21वीं सदी में कहीं ज्यादा क्षेत्रों को अपनी जद में ले लेंगे उष्णकटिबंधीय चक्रवात

शोध के मुताबिक यह उष्णकटिबंधीय चक्रवात अपने संबंधित गोलार्धों में उत्तर और दक्षिण की ओर पलायन कर सकते हैं, जिसके लिए काफी हद तक जलवायु में आता बदलाव जिम्मेवार है 

By Lalit Maurya

On: Wednesday 05 January 2022
 

येल यूनिवर्सिटी द्वारा हाल ही में किए अध्ययन से पता चला है कि 21वीं सदी में उष्णकटिबंधीय चक्रवात हरिकेन और टाइफून धरती के कहीं ज्यादा हिस्सों को अपनी जद में ले लेंगें। शोध से यह भी पता चला है कि इस दौरान मध्य अक्षांशीय क्षेत्रों में हरिकेन और टाइफून का विस्तार होगा, जिसकी वजह से न्यूयॉर्क, बोस्टन, बीजिंग और टोक्यो जैसे प्रमुख शहरों में इन तूफानों का खतरा मंडराने लगेगा। गौरतलब है कि इन उष्णकटिबंधीय चक्रवातों को उत्तरी अटलांटिक क्षेत्र में हरिकेन और उत्तर पश्चिमी प्रशांत महासागर में टाइफून के नाम से जाना जाता है।

शोध से इतना तो स्पष्ट है कि जिस तरह से जलवायु परिवर्तन के चलते इनकी सीमाओं में विस्तार होगा, उसके चलते वो कहीं ज्यादा घनी आबादी वाले क्षेत्रों को अपना निशाना बना सकते हैं। वर्तमान में, ये चक्रवात या हरिकेन मुख्य रुप से भूमध्य रेखा के उत्तर और दक्षिण में उष्णकटिबंधीय क्षेत्रों तक ही सीमित हैं। लेकिन शोधकर्ताओं का कहना है कि बढ़ते तापमान के चलते जलवायु में आता बदलाव इन घटनाओं को मध्य अक्षांशों में बनने के लिए माहौल तैयार कर देंगे।

जर्नल नेचर जियोसाइंस में प्रकाशित इस शोध के मुताबिक उष्णकटिबंधीय चक्रवात अपने संबंधित गोलार्धों में उत्तर और दक्षिण की ओर पलायन कर सकते हैं। वैज्ञानिकों के मुताबिक सितम्बर 2020 में आया उपोष्णकटिबंधीय तूफान ‘अल्फा’ ऐसा ही एक उदाहरण था। यह पहला उष्णकटिबंधीय चक्रवात था, जो पुर्तगाल से टकराया था। वहीं इस साल तूफान ‘हेनरी’ भी ऐसा ही तूफान था, जिसने कनेक्टिकट को अपना निशाना बनाया था। 

इस बारे में शोध से जुड़े शोधकर्ता जोशुआ स्टडहोल्म ने जानकारी दी है कि यह संकट जलवायु परिवर्तन के एक महत्वपूर्ण, लेकिन बहुत कम अनुमानित जोखिम का प्रतिनिधित्व करता है। उनके अनुसार 21वीं सदी में उष्णकटिबंधीय चक्रवातों की संभावना पृथ्वी केअक्षांशों पर पिछले तीस लाख वर्षों की तुलना में कहीं ज्यादा व्यापक होगी।

हर साल 15 करोड़ लोगों पर मंडराता तूफानों का खतरा

गौरतलब है कि उष्णकटिबंधीय चक्रवात दुनिया की सबसे विनाशकारी प्राकृतिक आपदाओं में से एक हैं। इन तूफानों के चलते हर साल औसतन करीब 15 करोड़ लोगों का जीवन खतरे में है। हाल ही में किए एक शोध से पता चला है कि आने वाले दशकों में जिस तरह से जनसंख्या और वैश्विक तापमान में वृद्धि हो रही है, उसके कारण पहले की तुलना में कहीं ज्यादा लोगों को इन तूफानों का सामना करना पड़ सकता है। 

वहीं जर्नल नेचर क्लाइमेट चेंज में प्रकाशित एक शोध के हवाले से पता चला है कि आने वाले समय में पूर्वी अफ्रीकी देशों में इन तूफानों का खतरा 300 फीसद और अमेरिका में करीब 100 फीसदी तक बढ़ जाएगा। 

इतना ही नहीं 2021 में जलवायु से जुड़ी सबसे महंगी आपदाओं पर छपी एक रिपोर्ट ‘काउंटिंग द कॉस्ट 2021: ए ईयर ऑफ क्लाइमेट ब्रेकडाउन’ से पता चला है कि पिछले वर्ष सामने आई सबसे महंगी आपदा उष्णकटिबंधीय तूफान ‘इडा’ थी, जिसकी वजह से अमेरिका को करीब 4.87 लाख करोड़ रुपए की क्षति उठानी पड़ी थी। 

इसी तरह 2021 में आए उष्णकटिबंधीय चक्रवात ‘यास’ के कारण भारत और बांग्लादेश में 19 लोगों की जान गई थी, जबकि 22,487 करोड़ रुपए का नुकसान हुआ था। वहीं मई 2021 में आए चक्रवात ‘तौकते’ के चलते भारत, श्रीलंका और मालदीव में करीब 198 लोगों की जान गई थी, जबकि 2 लाख से ज्यादा लोग विस्थापित हुए थे और करीब 11,243 करोड़ रुपए की आर्थिक हानि हुई थी।

इसी तरह भारत में चक्रवाती तूफान अम्फान को 2020 में आई दुनिया की 10 सबसे महंगी आपदाओं की लिस्ट में शामिल किया गया था। इस तूफान और आई बाढ़ के चलते करीब 1,69,208 करोड़ रुपए का नुकसान हुआ था। 

समझना होगा क्लाइमेट कनेक्शन

वैज्ञानिकों की मानें तो इन तूफानों के लिए कहीं हद तक जलवायु में आता बदलाव जिम्मेवार है जो इनकी तीव्रता में इजाफा कर रहा है और इन्हें कहीं ज्यादा विनाशकारी बना रहा है। अनुमान है कि यदि 2050 तक जलवायु परिवर्तन को रोकने पर विशेष ध्यान न दिया गया तो इसके चलते तापमान में हो रही वृद्धि 2 डिग्री सेल्सियस के करीब पहुंच जाएगी, जिसके चलते लोगों के इन तूफानों की जद में आने का खतरा करीब 41 फीसदी बढ़ जाएगा। इसका मतलब है कि तापमान में हो रही वृद्धि के चलते भविष्य में और 5.2 करोड़ लोग इन तूफानों का सामना करने को मजबूर हो जाएंगे।

इस शोध से जुड़े शोधकर्ता एलेक्सी वी फेडोरोव ने बताया कि "भविष्य में उष्णकटिबंधीय चक्रवात कैसे बदलेंगे, इस बारे में बड़ी अनिश्चितताएं हैं।" हालांकि पता चला है कि आने वाले वक्त में हम मध्य अक्षांशों में कहीं अधिक उष्णकटिबंधीय चक्रवात देख पाएंगे, हालांकि भले ही उनकी कुल आवृत्ति में वृद्धि न हो, जिसपर अभी भी बहस जारी है और वो पूरी तरह स्पष्ट नहीं है। औसत तौर पर उष्णकटिबंधीय चक्रवात की तीव्रता में होने वाली अपेक्षित वृद्धि के कारण, डर है कि इन चक्रवाती तूफानों का खतरा और बढ़ जाएगा।  

उनके अनुसार आमतौर पर यह चक्रवात निम्न अक्षांशों वाले उष्णकटिबंधीय क्षेत्रों में ही बनते हैं। पर जैसे-जैसे वैश्विक तापमान में वृद्धि हो रही है उसके चलते भविष्य में भूमध्य रेखा और ध्रुवों के तापमान में जो अंतर है वो कम हो जाएगा, जिसका असर जेट स्ट्रीम के प्रवाह पर पड़ेगा।

शोधकर्ताओं के मुताबिक अत्यधिक ऊंचाई पर बहने वाली यह हवाएं इन चक्रवातों के लिए एक अवरोध का काम करती हैं जो उन्हें भूमध्य रेखा के करीब रखती हैं। पर जब तापमान में वृद्धि होगी तो उनके चलते यह जेट स्ट्रीम कमजोर पड़ जाएंगी और अत्यधिक दबाव में बंट जाएंगी, जिस वजह से इन चक्रवातों को भूमध्य रेखा के परे भी फैलने का मौका मिल जाएगा। 

इन आपदाओं से एक बात तो स्पष्ट हो चुकी है कि दुनिया पर मंडराता जलवायु परिवर्तन का खतरा दिन प्रतिदिन प्रबल होता जा रहा है। जैसे-जैसे तापमान में वृद्धि हो रही है यह आपदाएं और विकराल रूप लेती जा रही हैं। समय के साथ इनका दायरा और आने की सम्भावना भी बढ़ती जा रही है। ऐसे में इस समस्या से निपटने के लिए अभी ठोस कदम उठाने की जरुरत है, क्योंकि यदि आज कुछ न किया गया तो आने वाला समय और बदतर हो सकता है। 

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