एशियाई देशों में बढ़ सकती है सूखे की त्रासदी : शोध

आंकड़ों के आधार पर दुनिया भर में और क्षेत्रीय स्तर पर चीन, दक्षिण एशिया और भारत में बड़े पैमाने पर सूखा पड़ने के अनुमान लगाए गए हैं

By Dayanidhi

On: Wednesday 24 November 2021
 
फोटो : विकिमीडिया कॉमन्स

एशिया में दुनिया के सबसे बड़े शुष्क और अर्ध-शुष्क क्षेत्र है, यह 1,145 वर्ग किलोमीटर तक फैले हैं। इसलिए एशियाई शुष्क इलाकों में भविष्य में पड़ने वाले सूखे का समय पर मूल्यांकन करना बहुत जरूरी है। हाल के वर्षों में बार-बार आने वाले रेत के तूफानों को लेकर भी यह और महत्वपूर्ण हो जाता है। शुष्क क्षेत्रों पर जलवायु परिवर्तन और जलवायु के चरम सीमाओं का सबसे अधिक प्रभाव पड़ता है।  

एशिया में शुष्क क्षेत्र पश्चिम में कैस्पियन सागर से पूर्व में मंचूरिया तक फैला हुआ है। इसमें मंगोलिया गणराज्य और उत्तर पश्चिमी चीन के साथ पांच मध्य एशियाई देश शामिल हैं। एक अन्य अध्ययन के मुताबिक भारत में भी मौसम संबंधी सूखे की घटनाओं में बढ़ोतरी देखी गई है। 

सूखे की वजह से स्थानीय कृषि, जल संसाधनों और पारिस्थितिक पर्यावरण पर गंभीर प्रभाव पड़ सकते हैं। ग्लोबल वार्मिंग के चलते भविष्य में सूखे की वजह से होने वाले बदलाओं के बारे में सटीक पूर्वानुमान लगाना महत्वपूर्ण है।

चीनी विज्ञान अकादमी के झिंजियांग इंस्टीट्यूट ऑफ इकोलॉजी एंड जियोग्राफी के शोधकर्ताओं के नेतृत्व में एक नया अध्ययन किया गया है। अध्ययन से पता चला है कि भविष्य में दुनिया भर में मौसम संबंधी सूखे के तेज होने की आशंका जताई गई है। यह अध्ययन रिमोट सेंसिंग नामक पत्रिका में प्रकाशित हुआ है।

शोधकर्ताओं ने युग्मित या जुड़े हुए मॉडल इंटरकंपेरिसन प्रोजेक्ट चरण 6 (सीएमआईपी 6) के नौ जलवायु मॉडलों का उपयोग किया है। आंकड़ों के आधार पर, दुनिया भर में और क्षेत्रीय स्तर पर चीन, दक्षिण एशिया और भारत में बड़े पैमाने पर सूखे के अनुमान लगाए गए हैं। मॉडलों के आधार पर एशिया के शुष्क इलाकों में सूखे की घटनाओं की अवधि,आवृत्ति और तीव्रता का विश्लेषण किया गया है।

जलवायु मॉडल के अनुमानों से पता चलता है कि ग्रीनहाउस गैस (जीएचजी) की बढ़ती मात्रा के तहत सूखा कई क्षेत्रों को प्रभावित करेगा। शुष्क भूमि के वातावरण को देशों और क्षेत्रों में द्वारा साझा किया जाता है। लेकिन इन पारिस्थितिक तंत्रों का प्रबंधन अलग-अलग देशों में अलग-अलग तरीके से होता है। साथ ही, एशियाई शुष्क भूमि के लिए सीएमआईपी 6 आंकड़ों पर आधारित अध्ययनों का अभाव है।

शोध के परिणामों से पता चला है कि विभिन्न प्रकार के  सामाजिक-आर्थिक मार्गों के तहत, भविष्य में दुनिया भर में स्थलीय सूखे की बढ़ती प्रवृत्ति के आशंका जताई गई। बढ़ते सूखे की आशंका शेयर्ड सोसिओ-इकोनॉमिक पाथवेज (एसएसपी) 126, एसएसपी 245 और एसएसपी 585 के तहत दिखाई दी है। इन तीनों के आधार पर सूखे का अनुपात क्रमशः 36.2 फीसदी, 53.3 फीसदी और 68.3 फीसदी पाया गया।

इसके अलावा, शोधकर्ताओं ने पाया कि भविष्य में सूखा कम बार पड़ेगा, लेकिन सूखे की अवधि लंबी और अधिक तीव्र होगी। भविष्य में सूखे की यह अवधि 2021 से 2060 और 2061 से 2100 की अवधि क्रमशः 10.8 महीने और 13.4 महीने होगी, जबकि ऐतिहासिक अवधि 1960 से 2000 की अवधि 6.6 महीने तक की थी।

जर्नल नेचर कम्युनिकेशंस में प्रकाशित एक अन्य अध्ययन के मुताबिक भारत में अधिकांश सूखे की घटनाएं मानसून के मौसम के दौरान हुईं हैं। विशेष रूप से सूखे की घटनाएं देश के मध्य, उत्तर-पश्चिम और उत्तर-पूर्व के इलाकों में देखी गई। ये घटनाएं 1980 से 2015 के बीच मई से लेकर सितंबर के दौरान हुईं थीं।  मौसम संबंधी अचानक सूखे की घटना के विश्लेषण से पता चला है कि ये क्षेत्र मानसून के मौसम की शुरुआत में अपनी चरम सीमा का अनुभव करते हैं।

अचानक होने वाली सूखे की घटनाओं का बार-बार होना मुख्य रूप से उष्णकटिबंधीय और उपोष्णकटिबंधीय क्षेत्रों में पाई गई। इन क्षेत्रों में ब्राजील, साहेल, ग्रेट रिफ्ट वैली और भारत का एक बड़ा हिस्सा शामिल है, जिसमें 36 साल की समय अवधि के भीतर सूखे का विश्लेषण किया गया है।

एनवायर्नमेंटल रिसर्च लेटर्स में प्रकाशित एक अन्य अध्ययन से पता चला है कि एसएसपी 585 परिदृश्य के तहत, जो क्षेत्र पहले से ही शुष्क हैं, वे 21वीं सदी के अंत तक भारी सूखे से त्रस्त हो सकते हैं। सबसे अधिक सूखे के गंभीर रुझान ऑस्ट्रेलिया, मध्य पूर्व, दक्षिण अफ्रीका, अमेजन बेसिन, उत्तरी अफ्रीका, यूरोप और मध्य एशिया के शुष्क क्षेत्रों में हो सकते हैं। इसके अतिरिक्त, यूरोप और अमेजन रिवर बेसिन भी भविष्य में सूखे के खतरे का सामना कर सकते हैं।

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