मुख्यमंत्री रघुबर दास ने भी केंद्र को चिट्ठी लिखकर नियमों को हल्का बनाते हुए संरक्षित वन क्षेत्रों में खनन को खोलने की सिफारिश की है।
झारखंड के सिंहभूम जिले में स्थित सारंडा और चाईबासा के संरक्षित वन क्षेत्रों में भी लौह अयस्क (आयरन ओर) खनन का रास्ता बनाने की तलाश जारी है। केंद्रीय वन एवं पर्यावरण मंत्रालय इस मामले पर जल्द ही एक समिति का गठन कर सकती है। यह समिति यह संभावना तलाशेगी कि इन संरक्षित क्षेत्रों में लौह अयस्क भंडारों का खनन किया जा सकता है या नहीं।
संरक्षित क्षेत्रों में खनन का रास्ता टिकाऊ खनन की प्रबंधन योजना (एमएसपीएम) के संशोधन से ही निकाला जा सकता है। केंद्रीय वन एवं पर्यावरण मंत्रालय की ओर से संभावना की तलाश करने वाली कमेटी गठित करने की यह निर्णय झारखंड के मुख्य सचिव की एक चिट्ठी के बाद आया है।
झारखंड के मुख्य सचिव डीके तिवारी ने पर्यावरण मंत्रालय के सचिव सीके मिश्रा को मार्च, 2019 को चिट्ठी लिखकर संरक्षित क्षेत्रों में खनन के लिए एक दोबारा आकलन अध्ययन की फरियाद की थी। फरियाद में कहा गया था कि संरक्षित क्षेत्रों में आयरन ओर के बड़े भंडार हैं एमएसपीएम रिपोर्ट के कारण संरक्षित क्षेत्रों में खनन पर पूर्ण प्रतिबंध है, इस प्रतिबंध पर पुनर्विचार किया जाना चाहिए। राज्य के इस फरियाद को स्वीकार करते हुए केंद्रीय मंत्रालय ने 11 जुलाई को अपना जवाब दिया था।
पर्यावरण मंत्रालय ने अपने जवाब में कहा था कि इंडियन काउंसिल ऑफ फॉरेस्ट्री रिसर्च एंड एजुकेशन और आईआईटी खड़गपुर के प्रतिनिधि व धनबाद के इंडियन स्कूल ऑफ माइंस के प्रतिनिधियों से संयुक्त तौर पर संरक्षित क्षेत्रों में खनन के लिए पुर्नआकलन अध्ययन कराया जा सकता है।
वहीं, मंत्रालय के वरिष्ठ अधिकारी नाम छुपाने की शर्त पर डाउन टू अर्थ को बताते हैं कि मुख्यमंत्री रघुबर दास ने भी मंत्रालय को इस मामले पर चिट्ठी लिखी है। मुख्यमंत्री ने लिखा है कि संरक्षित क्षेत्र में खनन की इजाजत स्टील अथॉरिटी ऑफ इंडिया (सेल) के लिए मांगी जा रही है। एमएसपीएम के कारण सेल को वित्तीय घाटा उठाना पड़ रहा है जबकि क्षेत्र में खनन के लिए सेल ने भारी निवेश किया है। सीएम ने पर्यावरण मंत्रालय से एमएसपीएम को ही कमजोर करने की सिफारिश की है।
यह पहली बार नहीं है जब सीएम ने मंत्रालय को इस मामले पर चिट्ठी लिखी हो। एमएसपीएम जून, 2018 में तैयार किया गया था। वहीं, राज्य सरकार ने 2018 में ही पर्यावरण मंत्रालय को 14 अगस्त को इसे संशोधित करने के लिए फरियाद किया था।
एमएसपीएम ने सरांडा वन तो तीन जोन में बाटा है। माइनिंग जोन-एक (करीब 10,670 हेक्टेयर), माइनिंग जोन – 2 (करीब 2161 हेक्टेयर) और तीसरा है कंजर्वेशन जोन या गैर खनन क्षेत्र (करीब 43,000 हेक्टेयर)। वहीं, सेल, जेएसडब्ल्यू और वेदांता व अन्य इसी तीसरे यानी गैर खनन क्षेत्र में खनन के प्रस्ताव तैयार किए हैं।
पर्यावरण मंत्रालय की एक और समिति है जिसमें पर्यावरण मंत्रालय, खनन मंत्रालय और स्टील मंत्रालय के साथ कोयला मंत्रालय और झारखंड सरकार के प्रतनिधि भी शामिल हैं जिन्हें एमएसपीएम के प्रावधानों में संशोधन को देखना था। समिति इसी वर्ष 4 फरवरी को मिली थी और उसने एमएसपीएम के प्रावधानों में कुछ बदलाव भी किए थे। इन बदलावों के तहत यह कहा गया था कि माइनिंग जोन – दो का इस्तेमाल तभी होगा जब जोन वन में खनन का काम पूरी तरह कर लिया जाएगा।
राज्य सरकार ने 4 फरवरी को बैठक में कहा था कि भविष्यगत स्टील मांग को ध्यान में रखते आयरन ओर खनन के लिए संरक्षित क्षेत्रों में जैव विविधता की मौजूदगी और पारिस्थितिकी सेवाओं के पुर्नमूल्यांकन को लेकर एक विस्तृत अध्ययन जारी है। वहीं, इस अध्ययन में अत्याधुनिक तरीके से बिना पर्यावरण को नुकसान पहुंचाए आयरन ओर खनन की बात भी कही गई थी। हालांकि, समिति ने तब कहा था कि इसके लिए प्रतिस्पर्धी प्राधिकरण के अनुमति की जरूरत होगी। वहीं, एक अधिकारी ने कहा कि बेहतर गुणवत्ता वाले आयरन ओर संरक्षित क्षेत्रों में हैं ऐसे में सरकार नो माइनिंग जोन को भी खोलना चाहती है। साल वनों के मामले में सारंडा एशिया का सबसे बड़ा वन क्षेत्र है। शाम आयोग ने 2014 में इस क्षेत्र में अवैध खनन के सबूतों के बाद टिकाऊ खनन की योजना पर जोर दिया था।
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