सूखे का दंश: सामान्य मॉनसून सूखे से बचने की गारंटी नहीं
सूखा एक स्थायी आपदा है जो हर साल 5 करोड़ भारतीयों को प्रभावित करता है। देश का 33 प्रतिशत हिस्सा लंबे समय से सूखे से प्रभावित है
On: Thursday 28 February 2019
साल का यह समय भारत के वित्त मंत्री अथवा मॉनसून पर नजर रखने का है। यह साल राजनीतिक चिंताओं का भी है। भारत के एक तिहाई जिले पहले से सूखे की चपेट में हैं और आम चुनाव भी कुछ हफ्ते दूर हैं।
इन चुनावों में कृषि संकट मुख्य मुद्दे के रूप में उभरा है। भारत-पाकिस्तान के बीच चल रह तनाव और राजनीतिक उठापटक के बावजूद कुल मतदाताओं में से 55 प्रतिशत मतदाताओं का मत राजनीतिक भविष्य तय करेगा।
भारत मौसम विज्ञान विभाग (आईएमडी) अप्रैल के पहले हफ्ते में अपना आधिकारिक पूर्वानुमान जारी करेगा। हालांकि देश की एकमात्र निजी एजेंसी स्टाईमेट ने पूर्वानुमान जारी कर कहा है कि 2019 का मॉनसून सामान्य रहेगा।
यह पूर्वानुमान इस चेतावनी के साथ आया है कि इसके अवसर 50 प्रतिशत हैं। इसमें यह भी कहा गया है कि अत्यधिक बारिश की संभावना काफी कम है। आईएमडी सामान्य मॉनसून उस स्थिति में परिभाषित करता है जब जून से सितंबर के बीच बारिश 50 साल के औसत का 96 प्रतिशत से 104 प्रतिशत के बीच होती है।
भारत का मौसम विज्ञान विभाग 1877 से मॉनसून और सूखे का रिकॉर्ड रखता आया है। ऐसे में कहा जा सकता है कि सूखा प्रबंधन के मामले में भारत से पास 150 साल से ज्यादा का अनुभव है।
इस अनुभव को देखते हुए यह भी कहा जा सकता है कि सूखा नियमित हो रहा है। दूसरा, मॉनसून में थोड़ी सी कमी भयंकर सूखे का कारण बन रही है और ज्यादा से ज्यादा क्षेत्र सूखा प्रभावित हो रहे हैं।
आधिकारिक तौर पर सूखा एक स्थायी आपदा है जो हर साल 5 करोड़ भारतीयों को प्रभावित करता है। देश का 33 प्रतिशत हिस्सा लंबे समय से सूखे से प्रभावित है जबकि 68 प्रतिशत हिस्सा सूखाग्रस्त है।
भारत में सूखे से संबंधित कुछ चिंताजनक तथ्य सामने आ रहे हैं। ग्रामीण विकास मंत्रालय के पूर्व सचिव एनसी सक्सेना के आकलन के अनुसार, 1997 के बाद से देश के सूखाग्रस्त क्षेत्र में 57 प्रतिशत की बढ़ोतरी हुई है।
पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय के अर्थ सिस्टम साइंस ऑर्गनाइजेशन ने 1901 से 2010 के बीच के सूखे का अध्ययन किया है। यह अध्ययन बताता है कि हाल के दशकों में मल्टी ईयर ड्राउट (24 महीने) में वृद्धि हुई है। 1951 से 2010 के बीच 12 मल्टी ईयर ड्राउट दर्ज किए गए हैं। 1901 से 1950 के बीच ऐसे महज तीन सूखे दर्ज किए गए थे।
अध्ययन यह भी बताता है कि 1977 से 2010 के मध्य सूखे की आवृति में भी वृद्धि हुई है। यह वृद्धि मध्य और प्रायद्वीपीय भारत में अधिक है। हालिया सूखे इस क्षेत्रों में देखे गए हैं। ऐसे भी क्षेत्र हैं जहां औसत सूखे पड़े हैं।
केंद्र सरकार के सूखा राहत कार्यक्रम में 225 सूखेग्रस्त जिलों को शामिल किया गया है। यह आंकड़ा बताता है कि देश में हर तीसरा जिला सूखे के पीड़ित है।
सरकार ने 102 जिलों को लंबे समय से सूखे से प्रभावित अधिसूचित किया है। पूर्ववर्ती योजना आयोग ने इन जिलों को निर्धनतम जिलों में शुमार किया था। इन जिलों में हर तीसरे साल सूखा पड़ता है।
सूखाग्रस्त जिलों में बारिश की प्रवृति पर नजर डालने की जरूरत है। भारत के अधिकांश सूखाग्रस्त क्षेत्रों में अच्छी बारिश होती है। भारत में औसतन 1,088 एमएम बारिश हर साल होती है। लंबे समय से सूखे से प्रभावित जिलों में करीब 750 एमएम बारिश होती है जबकि सूखाग्रस्त क्षेत्रों में 750 एमएम से 1,125 एमएम बारिश हर साल होती है।
उदाहरण के लिए राजस्थान या केरल को ही लें। राजस्थान का 75 प्रतिशत हिस्सा शुष्क और अर्द्धशुष्क है। यहां साल में 490 एमएम बारिश होती है। 1901 से 2017 के बीच यहां 22 हल्के सूखे पड़े। साथ ही 11 भयंकर सूखे का सामना इस क्षेत्र ने किया। केरल में हर साल 2,820 एमएम बारिश होती है। यहां प्रति व्यक्ति वर्षा जल उपलब्धता 11,500 लीटर है जो राष्ट्रीय औसत का तीन गुणा है। इसके बावजूद हाल के दशकों में यहां ऐतिहासिक सूखा पड़ा है। ऐसे में कम से कम यह कहा जा सकता है कि बारिश का सूखे से आनुपातित संबंध नहीं है।