों में बीकानेर में 2015-16 में भू-जल की गिरावट का स्तर 112.60 मीटर था जबकि अभी यह गिरावट जमीन के स्तर से 134.22 मीटर नीचे है। अनुमान है कि 200 से 250 मीटर गहराई तक पानी निकालने के लिए बोरवेल या समर्सिबल का खर्चा एक लाख से डेढ़ लाख रुपये तक लग जाएगा। किसान पानी के लिए यह लागत खेत में खर्च कर रहा है।

पंजाब में गिरा, दिल्ली में बेहद मामूली सुधार

बहरहाल समस्या बीकानेर की ही नहीं है। सीजीडब्ल्यूबी की ताजा रिपोर्ट ग्राउंड वाटर ईयर बुक-इंडिया 2017-18 के मुताबिक 2017 के प्री-मानसून में यदि एक दशक (2007-2016) के औसत भू-जल को स्तर को देखा जाए तो पता चलता है कि देश के 14,465 निगरानी वाले कुओं में 61 फीसदी का जलस्तर काफी नीचे चला गया है। इनमें चंडीगढ़, पंजाब, पुदुचेरी, उत्तर प्रदेश, तमिलनाडु, जम्मू-कश्मीर, कर्नाटक, केरल, मेघालय शामिल हैं। यहां का भू-जल स्तर गिरा है। केंद्रीय भू-जल बोर्ड ने प्री-मानसून के दौरान 16,078 कुओं की निगरानी कर यह आंकड़ा दिया है कि ज्यादातर कुंओं में भू-जलस्तर 49 मीटर नीचे चला गया है जो कि 2016-17 में 40 मीटर था। यानी पानी 9 मीटर और नीचे चला गया। हालांकि, दिल्ली के लिए खबर थोड़ी सी राहत की है कि यहां के निगरानी वाले कुंओं में भू-जल की उपलब्धता 40 मीटर की गहराई वाले कुओं की संख्या 2016-17 में जहां 10 थी वह अब बढ़कर 13 हो गई है। इसी तरह बीकानेर को छोड़कर राजस्थान के अन्य हिस्सों में भी ऐसे कुंओं की संख्या 164 से बढ़कर 174 हो गई है। तमिलनाडु में भी ऐसे कुंओं की संख्या बढ़ी है लेकिन हरियाणा और मध्य प्रदेश में यह संख्या घटी है।  विभिन्न तालुकाओं, मंडल, जिलों, फिरके और घाटियों को मिलाकर 1034 प्रशासनिक ईकाइयां केंद्रीय भू-जल बोर्ड की रिपोर्ट के मुताबिक अत्यधिक दोहन वाली और 253 क्रिटकल, 681 सेमी-क्रिटिकल और 4,520 सुरक्षित हैं।

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