पिछले 20 वर्षों में भारत सहित दुनिया के 150 करोड़ लोगों को सूखे ने किया है प्रभावित

1998 से 2017 के बीच 150 करोड़ से भी ज्यादा लोग सीधे तौर पर सूखे से प्रभावित हुए हैं, साथ ही इससे वैश्विक अर्थव्यवस्था को 9.2 लाख करोड़ रुपए का नुकसान हुआ है

By Lalit Maurya

On: Friday 18 June 2021
 

संयुक्त राष्ट्र के अनुसार सूखा एक छिपा हुआ खतरा है, यदि देशों ने जल, भूमि प्रबंधन और जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिए अभी कुछ नहीं किया तो यह जल्द ही अगली महामारी के रूप में उभरेगा|

यूनाइटेड नेशंस ऑफिस फॉर डिसास्टर रिस्क रिडक्शन (यूएनडीडीआर) द्वारा 18 जून को सूखे पर जारी एक विशेष रिपोर्ट से पता चला है कि 1998 से 2017 के बीच 150 करोड़ से भी ज्यादा लोग सीधे तौर पर सूखे से प्रभावित हुए हैं| यही नहीं इससे वैश्विक अर्थव्यवस्था को करीब 9.2 लाख करोड़ रुपए (12,400 करोड़ डॉलर) का नुकसान हुआ है|

हालांकि रिपोर्ट ने यह भी माना है कि नुकसान का यह जो अनुमान है वो पूरी तरह सटीक नहीं है| सूखे से होने वाला वास्तविक नुकसान इससे कई गुना अधिक होने की संभावना है क्योंकि विकासशील देशों में सूखे के चलते जो नुकसान हो रहा है उसकी सही-सही जानकारी उपलब्ध नहीं है| सूखा हमारे समाज और अर्थव्यवस्था के साथ-साथ पारिस्थितिकी तंत्रों पर भी व्यापक असर डालता है| इसका सबसे ज्यादा असर समाज के सबसे कमजोर और पिछड़े तबके पर पड़ता है|

जलवायु परिवर्तन के चलते एक तरफ जहां तापमान में वृद्धि हो रही है साथ ही इसका असर बारिश के पैटर्न पर भी पड़ रहा है| इसके कारण दुनिया के कई क्षेत्रों में बार-बार सूखा पड़ रहा है, साथ ही इसकी गंभीरता और अवधि में भी वृद्धि हुई है| जैसे-जैसे हम तापमान में 2 डिग्री सेल्सियस की वृद्धि की ओर बढ़ रहे हैं सूखे का खतरा भी बढ़ता जा रहा है|

रिपोर्ट के अनुसार यदि तापमान में इसी तरह तेजी से वृद्धि होती रही तो इस सदी में दुनिया के 129 देश सूखे का सामना करने को मजबूर होंगे| वहीं 23 देश बढ़ती आबादी के कारण जल संकट की समस्या से जूझ रहे होंगे, जबकि 38 देशों के लिए आबादी और जलवायु परिवर्तन दोनों ही बढ़ते जल संकट की वजह होंगें|

यदि अत्यधिक उत्सर्जन के आरसीपी 8.5 परिदृश्य को देखें तो इसके अनुसार हर महीने 8.5 करोड़ से ज्यादा लोग हर महीने गंभीर सूखे का सामना कर रहे हैं यह आंकड़ा सदी के अंत तक बढ़कर 47.2 करोड़ पर पहुंच जाएगा|

इस बाबत अंतराष्ट्रीय जर्नल नेचर क्लाइमेट चेंज में प्रकाशित एक शोध के मुताबिक इस सदी के अंत तक सूखे की गंभीर स्थिति का सामना कर रहे लोगों की संख्या दोगुनी हो जाएगी| जहां 1976 से 2005 के बीच विश्व की करीब 3 फीसदी आबादी गंभीर सूखे का सामना कर रही थी, वो सदी के अंत तक बढ़कर 8 फीसदी तक पहुंच जाएगी|

ऐसे में दक्षिणी के जो देश पहले ही पानी की कमी से जूझ रहे हैं, वहां स्थिति बद से बदतर हो जाएगी। अनुमान है कि इसका सीधा असर कृषि उत्पादन और खाद्य सुरक्षा पर पड़ेगा। जिसके कारण संघर्ष और पलायन के मामलों में इजाफा हो जाएगा। साथ ही गरीबी और असमानता भी बढ़ेगी| साथ ही इससे जल की उपलब्धता घटेगी, मरुस्थलीकरण में वृद्धि होगी और जमीन धीरे-धीरे बंजर होती जाएगी| जिसका असर पूरे पारिस्थितिकी तंत्र पर पड़ेगा|

वहीं यदि इंसानी स्वास्थ्य पर पड़ने वाले असर की बात करें तो इससे कुपोषण का खतरा बढ़ जाएगा| साथ ही जीवों पर बढ़ते दबाव के चलते कई अन्य तरह की बीमारियों के फैलने की सम्भावना बढ़ जाएगी| सूखे के कारण वातावरण में मौजूद धूल के कणों में इजाफा हो जाएगा| अनुमान है कि इन धूल के महीन कणों के चलते होने वाली असमय मौतों में 130 फीसदी तक का इजाफा हो सकता है|

आमतौर पर कई लोग यह मानते हैं कि सूखा, ज्यादातर अफ्रीका और रेगिस्तानी इलाकों के लिए ही समस्या है पर वास्तविकता में यह समस्या उससे कहीं बड़ी है| रिपोर्ट के मुताबिक न केवल कमजोर बल्कि विकसित देश भी सूखे का सामना कर रहे हैं| संयुक्त राष्ट्र महासचिव की विशेष प्रतिनिधि मामी मिजूरी के अनुसार अगले कुछ वर्षों में दुनिया के ज्यादातर हिस्से जल संकट का सामना कर रहे होंगे|

दुनिया भर में पहले ही एक-चौथाई शहर गंभीर जल संकट का सामना कर रहे हैं, जिसमें चेन्नई और केप टाउन जैसे शहर शामिल है जिन्होंने 2018 में गंभीर जल संकट का सामना किया था यदि यही हालात रहे तो आने वाले समय में यह संकट और गहरा जाएगा|

सूखे की जद में है भारत का 68 फीसदी हिस्सा

यदि भारत में सूखे की बात करें तो 1876 से 1878, 1899 से 1900, 1918 से 1919, 1965 से 1967, 2000 से 2003 और 2015 से 2018 के बीच गंभीर सूखा पड़ा था| यदि भारतीय अर्थव्यवस्था पर सूखे के पड़ने वाले प्रभाव को देखें तो हर वर्ष जीडीपी के करीब 5 फीसदी हिस्से को नुकसान पहुंचा रहा है| हालांकि खाद्य उत्पादों की कीमतों में होने वाली वृद्धि, जल संकट और अन्य प्रभावों का मूल्यांकन करें तो यह नुकसान इससे कहीं ज्यादा बैठेगा|

इस रिपोर्ट में ली गई एक केस स्टडी के अनुसार तमिलनाडु में आए सूखे से उद्योग क्षेत्र में 5 फीसदी और सेवा क्षेत्र में 3 फीसदी जबकि प्राथमिक क्षेत्र में 20 फीसदी की गिरावट आई थी|

कुछ समय पहले ही काउंसिल ऑन एनर्जी, एनवायरनमेंट एंड वाटर (सीइइडब्लू) द्वारा भारत पर जलवायु परिवर्तन के बढ़ते खतरे को लेकर जारी एक रिपोर्ट से पता चला है कि देश में 75 फीसदी से ज्यादा जिलों पर जलवायु परिवर्तन का खतरा मंडरा रहा है| जबकि देश का करीब 68 फीसदी हिस्सा सूखे की जद में है| पिछले 15 वर्षों में  चरम सूखे की स्थिति में भी वृद्धि हुई है। इससे अब तक करीब 79 जिले प्रभावित हो चुके हैं। 1970 से 2019 के बीच देश में करीब 14 करोड़ लोग सूखे से प्रभावित हुए हैं| वहीं इस अवधि में सूखा प्रभावित जिलों का वार्षिक औसत 13 गुना बढ़ गया है।

ऐसे में सूखे से निपटने के लिए सही रणनीतियां जरुरी हैं| जिसमें न केवल सूखे के प्रबंधन पर ध्यान देना जरुरी है साथ ही भूमि और जल का उचित प्रबंधन भी करना होगा| जमीन से अनियंत्रित तरीके से जल के किए जा रहे दोहन को बंद करना होगा| वनों कटाव को रोकना होगा| साथ ही गहन कृषि, उर्वरकों के इस्तेमाल को नियंत्रित करना होगा| साथ ही सूखे का मुकाबला करने के लिए उसके पूर्वानुमान और प्रबंधन के लिए नई तकनीकों का भी सहारा लेना होगा| जलवायु परिवर्तन भी सूखे में इजाफा कर रहा है ऐसे में वैश्विक स्तर पर उत्सर्जन में कमी करना भी जरुरी है|

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