सूखे की मार के बीच अब जमीन छिनने का डर

बैंक का कर्ज न चुका पाने पर बुंदेलखंड के किसानों की जमीन नीलाम हो रही है

By Bhagirath Srivas

On: Thursday 06 June 2019
 
Photo: Vikas Choudhary

शमशुद्दीन की इन दिनों नींद उड़ी हुई है। उत्तर प्रदेश के बांदा जिले के बसहरी गांव में रहने वाले शमशुद्दीन ने करीब चार साल पहले बैंक से 70 हजार रुपए का कर्ज लिया था जिसे चुका न पाने पर उनकी जमीन नीलाम होने वाली है। उन्हें ब्याज सहित बैंक को 1,01,120 रुपए लौटाने हैं।

तीन बीघा जमीन के मालिक शमशुद्दीन ने पिछले तीन साल से फसल नहीं बोई है और इन दिनों वह क्रेशर मिल में मजदूरी कर रहे हैं। तीन बेटियों और एक बेटे के पिता शमशुद्दीन ने डाउन टू अर्थ को बताया कि पिछले तीन साल से भयंकर सूखा पड़ रहा है। सिंचाई की व्यवस्था न होने और सूखे के कारण वह फिलहाल खेती नहीं कर रहे हैं। इस कारण वह बैंक का कर्ज नहीं चुका पाए।

शमशुद्दीन को उम्मीद थी कि कर्ज माफ हो जाएगा, लेकिन ऐसा नहीं हुआ। अब वह बैंक का कर्ज चुकाने के लिए साहूकारों का दरवाजा खटखटाने पर विचार कर रहे हैं, ताकि कम से कम खेतों को नीलाम होने से बचाया जा सके। शमशुद्दीन के अलावा गांव के पांच अन्य किसानों की जमीन भी नीलाम होनी है।

बैंक के लिए गए कर्ज को चुका न पाने पर बांदा जिले के 57 किसानों की जमीन इसी महीने की 10 से 22 जून तक नीलाम की जानी है। इन किसानों पर करीब 50 लाख रुपए का कर्ज है। नीलामी की प्रक्रिया गांव के प्राथमिक विद्यालय के परिसर में होगी। इससे किसानों की सार्वजनिक बदनामी होगी।

स्थानीय मीडिया में जारी बैंक के मैनेजर जीएल द्विवेदी के बयान के अनुसार, जिन बकायेदार किसानों की जमीन नीलाम हो रही है, उन्हें कर्ज चुकाने का पर्याप्त समय दिया गया था लेकिन वे कर्ज नहीं चुका पाए। बांदा की तरह की बुंदेलखंड के हमीरपुर जिले में भी 56 किसानों की जमीन छिनने की खबरें हैं। महोबा जिले से भी जमीन नीलाम होने की सूचनाएं आ रही हैं। पूरे बुंदेलखंड क्षेत्र से कर्ज न चुका पाने पर किसानों द्वारा आत्महत्या की खबरें रोज अखबारों की सुर्खियां बन रही हैं।   

भारतीय किसान यूनियन (बीकेयू) से जुड़े किसान नेता हरेंद्र सिंह लाखोवाल बताते हैं कि यह समस्या केवल उत्तर प्रदेश की भर नहीं है। पंजाब समेत देशभर में किसानों की जमीन नीलाम करने की कोशिश की जा रही है। वह बताते हैं कि पंजाब में हाल के दिनों में ऐसी गतिविधियां काफी बढ़ गई हैं। बीकेयू नीलामी में लोगों को पहुंचने से रोक रही है ताकि किसान की जमीन बचाई जा सके। वह बताते हैं कि आने वाले दिनों में यह बड़े स्तर पर होगा। किसानों को कर्जमाफी का लाभ नहीं मिला है। केवल चुनिंदा किसानों को फायदा पहुंचाकर अब बैंक वसूली करने में जुट गए हैं।  

कर्ज देने से लेकर कर्जमाफी तक घूसखोरी

पूरे बुंदेलखंड में किसानों को कर्ज दिलवाने से लेकर कर्जमाफी का फायदा पहुंचाने तक में घूसखोरी की लंबी श्रृंखला चल रही है। बांदा के एक शिक्षक ने नाम जाहिर न करने की शर्त पर बताया कि यह घूसखोरी ग्राम प्रधान के स्तर से शुरू हो जाती है। कर्ज दिलाने की ऐवज में वह कर्ज का एक बड़ा हिस्सा हड़प लेता है। वह बताते हैं कि उनके खुद के गांव में किसानों के लोन की आधी रकम प्रधानों ने हड़प ली है। प्रधान किसानों को यकीन दिलाते हैं कि उनका कर्ज माफ हो जाएगा, इसलिए किसान भी घूस देने में गुरेज नहीं करते। पिछले साल बांदा में एक ऐसा ही दिल दहला देने वाला मामला सामने आया था जब जिले के बबेरू इलाके के भभुवा गांव में पिता के नाम बैंक का वसूली नोटिस देखकर एक छात्र ने आत्महत्या कर ली थी। छात्र ने स्यूसाइड नोट में बैंक मैनेजर पर प्रताड़ना का आरोप लगाया था। इसी तरह मूंगुस गांव में सियाराम नामक किसान ने बैंक मैनेजर की प्रताड़ना से तंग आकर जहर खा लिया था। आरोप है कि मैनेजर ने किसान कर्ज माफी योजना का लाभ देने के लिए 15,000 रुपए की मांग की थी।  

दोहरी मार

उत्तर प्रदेश का बुंदेलखंड क्षेत्र सूखे की जबर्दस्त मार से जूझ रहा है। सिंचाई का प्रबंध न होने के कारण साल में केवल एक फसल होती है और वह भी पूरी तरह मॉनसून पर निर्भर करती है। बारिश न होने पर किसानों को लागत निकालनी मुश्किल हो रही है। रही सही कसर आवारा गोवंश पूरी कर रहे हैं। खेतों को बचाने के लिए घेराबंदी करने से जहां लागत बढ़ गई, वहीं रातभर जागकर खेतों की रखवाली करना भी किसी चुनौती से कम नहीं है। इन परिस्थितियों में किसानों के लिए खेती करना बेहद मुश्किल हो रहा है। अब बैंकों के वसूली के नोटिसों ने परेशानी में और इजाफा कर दिया है।  

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